निबंध / Essay

महानगरों की अनगिनत समस्याएँ पर निबंध | Essay on Countless Problems of Metros in Hindi

महानगरों की अनगिनत समस्याएँ पर निबंध
महानगरों की अनगिनत समस्याएँ पर निबंध

अनुक्रम (Contents)

महानगरों की अनगिनत समस्याएँ पर निबंध

प्रस्तावना- बड़े-बड़े नगरों को ‘महानगर’ कहा जाता है। छोटी-छोटी बस्तियाँ मिलकर गाँव, गाँव मिलकर कस्बे, कस्बे मिलकर नगर एवं नगर मिलकर ‘महानगर’ बन जाते हैं। नगर तथा महानगरों के विकास का मुख्य कारण उनकी ओर ग्रामीण लोगों का आकर्षित होना होता है। जब छोटी जगह के लोग बड़े-बड़े शहरों में आजीविका कमाने चले आते हैं तो वहाँ की आबादी बढ़ने लगती है तथा उनका विकास भी होता है। महानगरों में जितनी सुख-सुविधाएँ होती हैं, बिजली-पानी भरपूर मात्रा में मिल जाता है, परन्तु महानगरों में समस्याएँ भी उतनी ही होती है। कुछ ज्वलन्त समस्याएँ जो आज का हर महानगर जैसे- दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता, चेन्नई आदि झेल रहे हैं, निम्नलिखित हैं-

(1) बढ़ती जनसंख्या की समस्या- शहरों का आकर्षण गाँवों को खाली कर रहा है तथा महानगरों की जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। इस जनसंख्या वृद्धि के कारण काम-धन्धों पर की प्रभाव पड़ रहा है। इस प्रकार जनसंख्या वृद्धि आज महानगरों की सबसे ज्वलन्त समस्या है।

(2) आवास की समस्या- आवास की समस्या भी महानगरों की एक मुख्य समस्या है जो जनसंख्या वृद्धि के कारण ही उत्पन्न हुई है। जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में आवास की सुचारू रूप से व्यवस्था न हो पाने के कारण शानदान बिल्डिंगों के साथ में ही झोपड़ियों का निर्माण होने लगा। इनके निर्माण से महानगरों में गन्दगी बढ़ती गई एवं आसपास उन बड़ी कोठियों में रहने वालों का जीवन नारकीय होने लगा। धीरे-धीरे इसके दुष्पपरिणाम सामने आने लगे। जब ये झोपड़ियाँ भी कम पड़ने लगी तो लोगों ने सार्वजनिक स्थानों, पार्को, सड़कों, सरकारी भूमि आदि पर अनाधिकृत कब्जा करना प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार समस्या और भी विकट होने लगी। सरकार की ओर से इन्हें हटाने के लिए अनेक बार सख्ती भी की जाती है लेकिन फिर धीरे-धीरे ये लोग कहीं पर भी झोपड़ी डालकर रहने लगते हैं। आज हालत यह है कि गाँवों में तो रहने के लिए जगह खाली पड़ी हुई है तथा शहरों के लोग पटरियों पर रहकर जीवन बिता रहे हैं। लेकिन उनकी भी मजबूरी है क्योंकि गाँवों में काम-धन्धे समाप्त हो रहे हैं इसलिए पैसा कमाने के लिए लोग शहरों की और दौड़ रहे हैं।

यातायात की समस्या- बढ़ती जनसंख्या के कारण ही आज महानगरों में यातायात की समस्या भी अपनी जड़ जमा चुकी है। ज्यों ज्यों महानगरों में जनसंख्या बढ़ने लगी, लोग दूर-दूर जाकर भी बसने लगे लेकिन काम धन्धा या नौकरी करने तो उन्हें मुख्य जगहों पर ही जाना पड़ता है, इसलिए रोज यात्रा भी करनी पड़ी है जिसके कारण सड़कों पर बसों, गाड़ियों की भीड़ रहती है।

यातायात के साधन बढ़ चुके हैं लेकिन सड़कें उतनी ही चौड़ी है, ऐसे में सड़कों पर जाम लगना तो एक आम बात हो चुकी है। कभी-कभी यातायात के साधनों के अभाव में लोगों को पहले से ही भर चुकी बसों में धक्के खाकर यात्रा करनी पड़ती है। अधिक भीड़ होने से जेब कटना, लड़कियों से छेड़छाड़, सामान चोरी, दुर्घटना आदि तो हर रोज की समस्याएँ बन चुकी हैं। सरकार की ओर से अनेक प्रयत्न किए जा रहे हैं, बड़े-बड़े पुल, चौड़ी सड़कें, अंडरग्राउंड रास्ते, मैट्रो रेल बनाए जा रहे हैं, दिल्ली तथा कलकत्ता में मैट्रो रेल चल रही है, फिर भी समस्या का निदान नहीं हो पा रहा है।

