पर्यावरण प्रदूषण समस्या और समाधान
प्रदूषण का अर्थ
स्वच्छ वातावरण में ही जीवन का विकास सम्भव है। जब वातावरण में कुछ हानिकारक तत्त्व आ जाते हैं तो वातावरण को दूषित कर देते हैं। यह गन्दा वातावरण जीवधारियों के लिए अनेक प्रकार से हानिकारक होता है। इस प्रकार वातावरण के दूषित हो जाने को ही प्रदूषण कहते हैं। जनसंख्या की असाधारण वृद्धि एवं औद्योगिक प्रगति ने प्रदूषण की समस्या को जन्म दिया है। औद्योगिक तथा रासायनिक कूड़े-कचरे के ढेर से पृथ्वी, हवा तथा पानी प्रदूषित हो रहे हैं।
प्रदूषण के प्रकार
आज के वातावरण में प्रदूषण निम्न रूपों में दिखाई पड़ता है-1. वायु प्रदूषण, 2. जल प्रदूषण, 3. ध्वनि प्रदूषण, 4. रासायनिक प्रदूषण ।
1. वायु प्रदूषण – वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें एक विशेष अनुपात में उपस्थित रहती हैं। जीवधारी अपनी क्रियाओं द्वारा ऑक्सीजन और कार्बन डाइ ऑक्साइड छोड़ते रहते हैं। हरे पौधे प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन निष्कासित करते रहते हैं। इससे वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइ ऑक्साइड का सन्तुलन बना रहता है, किन्तु मानव अपने अज्ञानवश और आवश्यकता के नाम पर इस सन्तुलन को नष्ट करता रहता है।
2. जल प्रदूषण- सभी जीवधारियों के लिए जल बहुत महत्त्वपूर्ण और आवश्यक है। पौधे भी अपना भोजन जल माध्यम से प्राप्त करते हैं। यह भोजन पानी में घुला रहता है। जल में अनेक प्रकार के खनिज तत्त्व, कार्बनिक-अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें घुली रहती हैं। यदि जल में यह पदार्थ आवश्यकता अधिक मात्रा में हो जाते हैं तो जल प्रदूषित होकर हानिकारक हो जाता है और वह प्रदूषित
3. ध्वनि प्रदूषण- ध्वनि प्रदूषण आज की एक नयी समस्या है। इसे वैज्ञानिक प्रगति ने पैदा किया है। मोटर-कार, ट्रैक्टर, जेट विमान, कारखानों के साइरन, मशीनें तथा लाउडस्पीकर आदि ध्वनि के सन्तुलन को बिगाड़कर ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। तेज ध्वनि में श्रवण-शक्ति का ह्रास होता है और कार्य करने की क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी पड़ोस में लाउडस्पीकर बजने से रात भर नींद नहीं आती। इससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं। अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण से मानसिक विकृति तक हो सकती है।
4. रासायनिक प्रदूषण-कारखाने से बहते हुए अवशिष्ट द्रव्यों के अलावा खाद्यान्न की उपज में वृद्धि की दृष्टि से प्रयुक्त कीटनाशक दवाइयों से और रासायनिक खादों से भी स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये पदार्थ पानी के साथ बहकर नदियों, तालाबों और अन्ततः समुद्र में पहुँच जाते हैं और जीवन को अनेक प्रकार से हानि पहुंचाते हैं।
प्रदूषण के कारण
पर्यावरण प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण विश्व की जनसंख्या में तेजी से होने वाली वृद्धि है। विश्व की जनसंख्या आज सुरसा की भाँति अपना मुँह फैलाती जा रही है। जनसंख्या में जिस तेजी के साथ विस्तार होता जा रहा है, उतनी ही तेजी से आदमी की सुविधाओं में ह्रास होता जा रहा है। रहने के लिए स्थान की भारी कमी आ रही हैं। खाने के लिए सन्तुलित भोजन उपलब्ध होना कठिन हो गया है।
पर्यावरण प्रदूषण का दूसरा बड़ा कारण विज्ञान है। विज्ञान के आविष्कार जहाँ मानव जाति के लिए वरदान स्वरूप सिद्ध हुए हैं, वहीं उनसे मानव का भयंकर अहित भी हुआ है। विज्ञान ने विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के लिए अनेक मशीनों का निर्माण किया है। इन मशीनों को चलाने के लिए ईंधन के रूप में पेट्रोल, डीजल, कोयला, लकड़ी, तेल आदि का उपयोग किया जाता है। कारखानों की ऊँची-ऊँची चिमनियों से दिन-रात निकलने वाले धुएँ की अपार राशि सारे वातावरण को दूषित करती रहती है। धुएँ से सारा वातावरण कालिमामय दिखाई देता है। इसके साथ ही इन कारखानों से निकलने वाला दूषित जल जहाँ भी जाकर स्वच्छ जल में मिलता वहाँ का जल विषाक्त हो जाता है। बड़ी-बड़ी नदियों में जहाँ-जहाँ ऐसे कारखाने का जल मिलता है, वहाँ बड़ी दूर तक नदियों का जल विषाक्त हो जाता है। उनमें कोई जीव-जन्तु जीवित नहीं बच पाता।
प्रदूषण की रोकथाम के उपाय
पर्यावरण को दूषित करने वाली परिस्थितियाँ आज मानव के समक्ष चुनौती बनकर खड़ी हैं। वातावरण को दूषित करने में हम सभी जिम्मेदार हैं। अतः इसका निदान भी हम सबको मिलकर ही करना पड़ेगा। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने इस समस्या को गम्भीरता से समझा था। इसलिए उन्होंने यज्ञ की सृष्टि की थी। यज्ञों में प्रयुक्त घी, तिल आदि के कारण वातावरण शुद्ध रहता है। लेकिन आज इन चीजों का प्रयोग करना कठिन है। यज्ञ की कल्पना आज असम्भव हो गयी है।
अतः इस समस्या पर नियन्त्रण के लिए सबसे प्रथम उपाय तो यह है कि बढ़ती हुई जनसंख्या पर नियन्त्रण किया जाय। सीमित जनसंख्या रहने से पर्यावरण दूषित होने की सम्भावना कम रहेगी। साथ ही अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण भी पर्यावरण को स्वच्छ बनाने में मदद करता है और उस जगह का वातावरण भी सुन्दर होगा। नदियों के पानी को प्रदूषण से बचाने के लिए हमें उस जल में मृत जीवों अथवा शवों को प्रवाहित नहीं करना चाहिए। धुआँ रोकने के लिए यह सुगम उपाय है कि कल-कारखाने ऐसे स्थानों पर लगाएँ जायें जहाँ जनसंख्या अधिक न हो।
उपसंहार
उपर्युक्त उपायों से हम वातावरण को शुद्ध बनाये रख सकते हैं। पर्यावरण प्रदूषण की समस्या सारे विश्व में है। इससे कोई भी देश या क्षेत्र बच नहीं सकता। अतः इस समस्या को सामूहिक रूप से सुलझाने का प्रयत्न करना चाहिए। शासन द्वारा इस दिशा में जो प्रयास किये जा रहे हैं, उनमें हमें भी पूरी सामर्थ्य के साथ सहायता करनी चाहिए। हम गरीब देश और प्रदेश के निवासी हैं। पर्यावरण प्रदूषण के महँगे कार्यक्रमों पर चलना हमारे लिए सरल नहीं है। यदि इन कार्यक्रमों के उत्पादन पक्ष का समावेश कर लें तो फिर हमारे लिए वह भी सुगम हो जायेगा।
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