बाढ़ (जल-प्रलय) : प्रकृति का क्रूर-परिहास पर निबंध
प्रस्तावना- ईश्वर की कृपा अपरम्पार है। प्रकृति के रूप में ईश्वर कभी अपना जीवनदायी रूप दिखाता है तो कभी बेहद भयंकर रूप देखने को मिलता है। यदि साल भर की छः सुन्दर ऋतुएँ हमें भरपूर आनन्द तथा सुख देती है, तो दूसरी ओर भूकम्प, दुर्भिक्ष, चक्रवात, महामारी, बाढ़ आदि आपदाएँ ईश्वर के कोप तथा विनाश के परिचायक हैं। विज्ञान के आधुनिकतम आविष्कार भी इन प्रकोपों के समक्ष घुटने टेक देते हैं। बाढ़ भी अत्यन्त विनाशलीला साथ लेकर आती है क्योंकि ‘बाढ’ अर्थात् ‘जल-प्रलय’ जल का विनाशकारी रूप है। अत्यधिक वर्षा के कारण जब पृथ्वी की जल सोखने की शक्ति समाप्त हो जाती है, तो उसकी परिणति बाढ़ में होती है। नदी-नाले, जलाशय, सरोवरों का जल अपने तट-बन्धनो को तोड़कर बस्तियों के अन्दर तक पहुँचने लगता है। जल की निकासी न हो पाने के कारण हर तरफ जल ही जल दिखाई पड़ने लगता है तब वह बाढ़ का रूप धारण कर लेता है।
बाढ़ के कारण- प्रत्येक प्राकृतिक प्रकोप मनुष्य के हस्तक्षेप के कारण ही प्रकट होता है। नदी तटो के निकट भूमि का कृषि तथा आवासीय उपयोग के कारण जल क्षेत्र कम हो रहा है। मानसून में अधिक बारिश तथा पहाड़ों पर बर्फ पिघलने पर नदियाँ उग्र रूप धारण कर लेती हैं। जब नदियों का जल-स्तर तथा वेग इतना तीव्र हो जाता है कि कोई भी अवरोध उसे रोक नहीं पाता है, तब सभी तटबन्धन टूट जाते हैं तथा प्रलयकारी जल अपने साथ सब कुछ बहाकर ले जाता है। यह तो बाढ़ आने का प्राकृतिक रूप हैं परन्तु बाढ़ का दूसरा कारण अप्राकृतिक भी है। यदि कभी किसी समय नदी या बाँधों आदि में दरारें पड़कर वे टूट जाते हैं तो वहाँ चारों ओर जल-प्रलय का सा दृश्य उपस्थित हो जाता है। परन्तु प्राकृतिक या अप्राकृतिक दोनों कारणों से आयी बाढ़ प्रलयकारी ही होती है।
बाढ़ के दुष्परिणाम- बाढ़ के साथ जब तेज हवाएँ भी चलने लगती हैं तो वह तूफान कहलाता है। यह एक भयंकर जल-प्रलय होता है, जो अपने साथ पूरे के पूरे गांव तक बहाकर ले जाता है। बाढ़ का दृश्य बेहद मार्मिक, वीभत्स तथा कारुणिक होता है, जो मनुष्य की चिर-संचित तथा अर्जित पूँजी को अपने साथ समेट लेता है। विद्युत, जल, टेलीफोन, चिकित्सा, दूरसंचार जैसी व्यवस्थाएँ तहस-नहस हो जाती है। हर ओर स्त्रियों, बच्चों, बूढ़ों के रोने के आवाजे सुनाई पड़ती है। उनके रहने के लिए घर नहीं बचता, खाने के लिए रोटी नहीं होती, तन ढकने के लिए वस्त्र नहीं होते, ऊपर से सारी जमा-पूँजी भी बह चुकी होती है। हर तरफ हाहाकार’ तथा ‘मातम’ छाया रहता है। बाढ़ के इसी प्रलयकारी दृश्य का वर्णन महाकवि ‘जयशंकर प्रसाद’ ने ‘कामायनी’ में इस प्रकार किया है-
“वे सब डूबे डूबा, उनका विभव, बन गया पारावार ।
उमड़ रहा है देव सुखो पर दुःख जलधि का नाद अपार ॥”
