भारत में ऊर्जा संकट के क्या कारण हैं? इसके संकट के समाधान हेतु सुझाव प्रस्तुत कीजिए।
भारत में ऊर्जा संकट
भारत में सरकारी और गैर-सरकारी स्त्रोतों में जो सांख्यिकीय आँकड़े एवं सूचनाएँ उपलब्ध हैं वह इस बात को सिद्ध करती हैं कि भारत में कृषि और औद्योगिक विकास के लिए जितनी ऊर्जा की आवश्यकता है, उसकी तुलना में ऊर्जा का उत्पादन, वितरण एवं उपलब्धि बहुत कम है। यह परिस्थिति उस अवस्था में जबकि योजनाकाल में विभिन्न प्रकार के ऊर्जा शक्ति के निर्माण में उच्च प्राथमिकता दी गई है तथा बहुत बड़े आकार में पूँजी निवेश किया गया है। इस सम्बन्ध में यह भी उल्लेखनीय है कि ऊर्जा के क्षेत्र में आन्तरिक प्रयासों के अतिरिक्त बहुत बड़े आकार में विदेशी सहयोग एवं ऋण भी प्राप्त किये गये हैं। इन प्रयासों से ऊर्जा का उत्पादन और वितरण पर्याप्त रूप से हुआ है किन्तु देश में बढ़ती हुई आबादी के साथ आवश्यकता को देखते हुए ऊर्जा की खपत बहुत कम है और दूसरी तरफ देश में निरन्तर ऊर्जा संकट छाता जा रहा है।
ऊर्जा संकट के कारण
विगत कुछ वर्षों से देश में ऊर्जा संकट काफी तेजी से फैलता जा रहा है। देश में ऊर्जा की माँग निरन्तर बढ़ती जा रही है तथा ऊर्जा के लगभग सभी साधन खाली होते जा रहे हैं। जनसंख्या वृद्धि तथा औद्योगीकरण के कारण ऊर्जा की माँग में एकदम से वृद्धि हुई जबकि ऊर्जा के परम्परागत साधन अर्थात् खनिज तेल, लकड़ी का कोयला, विद्युत आदि समाप्त होने की स्थिति में हैं। ऊर्जा संकट के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
(1) पैट्रोलियम का बढ़ता हुआ उपयोग- कोयले की तुलना में खनिज तेल से ऊर्जा का सृजन करना अधिक सुगम होता है। विगत वर्षों में खनिज तेल उपयोग में निरन्तर वृद्धि हुई है। रेलवे इजिनों का डीजलीकरण, खनिज तेल पर आधारित उर्वरक के कारखाने, सड़क परिवहन के विभिन्न साधनों में पेट्रोल का उपयोग खनिज तेल के उपयोग में वृद्धि का सूचक है।
(2) कोयले का अभाव- देश में कोयले के भण्डार काफी क्षीण हो गये हैं, कोयला ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत है जो लगभग समाप्त होने की स्थिति में है। देश में ऊर्जा संकट की स्थिति निर्मित करने में कोयले का महत्त्वपूर्ण हाथ है।
(3) जल विद्युत के लक्ष्यों का प्राप्त न होना- देश में ऊर्जा का सबसे विशाल तथा सुगम साधन जल विद्युत है लेकिन कभी जलाशयों में जल का स्तर नीचा होना और कभी तकनीकी, समस्याओं के कारण जल विद्युत की सृजन क्षमता के निर्धारित लक्ष्य प्राप्त नहीं किये जा सके। देश में ऊर्जा संकट का यह भी एक महत्त्वपूर्ण कारण है।
(4) अणु शक्ति के विकास की मंद गति- यह सच है कि देश में अणु शक्ति के विकास के लिये आवश्यक खनिजों के यथेष्ठ भण्डार उपलब्ध हैं, लेकिन ऊर्जा के लिये अभी तक इस शक्ति का बहुत कम उपयोग हो पाया है। अणु शक्ति के विकास के लिए डॉ. भाभा ने जो विशिष्ट योजना तैयार की थी वह उनकी असामायिक मृत्यु के कारण उतनी शीघ्रता से क्रियान्वित न की जा सकी। आणविक शक्ति केन्द्रों की स्थापना के लिये बहुत अधिक विदेशी विनिमय की आवश्यकता होती है। अपर्याप्त विदेशी विनिमय साधन अणु शक्ति के विकास में बाधक है।
ऊर्जा संकट के समाधान हेतु सुझाव
देश में ऊर्जा संकट काफी तेजी से फैलता जा रहा है। ऊर्जा की माँग आर्थिक एवं गैर आर्थिक क्षेत्रों में निरन्तर बड़ती जा रही है तथा ऊर्जा की पूर्ति करने वाले परम्परागत साधन लगभग समाप्त होने की स्थिति में हैं। यह एक समस्याजनक स्थिति है। इस गम्भीर समस्या का प्रभावशाली तरीके से उचित समाधान बहुत आवश्यक है। ऊर्जा की बढ़ती हुई माँग को कम करना सम्भव नहीं है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि उपलब्ध ऊर्जा साधनों को मितव्ययिता के साथ उपभोग किया जाये तथा नये-नये ऊर्जा साधनों की खोज की जाये। ऊर्जा संकट के समाधान के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव निम्नलिखित हैं-
