राष्ट्रीय-एकता पर निबंध
प्रस्तावना- भारतवर्ष विश्व के मानचित्र पर एक विशाल देश के रूप में चित्रित है। प्राकृतिक रचना के आधार पर भारत के कई अलग-अलग रूप एवं भाग है। उत्तर का पर्वतीय भाग, गंगा यमुना सहित अन्य नदियों का समतलीय भाग, दक्षिण का पहाड़ी भाग तथा समुद्र तटीय मैदान सब कुछ भारत में अलग-अलग है। इसका अभिप्राय यह है कि हमारे देश का स्वरूप, भूगोल, धर्म, संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान, सब कुछ भिन्न-भिन्न है, लेकिन फिर भी हमारा देश एक है। भारत की निर्माण सीमा ऐतिहासिक है तथा इतिहास की दृष्टि से अभिन्न है।
राष्ट्रीय एकता के आधार- हमारे देश की एकता का सबसे बड़ा आधार दर्शन तथा साहित्य है, जो सभी प्रकार की भिन्नताओं तथा असमानताओं को समाप्त करने वाला है। यह दर्शन है-सर्वसमन्वय की भावना का पोषक । चूँकि यह दर्शन किसी एक भाषा में न होकर विभिन्न भाषाओं में लिखा गया है। इसी प्रकार हमारे देश का साहित्य भी विभिन्न क्षेत्रों के निवासियों द्वारा लिखे जाने पर भी क्षेत्रवादिता या प्रान्तीयता के भावों को उत्पन्न नहीं करता है, बल्कि सम्पूर्ण देशवासियों को भाईचारे तथा सद्भाव का पाठ पढ़ाता है।
विचारों की एकता किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी एकता होती है। अतएव भारतीयों की एकता के वास्तविक आधार भारतीय दर्शन एवं साहित्य है, जो अनेक भाषाओं में लिखे जाने के बाद भी अन्त में जाकर एक ही प्रतीत होते हैं।
यद्यपि हमारी देश की राष्ट्रीय भाषा ‘हिन्दी’ है, लेकिन यहाँ पर लगभग पन्द्रह भाषाएँ तथा इन सब भाषाओं की उपभाषाएँ भी विद्यमान हैं। ये सभी भाषाएँ संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त हैं एवं इन सभी भाषाओं में रचा गया साहित्य हमारी राष्ट्रीय भावनाओं से ही प्रेरित है। इस प्रकार भाषा-भेद होते हुए भी कोई समस्या पैदा नहीं होती है। उत्तर भारतीय निवासी दक्षिण भारतीयों की भाषा न समझते हुए भी उसकी भावनाओं को समझने में पूर्णतया सक्षम है। रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवत् गीता, कुरान, गुरुग्रंथ साहिब आदि अलग-अलग भाषाओं में रचित है, लेकिन इनमें व्यक्त की गई भावनाएँ हमारी राष्ट्रीयता को ही प्रकट करती है। चूंकि तुलसी, सूर, कबीर, मीरा, नानक, तुकाराम, टैगोर, विद्यापति आदि की रचनाएँ भाषा के आधार पर एक दूसरे से एकदम भिन्न हैं, फिर भी इनकी भावनात्मक एकता राष्ट्र के सांस्कृतिक मानस को पल्लवित करने में संलग्न है।
हमारे देश के पर्व, तिथि, त्योहार, भी अलग-अलग जातियों के अलग-अलग है, फिर भी उन सभी में एकता तथा सर्वसमन्वय का ही भाव प्रकट होता है। यही कारण है कि एक जाति के लोग दूसरी जाति के त्योहारों में कोई हस्तक्षेप नहीं करते, अपितु खुशी-खुशी उन्हें मनाते भी हैं। धर्म के प्रति आस्था तथा विश्वास की भावना ही हमारे देश की एकता के प्रतीक हैं तथा हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है।
आज की वैज्ञानिक सुविधाओं के कारण हम अपने देश की सबसे बड़ी बाधा ऊँचे-ऊँचे पर्वतों, बड़ी-बड़ी नदियों को भी पार करने में सफल हो चुके हैं। देश के सभी भाग एक दूसरे से जुड़े हैं तथा वे सभी राष्ट्रीय एकता का संदेश देते हैं।
