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पर्यावरणीय शिक्षण की समस्या समाधान विधि

पर्यावरणीय शिक्षण की समस्या समाधान विधि
पर्यावरणीय शिक्षण की समस्या समाधान विधि

पर्यावरणीय शिक्षण की समस्या समाधान विधि की विवेचना कीजिए। 

समस्या समाधान विधि

समस्या समाधान विधि छात्र की मानसिक क्रिया पर आधारित है क्योंकि इस विधि में समस्या का चयन करके छात्र स्वयं के विचारों एवं तर्क शक्ति के आधार पर मानसिक रूप से समस्या का हल ढूंढ़ कर नवीन ज्ञान प्राप्त करता है।

समस्या समाधान विधि में विद्यालय का पाठ्यक्रम इस प्रकार संगठित किया जाता है कि बालकों के सामने एक वास्तविक समस्या उत्पन्न हो सके। पर्यावरण के शिक्षण में कुछ ऐसी इकाइयाँ बनाई जा सकती हैं जो बच्चों के सामने समस्या के रूप में प्रस्तुत की जाएं। समस्या कठिन और आसान, छोटी और बड़ी विभिन्न प्रकार की हो सकती हैं। उदाहरणार्थ-किसी गैस को बनाने की विधि।

इस प्रकार समस्या समाधान विधि में मानसिक निष्कर्षों पर अधिक बल दिया जाता है। समस्या समाधान में किसी समस्या या प्रश्न को एक विशेष स्थिति में वैज्ञानिक ढंग से हल किया जाता है, परन्तु इसके प्रयोग में इस बात पर बल दिया जाता है कि छात्र समस्या को स्वयं समझ कर हल करने के लिए तैयार रहें। दूसरे शब्दों में, छात्रों को समस्या में अपनत्व अनुभव करना चाहिये। समस्या समाधान हेतु शिक्षार्थी द्वारा तैयार किए गए सभी प्रयत्न उद्देश्यपूर्ण होते हैं।

परियोजना विधि और समस्या समाधान विधि में अन्तर यह है कि परियोजना विधि में समस्या का समाधान कार्य को व्यावहारिक रूप से समाप्त कर देने के पश्चात् ही हो सकता है जबकि समस्या समाधान विधि में मानसिक हल ढूँढ़ा जाता है। समस्या समाधान विधि का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को शिक्षण देना है न कि समाज की समस्याओं के समाधान ढूँढ़ना। कुछ विद्वानों ने समस्या समाधान को निम्न प्रकार से परिभाषित करने का प्रयास किया है-

(1) वुडवर्थ के अनुसार, “समस्या समाधान उस समय प्रकट होता है जब उद्देश्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा पड़ती है। यदि लक्ष्य तक पहुँचने का मार्ग सीधा और आसान हो तो समस्या आती ही नहीं।”

(2) गेट्स तथा अन्य के अनुसार, “समस्या समाधान, शिक्षण का एक रूप है, जिसमें उचित स्तर की खोज की जाती है।”

स्किनर के अनुसार, “समस्या समाधान एक ऐसी रूपरेखा है जिसमें सृजनात्मक चिंतन तथा तर्क होते हैं।”

सी.वी. गुड के शब्दों में, “समस्या समाधान-विधि में विद्यार्थी चुनौतीपूर्ण स्थितियों के निर्माण द्वारा सीखने की ओर प्रेरित होता है। यह एक ऐसी विशिष्ट विधि है जिसमें लघु किन्तु सम्बन्धित समस्याओं के सामूहिक समाधान के माध्यम से एक बड़ी समस्या का समाधान किया जा सकता हैं।”

(5) जॉर्ज जानसन ने लिखा है— “मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने का सर्वोत्तम ढंग वह है जिसके द्वारा मस्तिष्क के समक्ष वास्तविक समस्याएँ उत्पन्न की जाती हैं और उसको उनका समाधान निकालने के लिए अवसर तथा स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है।”

वास्तव में, समस्या उस परिस्थिति को कहते हैं कि जिसके लिये मनुष्य के पास पहले से तैयार कोई हल नहीं होता। ऐसी परिस्थिति में मनुष्य को तुरन्त ही उस परिस्थिति का सामना करने के लिए साधन जुटाने पड़ते हैं, बहुत-सी बातों के बारे में सोचना पड़ता है। कभी उसे वह समस्या ही नहीं लगती और यह सोचकर व्यक्ति कुछ भी नहीं करता। कई बार व्यक्ति को समस्या अच्छी तरह से समझ ही नहीं आती। अतः कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने का तरीका या उन समस्याओं का हल ढूँढ़ने का तरीका जो आवश्यकओं की पूर्ति में बाँधा पहुँचाती है, समस्या समाधान कहलाता है। समस्या के अनुसार ही समस्या समाधान की विधि का चयन होता है।

