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पर्यावरणीय शिक्षा की परियोजना विधि के पद, गुण, विशेषताएँ, एंव दोष

पर्यावरणीय शिक्षा की परियोजना विधि के पद, गुण, विशेषताएँ, एंव दोष
पर्यावरणीय शिक्षा की परियोजना विधि के पद, गुण, विशेषताएँ, एंव दोष

पर्यावरणीय शिक्षा की परियोजना विधि का वर्णन कीजिए।

परियोजना विधि

परियोजना विधि ही एक ऐसी विधि है जिसका प्रयोग करके लगभग सभी विषयों की शिक्षा दी जा सकती है। इस विधि के जन्मदाता अमेरिका के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री जॉन डीवी के योग्य शिष्य सर विलियम किलपैट्रिक हैं। इन्होंने डीवी के प्रयोजनवाद से प्रभावित होकर ही इस विधि द्वारा शिक्षा के सभी अंगों को एकता के सूत्र में पिरोकर शिक्षण को रुचिकर एवं जीवनोपयोगी बनाने का प्रयत्न किया है। प्रोजैक्ट या परियोजना शब्द के विभिन्न पक्षों को समझाने से पहले यह आवश्यक है कि इसका अर्थ समझा जाये।

प्रोजैक्ट या परियोजना शब्द का अर्थ – परियोजना या प्रोजैक्ट शब्द की कई शिक्षा शास्त्रियों ने कई प्रकार से परिभाषित किया है। सभी ने इसकी अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं-

किलपैट्रिक के अनुसार, “प्रोजैक्ट वह उद्देश्यपूर्ण कार्य है जिसे लगन के साथ सामाजिक वातावरण में किया जाता है।”

बेलर्ड के अनुसार, “प्रोजैक्ट पदार्थ जीवन का ही एक भाग है जो विद्यालय में प्रदान किया गया है।”

प्रो. स्टीवेन्सन के अनुसार, “प्रोजैक्ट एक समस्यामूलक कार्य है जिसे स्वाभाविक परिस्थितियों में पूर्ण किया जाता है।”

पारकर के अनुसार, “यह क्रिया की एक इकाई है जिसमें विद्यार्थियों को योजना और उद्देश्य निर्धारित करने के लिए उत्तरदायी बनाया जाता है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यदि प्रोजैक्ट शब्द का अर्थ समझने का प्रयास किया जाये तो विश्लेषण के पश्चात् इस परिणाम पर पहुँचा जा सकता है कि प्रोजैक्ट या परियोजना विद्यार्थियों के वास्तविक जीवन से सम्बन्धित किसी समस्या का हल खोज निकालने के लिये अच्छी तरह से चुना हुआ तथा प्रसन्नतापूर्वक हाथ में लिया जाने वाला यह कार्य है जिसे पूर्ण स्वाभाविक परिस्थितियों में सामाजिक वातावरण में ही पूर्ण किया जाता है।

परियोजना के पद

किसी भी परियोजना के संचालन के लिए या उसे चालू करने के लिए एक निश्चित क्रम के अनुसार निम्नलिखित पदों का अनुकरण करना आवश्यक होता है-

(1) परिस्थिति प्रदान करना- सर्वप्रथम अध्यापक विद्यार्थियों को ऐसी परिस्थिति प्रदान करे जिसमें कुछ समस्याएँ हैं। ये परिस्थितियाँ विद्यार्थियों के साथ वार्ताओं के द्वारा प्रदान की जा सकती हैं। ये वार्ताएं विद्यार्थियों और अध्यापकों की रुचियों के अनुसार ही होनी चाहिये। परिणामस्वरूप ऐसी परिस्थितियों का सामना करने के लिए ही विद्यार्थियों में अनुकूल प्रोजैक्ट को हाथ में लेने की इच्छा जाग्रत होती है।

(2) चयन और उद्देश्य- इस पद के अन्तर्गत अध्यापक विद्यार्थियों की परिस्थितियों के चयन में सहायता करता है। परियोजना का चयन विद्यार्थियों पर लादना नहीं चाहिए। अध्यापक विद्यार्थियों के सम्मुख विभिन्न परियोजनाएँ प्रस्तुत कर सकता है, लेकिन चयन के बारे में निर्णय विद्यार्थी स्वयं ही लें। अध्यापक यह देखे कि परियोजना के उद्देश्य स्पष्ट रूप से परिभाषित हों। यदि विद्यार्थी किसी गलत परियोजना का चुनाव कर लेते हैं तो अध्यापक युक्ति से उनका मार्गदर्शन कर सकते हैं ताकि वे धन और समय की बर्बादी न करें।