राष्ट्रीय एकता का महत्त्व- राष्ट्रीय एकता तथा अखण्डता का महत्त्व किसी भी राष्ट्र के लिए अति महत्त्वपूर्ण होता है। इससे राष्ट्र की सुरक्षा को मजबूती मिलती है तथा राष्ट्र के विकास पर भी प्रभाव पड़ता है। यदि किसी राष्ट्र की एकता तथा अखण्डता समाप्त हो जाएगी तो वह राष्ट्र की समाप्त हो जाएगा अर्थात् उस राष्ट्र का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। राष्ट्रीय एकता से ही वहाँ पर अमन चैन तथा शान्ति का वातावरण पैदा होता है। आन्तरिक एवं बाह्या दृष्टियों से राष्ट्र मजबूत बनता है। कोई भी बाहरी देश आक्रमण करने से पहले दस बार सोचेगा क्योंकि ‘एकता में ही शक्ति होती है’। राष्ट्रीय एकता से ही उसके विकास की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ती हुई अन्य राष्ट्रो की तुलना में अधिक प्रभावशाली होती है। इस दृष्टि से किसी भी देश की राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता उस राष्ट्र की सभी प्रकार की भाषा, धर्म, जाति, सम्प्रदाय आदि विभिन्नताओं को सिर उठाने का कोई भी अवसर नहीं देती। राष्ट्रीय एकता तो किसी प्रकार की भी असमानता और विषमता को एकता, समानता तथा सरलता में बदल कर देशोत्थान को ही महत्त्व देने के लिए अपनी ओर से हर सम्भव कोशिश किया करती है।
राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के उपाय- राष्ट्रीय एकता तथा अखण्डता हर देश की नींव को मजबूत करती है। इसको बनाए रखने के लिए हमें अपने निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर सारे राष्ट्र के हित में सोचना होगा। अपने दुखो-सुखो हर देश की नींव को मजबूत करती है। इसको बनाए रखने के लिए हमें अपने तथा मान-सम्मान को त्यागकर देश के हितों के बारे में सोचना होगा। कोई भी बाहरी व्यक्ति यदि हमारी भारत माता को हानि पहुँचाने की कोशिश करे तो हमें अपने धर्म या जाति को भूलकर उसकी रक्षा के लिए अपने प्राणों की बलि देने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए। राष्ट्रीय एकता तथा अखण्डता के लिए हमें जीवन में संसार से ऐसी सीख भी सीखनी पड़ेगी जिनसे हमारे अन्दर राष्ट्रीय एकता की भावना अंकुरित होकर पल्लवित हो सके। जब-जब हमारे अन्दर राष्ट्रीय एकता की भावना दम तोड़ने लगे तो हमें ‘चींटियों की एकता’, ‘संयुक्त परिवार की सरसता’ की संगठन की शक्ति के बारे में सोचकर प्रोत्साहित होना चाहिए।
उपसंहार- प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तिगत योगदान से ही देश की एकता एवं अखण्डता सुरक्षित रह सकती है। यह तभी सम्भव है, जब सभी देशवासी तन-मन-धन से देश की एकता व अखण्डता के लिए प्रत्येक कार्य को पूरी ईमानदारी तथा सच्चाई से करे। हमें सदा ही यह बात याद रखनी चाहिए कि अनेकता में एकता ही हमारे देश की विशेषता है तथा हमारा अस्तित्व तभी तक जीवित है, जब तक हम हमारी संस्कृति को सँभालकर रखे। हमारे देश की एकता का सबसे बड़ा आधार प्रशासन की एक सूत्रता है तभी तो विभिन्न जातियों, धर्मों, भाषाओं के मेल से बने हमारे देशवासी ‘भारतीय’ कहलाते हैं तथा ‘भारतीयता’ को ही मुख्य धर्म मानते हैं।
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