वृक्षारोपण : एक आवश्यकता पर निबंध
प्रस्तावना- मानव के स्वास्थ्य तथा सुन्दरता की वृद्धि के लिए, पर्यावरण को शुद्ध रखने के लिए, पृथ्वी को सुन्दर बनाने के लिए, मरुस्थल का विस्तार रोकने के लिए, कृषि की पैदावार बढ़ाने के लिए, उद्योग-धन्धों की वृद्धि के लिए, देश को अकाल से बचाने के लिए, लकड़ी, फल, फूल, सब्जियाँ, जड़ी-बूटियाँ, औषधियाँ इत्यादि प्राप्त करने के लिए वृक्षारोपण करना परम आवश्यक है।
वृक्षारोपण का अर्थ- वृक्षारोपण का शाब्दिक अर्थ है-वृक्ष लगाकर उन्हें उगाना। वृक्षारोपण से यह भी तात्पर्य है कि वृक्ष लगाकर उनकी भली-भाँति देखभाल की जानी चाहिए, जिससे वृक्षारोपण केवल नाममात्र के लिए न होकर लाभकारी सिद्ध हो सके। वृक्षारोपण का प्रयोजन प्रकृति में सन्तुलन बनाए रखना होता है साथ ही वृक्षारोपण द्वारा ही मनुष्य का जीवन समृद्ध तथा सुखी हो सकता है क्योंकि हम अपनी प्रत्येक आवश्यकता के लिए वृक्षों पर ही आश्रित हैं।
प्राचीनकाल में वृक्षों का महत्व- भारतीय संस्कृति में प्राचीनकाल से ही वृक्षों को देवत्व का अधिकार प्राप्त है, तभी तो उस समय पेड़-पौधों की देवताओं के सदृश अर्चना की जाती थी तथा उनके साथ मनुष्यों की भाँति आत्मीयतापूर्ण व्यवहार किया जाता था। प्राचीन समय में लोग पेड़ों को काटने के स्थान पर उनकी देखभाल अपने बच्चों की भाँति करते थे। वर्षा ऋतु में जलवर्षण आघात से, शिशिर में तुषारपात तथा ग्रीष्म ऋतु में सूर्य के ताप से उन्हें बचाय जाता था। स्त्रियाँ पीपल, केले, तुलसी, बरगद जैसे वृक्षों की पूजा करती है तथा उनके चारों ओर परिक्रमा लगाकर जल देती थी। बेल के वृक्ष के पते भगवान शिव के मस्तक पर चढ़ाए जाते थे। नीम को तो लोग उपचार हेत उपयोग करते थे। संध्या के उपरान्त किसी भी वृक्ष के पत्ते तोड़ना तथा हो वृक्ष काटना पाप माना जाता था। अशोक का वृक्ष भी प्राचीन समय में पूज्य होता था।
वृक्षों के अनगिनत लाभ- वृक्षों के महत्त्व को कोई भी नहीं नकार सकता वृक्ष पृथ्वी की शोभा तो बढ़ाते ही हैं साथ ही वे हरियाली का उद्गम भी है। वृक्ष वर्षा कराने में सहायक होते हैं क्योंकि मानसूनी हवाओं को रोककर वर्षा करना वृक्षों का ही कार्य है। वृक्ष देश को मरुस्थल बनने से रोककर उसके सौंदर्य में वृद्धि करते हैं। वृक्षों से वातावरण शुद्ध होता है, मनुष्य का स्वास्थ्य सुन्दर रहता है, फेफड़ों में शुद्ध वायु के प्रवेश से वे सही कार्य कर पाते हैं। यह सब इसलिए सम्भव है क्योंकि वृक्ष अत्यधिक मात्रा में ऑक्सीजन का निर्माण करते हैं। इसके अतिरिक्त वृक्षों से हमें अनेक प्रकार की औषधियाँ प्राप्त होती हैं। नीम की जड़ें तथा पत्ते दोनों ही फोड़े-फुसियों आदि के लिए रामबाण हैं, तुलसी की पत्तियाँ खाँसी जुकाम की अचूक औषधि हैं वही ‘ऐलोवेरा’ की पत्तियाँ सौन्दर्य वृद्धि के लिए प्रयोग की जाती है। स्वास्थ्य की प्राकृतिक औषधि, जीभ के लिए स्वादपूर्ण एवं मानव मात्र के लिए कल्याणकारी अनेक प्रकार की फल-सब्जियाँ वृक्षों द्वारा ही प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी वृक्षों के अनेक लाभ हैं। ‘खैर’ के पेड़ की लकड़ी से कत्था एवं ‘तेनदू’ वृक्ष के पत्तों से बीड़ी बनती हैं। बाँस की लड़की तथा घास से जहाँ कागज निर्मित होता है वहीं ‘लाख’ तथा ‘चमड़ा’ भी वृक्षों से ही प्राप्त होता है। वृक्षों की छाल तथा पत्तियों से अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ मिलती हैं जो दवाईयाँ बनाने में काम आती हैं। आयुर्वेदिक दवाईयाँ तो सौ प्रतिशत जड़ी-बूटियों द्वारा ही निर्मित होती हैं। औषधीय