(3) योजना- चयन की प्रक्रिया के पश्चात् विद्यार्थियों की परियोजना की विस्तृत योजना तैयार करनी चाहिये। अध्यापक इस कार्य में भी विद्यार्थियों का मार्ग-दर्शन कर सकता है, लेकिन अपने सुझावों को उन पर थोप नहीं सकता। अध्यापक अपने मन ही मन दो-तीन योजनाएं तैयार कर ले और विद्यार्थियों को मार्गदर्शन दे। प्रत्येक विद्यार्थी को बहस में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिये। प्रत्येक विद्यार्थी योजना को ठीक ढंग से कापी में नोट कर ले। योजना में सभी विद्यार्थियों में कार्य को विभाजित किया जाना चाहिए ताकि सभी विद्यार्थी परियोजना के कार्य में अपना-अपना योगदान दे सकें। इससे विद्यार्थियों में सहकारिता की भावना का विकास होता है।

(4) लागू करना या कार्यान्वित करना- योजना बना लेने के पश्चात् इसे लागू करना बहुत ही जिम्मेदारी का काम होता है। अध्यापक को विद्यार्थियों को उनकी रुचियों और योग्यताओं के अनुसार कार्य बाँट देना चाहिए। परियोजना को कार्यान्वित करने के लिए अपना सक्रिय योगदान देना चाहिए। विद्यार्थी की योग्यता तथा रुचि के अनुसार कार्य न बाँटने से परियोजना का कोई लाभ नहीं-जैसे, पेटिंग या ड्राइंग का कार्य उस विद्यार्थी को दे दिया जाये जो एक सीधी लाईन भी न खींच सके तो कोई लाभ नहीं होगा। इस पद में अध्यापक और विद्यार्थी में धैर्य का होना अति आवश्यक है। अध्यापक को समयानुसार निर्देश देते रहना चाहिये।

(5) मूल्यांकन– परियोजना की समाप्ति पर सम्पूर्ण कार्य का मूल्यांकन किया जाना चाहिए तथा त्रुटियों को नोट किया जाना चाहिए। विद्यार्थियों को स्वयं अपनी आलोचना करनी चाहिए। विद्यार्थियों को यह देखना चाहिए कि परियोजना के उद्देश्य किस सीमा तक प्राप्त कर लिये गये हैं। उनमें क्या कमी रह गई है।

(6) रिकॉर्ड करना- परियोजना कार्य का सम्पूर्ण रिकार्ड विद्यार्थियों को रखना चाहिए। रिकॉर्ड परियोजना के सभी पदों से सम्बन्धित रखा जाना चाहिए। परियोजना की योजना, उसे लागू करने सम्बन्धी नियम, उद्देश्यों तथा मूल्यांकन से सम्बन्धित रिकॉर्ड रखे जाने चाहिए। इस रिकॉर्ड में विद्यार्थियों को दिये गये कार्य आदि भी शामिल हैं। इसी रिकॉर्ड में परियोजनाओं के लिये प्रयोग की गई पुस्तकें, चार्ट, मॉडल आदि भी सम्मिलित किये जाने चाहिये।

अच्छी परियोजना के गुण

एक अच्छी परियोजना में निम्नलिखित गुण होने चाहिए –

(1) एक अच्छी परियोजना का सबसे पहला और आवश्यक गुण यह है कि वह परियोजना उद्देश्यपूर्ण एवं लाभदायक होनी चाहिए।

(2) विद्यार्थियों को परियोजना कार्य की स्पष्टता होनी चाहिए।

(3) परियोजना से प्राप्त किये अनुभव लाभकारी होने चाहिए। परियोजना कार्य अवश्य पूरा किया जाना चाहिए।

(4) परियोजना वहीं अच्छी मानी जाती है जो विद्यार्थी-क्रिया को प्रोत्साहित करती है और उन्हें अधिक उत्तरदायी बनाती है। विद्यार्थियों में स्वतन्त्र चिन्तन को प्रोत्साहन देना चाहिए।

