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विशिष्ट बालकों का अर्थ और विशेषताएं एंव प्रकृति |Meaning, characteristics and nature of Special Children

विशिष्ट बालकों का अर्थ और विशेषताएं  एंव प्रकृति |Meaning, characteristics and nature of Special Children
विशिष्ट बालकों का अर्थ और विशेषताएं एंव प्रकृति |Meaning, characteristics and nature of Special Children

विशिष्ट बालकों का अर्थ और विशेषताएं क्या हैं? सामान्य व विशिष्ट बालकों में क्या अन्तर है ? 

मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ हमने प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति की है। शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा है। कुछ समय पूर्व तक हम किसी भी प्रकार से असमर्थ बालकों की शिक्षा पर ध्यान नहीं देते थे, लेकिन मनोविज्ञान ने शिक्षा के क्षेत्र को एक नई राह दी। आज अगर हम किसी भी क्षेत्र में नजर डालते हैं तो हमें प्रत्येक क्षेत्र में मनोविज्ञान का योगदान नजर आता है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार से पहले शारीरिक या मानसिक दोष वाले बालक को बुरी नजर से देखा जाता था तथा इसे पूर्व जन्म के कर्मों का फल समझा जाता था। लेकिन धीरे-धीरे लोगों की सोच में परिवर्तन आने लगा और हमने उन बालकों को भी समाज का अंग मानना शुरू कर दिया। आज सभी प्रकार के बच्चों की चाहे वे शारीरिक विकलांग हैं अधिगम असमर्थ या भावनात्मक रूप से ग्रस्त हैं, को शिक्षा ग्रहण करने का समान अधिकार है। सरकार के साथ-साथ समाज के लोग भी इनकी शिक्षा को लेकर चिन्तित हैं तथा प्रत्येक स्तर पर इनकी शिक्षा का प्रबन्ध करने की कोशिश जारी है ताकि इस प्रकार के बच्चे भी शिक्षा ग्रहण कर सकें और वे भी समाज का अंग बन सकें। नई शिक्षा नीति 1986 में इस प्रकार के बालकों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है ताकि बिना किसी भेदभाव के वे भी अपने सामर्थ्य के अनुसार शिक्षा ग्रहण कर सकें।

प्रकृति के नियम के अनुसार कोई भी दो प्राणी एक जैसे नहीं होते। दो प्राणियों की शक्ल चाहे आपस में एक जैसी लगती हो लेकिन वास्तव में वह एक जैसी नहीं होती। इसी प्रकार से प्रत्येक बच्चा दूसरे के समान लगता है लेकिन वह दूसरे के समान नहीं होता। प्रत्येक बालक में अपनी कुछ विशेषताएं होती हैं जो उसे दूसरे बालकों से भिन्न करती हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी सभी बालक एक समान नहीं होते, कुछ बालक अधिक बुद्धिमान हैं तो कुछ बिल्कुल ही पिछड़े हुए कुछ बालक शारीरिक दृष्टि से पूर्णतया स्वस्थ हैं तो कुछ अपंग हैं, कुछ बालकों को सुनने की समस्या है तो कुछ अन्धे हैं। कुछ बालक बुद्धिमान होने के कारण अपने आपक समाज में स्थापित नहीं कर पाते तो कुछ समाज में अपने आपको स्थापित कर लेते हैं। सभी बालकों में कुछ-न-कुछ अपनी विशेषताएँ होती हैं।

विशिष्ट बालक कौन हैं?– प्रत्येक विद्यालय में सभी प्रकार के बालक समान नहीं होते हैं। कुछ ऐसे बालक भी होते हैं जिनकी अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं। ये विशेषताएँ शारीरिक, बौद्धिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक हो सकती हैं। इस प्रकार जो बालक सामान्य बालकों से अलग विशेषताएँ रखते हैं उन्हें विशिष्ट बालक कहा जाता है। हेक ने लिखा है कि “विशिष्ट बालक वे हैं जो किसी एक या अनेक गुणों की दृष्टि से सामान्य बालकों से पर्याप्त मात्रा में भिन्न होते हैं।” ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए विशेष प्रबन्ध करना पड़ता है।

 विशिष्ट बालकों की परिभाषा

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों व विद्वानों ने विशिष्ट बालकों को इस प्रकार परिभाषित किया है-

क्रो एण्ड को 1948 के अनुसार, “विशिष्ट प्रकार या विशिष्ट शब्द किसी ऐसे लक्षण या उस लक्षण को रखने वाले व्यक्ति पर लागू किया जाता है जबकि लक्षण को सामान्य रूप में प्रत्यय की सीमा इतनी अधिक होती है कि उसके कारण व्यक्ति अपने साथियों का विशिष्ट ध्यान प्राप्त करता है और इससे उसके व्यवहार की अनुक्रियाएँ प्रभावित होती हैं। “