गुणों के अतिरिक्त वृक्षों से हमारे घरेलू सामान जैसे अल्मारी, पलंग, कुर्सी, मेज, दरवाजे आदि बनते हैं, वही खेल-कूद के बल्ले, हॉकी आदि बनाने के लिए भी लकड़ी की ही आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त जलाने के लिए ईधन रूप में भी लकड़ी की आवश्यकता होती है। वृक्ष थके हारे पथिकों तथा अनेक पशु-पक्षियों का शरणास्थल होते हैं। ये उन्हें वर्षा, लू, शीत आदि से बचाते हैं। वृक्ष जलवायु की विषमता को दूर करते है तो ये पर्यावरण के भी नाशक हैं। वृक्ष ही प्रदूषण से हमारी सुरक्षा करते है। आज शहरों में जो इतना वायु प्रदूषण फैल रहा है, उसका कारण वृक्षों का काटना ही है। इस सबके अतिरिक्त वृक्ष हमें नैतिक शिक्षा भी देते हैं। मनुष्य के निराशा भरे जीवन में ये वृक्ष ही नवीन आशा का संचार करते हैं। जब क्लान्त व निराश मानव कटे वृक्ष को पुनः हरा भरा होते हुए देखता है तो उसकी निराशाएँ उससे दूर हो जाती है और वह भी उसी वृक्ष की भाँति अपने जीवन में भी हरियाली लाने का प्रयत्न करता है। परोपकार की सच्ची शिक्षा भी हमें वृक्षों द्वारा ही मिलती है क्योंकि-
“वृक्ष कबहुँ नाहिं फल भखे, नदी न सिंचै नीर।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ॥”
अर्थात् जिस प्रकार वृक्ष अपने पैदा किए हुए फल स्वयं न खाकर दूसरों को इनका आनन्द देते हैं, वैसे ही परोपकारी व्यक्ति अपने बारे में न सोचकर दूसरों के हित की चिन्ता करते हैं। अतः वृक्ष हमारे देश की नैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक समृद्धि के मुख्य स्रोत हैं।
आधुनिक समय में वृक्षों का विनाश- आज का युग औद्योगिकरण का युग है तभी तो मनुष्य पुरानी परम्पराओं को ‘पुराणपन्थी’ कहकर वृक्षों के महत्त्व को नकार रहा है तथा उन्हें लगातार काट रहा है। वृक्षों के कटाव के पीछे भी अनेक कारण हैं। जनसंख्या वृद्धि के कारण वनों की भूमि को भी आवास भूमि की भाँति प्रयोग किया जा रहा है। जगह-जगह फैक्ट्रियाँ लगाई जा रही हैं, बड़े-बड़े होटल बनाए जा रहे हैं। परिणामस्वरूप भारतवर्ष की जलवायु में शुष्कता आ गई है ऑक्सीजन कम हो रही है, ईंधन के भाव बढ़ रहे हैं तथा भुखमरी की समस्या पैदा हो रही है। साथ ही हम कितनी ही बीमारियों जैसे फेफड़ों, श्वास, हृदय सम्बन्धी बीमारियों से जूझ रहे हैं।
वृक्षारोपण की योजना का शुभारम्भ- सन् 1950 में भारत सरकार ने ‘वनमहोत्सव’ की योजना प्रारम्भ की थी। परन्तु उस समय यह इतना कारगर साबित नहीं हो पाया था। अब दोबारा से देशभर में वृक्षारोपण का कार्यक्रम विशाल स्तर पर चलाया जा रहा है। नगरों की नगर पालिकाओं को वृक्षारोपण की निश्चित संख्या बता दी जाती है। प्रत्येक विद्यालय में भी छात्रों तथा शिक्षकों द्वारा वृक्षारोपण कार्य किया जाता है। अनेक राज्यों में वृक्षों की कटाई पर कानूनन प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। बाढ़ तथा सूखे की समस्याओं से निपटने के लिए वन संरक्षण किए जा रहे हैं। इस कार्य के लिए केन्द्रीय एवं प्रादेशिक मन्त्रालयों में अलग-अलग मन्त्री नियुक्त कर अलग-अलग विभाग खोले गए हैं। प्रतिवर्ष जुलाई के महीने में सभी संस्थानों द्वारा पेड़-पौधे लगाए जाते हैं।
उपसंहार- वास्तव में वृक्ष ही प्रकृति के आँगन का सुन्दरतम अंग है, इनके बिना प्रकृति सौन्दर्यविहीन लगती है। अतः हमारा यह कर्त्तव्य है कि हम वृक्षों के महत्त्व को समझें तथा अधिक से अधिक वृक्षारोपण करे तथा दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें।
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