(5) परियोजना विद्यार्थी को मानसिक और शारीरिक रूप से व्यस्त रखे।

(6) विद्यार्थी और अध्यापक दोनों को ही जो सक्रिय रखे वह उत्तम परियोजना कहलाती है। लेकिन विद्यार्थियों की सक्रियता अधिक आवश्यक है।

(7) परियोजना सस्ती होनी चाहिए और उसमें समय भी कम लगना चाहिए।

(8) परियोजना समुदाय की आवश्यकता के अनुसार होनी चाहिए।

(9) परियोजना कार्य चुनौतीपूर्ण होना चाहिए और विद्यार्थियों को प्रयास करने के अवसर दिये जाने चाहिए। यह अधिक कठिन भी नहीं होना चाहिए और अधिक आसान भी नहीं होना चाहिए।

(10) परियोजना कार्य उपलब्धि योग्य होना चाहिए।

परियोजना विधि की विशेषताएँ

परियोजना विधि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है-

(1) यह विधि सीखने के नियमों पर आधारित है, यथा- तैयारी का नियम, अभ्यास का नियम तथा प्रभाव का नियम

(2) इस विधि से सामूहिक अन्तःक्रिया और सहयोग को बढ़ावा मिलता है।

(3) इस विधि लोकतान्त्रिक ढंग से सीखने की प्रक्रिया का विकास होता है।

(4) इस विधि से परिश्रम की मर्यादा का विकास होता है।

(5) इस विधि में विभिन्न विषयों के साथ सह-सम्बन्ध ढूंढ़ा जा सकता है।

(6) इस विधि में खोज के परिणामस्वरूप प्रसन्नता का अनुभव होता है।

(7) इस विधि द्वारा समस्या के समाधान की चुनौती का अवसर मिलता है। इससे रचनात्मक और सृजनात्मक क्रियाओं को बढ़ावा मिलता है।

(8) मानसिक परिधि का विस्तार भी इसी विधि से सम्भव है।

(9) इसमें विषयों को विभिन्न शाखाओं में बाँटना नहीं पड़ता। विषय का सह-सम्बन्ध इस विधि द्वारा अधिकतम हो सकता है।

परियोजना विधि के दोष

इस विधि के अपने कुछ दोष भी हैं, जो इस प्रकार हैं-

(1) इस विधि में परियोजना को पूरा करने में समय बहुत अधिक खर्च होता है।

(2) अध्यापक पर काम का अधिक बोझ पड़ता है। अधिकतर समय वह योजना बनाने, तैयारी करने तथा मूल्यांकन करने में ही व्यस्त रहता है।

(3) उच्च कक्षाओं का पाठ्यक्रम प्रोजैक्ट के द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता।

(4) परियोजना के लिए सन्दर्भ सामग्री का अभाव रहता है।

(5) परियोजनाओं के लिए सुसज्जित प्रयोगशालायें चाहिये। अतः यह विधि बहुत खर्चीली

(6) परियोजना कार्यों में कौशलों के अभ्यास के लिए अवसर प्रदान नहीं किये जाते। गणित और विज्ञान विषयों के लिए ये अभ्यास अति आवश्यक हैं।

(7) विज्ञान विषय में परियोजना कार्यों के लिये अध्यापक को सभी विषयों का ज्ञाता समझा जाता है और उससे यह आशा की जाती है कि सभी विषयों में या सभी प्रकरणों में सह-सम्बन्ध स्थापित करके पढ़ाये। यह बहुत ही कठिन कार्य है।

(8) विषय का विकास, क्रम से नहीं हो सकता। शिक्षण कार्य संगठित और निरन्तर नहीं होता।

(9) इस विधि से सम्पूर्ण समय-सारणी को बदलना पड़ता है।

(10) इस विधि में किसी भी प्रकार का विस्तृत ज्ञान नहीं दिया जा सकता। केवल प्रारम्भिक ज्ञान ही दिया जा सकता है।

(11) परियोजना के पदों के अनुसार लिखी गई पुस्तकें उपलब्ध नहीं हैं।

(12) यह विधि निम्न कक्षाओं के लिये लाभकारी है लेकिन उच्च कक्षाओं में अधिक लाभकारी नहीं है।

(13) कई बार कोई परियोजना कार्य पूर्ण नहीं हो पाता जिससे व्यर्थ में ही समय, धन एवं शक्ति गँवानी पड़ती है।

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