भारतवर्ष (अनेकता में एकता)
प्रस्तावना- ‘एकता’ का अर्थ है ‘एक होने का भाव’ । भारत एक विविधतापूर्ण देश है। धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, आर्थिक तथा भौगोलिक आदि विविध दृष्टियों से भारत में भी अनेकता दृष्टिगोचर होती है। यहाँ कुछ प्रदेश ध्रुव प्रदेश के समान ठण्डे हैं तो कुछ प्रदेश अफ्रीकी रेगिस्तानों जैसे गर्म एवं शुष्क है, कहीं वर्षा की अधिकता है, तो कहीं लोग वर्षा की बूंद-बूंद को भी तरस जाते हैं। कहीं आकाश छूते पहाड़ हैं, तो कहीं समतल मैदान, कहीं रेगिस्तान हैं, तो कहीं हरी-भरी उपजाऊ भूमि । यहाँ विविध धर्मों, सम्प्रदायों, जातियों एवं धार्मिक आस्थाओं के लोग रहते हैं, अनगिनत भाषाएँ बोली जाती है, हर प्रदेश का अपना-विशिष्ट भोजन है, रहन-सहन है, रीति-रिवाज है, किन्तु बाह्य रूप से दिखलाई देने वाली इस अनेकता के मूल में एकता ही निहित है।
भारतवर्ष : एक धर्मनिरपेक्ष प्रजातन्त्र- भारत विश्व का सबसे महत्त्वपूर्ण धर्मनिरपेक्ष प्रजातान्त्रिक राष्ट्र है। हमारे देश में अनेक राज्य हैं तथा उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक इसका विस्तृत भू-भाग है। हम यह कह सकते हैं कि राष्ट्र रूपी शरीर के विभिन्न अंग हमारे अलग-अलग प्रदेश हैं तथा शरीर को पूर्णरूपेण स्वस्थ रखने के लिए सभी अंगों का स्वस्थ तथा सुदृढ़ होना आवश्यक है। हमारे राष्ट्र का एक संविधान, राष्ट्रीयचिन्ह, राष्ट्रभाषा, राष्ट्रपशु, राष्ट्रपक्षी, राष्ट्रफूल, राष्ट्रीयगान, एक लोकसभा, राष्ट्रपति, ये सभी हमारे भारतवर्ष को एक महान राष्ट्र साबित करते है। हमारे स्वतन्त्रता सेनानियों ने भी एक होकर देश को आजाद कराया था, तब किसी ने भी अपने अलग राज्य के बारे में नहीं सोचा था।
भारतवर्ष में अनेकता में एकता- वैसे तो हमारे देश में भाषा, भोजन, वस्त्र, धर्म सभी रूपों में विविधता है किन्तु जब हम भारत में प्रचलित विभिन्न धर्मों की ओर दृष्टिपात करते हैं तो हमें यह पता चलता है कि सभी के मूलभूत सिद्धान्त एक ही है, आस्तिक्ता, मुक्ति कामना, दया, क्षमा, सत्याचरण, अहिंसा आदि। सद्भावना आदि गुण सभी धर्मों के एक समान ही हैं। राजनीतिक क्षेत्र में विविधताएँ होते हुए भी सभी का अन्तिम लक्ष्य आम जनता का कल्याण करना ही है। सामाजिक दृष्टि से सहसार्थक जातियों तथा उपजातियों वाले इस देश में पर्वो व मेलों में सभी लोग परस्पर मिलते हैं तथा एक दूसरे को बधाई देते हैं। आर्थिक विचारों की भिन्नता होते हुए भी सभी भौतिक समृद्धि ही चाहते हैं। सांस्कृतिक दृष्टि से यहाँ जो भी आन्दोलन प्रारम्भ हुए, उनका प्रभाव पूरे देश पर पड़ा है। इसी कारण प्राचीनकाल से ही भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्यों में भावों की समानता निरन्तर बनी रही है। उत्तर व दक्षिण भारत में एक जैसे मन्दिर है। यहाँ के लोगों की पूजा पद्धति, तीर्थ, व्रत आदि में विश्वास आदि का भी प्रभाव अखिल भारतीय रहा है। तभी तो हम ‘अनेक’ नहीं ‘एक’ है तथा ऊपर से ‘अनेक’ दिखाई देने वाले भारतवर्ष में ‘एकता’ की अन्तर्धारा निरन्तर बह रही है। तभी तो तुलसी के ‘रामचरितमानस से पूरा देश प्रभावित है बंगला के ‘वन्देमातरम्’ तथा ‘जन-गण-मन’ क्षेत्रीय न होकर राष्ट्रीय गीत’ है।
