सहशिक्षा का महत्व पर निबंध
प्रस्तावना- आज का युग विज्ञान तथा तकनीक का युग है। आज स्त्री-पुरुष कन्धे से कन्धा मिलाकर हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं अर्थात् कक्षाओं में एक साथ बैठकर पढ़ने-पढ़ाने के क्षेत्र में सन्तुलन आ चुका है। हमारे संविधान में प्रत्येक स्त्री-पुरुष को आत्मविकास के समान अवसर प्रदान किए गए हैं, इसीलिए हमें सह-शिक्षा की उपयोगिता को स्वीकार करना है।
सहशिक्षा का अर्थ- सहशिक्षा का अर्थ है-साथ-साथ शिक्षा अर्थात् बालक-बालिकाओं की एक साथ शिक्षा । पाठ्यक्रम, शिक्षक एवं कक्षा की त्रिवेणी में छात्र-छात्राओं का शिक्षा पाने के लिए एकत्रित होना ‘सहशिक्षा’ है। वैदिक काल से ही सहशिक्षा का प्रचलन चला आ रहा है। आश्रम व्यवस्था में भी सहशिक्षा प्रचलित थी। मध्यकाल में सहशिक्षा कम हो गई तथा पुरुषों की शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा जबकि नारी को तो केवल, ‘भोग्या’ बना दिया गया। अंग्रेजी शासन में पुनः सहशिक्षा का प्रारम्भ हुआ। महिला वर्ग में जागृति आई तथा उन्होंने भी पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने का साहस किया। जैसे-जैसे आधुनिकता का विकास हुआ, शिक्षा का प्रसार बढ़ता गया तथा सहशिक्षा देने हेतु अनेक स्कूल-कॉलेज खोले गए। शनैः-शनैः सहशिक्षा की व्यवस्था प्रायः प्रत्येक स्कूल तथा कॉलेज में की जाने लगी है।
सहशिक्षा के पक्ष में विचार- सहशिक्षा का प्रचलन तो कण्व ऋषि तथा बाल्मिकी जैसे ऋषियों के समय से चला आ रहा है। उनके आश्रमों से सहशिक्षा दी जाती थी। सहशिक्षा के पक्षधर इसके अनेक गुण बताते हैं। सर्वप्रथम सहशिक्षा से धन का अपव्यय रोका जा सकता है। जिन विषयों में छात्र-छात्राओं की संख्या कम होती है, उनके लिए भी लड़कों व लड़कियों की पृथक-पृथक व्यवस्था करने में देश की अर्थव्यवस्था कमजोर होती है, जबकि सहशिक्षा के तहत एक ही विद्यालय से काम चल जाता है तथा बचा हुआ पैसा अन्य विकास के कार्यों में लगाया जा सकता है। विद्यार्थी काल में विभिन्न प्रकार की समस्याओं से गुजरना पड़ता है। इससे आगे जाकर उनमें आत्मविश्वास तथा मनोबल बढ़ता है। सहशिक्षा में लड़के-लड़कियाँ एक-दूसरे से अपने विचारों के आदान-प्रदान करते हैं, जिससे उनका मार्ग सुगम हो जाता है। सहशिक्षा के अभाव में छात्र-छात्राएँ दोनों ही संकोची रह जाते हैं और जब आगे जाकर कार्यालयों या अन्य विभागों में उन्हें साथ-साथ काम करना पड़ता है तो संकोच बने रहने का कारण कुछ समय तक दोनों को, विशेषकर लड़कियों को तो अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सहशिक्षा से जहाँ एक ओर लड़कियों में नारी सुलभ लज्जा, झिझक, पर पुरुष से भय, अबलापन, बेहद कोमलता, हीन-भावना जैसी भावनाएँ कुछ हद तक दूर हो जाती हैं वही लड़के भी लड़कियों की उपस्थिति में उचित व सभ्य व्यवहार करना सीख जाते हैं। लड़कियाँ भी लड़कों की उपस्थिति में सौम्य तथा शान्त रहना सीख जाती हैं तथा उनमें व्यवहार-कुशलता, वीरता तथा साहस आदि गुणों का विकास होता है। सहशिक्षा के अन्तर्गत लड़के-लड़कियों में प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा होती है और वे एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ करते हैं। यही स्वच्छ प्रतिस्पर्धा उनके अध्ययन, चिन्तन तथा मनन को बलवती बनाती है।
