पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है-
(1) पृष्ठभूमि – यह अधिनियम पर्यावरण संरक्षण तथा उसके सुधार तथा इससे संबंधित अनेक बिन्दुओं के लिये बनाया गया। इसका मुख्य उद्देश्य ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ द्वारा मानव पर्यावरण पर 1972 में स्टाकहोम में आयोजित कान्फ्रेंस, जिसमें भारत ने भी भाग लिया था, में मानव पर्यावरण के संरक्षण और सुधार के निर्णयों के क्रम में, कोई उचित योजना तैयार करना था; तथा इसके आधार पर ही प्राणीमात्र को पर्यावरण विकृतियों से बचाना और अनेक पर्यावरणीय समस्याओं को दूर करने का एक प्रभावी उपकरण उपलब्ध कराना था।
इसे भारत के राष्ट्रपति ने 23 मई, 1986 को अपनी सहमति प्रदान की और केन्द्र सरकार ने इसे 19 नवम्बर, 1986 से सम्पूर्ण भारत में लागू किया।
(2) अधिनियम विवरण- इस अधिनियम में 26 धारायें हैं जो चार अध्यायों में विभक्त हैं। अध्याय-1 (धारा 1 व 2 ) में प्रारम्भिक शीर्षक दिया गया है। यथा
(i) धारा-1 में अधिनियम का कार्यक्षेत्र (समस्त भारत) तथा उसे केन्द्र सरकार द्वारा लागू करने हेतु निर्देशित किया गया है।
(ii) धारा-2 में पर्यावरण सम्बन्धी अनेक शब्दों को विस्तृत रूप से परिभाषित किया गया है।
अध्याय-2 (धारा 3 से 6 तक) में केन्द्र सरकार की समस्त शक्तियों का वर्णन है। यथा-
(i) धारा-3 के अधीन केन्द्र सरकार की उन शक्तियों का विवरण है जिसके द्वारा पर्यावरण की गुणवत्ता की सुरक्षा एवं सुधार तथा पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने, नियंत्रित करने अथवा कम करने के आवश्यक उपाय किये जा सकते हों।
(ii) धारा-4 के अन्तर्गत कहा गया है कि धारा 3 में सुझाये गये उपायों को कारगर ढंग लागू करने के लिये केन्द्र सरकार किसी भी अधिकारी को नियुक्त कर सकती है तथा उसको से शक्तियाँ प्रदान कर निश्चित कार्य का उत्तरदायित्व दे सकती है।
(iii) धारा-5 के अन्तर्गत केन्द्र सरकार किसी भी व्यक्ति, अधिकारी अथवा विशेषज्ञ को इस अधिनियम की अनुपालना में निर्धारित किसी भी प्रकार के निर्देश प्रदान कर सकती है, और वे इन निर्देशों के पालन के लिये बाध्य होंगे। इन निर्देशों में किसी भी उद्योग के संचालन को रोकना, बन्द करना अथवा उसके कार्यकलापों को प्रतिबन्धित करना अथवा उसके जल, विद्युत व अन्य किसी सेवा को रोकना आदि शामिल हैं।
(iv) धारा-6 के अन्तर्गत पर्यावरणीय प्रदूषण को नियंत्रण करने हेतु विभिन्न नियमों को बनाने का प्रावधान है।
अध्याय-3 (धारा 7 से 17 तक)
अध्याय 3 पर्यावरण प्रदूषण को रोकने, नियंत्रण करने तथा उसके निवारण से संबंधित है। इनमें धारा 7 से 14 तक पर्यावरण प्रदूषण सम्बन्धी कार्यों को रोके जाने के आदेश-निर्देश दिये जाने सम्बन्धी प्रावधान किये गये हैं।
धारा 15 में अधिनियम के नियम, आदेश तथा निर्देशों के उल्लंघन पर दण्ड देने का प्रावधान है। इसके अनुसार उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को-(1) पाँच वर्ष तक की कैद अथवा एक लाख रुपये तक का आर्थिक दण्ड या दोनों का प्रावधान है। (2) यदि उल्लंघन पुनः होता है। या जारी रहता है तो प्रतिदिन पाँच हजार रुपये तक के आर्थिक दण्ड का अतिरिक्त प्रावधान है। यदि यह उल्लंघन एक वर्ष से अधिक अवधि तक भी जारी रहता है तो कैद की सजा सात वर्ष तक के लिये बढ़ाई जा सकती है।
