ग्रामीण जीवन की समस्याएँ पर निबंध
प्रस्तावना- भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा भारत की 71% जनता गाँवों में ही बसती है। ये गाँव ही भारत की आत्मा है, हमारे जीवन का दर्पण है तथा वास्तविक भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति के प्रतीक हैं। वास्तविक प्राकृतिक सुन्दरता की मनोरम छटा गाँवों में ही बिखरी पड़ी हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने एक बार कहा भी था कि यदि भारत को विकसित करना है, तो पहले यहाँ के गाँवों को विकसित करना होगा, क्योंकि भारत गाँवों में ही बसता है किन्तु यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि भारत की आत्मा कहे जाने वाले गाँव मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित है।
ग्रामीण जीवन की प्रमुख समस्याएँ- -आज सरकार की ओर से ये दावे किए जाते हैं कि गाँवों के उत्थान के लिए भरसक प्रयास किए जा रहे हैं किन्तु सच्चाई तो यह है कि आज भी अधिकतर गाँवों में बिजली, पानी, सफाई, शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार, यातायात की समस्याएँ गाँववासियों का जीवन दूभर किए हुए हैं। आज भी गाँवों की सड़कें कच्ची तथा गढ्ढों से युक्त हैं तथा बरसात में इन सड़कों पर चलने के बारे में हम शहरी लोग सोच भी नहीं सकते। गाँव में अधिकतर सभी किसानों ने अपने खेतों की सिंचाई के लिए मशीन तो लगा ली है परन्तु बिजली की कमी के कारण वे ट्यूबवैल बेकार पड़े रहते हैं तथा किसानों को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। गाँवों में 15 से 16 घन्टे बिजली की कटौती की जाती है तथा वही बिजली शहरों में मुहैया कराई जाती है। बिजली की यह कटौती किसी भी समय हो जाती है इसलिए परेशानी कई गुना बढ़ जाती है।
पीने का साफ पानी भी अधिकतर गाँवों में उपलब्ध नहीं है। गाँवों में नगर निगम के पानी की लाइन नहीं है जिसके कारण ग्रामीणों को कुओं, तालाबों आदि का पानी पीना पड़ता है और फिर हैजा, दस्त, पेचिश, आदि बीमारियाँ ग्रामीणों को झेलनी पड़ती है। सरकार की ओर से भी इस दिशा में कोई ठोस कदम कहीं उठाए जाते हैं। ग्रामीणों की परेशानी यही पर समाप्त नहीं हो जाती है। उचित-चिकित्सा के अभाव में कितने ही गाँववासी असमय ही मौत के मुँह में चले जाते हैं। राज्य सरकार की ओर से गाँवों में जो प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र चाए जाते हैं उनके डॉक्टर अपने अस्पताल में बैठने के स्थान पर अपने व्यक्तिगत क्लीनिकों में प्रैक्टिस कर रहे हैं। कितनी ही बार तो डॉक्टर की अनुपस्थिति में कम्पाउंडर या चपरासी ही बीमार को देख लेते हैं और फिर उल्टी-सीधी दवाई लेने से मरीज की हालत और भी बिगड़ जाती है। सरकार की ओर से बीमारों को मुफ्त दवाईयाँ देने का प्रावधान है किन्तु कितनी ही दवाईयाँ अस्पताल में पहुँचने से पहले ही दवाई की दुकानों में बेच दी जाती है। दूसरे डॉक्टर भी जल्द से जल्द गाँवों से अपना तबादला शहरों में कराने की जोड़-तोड़ करते रहते हैं क्योंकि गाँवों में न तो उनका मन ही लगता है और न ही कोई सुविधाएँ ही प्राप्त होती है।