बाढ़ के बाद का दृश्य तो और भी भयंकर होता है। दूर-दूर तक जल ही जल दिखाई पड़ता है तथा मक्खी, मच्छर, कीड़े-मकौड़े उस जल पर तैरते रहते हैं। बिजली के खम्भे तथा सड़कों के किनारे खड़े पेड़ झुक जाते हैं। जगह-जगह कारे, बस, रेलगाड़ी, आदि यातायात के साधन पानी के बीच फंसे हुए दिखाई पड़ते हैं। बाढ़ के पश्चात् कुओं में बाढ़ का पानी भर जाने व गट्ठों में पानी व घास सड़ जाने से अनेक जानलेवा बीमारियाँ फैल जाती है। लोगों के पास इन बीमारियों के इलाज के लिए न धन बचता है, न साधन। किसान भूमिहीन हो जाते हैं, यहाँ तक कि बड़े-बड़े धनी लोग भी सड़कों पर आ जाते हैं। भूमि इस योग्य नहीं बचती कि उसमें अगली फसल पैदा की जा सके। भूमि के ऊपर नदियों की रेत बिछ जाने के कारण भूमि की उर्वरता समाप्त हो जाती है। दूषित जल पीने से हैजा, आन्त्रशोध जैसी बीमारियाँ फैलना आम बात है।
बाढ़ की कुछ मुख्य घटनाएँ- सन् 1978 में दिल्ली में आई बाढ़ ने 100 वर्ष पुराना रिकार्ड तोड़ दिया था। इस बाढ़ के कारण अपार जान-माल की क्षति हुई थी। इसके अतिरिक्त सन् 1975 में पटना की बाढ़ तथा 1978 की उत्तर प्रदेश, बिहार एवं अन्य प्रदेशों में आई हुई बाढ़े इस प्रलय की साक्षी बन चुकी है। सन् 2008 के अगस्त के महीने में एक भयंकर बाढ़ बिहार राज्य में आ चुकी है। यह बाढ़ पिछले वर्षों की सबसे भयंकर बाढ़ साबित हुई है। इस बाढ़ की चपेट में जो भाग सबसे अधिक आए थे वे थे ‘मेधापुरा’, ‘भागलपुर’ ‘अररिया’ तथा ‘चम्पारन’ । इस बाढ़ की चपेट में कितने लोग आए इसके बारे में तो कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता। गाँव वालों ने ऐसे भयंकर समय में गन्दे पानी में कच्चे चावल मिलाकर खाए और प्रकृति के प्रकोप को झेला था। हाल के वर्षों में चीन देश में आयी बाढ़ के बाद भारत के उड़ीसा प्रदेश की बाढ़ तथा तूफान भी बेहद विनाशकारी थे।
बाढ़ के समय बचाव व राहत कार्य- बाढ़ जैसी विपत्ति के समय में विचित्र मेल तथा सद्भाव दिखाई पड़ती है। पुराने शत्रु भी मिलकर एक दूसरे का दुख बाँटने लगते हैं। एक ही वृक्ष पर जल से भयभीत सर्प तथा मानव दोनों बैठ जाते हैं। अनेक सरकारी तथा निजी संस्थाएँ राहत सामग्री जुटाने में लग जाती है। खाद्य सामग्री, दवाईयाँ, वस्त्र आदि भेजे जाते हैं। ऐसे समय में कुछ स्वार्थी लोग बीच में ही सारा सामान खा जाते हैं तथा जरूरतमन्दों को यह सामान नहीं मिल पाता है। कुछ लोग तो इतने गिर जाते हैं कि बाढ़ग्रस्त इलाकों में चोरी आदि करने से भी पीछे नहीं रहते है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के आस-पास जहाँ निराश्रित बाढ़ पीड़ित लोग शिविर आदि डाले होते हैं, वहाँ जीवनोपयोगी वस्तुएँ मँहगे दामों पर बेचते हैं। परन्तु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो संकट के समय में पूरे तन-मन-धन से सेवा कार्य करते हैं। ऐसे लोगों की मदद तथा सद्भावना के बल पर ही गिरे हुए लोग दोबारा उठकर खड़े हो पाते हैं।
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