सामाजिक समस्याएँ पर निबंध
प्रस्तावना- भारतवर्ष अनेक सामाजिक कुरीतियों का घर है। इन कुरीतियों ने पूरे देश को जर्जर कर रखा है। यद्यपि हमने अपनी स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए पूरी हिम्मत से अंग्रेजों का सामना किया तथा आजादी प्राप्त कर ली, परन्तु हमारी सामाजिक विषमताएँ आज भी वैसी ही है, जैसी दो सौ वर्ष पहले थी। इनमें से कुछ विषमताएँ अंग्रेजों की देन है, तो कुछ हमारे ही स्वार्थी धर्म के ठेकेदारों ने पैदा कर रखी है। एक समय ऐसा भी था जब हमारा देश, समाज विश्व के सर्वश्रेष्ठ समाजों में गिना जाता था तथा यहाँ की धरती धन-धान्य से परिपूर्ण थी। परन्तु आज तो अनगिनत समस्याएँ हमारे देश में अपनी जड़े हमारा जमा चुकी हैं।
साम्प्रदायिकता की समस्या- हमारे देश में अनेक धर्मों, जातियों, सम्प्रदायों के लोग रहते हैं। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, पारसी सभी अपने अलग-अलग धर्मों को मानते हैं। हर क्षेत्र में एक अलग क्षेत्रीय ‘भाषा’ बोली जाती है। खान-पान, रहन-सहन सभी में बहुत विविधता है इसीलिए विचारधाराएँ भी भिन्न-भिन्न है। पहले लोग दूसरे धर्म का सम्मान करते थे, परन्तु आज लोग धर्मांध हो चुके हैं। हर तरफ साम्प्रदायिकता का बोलबाला है। महाराष्ट्र के नेता चाहते हैं कि यहाँ के लोग केवल ‘मराठी’ भाषा बोले, अब ऐसे में दूसरे राज्यों से आए लोग तो अपनी स्थानीय भाषा ही बोलेंगे। ऐसी ही छोटी-छोटी बातों पर विशाल साम्प्रदायिक दंगे हो रहे हैं तथा हमारे ही देश की जान व माल की क्षति हो रही है।
नारी-समानता की समस्या- हिन्दू समाज की सबसे प्रधान समस्या नारी सम्बन्धित है। यद्यपि भारतीय संविधान ने स्त्रियों को भी पुरुषों के समान अधिकार दिए हैं, किन्तु वे केवल लिखित बातें बनकर रह गई हैं। आज भी नारी पिता, भाई, पति के हाथों का खिलौना है। आज भी हमारे समाज में पिता या भाई की इच्छा से ही लड़की को विवाह करना पड़ता है। उसे अपना जीवन साथी चुनने का कोई अधिकार नहीं है और यदि हिम्मत करके वह अपना मनपसन्द भी लेती है, तो भी उसे तिरस्कृत नजरों से देखा जाता है। आज साथी चुन भी नारी पति के दुराचार, अन्याय, अत्याचारों को एक मूक पशु की भाँति सहन करती है और यदि हिम्मत कर मुँह खोलती है तो उसे जलाकर मार दिया जाता है या आत्महत्या करने के लिए विवश कर दिया जाता है।
विवाह सम्बन्धी समस्याएँ- भारतीय समाज में 21वीं शताब्दी में भी बाल-विवाह, मेल विवाह, दहेज-प्रथा, विधवा-विवाह निषेध जैसी कुरीतियाँ सर्वव्यापी हैं। दहेज की समस्या के कारण निर्धन माता-पिता अपनी कन्याओं को बोझ समझते हुए या तो भ्रूण में ही उनकी हत्या करवा देते हैं या फिर उनका बेमेल-विवाह कर देते हैं। सरकार की ओर से प्रतिबन्ध लगाए जाने के बावजूद भी दहेज-प्रथा जोरो पर है तभी तो अमीर लोग करोड़ों खर्च करके अपनी बेटियों की शादियाँ उच्च वर्ग के लड़के से कर देते हैं, परन्तु मध्यम वर्गीय तथा निम्नवर्गीय माता-पिता विवश होकर देखते रह जाते हैं।