ऐसे बालकों के लिये शिक्षा की व्यवस्था विशेष रूप से करने की आवश्यकता पड़ती है। अध्यापक की उनकी पहचान, समायोजन तथा शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देना पड़ता है। विशिष्ट बालक सामान्य बालकों से पर्याप्त रूप से भिन्न होते हैं। ऐसे बालक प्रायः सभी विद्यालयों में पर्याप्त मात्रा में मिल जाते हैं। उनके लिए विशेष कक्षाओं का आयोजन करना पड़ता है।

सैमुयल- ए, किर्क के अनुसार, “विशिष्ट बालक वह बालक है जो सामान्य बालकों से शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक व संवेगात्क विशेषताओं से भिन्न होता है और उसके गुणों को अधिकतम सीमा तक विकसित करने के लिए विशेष कक्षा का प्रबन्ध करना पड़ता है। “

डब्ल्यू०एम० क्रूचशेन्क के अनुसार, “एक विशिष्ट बालक वह है जो शारीरिक, बुद्धिमानी और समाज के आधार पर सामान्य बालक की अपेक्षा गुणों में अधिक विकसित हो तथा सामान्य शिक्षा कक्ष में शिक्षण के कार्यक्रम के मध्य उसे विशिष्ट प्रकार के व्यवहार की आवश्यकता हो । “

हेबेट तथा फारनेस के अनुसार, “विशिष्ट ऐसा व्यक्ति होता है जिसकी शारीरिक, मानसिक, बुद्धि, इन्द्रियाँ, मांसपेशियों की क्षमताएँ अनोखी हो अर्थात् सामान्यतया ऐसे गुण दुर्लभ हों। ऐसी अनोखी दुर्लभ क्षमताएँ उसकी प्रवृत्ति तथा कार्यों के स्तर में भी हो सकती है। इस प्रकार के बालक ‘प्रतिभाशाली बालक’ के रूप में परिभाषित होते हैं। ऐसे बालक बड़ी आसानी से अन्य बालकों के बीच में पहचाने जा सकते हैं। “

टेलफर्ड और सौरे के अनुसार, “विशिष्ट बालक शब्दावली का प्रयोग उन बालकों के लिए करते हैं जो सामान्य बालकों से शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक या सामाजिक विशेषताओं में इतने अधिक भिन्न होते हैं कि उन्हें अपनी क्षमता के अधिकतम विकास हेतु विशेष सामाजिक और शैक्षिक सेवाओं की आवश्यकता पड़ती है। “

सचवार्टज के अनुसार, “जब हम किसी को ‘विशिष्ट’ कह कर वर्णित करते हैं, हम व्यक्ति को ‘औसत’ या ‘सामान्य’ लोगों, जिन्हें हम एक या इससे अधिक लक्षणों के सम्बंध में जानते हैं, से अलग रखते हैं। “

ई० वालेन्स बालिन के अनुसार, ” प्रारम्भिक स्कूल के 1000 बालकों में से लगभग 500/ बालकों में कुछ विशिष्टताएँ पाई जाती हैं। इसमें भी लगभग 50 अर्थात् 10% बालक शारीरिक या मानसिक हीनता से ग्रस्त दिखलाई पड़ेंगे। अन्य बालक मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक या व्यक्तित्व सम्बन्धी विशिष्ट समस्याओं के कारण विशिष्ट होंगे। ये विशिष्ट बालक इसी प्रकार के सामाजिक, आर्थिक पर्यावरण से आते हैं। इनके समायोजन की विशिष्ट समस्याएँ होती है। और अध्यापक को उनका विशिष्ट ढंग से समाधान करना पड़ता है। “

उपरोक्त सभी परिभाषाएँ विशिष्ट एवं सामान्य बालकों के बारे में हैं। अतः यह जानना आवश्यक हो जाता है कि सामान्य बालकों की क्या विशेषताएँ हैं तथा विशिष्ट तथा सामान्य बालकों में क्या अन्तर है।

सामान्य बालक की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. वे शारीरिक रूप से सुडौल एवं स्वस्थ होते हैं।
  2. वे मानसिक व शारीरिक बीमारियों से दूर होते हैं।
  3. उनका जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण होता है।
  4. वे स्नेह, सहयोग, दया, सहनशील, भाई-चारा आदि गुणों से परिपूर्ण होते हैं।
  5. उनकी शैक्षिक उपलब्धि उचित होती है।
  6. उनकी बुद्धि-लब्धि 90-110 के बीच की होती है।
  7. उनमें क्रोध, ईर्ष्या, हिंसा आदि की भावना कम होती है।
  8. वे स्वयं को घर, विद्यालय तथा समाज में आसानी से समायोजित कर लेते हैं।
  9. उनका दृष्टिकोण आशावादी होता है तथा वे जीवन को उचित ढंग से जीते हैं।
  10. वे मध्यम सोच के होते हैं, बहुत अधिक महत्वाकांक्षा नहीं रखते हैं।
  11. वे जीवन को व्यावहारिक ढंग से जीते हैं।
  12. वे सादा जीवन जीने में विश्वास रखते हैं।
  13. वे प्रायः सन्तोषी स्वभाव के होते हैं तथा समय व आवश्कतानुसर स्वयं को समायोजित कर लेते हैं।

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