देशाटन से लाभ पर निबंध
प्रस्तावना- गतिशील जीवन ही वास्तविक जीवन है, जबकि एक स्थान पर ठहरा हुआ मानव पत्थर के समान रहता है। जहाँ तालाब का रुका हुआ पानी सड़न पैदा करता है, वही लगातार बहती रहने वाली नदियों का जल पीने योग्य होता है। गतिशीलता जीवन है तो गतिहीनता साक्षात् मृत्यु। प्रत्येक मनुष्य को अपने सर्वांगीण विकास के लिए उन्मुक्त, स्वछन्द, बन्धन रहित जीवन जीना चाहिए। नई-नई वस्तुओं, स्थानों, इमारतों को देखने से मनुष्य के मन में जिज्ञासाएँ पैदा होती हैं, जिन्हें शान्त करने के लिए उसका एक जगह से बाहर निकलना आवश्यक है। मानव की ‘कौतुहल’ एवं ‘जिज्ञासा’ नामक मनोवृत्तियों का परिणाम ही देशाटन है।
देशाटन का अर्थ- प्राकृतिक, ऐतिहासिक एवं भौगोलिक विभिन्नताओं तथा विशेषताओं से परिपूर्ण अपने देश तथा विदेश के भिन्न-भिन्न भागों एवं प्रान्तों का भ्रमण करके वहाँ के रहन-सहन, रंग-रूप, रीति-रीवाजों, भोजन, परम्पराओं, संस्कृतियों आदि के दर्शन करना एवं उनके बारे में जानना देशाटन कहलाता है। दूसरे शब्दों में देशाटन से तात्पर्य देश-विदेश का भ्रमण कर मनोरंजन एवं ज्ञान अर्जित करना है।
देशाटन से पूर्व की जाने वाली तैयारियाँ- देशाटन से पूर्व हमें उस स्थान के मौसम, खान-पान, रहने की व्यवस्था आदि के बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए, जिस स्थान पर हमें जाना है। इसके लिए पुस्तकों, इन्टरनेट या किसी व्यक्ति विशेष द्वारा भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। हमें उस स्थान के दर्शनीय ऐतिहासिक स्मारकों, भाषा आदि का भी विशेष ज्ञान होना चाहिए। वहाँ की जलवायु का ज्ञान प्राप्त करके उसी के अनुसार वस्त्रों तथा भोजन आदि की भी उचित व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे वहाँ पहुँचकर किसी प्रकार की असुविधा न हो। इसके अतिरिक्त देशाटन से पूर्व अपने साथ अपने सगे-सम्बन्धियों के फोन-नम्बर तथा जरूरी दवाईयाँ इत्यादि ले जाना भी जरूरी है।
देशाटन से लाभ- देशाटन हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है चाहे वह बालक, युवा अथवा वृद्ध हो। देशाटन से आनन्द के साथ-साथ अनुभव व ज्ञान प्राप्त होता है। देशाटन करने से मनुष्य को विभिन्न स्थानों को देखने व समझने का सुअवसर प्राप्त होता है। देशाटन से मनोरंजन तथा स्वास्थ्य लाभ के साथ-साथ आन्तरिक जिज्ञासात्मक वृत्तियाँ भी शान्त होती है। एक स्थान पर रहते-रहते जब इन्सान का मन नीरसता महसूस करने लगता है, तब उसके हृदय में नई-नई वस्तुओं को देखने तथा नए स्थानों पर जाकर नए-नए लोगों से मिलने की इच्छा जागृत होती है। पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाला व्यक्ति मैदानी नगरों में तथा मैदानी इलाकों में रहने वाला मानव मनोरम पहाड़ी इलाकों की प्राकृतिक सुन्दरता को निहारने निकल पड़ता है।