विरोधी दृष्टिकोण- जिस प्रकार हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, फूल के साथ काँटे भी होते हैं, सुख तथा दुख साथ-साथ चलते हैं उसी प्रकार सहशिक्षा के विपक्ष में भी अनेक मत हैं। भारतीय शास्त्रों का विधान है कि लड़के तथा लड़कियों की पाठशालाओं में पर्याप्त अन्तर होना चाहिए तथा वे अलग-अलग दिशाओं में होने चाहिए। सहशिक्षा पूर्ण रूप से भारतीय वातावरण के प्रतिकूल है इसका भारतीय इतिहास में कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है। सभी महापुरुषों ने इसका कठोर विरोध किया है। ‘मनुस्मृति’ के अनुसार लड़के-लड़कियों की शिक्षा अलग-अलग होनी चाहिए। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने भी ‘सत्यार्थ प्रकाश’ नामक ग्रन्थ में सहशिक्षा का विरोध किया है।
इससे विरोधी पक्ष वालो का मत है कि लड़के-लड़कियों का जीवन एकदम भिन्न होता है। लड़को को आगे जाकर आजीविका कमानी पड़ती है इसीलिए उनकी शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए जबकि लड़कियों को तो विवाह के बाद घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी निभानी होती है इसलिए उन्हें बस इतना ज्ञान आधुनिक वातावरण के सहपाठी भाई बहिन या मित्र की भावना में न रहकर नेतना में कभी-कभी पाठ्यक्रम प्रेमी-प्रेमिका की भावना से ग्रस्त रहते हैं। आजकल तो स्कूली सहशिक्षा के समय से ही लड़के-लड़कियों में आकर्षण पैदा हो जाता है और ऐसा होने पर दोनों ही अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं। यह स्थिति न तो अध्ययन, न जीवन विकास की ओर, अपितु चरित्र पतन, विनाश की ओर अग्रसर करती है। इसके अतिरिक्त कुछ प्रसंग अश्लील भी आ जाते हैं जो नैतिकता के विपरीत होते हैं। ऐसे प्रसंगों को शिक्षक भी ठीक प्रकार से नहीं समझा पाते है तथा उस विषय में छात्र-छात्राओं का ज्ञान अधूरा रह जाता है अर्थात् सहशिक्षा ज्ञानवर्धन में बाधक है। विरोधी पक्ष वाले व्यक्तियों को सहशिक्षा में केवल हानियाँ ही नजर आती है। उनके अनुसार सहशिक्षा चारित्रिक पतन का कारण है। आज जितने भी बलात्कार तथा हत्याएँ हो रही हैं उनका आधार भी सहशिक्षा ही है। आज का युवक बहुत कम उम्र से ही लड़कियों की ओर आकर्षित हो जाता है तथा शारीरिक सम्बन्ध बनाना चाहता है। यदि लड़कियाँ उन्हें ऐसा करने से रोकती हैं तो या तो वे जबरदस्ती बलात्कार करते हैं या फिर लड़की की हत्या कर देते हैं। दूसरी और लड़कियाँ भी लड़कों को आकर्षित करने के लिए भड़काऊँ कपड़े पहनती हैं तथा लड़कों को भ्रष्ट करती हैं। महात्मा ‘कबीर’ ने तो नारी की तुलना ‘सर्पिणी’ एवं ‘आग’ से की है।
उपसंहार- सहशिक्षा का विरोध होते हुए भी आज के भौतिकवादी युग में अनेक कारणों से सहशिक्षा वरदान सिद्ध हो रही है। आज लड़के-लड़की प्रेम विवाह तथा अन्तर्राजातीय विवाह कर रहे हैं, उनमें जागरुकता आ रही है, जिससे दहेज की समस्या कुछ हद तक समाप्त हो रही है। आज का पुरुष नारी का सम्मान करने लगा है और नारी भी आज की बढ़ती महँगाई में परिवार का आर्थिक सहारा बन रही है। इससे उनमें आत्मविश्वास की भावना पैदा हो रही है। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि कुछ कमियों को यदि नजरअन्दाज कर दिया जाए तो सहशिक्षा के लाभ ही लाभ हैं। इसी के कारण आज हमारा हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है।
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