शिक्षा के क्षेत्र में ग्रामीणों की दशा बहुत दयनीय है। प्राइमरी स्कूलों की खस्ता हालत देखकर बहुत दुख होता है। प्रत्येक गाँव के प्राइमरी स्कूल के कमरों में पंखों व बिजली की कोई व्यवस्था नहीं है। सफाई का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता है। स्कूल में पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है, ज्यादातर स्कूलों के हैडपम्प खराब पड़े रहते हैं क्योंकि कोई भी उनकी देखभाल पर ध्यान ही नहीं देता है। गाँवों के स्कूलों में शिक्षक प्रायः अनुपस्थित ही रहते हैं और यदि आते भी हैं तो पढ़ाने के स्थान पर बातों में व्यस्त रहते हैं। इंटरकॉलेज केवल थोड़े बहुत गाँवों में ही होते हैं और इन कॉलेजों में शिक्षक शहर से पढ़ाने आते हैं इसीलिए अधिकतर वे अनुपस्थित रहते हैं।
गाँवों की सड़कें तथा गलियाँ टूटी फूटी होती है तथा उनकी मरम्मत के बारे में कोई भी नहीं सोचता। ऐसी टूटी-फूटी सड़कों पर जब बुग्गी, घोड़ा ताँगा, ट्रैक्टर आदि वाहन चलते हैं तो सड़के और भी टूट जाती है। टूटी-फूटी गलियों से गन्दा पानी बाहर बहता रहता है जिससे अनेक बीमारियाँ फैल जाती हैं। सड़कों पर ‘लाइट’ का तो नामोनिशान ही नहीं होता इसलिए थोड़ा सा भी अँधेरा होने पर आने-जाने में बहुत परेशानी होती है इसके अतिरिक्त राज्य सरकार द्वारा खोली गई राशन की दुकाने, डाकघर इत्यादि बन्द रहते हैं और जब खुलते हैं तो सामान ही उपलब्ध नहीं होता। इसके अतिरिक्त गाँव वालों को अपनी फसल बेचने में अत्यन्त कठिनाई होती है क्योंकि गाँवों से मण्डी दूर होती है। इसका पूरा लाभ भी किसानों को नहीं मिल पाता और सारा पैसा दलाल ही खा जाते हैं। ये दलाल गाँव के लोगों से कम मूल्य में अनाज खरीद लेते हैं और फिर बाजार में अच्छे पैसों में बेचकर खूब लाभ कमाते हैं। अब यह र्भाग्य नहीं तो और क्या है कि जो दिन रात मेहनत करके, सूखे, बाढ़, वर्षा का कष्ट झेलकर फसल उगाता है, वही दुखी रहता है।
अधिकतर गाँवों में संचार माध्यमों की भी बेहद दुर्व्यवस्था होती है। फोन लाइन ठीक से कार्य नहीं करती, खराब हो जाने पर कोई ठीक करने जल्दी से नहीं पहुँचता इसीलिए उनका शहरों से सम्पर्क टूट सा जाता है। गाँवों में एक ही सहकारी बैंक होता है, जिसके कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाते । वे तो शहरों की ओर भागते हैं तथा कोई भी कार्य मन लगाकर नहीं करते। इन सबके अतिरिक्त गाँवों की दुर्दशा का मुख्य कारण अशिक्षा, कुसंस्कार, रुढिवादिता आदि भी है। आज भी ग्रामीण लोग बुरी परम्पराओं में जकड़े हुए हैं, अंधविश्वासों से घिरे हुए हैं। बाल-विवाह, बेमेल विवाह भी गाँवों की मुख्य समस्याएँ हैं।
समस्याओं का निवारण करने के उपाय- प्रत्येक समस्या का समाधान होता है, बशर्ते हम दिल से उसका हल ढूँढकर उस पर अमल करें। सर्वप्रथम राज्य सरकारों की ओर से गाँवों की प्रगति तथा विकास के लिए जो भी नियम या संस्थाएँ बनाई जा रही हैं वे ठीक से कार्य करती है या नहीं यह देखना बहुत जरूरी है। दूसरी ओर ग्रामीणों को स्वयं भी जागरुक होने की आवश्यकता है। आज वे भी टेलीविजन देखते हैं, रेडियो सुनते है तो उन्हें भी अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए तथा अंधविश्वासों से बाहर निकलकर अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के बारे में सोचना चाहिए।
उपसंहार- निष्कर्ष रूप से हम कह सकते हैं कि आज ‘हिन्दुस्तान’ बदल रहा है, गाँव भी पहले से अधिक विकसित हो रहे हैं, सरकार की ओर से भी ठोस कदम उठाए जा रहे हैं, किन्तु इतने ज्यादा गाँवों का सुधार करने के लिए हमें और भी अधिक प्रयत्न करने होंगे, तभी हमारा देश सही अर्थों में उन्नत तथा विकासशील देश कहला सकेगा।
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