हर व्यक्ति की अपनी अलग-अलग रुचियाँ होती हैं। किसी को प्राकृतिक सौन्दर्य भाता है, तो किसी को समुद्री तट। किसी को ऐतिहासिक स्मारकों का इतिहास जानने में रुचि होती है तो कोई ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों में शान्ति ढूँढ़ता है। परन्तु हर प्रकार के देशाटन से लाभ अवश्य ही होते हैं। देशाटन करने वाला मनुष्य प्रकृति के विभिन्न एवं विविध स्वरूपों का सहज ही साक्षात्कार कर लेता है। प्रकृति ने कही तो हरी-भरी तथा बर्फानी पर्वतमालाओं से धरती को ढ़क रखा है तो कहीं एकदम रुखी-सूखी गर्म तथा नग्न पर्वतमालाएँ हैं, जहाँ स्वयं पेड़-पौधे, वनस्पतियाँ आदि स्वयं भी छाया के लिए तरस रहे हैं। कहीं इन्द्र देवता इतने मेहरबान रहते हैं कि लगातार वर्षा होती रहती है, तो कहीं धरती एक-एक बूंद के लिए भी तरस रही है। कहीं सदा बसन्त गुलजार रहता है तो कहीं सर्दी का प्रकोप मनुष्य को बेचैन किए रहता है। देशाटन से मनुष्य शिक्षा सम्बन्धी ज्ञान भी प्राप्त करता है। देशाटन करने वाला मनुष्य उस स्थान के रीति-रिवाजों, वेशभूषा, उत्सव, खान-पान, भाषा आदि के बारे में जान पाता है। हम जिन धार्मिक, ऐतिहासिक तथा पर्वतीय स्थानों के बारे में केवल पाठ्य पुस्तकों में ही पढ़ पाते हैं या फिल्मों में हीरो-हीरोइनों को उनका आनन्द लेते हुए देख पाते हैं, देशाटन करने पर हम प्रत्यक्ष रूप से देख लेते हैं तब हमारा ज्ञान और भी अधिक सुदृढ़ हो जाता हैं। देशाटन से एक लाभ यह भी है कि इससे कुछ समय के लिए वायुमंडल एवं वातावरण के बदल जाने से मन तथा मस्तिष्क दोनों में नवीनता आ जाती है। देशाटन से मनुष्य का चारित्रिक विकास भी होता है। मनुष्य विभिन्न स्थानों को घूमकर अधिक सहनशील, धैर्यवान तथा दूसरों को सोचने-समझने के मामले में परिपक्व हो जाता है। देशाटन से मनुष्य में आत्मनिर्भरता भी आती है, क्योंकि बाहर निकलकर उसे अपना कार्य स्वयं करना पड़ता है। मनुष्य स्वातलम्बी हो जाता है तथा उसमें व्यवहार कुशलता भी आती है। अतः विद्यार्थियों को स्कूल की ओर से जाने वाली यात्राओं में अवश्य भाग लेना चाहिए या फिर लम्बे अन्राल के समय का सदुपयोग देशाटन द्वारा करना चाहिए।
निष्कर्ष- आज विज्ञान ने अभूतपूर्व प्रगति की है। प्राचीनकाल में देशाटन का कार्य बहुत कठिन था। पहले यातायात की इतनी सुविधाएँ नहीं थी। देशाटन प्रेमी व्यक्ति समूहों में पैदल ही या बैलगाड़ी आदि द्वारा धार्मिक या ऐतिहासिक यात्राओं पर निकल पड़ते थे। मार्ग में उन्हें अनेक बाधाओं जैसे मौसम की मार या फिर चोर-डकैतों आदि का भी डर लगा रहता था। मैगस्थनीज, ह्येनसांग, इब्नबइता, फाह्यान आदि विदेशी अपनी देशाटन जिज्ञासा के कारण ही कठिन यात्राएँ कर देश-विदेश घूम पाए थे। परन्तु अब तो हमारे पास यातायात के साधनों की कोई कमी है और न ही मौसम की इतनी मार झेलनी पड़ती है, क्योंकि आज हर छोटी-बड़ी जगह पर रहने की पूरी व्यवस्था सुगमता से हो जाती है। ऐसे में जो व्यक्ति देशाटन नहीं करता, वह कुएँ के मेढ़क की भाँति तुच्छ बुद्धिवाला बना रहता है। आज तो यातायात के तेज साधनों जैसे वायुयान, समुद्री जहाज आदि ने महीनों की यात्राओं को घण्टों में समेट दिया हैं इसलिए हमें दृढ़ निश्चय करके कभी-कभी देशाटन के लिए अवश्य निकल पड़ना चाहिए।
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