समस्या समाधान विधि के सोपान

समस्या समाधान विधि के प्रमुख सोपान निम्नलिखित हैं-

(1) समस्या का चयन करना- सर्वप्रथम शिक्षक को विज्ञान विषय में से उन प्रकरणों का चयन करना होता है जो समस्या विधि की सहायता से पढ़ाये जा सकते हैं क्योंकि यह सत्य है कि सभी प्रकरण समस्या समाधान विधि से नहीं पढ़ाये जा सकते।

(2) समस्या से सम्बन्धित तथ्यों का एकत्रीकरण एवं व्यवस्था- समस्या से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्रित करना भी अति आवश्यक है क्योंकि यदि साधन ही अस्पष्ट होंगे तो हम इस विधि से जितना लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, वह प्राप्त नहीं कर सकेंगे।

(3) समस्या का महत्त्व स्पष्ट करना- यह सोपान भी अति महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यदि विद्यार्थियों को समस्या के महत्त्व का ही पता नहीं होगा तो वे समस्या में कभी भी रुचि नहीं लेंगे। विद्यार्थियों को समस्या में रुचि न लेने से समस्या का कभी भी सही हल नहीं निकल सकता।

(4) तथ्यों की जाँच तथा सम्भावित हलों का निर्णय- समस्या का महत्त्व को स्पष्ट करने के पश्चात् समस्या से सम्बन्धित तथ्यों की जाँच की जाती है और यह पता लगाया जाता है कि उनमें से कौन से तथ्य समस्या के अनुरूप हैं और किन तथ्यों को अस्वीकृत किया जा सकता है। तथ्यों की जाँच बहुत आवश्यक है क्योंकि उसके उपरान्त ही समस्या का हल निकालने का प्रयत्न किया जाता है। हो सकता है कि किसी समस्या का हल कई प्रकार से निकलता हो, तब शिक्षक और विद्यार्थी दोनों मिलकर सबसे सही हल ढूँढ़ने का प्रयत्न करेंगे।

(5) सामान्यीकरण एवं निष्कर्ष निकालना- तथ्यों की जाँच के पश्चात् इन तथ्यों का सामान्यीकरण करना आवश्यक है। सामान्यीकरण से निष्कर्षों के सत्यापन में सहायता मिलती है। इसके साथ ही यह जानने के लिए भी प्रेरणा मिलेगी कि ये निष्कर्ष प्रयोग में लाये जा सकते हैं या नहीं।

(6) निष्कर्षों का मूल्यांकन एवं समस्या का लेखा-जोखा बनाना- अन्त में, समस्या का लेखा-जोखा बनाया जाता है और समस्या के समाधान हेतु जिस निष्कर्ष या परिणाम पर विद्यार्थी व शिक्षक पहुँचते हैं उनका मूल्यांकन किया जाता है।

समस्या समाधान विधि की विशेषताएँ

समस्या समाधान विधि की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं-

(1) लक्ष्य-केन्द्रित विधि- इस विधि को लक्ष्य केन्द्रित माना गया है क्योंकि इस विधि का एक विशिष्ट लक्ष्य होता है। लक्ष्य ही बाधा को दूर करना होता है।

(2) सूझ-बूझ या अन्तर्दृष्टिपूर्ण- समस्या समाधान विधि सूझ-बूझ पूर्ण वाली विधि है क्योंकि इसमें चयनात्मक और उचित अनुभवों का पुनर्गठन सम्पूर्ण हल में किया जाता है।

(3) आलोचनात्मक- समस्या समाधान विधि आलोचनात्मक है, क्योंकि इसमें समस्या के हल का पर्याप्त मूल्यांकन किया जाता है।

(4) सृजनात्मक- इस विधि में विचारों आदि को पुनर्गठित किया जाता है, इसलिए इस विधि को सृजनात्मक माना जाता है।

(5) चयनात्मक- समस्या समाधान विधि की प्रक्रिया इस दृष्टि से चयनात्मक है क्योंकि इसमें सही हल ढूंढ़ने के लिए चयन तथा उपयुक्त अनुभवों को उचित महत्त्व दिया जाता है।

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