जात-पात की समस्या- जात-पात का भेदभाव भी आज की एक विषम समस्या है। आज भी दलितों तथा नीची जाति के लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। हरिजनों को तो मन्दिर तक जाने की अनुमति नहीं है। न समाज में परस्पर प्रेम भावना है, न सहानुभूति। सभी एक दूसरे के खून के प्यासे बन चुके हैं। सामाजिक तथा सामूहिक हित की कोई बात भी नहीं करता। सभी अपनी ही जाति के उद्धार का ही कार्य करते हैं। नेता भी जिस जाति से सम्बन्ध रखते हैं, उसी जाति के उत्थान को ध्यान में रखते हुए कार्य करते हैं।
भ्रष्टाचार की समस्या- आज हर तरफ भ्रष्टाचार दिखाई पड़ता है। कालाधन, काला बाजार, मुद्रा-स्फीति, महँगाई आदि सभी की जड़ भ्रष्टाचार ही तो है। सभी अपनी जेबे भरने में लगे हैं। सरकारी कर्मचारी हो या गैर सरकारी, अपने स्वार्थ के विषय में ही सोचता है। कोई भी देश की जनता का भला नहीं चाहता, बल्कि पद पर रहते हुए अधिक से अधिक धन कमाना चाहता है। आज न्यायाधीश से लेकर निचले पद पर कार्यरत सिपाही तक घूसखोरी के धन्धे में माहिर है। बेचारा आम आदमी अपना कार्य करवाने के लिए रिश्वत मजबूरीवश देता ही है।
विद्यार्थियों तथा युवाओं की समस्या- आजकल युवाओं, विशेषकर विद्यार्थियों में फैलती अनुशासनहीनता एक भयंकर समस्या बन चुकी है। आज के युवा में संयम, निष्ठा, त्याग, परिश्रम, अनुशासन, सत्यवादिता आदि गुण लगभग समाप्त हो चुके हैं। वह न तो माता-पिता तथा गुरुओं आदि का आदर करना जानता है, न ही छोटो से प्यार। नारी के लिए तो उसके मन में सम्मान ही नहीं है तभी तो वह अपने परिवारजनों के लिए समस्या बन चुका है। इसके लिए आज की आधुनिकता, चलचित्र, दूषित शिक्षा प्रणाली आदि उत्तरदायी है। इन्हीं कारणों से उसमें असन्तोष पैदा हो रहा है और वह हत्या, अपहरण, बलात्कार आदि अपराध कर रहा हैं।
इन सबके अतिरिक्त निरक्षरता, अज्ञान, निर्धरता, बेरोज़गारी, छुआछूत आदि की समस्याएँ भी हमारे देश की जड़े खोखली कर रही है। वर्तमान समय से विद्यालयों में रैगिंग, परीक्षाओं में नकल, शिक्षण संस्थाओं में दादागिरी भी ज्वलन्त समस्याएँ बन चुकी है। कुर्सीवाद की समस्या हमारी ऐसी समस्या है, जिससे भ्रष्ट राजनीति का जन्म होता है। यह न केवल समाज, अपितु पूरे राष्ट्र को पतन के गर्त में ले जा रही है।
उपसंहार- समस्याएँ तो अनगिनत हैं, परन्तु उनका समाधान भी हो सकता है यदि हम सभी मिल जुलकर इस दिशा में प्रयत्न करे। हम सभी को इन समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए भरसक प्रयत्न करने होगे, जिससे कि समाज का अहित न हो सके। हमारी राष्ट्रीय सरकार भी इन सामाजिक विषमताओं को समूल नष्ट करने के लिए प्रयासरत है। इनका निबटारा करने पर ही हमारा देश उन्नत। राष्ट्र कहला सकेगा।
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