प्रदूषण की समस्या- अब इतने लोगों को खाने के लिए भी तो कुछ चाहिए, पैसा चाहिए तो इसीलिए महानगरों में औद्योगीकरण पर विशेष बल दिया जा रहा है। निरन्तर बढ़ते उद्योगों की स्थापना के कारण वातावरण प्रदूषित हो रहा है। मुख्यतया वायु प्रदूषण की समस्या ने महानगरों को बेहाल कर रखा है। उद्योगों के संयत्र बड़ी मात्रा में ऊर्जा तथा उष्णता पैदा करते हैं तथा यही ताप वायु प्रदूषण पैदा करता है। वायु प्रदूषण का प्रभाव केवल मनुष्य ही नहीं, जीव-जन्तु तथा पेड़-पौधे भी झेल रहे हैं। आज हर व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक रोग जैसे हृदय रोग, अस्थमा, मधुमेह आदि से पीड़ित हैं। वायु प्रदूषण के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ रहा है। क्योंकि जब यातायात के साधन बढ़ रहे हैं, तो उनके हॉर्न की आवाज से ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ रहा है। यह प्रदूषण बहरेपन तथा हृदय रोगों का कारण बन रहा है। इसके अतिरिक्त इन उद्योगों, कल-कारखानों व फैक्टरियों से निकलने वाले धुएँ-कचरे, गन्दे पानी आदि से भी वातावरण प्रदूषित हो रहा है। परन्तु आज महानगरों के निवासी ऐसे दमघोंटू तथा दूषित वातावरण में रहने को विवश हैं। आज दिल्ली जैसे महानगर में 50 लाख से अधिक वाहन हैं जिनका शोर तथा धुआँ हमें पागल किए जा रहा है। सरकार की ओर से वैसे तो धुआँरहित ईंधन जैसे एल.पी.जी. तथा सी. एन.जी. वाले वाहन चलाने पर जोर दिया जा रहा है, परन्तु अभी भी अधिकतर वाहन पैट्रोल तथा डीजल चालित ही हैं।

अन्य समस्याएँ- ये तो कुछ प्रमुख समस्याएँ हैं, इनके अतिरिक्त अनगिनत समस्याएँ और भी हैं, जैसे शुद्ध वायु, पानी तथा बिजली की कमी। ऊँची-ऊँची गगनचुम्बी इमारतों के बन जाने से हवा तथा धूप मिलना मुश्किल हो गया है। पीने का स्वच्छ जल भी घंटो प्रतीक्षा करने के बाद ही मिलता है। बिजली की जरूरत से ज्यादा खपत होने के कारण वह भी कई घंटे गुल रहती है। महानगर निवासियों को फल, सब्जियाँ, दूध आदि भी ताजे नहीं मिल पाते तथा मिलते भी हैं तो कोल्ड स्टोरो में रखे हुए, वह भी ऊँची कीमतों पर।

इन समस्याओं के अतिरिक्त चोरी, डकैती, लूट-खसोट, बलात्कार, अपहरण, हत्या जैसी समस्याएँ भी बढ़ रही है। गाँव के लोग जब शहर में आकर वहाँ की चमक को देखते हैं तो वे भी रातों-रात धनवान होने का सोचते हैं और जब पैसा नहीं कमा पाते तो उसके लिए गलत रास्ता चुनते हैं। महानगरों का खुला माहौल भी उन्हें जुर्म करने पर मजबूर कर देता है।

समस्याओं का समाधान- महानगरों में समस्याएँ तो बहुत हैं जिन सबका वर्णन करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। परन्तु सरकार तथा निजी प्रयासों से कुछ हद तक इनसे छुटकारा भी पाया जा सकता है। सर्वप्रथम सरकारी कार्यालयों एवं बड़े-बड़े बाजारों व मण्डियों को महानगरों की भीड-भीड के इलाके से हटाकर बाहर स्थापित किया जाना चाहिए। ऐसा करने से जनसंख्या का दबाव भी कुछ कम होगा तथा पर्यावरण भी दूषित नहीं होगा।

उपसंहार- इन समस्याओं के निवारण के लिए सरकार की ओर से ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। महानगरों में सी.एन.जी. वाहनों का चलाया जाना, बड़े-बड़े पुलों का निर्माण आदि इस दिशा में उठाए गए सराहनीय कदम ही हैं। शुद्ध वायु के लिए वृक्षारोपण को महत्त्व देना, बिजली पानी की उचित व्यवस्था के लिए उचित उपाय करना सरकार का कर्त्तव्य है और वह यह कर भी रही है लेकिन हर व्यक्ति को अपनी निजी जिम्मेदारी भी समझनी होगी तभी इन समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है।

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