देश की एकता पर मँडराती समस्याएँ- किसी भी राष्ट्र की सार्वभौमिकता, अखण्डता एवं समृद्धि के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि देश राष्ट्रीयता को भावना से ओत-प्रोत हो। आज हमारे देश में अनेक ऐसी समस्याएँ हैं जो राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा पैदा कर रही है जैसे-साम्प्रदायिकता, भाषावाद, क्षेत्रवाट तथा धर्मवाद। आज जब विश्व के दूसरे विकसित देश एकता के बल पर आगे बढ़ रहे हैं, वही हमारे भारतवर्ष के लोग अपने क्षेत्रीय धर्म को अच्छा व ऊँचा दर्शाने के लिए आपस में ही लड़ रहे हैं, कोई अपनी भाषा को श्रेष्ठ बताकर दूसरे भाषी व्यक्ति से लड़ रहा है, तो कोई अपनी जाति की सर्वोच्चता का डंका बजाकर प्रसन्न हो रहा है। इस बात का ज्वलन्त उदाहरण मुम्बई में ‘राज ठाकरे द्वारा फैलाई गई साम्प्रदायिकता की आग है जो मुम्बई को केवल महाराष्ट्रियों को जागीर समझ रहे हैं तथा अन्य प्रान्त के लोगों को मराठी भाषा बोलने पर विवश कर रहे हैं। आज साम्प्रदायिकता का विष पूरे देश में फैल रहा है। इन साम्प्रदायिक लोगों की दृष्टि में देश का हित कोई मायने नहीं रखता है। 1988 में मेरठ तथा अहमदाबाद के दंगे इस बात के प्रमाण है। देश की अखण्डता तथा एकता के लिए एक बड़ा खतरा कुछ स्वार्थी राजनीतिज्ञ तथा कुछ पड़ोसी देश भी है, जो भारत का उत्थान नहीं देख पा रहे हैं, इसलिए अनजान तथा अनभिज्ञ मासूमों को बहकाकर कभी धर्म, कभी जाति, तो कभी भाषा के नाम पर भड़का रहे हैं। इसीलिए तो गोरखालैंड, नागालैंड तथा खालिस्तान जैसी समस्याएँ देश के विकास की राह में सबसे बड़ी बाधाएँ बनी हुई हैं।
राष्ट्रीय एकता के उपाय- आज हमारे देश को राष्ट्रीय एकता की बहुत आवश्यकता है। इसके लिए सभी भारतीयों को सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक आदि सभी क्षेत्रों में समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए तथा विशेषकर पिछड़े तथा दलित वर्गों के उत्थान के लिए पूरी कोशिश की जानी चाहिए। साम्प्रदायिक तथा पृथक्तावादी तत्त्वों का पूरी हिम्मत से सामना करना चाहिए। प्रत्येक भारतीय को अपनी राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार को सहयोग देना चाहिए तभी हमारा देश महान गौरवशाली राष्ट्र का सम्मान प्राप्त कर सकता है।
उपसंहार- निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि भारतवर्ष के सर्वांगीण विकास के लिए राष्ट्रीय एकता का सुदृढ़ होना परमावश्यक है। विदेशी शक्तियों जैसे आतंकवाद का मुकाबला करने, आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक आदि क्षेत्रों में विकास के लिए राष्ट्रीय एकता आवश्यक है क्योंकि यदि हम आपस में ही लड़ते रहेंगे तो कभी भी विकास नहीं कर पाएँगे। किसी ने सही कहा है-
‘United we stand, divided we fall’ अर्थात् जब तक हम संगठित हैं, तब तक हम खड़े हैं लेकिन अलग होते ही हम गिर जाते हैं।
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