धारा-16 में कम्पनी द्वारा उल्लंघन करने पर उसके प्रभारी प्रबन्धक को तथा धारा-17 में राजकीय विभाग में विभागाध्यक्ष को यही सजाएँ प्रस्तावित हैं।
अध्याय-4 (धारा 18 से 26 तक)
इस अध्याय में विविध विवरण हैं। कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं-
(i) धारा 18 के अनुसार इस अधिनियम के अन्तर्गत किसी भी व्यक्ति द्वारा कार्यरत सरकारी अधिकारी एवं अन्य किसी भी कर्मचारी के विरुद्ध इस अधिनियम के सन्दर्भ में कोई अभियोग नहीं चलाया जा सकेगा।
(ii) धारा 19 के अन्तर्गत किसी भी व्यक्ति द्वारा पर्यावरण प्रदूषण के मामले में वाद दायर करने का अधिकार है।
(iii) धारा 20 के तहत सरकार को किसी भी व्यक्ति, अधिकारी से कोई रिपोर्ट अथवा सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।
(iv) धारा 26 में यह बताया गया है कि इस अधिनियम के अन्तर्गत बनाये गये नियमों को संसद से पारित कराना आवश्यक होगा।
इस अधिनियम का महत्त्व
पर्यावरण के क्षेत्र में बढ़ते प्रदूषण को रोकने तथा प्रदूषण न होने देने के लिये भारत सरकार का यह एक समयानुकूल महत्त्वपूर्ण प्रयास है। यथा-
(1) इस अधिनियम से जल स्रोतों की तथा वायुमण्डल और भूमि की शुद्धता और निरापदता की रक्षा संभव है।
(2) कठिन कानून तथा इसके नियमों में उल्लंघन के फलस्वरूप लगाये गये भारी आर्थिक दण्ड व कारावास की सजा से भी लोगों को एकाएक ऐसा कार्य करने का साहस न होगा, जिससे सामान्य नागरिकों का कोई नुकसान हो या नुकसान होने की संभावना हो।
(3) दण्ड प्रक्रिया में उद्योग को चलाने वाले व्यवस्थापक को अथवा राज्य या केन्द्र सरकार के विभागों के विभागाध्यक्ष तक को ‘दोषी’ कटघरे में लाने का साहसिक कदम भी अत्यन्त सराहनीय एवं प्रशंसनीय है।
अधिनियम के दोष
इस अधिनियम की कुछ प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) किसी भी उद्योग को प्रारम्भ करने से पूर्व इसके पर्यावरणीय प्रभाव के मूल्यांकन की व्यवस्था इस अधिनियम में नहीं है। इसके अभाव में भविष्य में कई आशंकाएँ संभव हैं।
(2) देश के बढ़ते औद्योगीकरण के फलस्वरूप पर्यावरणीय प्रदूषण के मुकदमों की संख्या अनगिनत होगी। इन्हें सामान्य कोर्ट्स में, जहाँ पहले से ही हजारों मुकदमे अनिर्णीत हैं, सुलझाया जाना संभव नहीं है। इस अधिनियम में विशेष न्यायालयों के सम्बन्ध में कोई प्रावधान न होना, एक भारी कमी है।
(3) इस अधिनियम की धारा 19 के तहत भारत के किसी भी नागरिक को किसी उद्योग द्वारा किये जा रहे जुर्म के सम्बन्ध में वाद दायर करने का अधिकार तो दिया गया है, लेकिन उसके साथ इतने प्रतिबन्ध हैं कि स्पष्टतः वह अपने को असहाय पाता है। कोई भी व्यक्ति पहले सरकार को शिकायत के साथ 60 दिन का नोटिस देगा। इसी बीच में सरकार यदि इस शिकायत को कोर्ट में दायर कर देती है तो उस व्यक्ति की वह शिकायत खारिज कर दी जायेगी अर्थात् वह स्वतंत्र रूप से समान रूप से किसी उद्योग के विरुद्ध वाद दायर करने में असमर्थ है।
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