भूकम्प : एक भयानक प्राकृतिक प्रकोप पर निबंध
प्रस्तावना- प्रकृति प्रभु की रचना होने के कारण अजेय है। आदि मानव आदिकाल से ही प्रकृति की शक्तियों जैसे-अतिवृष्टि, अनावृष्टि, हिमपात, भूकम्प आदि के साथ संघर्ष करता आया है। उसने अपनी बुद्धि, हिम्मत एवं शक्ति के बल पर प्रकृति के अनेक रहस्यों का उद्घाटम तो कर दिया है, परन्तु प्रकृति की इन शक्तियों पर आज भी वह अपना अधिकार नहीं जमा पाया है। प्रकृति अनेक रूपों में हमारे समक्ष आती है। यह कभी अपना सुखदायी तथा कोमल पहलू दिखाकर हमें आनन्दमय कर देती है, तो कभी इतने भयानक रूप में प्रस्तुत होती है कि मनुष्य तो क्या, धरती-अम्बर, जल-थल सब धाराशयी हो जाते हैं।
भूकम्प का अर्थ- भूकम्प शब्द का अर्थ होता है- ‘भूमि का हिलना’ अर्थात् ‘कम्पन करना’। पृथ्वी एक गतिशील पिण्ड है, जिसमें लगातार कम्पन होते रहते हैं। इस प्रकार के कम्पन का मानव जीवन पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता किन्तु जब पृथ्वी के ऊपरी भाग में भी कम्पन होने लगता है तो उसे ‘भूकम्प’ कहा जाता है। महाकवि ‘जयशंकर प्रसाद जी’ ने प्रकृति के इस भयंकर प्रकोप का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है- के कारण-
“हाहाकार हुआ क्रन्दनमय
कठिन कुलिश होते थे चूर।
हुए दिगंत बधिर, भीषण रव
बार-बार होता था क्रूर ॥”
भूकम्प के कारण – भूकम्प आने के अनेक कारणों में से कुछ प्राकृतिक कारण हैं। इनमें से दो मुख्य कारण हैं। (1) विवर्तनिक कारण (2) अविवर्तनिक कारण
विवर्तनिक कारण के अनुसार पृथ्वी के दाव के कारण भूकम्प आता है। पृथ्वी का दाब सर्वत्र एक समान न होकर भिन्न-भिन्न है। पृथ्वी के भीतर अधिक गहराई पर तापमान तथा दाब बहुत अधिक है तथा कहीं एकदम कम है। जहाँ पर दाब अधिक है, वह कभी न कभी बहुत बढ़ जाता है, जिससे पृथ्वी के भीतर स्थित चट्टाने हिलने-डुलने के कारण मुड़कर टूटने लगती है। इसका प्रभाव ऊपरी चट्टानों पर भी पड़ने लगता है। फलस्वरूप चट्टाने सरकने लगती हैं तथा कभी-कभी आपस में टकरा भी जाती है, जिससे भूकम्प आते हैं।
अविवर्तनिक कारण के अनुसार जब ज्वालामुखी के उद्गार निकलते हैं तब भी भू-पटल पर कम्पन होते हैं। इसके अतिरिक्त चट्टानों के खिसकने, बम फटने, भारी वाहनों एवं रेलगाड़ियों आदि के तीव्र गति से चलने पर भी कम्पन पैदा होते हैं परन्तु इस प्रकार के कम्पन साधारण किस्म के होते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ धर्म भीरु लोग भूकम्प को प्राकृतिक प्रकोप मानते हुए मनुष्य के दुष्कर्मों को इसका कारण मानते हैं। पृथ्वी के किसी भाग पर जब अत्याचार तथा अनाचार हद से अधिक बढ़ जाते हैं, वो उस भाग में देवी-देवता अपना प्रकोप ‘भूकम्प’ के रूप में प्रकट करते हैं। अर्थशास्त्रियों का मत है कि जब पृथ्वी पर बोझ जरूरत से अधिक बढ़ जाता है तो प्रकृति उसे सन्तुलित करने के लिए भूकम्प पैदा करती है।
