मेरा प्रिय कवि ( सुमित्रानंदन पंत )
मेरे प्रिय कवि ( सुमित्रानंदन पंत ) – सुमित्रानन्दन पन्त जी ने अपने शैशव की किलकारियाँ प्रकृति के आँचल में ही भरीं। उनका जन्म अल्मोड़ा नगर के कौसानी गाँव में 20 मई, 1900 ई0 को हुआ था। उनके पिता का नाम पं० गंगादत्त एवं माता का नाम सरस्वती देवी था। परन्तु जन्म के कुछ समय बाद ही माता का देहान्त हो गया। उनके बचपन का नाम गुसाई दत्त था। काशी के जयनारायण स्कूल से 1919 ई० में उन्होंने हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण की और इलाहाबाद में म्योर सेन्ट्रल कालेज में प्रवेश लिया। 1921 ई० में गाँधीजी के आह्वान पर उन्होंने कालेज छोड़ दिया और साहित्य साधना में संलग्न हो गये। कविता लिखने का शौक उन्हें बचपन से ही रहा और इसकी प्रेरणा स्रोत थी प्रकृति ।
सुमित्रानन्दन पन्त जी की रचनाएँ
पन्तजी मूलतः कवि थे। उन्होंने कहानी, नाटक, निबन्ध पर भी लेखनी चलाई, किन्तु उधर उनका अधिक मन नहीं रमा अन्ततः काव्य ही उनकी मूल साधना रही। वीणा, ग्रन्थि, पल्लव, गुंजन, युगान्त, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण-धूलि, स्वर्ण किरण, युग-पथ, उत्तरा, अतिमा, रजत-रश्मि, चिदम्बरा, कला और बूढ़ा चाँद, रश्मिबन्ध, लोकायतन आदि उनके काव्य-ग्रन्थ हैं।
सुमित्रानन्दन पन्त जी की काव्यगत विशेषताएँ
पन्त जी की काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
प्राकृतिक सौन्दर्य-चेतना-पन्त जी की प्रकृति-सौन्दर्य-चेतना सर्वप्रथम हिमाच्छादित पर्वत मालाओं, बादलों, इन्द्रधनुष नक्षत्र और सरिताओं की सुषमा देखकर सजग हुई और उनका कवि हृदय आनन्द से भाव-विभोर हो उठा। यौवन के प्रथम चरण में उन्होंने किसी किशोरी के बाल जाल में अपने लोचन उलझाने की आकांक्षा मन में प्रकट की थी, फिर भी वृक्षों की छाया को छोड़ प्रेयसी के केशों में उलझना उन्हें स्वीकार नहीं हो सका
छोड़ द्रुमों की मृदु छाया,
तोड़ प्रकृति से भी माया
बाले तेरे बाल जाल में,
कैसे उलझा दूँ लोचन ।
वास्तव में पन्तजी प्रकृति की सुकुमार भावनाओं के कवि हैं। उनका रहस्यवाद भी प्रकृति-सौन्दर्य से प्रभावित है।
राष्ट्र प्रेम की भावना-पन्तजी के काव्य में प्रकृति-सौन्दर्य और युग चेतना युग-चे के साथ-साथ राष्ट्र प्रेम की भावना भी विद्यमान है। कवि को देश से स्वाभाविक प्रेम है। भारत माता का सजीव चित्र देखिए-
भारत माता ग्राम वासिनी।
तीस कोटि सन्तान नग्न, तन
अर्द्धक्षुधित शोषित निरस्र जन,
मूढ़ असभ्य अशिक्षित निर्धन,
नत मस्तक तरु तल निवासिनी ।
सुमित्रानन्दन पन्त जी की भाषा-शैली
पन्त जी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली है, जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है, फिर भी भाषा में कोमलता और माधुर्य कूट कूट कर भरा हुआ है। कहीं-कहीं फारसी और ब्रजभाषा के शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं। यत्र-तत्र सन्धि और लिंग के नियमों का उल्लंघन भी भाषा में दिखाई पड़ता है।
रस छन्द-अलंकार- पन्तजी के प्रेमात्मक काव्य में शृंगार और प्रगतिवादी रचनाओं में करुण रस का सुन्दर परिपाक हुआ है। यद्यपि पन्त जी की रचनाओं में संयोग और वियोग दोनों रसों का वर्णन है, किन्तु संयोग की अपेक्षा वियोग-चित्रण में इनको विशेष सफलता मिली। पन्तजी ने मात्रिक छन्दों का विशेष प्रयोग किया है। काव्य में संगीतात्मकता और कोमलता लाने के लिए उन्होंने आवश्यकतानुसार परिवर्तन भी किया है।
उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि सादृश्यमूलक अलंकार पन्तजी को विशेष प्रिय हैं, किन्तु उनका प्रयोग किसी सजावट के आग्रह से नहीं, बल्कि स्वाभाविक रूप से हुआ है। इसके अतिरिक्त अनुप्रास, सन्देह, उल्लेख आदि अलंकारों का भी प्रयोग काव्य में देखने को मिल जाता है।
उपसंहार
भाव और कला दोनों दृष्टियों से विचार करने पर यह सिद्ध होता है कि पंतजी आधुनिक युग के प्रतिनिधि कवि हैं। इनके काव्य में विचारों की गहनता के साथ-साथ भावों की व्यंजना इतनी कोमल और कमनीय पदावली में हुआ है कि यह निर्णय कर पाना कठिन हो जाता है कि पन्त जी कवि अधिक हैं अथवा विचारक या शिल्पी। सचमुच ही पन्त जी प्रकृति के सुकुमार कवि हैं, युग के महान चिन्तक हैं और काव्य के सुन्दर शब्द-शिल्पी हैं। उनके काव्य का नाद-सौन्दर्य अत्यन्त ही सुन्दर और आकर्षक है।
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