सूखे की समस्या पर निबंध
प्रस्तावना- मनुष्य सदियों से प्रकृति के प्रकोपो पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करता आ रहा है, लेकिन किसी न किसी रूप में प्रकृति अपना वर्चस्व कायम किए हुए है। ‘सूखा’ अर्थात् ‘जल की कमी’ भी ‘बाढ़’ अर्थात् ‘जल प्रलय’ की ही भाँति बहुत भयंकर है।
सूखा का अर्थ तथा प्रकार- जब किसी क्षेत्र में काफी लम्बे समय तक वर्षा नहीं पड़ती तथा अकाल की सी स्थिति पैदा हो जाती है, तो उसे ‘सूखा’ कहते हैं। सूखे का मुख्य कारण जल का अभाव हो जाना है। भारत का लगभग 15% भाग सूखा ग्रस्त है। सूखा तीन प्रकार का होता है-मौसमी सूखा, जलीय सूखा तथा कृषि सूखा। जब काफी लम्बे समय तक वर्षा न हो तो उसे ‘मौसमी सूखा’ कहते हैं। हमारे देश में 10% से अधिक मानसूखी वर्षा अत्यधिक वर्षा कहलाती है तथा बाढ़ का संकट लेकर आती है। जब वर्षा 10% के आस-पास होती है तो उसे सामान्य वर्षा तथा जब 10% से बहुत कम वर्षा होती है तो वह अपर्याप्त वर्षा मानी जाती है। जब मानव के जीवनयापन के लिए भी पानी न हो, तभी सूखे की स्थिति पैदा होती है। जब भूमिगत जल का स्तर तीव्रगति से घटने लगता है, नदी, नहरे, तालाब, आदि सूखने लगते हैं, तब उसे ‘जलीय सूखा’ कहा जाता है। जलीय सूखा के दौरान दैनिक कार्यों तथा कृषि कार्यो तथा उद्योगों के लिए भी पानी नहीं मिल पाता है। ‘अकाल’ अथवा ‘कृषि सूखा’ तब आता है, जब मिट्टी की नमी भी सूखने लगती है तथा खेतों में दरारे पड़ जाती है। ऐसे सूखे के समय किसानों की बोई हुई फसले भी पानी की कमी के कारण बढ़ नहीं पाती है तथा किसान दाने-दाने के लिए मोहताज होने लगते हैं। अकाल की स्थिति में किसान अपने परिवारजनों के साथ अपने खेतों को छोड़कर भोजन की तलाश में शहरों की ओर दौड़ते हैं। सूखे के तीनों प्रकार यूँ तो एक दूसरे से भिन्न है, किन्तु यदि मौसमी व जलीय सूखा न पड़े तो कृषि सूखा भी नहीं पड़ेगा क्योंकि कृषि के लिए पर्याप्त जल तो मानसून की वर्षा से ही प्राप्त होता है।
सूखा मापने का पैमाना- सूखे की स्थिति को सही रूप से नापने के लिए एक इण्डेक्स का प्रयोग किया जाता है, जिसे ‘पॉकर डाट सिक्योरिटी इण्डेक्स’ कहते हैं। इस इण्डेक्स की परास +6 (सामान्य से अधिक वर्षा) से – 6 (अत्यधिक सूखे की स्थिति) के बिना होती है। भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी 70% से अधिक जनसंख्या गाँवों में ही रहती हैं पूरे भारत देश में लगभग 5,55,137 गाँव है, जिनमें से 2,31,000 गाँव किसी न किसी समस्या से जूझ रहे हैं। भारत का लगभग 16% भाग सूखा ग्रस्त घोषित किया जा चुका है।
सूखे से निपटने के उपाय- भारत में सूखे की समस्या से निपटने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। भारत सरकार की ओर से अपने यहाँ सिंचाई एवं जल संसाधन मन्त्रालय स्थापित कर रखे हैं इसके अतिरिक्त सभी राज्यों के भी अपने अपने सिंचाई विभाग है जो सिंचाई के साधनों का प्रसार कर रहे हैं। वर्षा की कमी से होने वाले सूखे को हम रोक तो नहीं सकते, परन्तु सिंचाई-साधनों के प्रचार-प्रसार में सूखे के द्रव्यमान को कम अवश्य ही किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त पूरे देश में जगह-जगह बाँधों व नदी घाटी परियाजनाओं की स्थापना की गई है। भाखडा नांगल परियोजना, हिन्द बाँध परियोजना, हीराकुण्ड योजना, दामोदर घाटी परियोजना आदि की बड़ी नदी घाटी परियोजनाएँ ऐसी है, जिनके द्वारा लाखों हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई कार्य होता है तथा विद्युत उत्पादन होता है।
सूखे से होने वाली हानियाँ- सूखे से हर तरफ भूखमरी फैल जाती है क्योंकि जब खेती बरवाद हो जाती है, तो देश का सारा खाद्यान्न समाप्त होने लगता है। लोगों से रोजगार छिन जाते हैं तथा गाँवों में अनाज, दालो, तिलहन आदि का उत्पादन समाप्त हो जाता है। कितने ही लोग मौत का ग्रास बन जाते हैं। सूखे से सबसे अधिक नुकसान मवेशियों को होता है क्योंकि आदमी तो शहर में जाकर काम कर सकते हैं, किन्तु मवेशी का क्या किया जाए? जब इन्सानों को ही खाने के लिए मिलना मुश्किल हो जाता है तो मवेशियों की देखभाल कैसे हो? सूखे के पश्चात् अनेक बीमारियाँ फैल जाती है ऐसे में पैसे के अभाव में इलाज भी नहीं हो पाता तथा हजारों लोग मर जाते हैं।
उपसंहार- सूखे की समस्या भूमिगत जल का अत्यधिक प्रयोग करने से, भू-कटाव तथा वनो के अत्यधिक कटाव से भी पैदा होती है। हमें इन कारणों को समाप्त करने के प्रयास करने चाहिए तथा सिंचाई के साधनों में बढ़ावा लाना चाहिए। यदि फिर भी यह त्रासदी हो भी जाए तो सूखा ग्रस्त क्षेत्रों में जाकर सहायता तथा राहत सामग्री पहुँचानी चाहिए तथा उन्हें दवाईयाँ आदि वितरित करनी चाहिए। मुसीबत के समय में ही सच्ची मानवता की पहचान होती है।
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