भूकम्प के दुष्परिणाम- भूकम्प का कारण चाहे जो की हो परन्तु इसका अन्त विनाश में ही होता है। हमारे सम्मुख अनेक ऐसे उदाहरण है जिनसे भूकम्प के दुष्परिणामों का पता चलता है। सन् 1935 में क्बेटा ने भूकम्प का प्रलयकारी नृत्य देखा था। देखते ही देखते एक सुन्दर शहर तहस-नहस हो गया था। क्षण भर में अनगिनत लोग मौत के मुँह में चले गए थे। जापान में तो इस प्रकार के भूकम्प अक्सर आते ही रहते हैं इसीलिए तो वहाँ के लोग लकड़ियों के घर बनाते हैं, जिससे नुक्सान कम हो। 20 अक्तूबर, 1991 को उत्तरकाशी में जो भूकम्प आया था, वह इतना तीव्रगामी था कि उससे निकली ऊर्जा जापान के हिरोशिमा पर गिराए गए तीस अणु बमों से निकलने वाली ऊर्जा के समान थी। लगभग 46 सेकेंड तक आए इस भूकम्प की तीव्रता रिएक्टर पैमाने पर 6.1 थी जो कि 330 किलो टन परमाणु विस्फोट से भी अधिक थी। अनगिनत लोग तबाह हो गए थे, उत्तरकाशी तथा भटवाडा के मध्य भागीरथी नदी पर बने पुल भी धाराशायी हो गए थे।
एक अन्य भूकम्प 1993 में महाराष्ट्र में आया था। इस भूकम्प का मुख्य केन्द्र बिन्दु महाराष्ट्र के लाटूर तथा उस्मानाबाद जिले के उमरगा तथा किल्लारीतालुका कस्बे बने थे जहाँ सब कुछ समाप्त हो गया था। यह भीषण भूकम्प बीसवीं सदी की सबसे दर्दनाक घटना थी जिसने महाराष्ट्र में हाहाकार मचा दिया था। कितने ही लोग मर गए लथा कितने ही अपाहिज हो गए थे। इसके पश्चात् 26 जनवरी 2001 को प्रातः 9 बजे गुजरात के ‘भुज’ क्षेत्र में बहुत तीव्र कम्प आय” था तथा फिर वही जान-माल की हानि का भयंकर मंजर देखने को मिला था। इसके पश्चात् भी अनेक भूकम्प आ चुके हैं तथा हम सभी लाचार तथा बेबस होकर प्रकृति के इस कुरुप पहलू को देखते रहते हैं।
भूकम्प तथा समाज-सेवी संस्थाएँ- किसी भी त्रासदी के समय इन्सान को इन्सान की ही आवश्यकता होती है। भूकम्प जैसे भयावह समय में भी, जब अनगिनत पशु तथा मानव काल के ग्रास बनने की स्थिति में होते हैं, उस समय वहाँ सरकारी तथा गैर-सरकारी स्वयं सेवी संस्थाएँ राहत कार्यों में जुट जाती हैं। ये संस्थाएँ भूकम्प-पीड़ितों को राहत सामग्री जैसे भोजन, दवाईयाँ, कपड़े, पैसा इत्यादि उपलब्ध कराती है। आजकल ‘प्रधानमन्त्री राहत कोष’ के माध्यम से भी भूकम्प पीड़ितो की सहायता की जाती है। स्कूलों तथा अन्य शिक्षण-संस्थाएँ भी हर सम्भव सहायता करती है। आवश्यकता पड़ने पर विदेशों से भी सभी प्रकार की सहायता पहुँचाई जाती है।
उपसंहार- निःसन्देह भूकम्प एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जो इस वैज्ञानिक मानव की अद्भुत शक्ति को अपने प्रलयकारी शक्तियों एवं प्रभावों से चुनौती देने में हर प्रकार से सफल रही है। यह आपदा हमें यह सबक देती है कि मानव चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो जाए, ईश्वर के हाथों में तो वह खिलौना मात्र है इसलिए हमें प्राकृतिक शक्तियों के प्रभावों को स्वीकारते हुए उससे वचने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह सदा हम पर अपनी कृपा बनाए रखे तथा ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से हमारी रक्षा करें।
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