(1) तरल ईंधन का मितव्ययी उपभोग- पेट्रोलियम तथा मिट्टी के तेल आदि तरल ईंधन की खपत में वृद्धि मुख्यतः दो क्षेत्रों में हुई है-प्रथम रेल तथा सड़क यातायात में तथा द्वितीय घरेलू उपयोग में। विद्युत क्षमता का सृजन करके तरल ईंधन के उपयोग में कमी की जा सकती है, इसके अलावा तरल ईंधन का मितव्ययिता से उपयोग करके भी भी ऊर्जा संकट को काफी कम किया जा सकता है।
(2) खनिज तेल एवं गैस की खोज- ऊर्जा संकट को कम करने के लिए खनिज तेल के भण्डारों एवं प्राकृतिक गैस की खोज की जानी चाहिए क्योंकि खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। वर्तमान तकनीकी की सहायता से कोयले का द्रवीकरण करके कच्चे पेट्रोलियम के उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है। औद्योगिक एवं घरेलू गैस के रूप में कोयला गैस का उपयोग भी बढ़ाया जा सकता है।
(3) खनिज तेल के स्थान पर कोयले का उपयोग- संचालन शक्ति के सृजन में खनिज तेल के स्थान पर कोयले का उपयोग करके भी खनिज तेल के खपत में कमी की जा सकती है लेकिन इससे पूर्व कोयले के उत्पादन में वृद्धि की जानी आवश्यक है क्योंकि कोयले के भण्डार लगभग समाप्त होने की स्थिति में हैं।
(4) जल विद्युत ऊर्जा का विस्तार- जल विद्युत ऊर्जा का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। जल विद्युत शक्ति का विस्तार करके ऊर्जा की पूर्ति में वृद्धि की जा सकती है। केन्द्रीय जल एवं शक्ति आयोग के मतानुसार भारत में 410 लाख किलोमीटर ही जल विद्युत उत्पन्न करने की क्षमता विद्यमान है, लेकिन इस समय केवल 70 लाख किलोमीटर की जल विद्युत उत्पन्न होती है। जल विद्युत शक्ति की क्षमता में वृद्धि करके ऊर्जा पूर्ति को बढ़ाया जा सकता है।
(5) ज्वार शक्ति एवं सूर्य शक्ति के प्रयोग में वृद्धि – ज्वार शक्ति एवं सूर्य शक्ति का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में करके प्राकृतिक ऊर्जा का सदुपयोग किया जा सकता है। नाममात्र की लागत पर उपलब्ध हो जाती है। अतः आविष्कारों द्वारा उनका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में करके न केवल ऊर्जा में बचत की जा सकती है वरन् ऊर्जा स्रोत में वृद्धि की जा सकती है।
(6) गोबर गैस संयंत्रों का विस्तार- नये-नये गोबर गैस संयंत्रों की स्थापना करके ऊर्जा की पूर्ति बढ़ाई जा सकती है। गोबर गैस कुकिंग गैस का सबसे अच्छा विकल्प है इसका उपयोग न केवल खाना पकाने वरन् प्रकाश आदि के लिये भी किया जा सकता है।
(7) मानव शक्ति एवं पशु शक्ति का उपयोग – मानव शक्ति एवं पशु शक्ति का अधिकतम उपयोग करके भी ऊर्जा की बचत की जा सकती है।
(8) विद्युत उत्पादन के नये तरीके- भूताप से ऊर्जा लेकर तथा समुद्र के पानी के तापान्तर से भी विद्युत उत्पन्न की जा सकती है। इस प्रकार से उत्पन्न विद्युत क्षमता ऊर्जा संकट के समाधान में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करेगी इस बात की पूर्ण सम्भावना है।
(9) वनों से प्राप्त ऊर्ज साधन- वनों से प्राप्त लकड़ी का ईंधन के रूप में सदुपयोग करके खनिज, तेल, प्राकृतिक गैस, कोयला आदि ऊर्जा साधनों की बहुत अधिक बचत की जा सकती है।
(10) ऊर्जा उत्पादन की नवीन सम्भावनाएँ— ऊर्जा के नवीनतम स्रोतों के रूप में गन्ना, सीरा, अनाज आदि कृषिगत उपज या इनसे प्राप्त मद्यसारिक जैविक-द्रव्य अनेक सम्भावनाओं से भरी है। बायोमास आधारित एथनोल पेट्रोलियम पदार्थों का प्रतिस्थापन हो सकता है। अमेरिका तथा डेनमार्क में इन विधियों से ऊर्जा उत्पादन की सम्भावनाओं पर सफलतापूर्वक कार्य हो रहा है। ऊर्जा के नवीनतम स्रोत के रूप में हाइड्रोजन ऊर्जा का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यह द्रव्य ईंधन का स्थान ले सकता है तथा भविष्य में ऑटोमोबाइल तथा वायुयानों के लिये एक अच्छा ईंधन सिद्ध हो सकता है। इस दिशा मे भारत में शोध कार्य प्रगति पर है।
ऊर्जा संकट न केवल भारत में वरन् समूचे विश्व में छाया हुआ है। इस संकट से उबरने के लिये एक दीर्घकालीन ऊर्जा नीति तैयार कर उसका प्रभावशाली क्रियान्वयन बहुत जरूरी है। दीर्घकालीन नीति इस प्रकार की होनी चाहिए जिससे ऊर्जा संसाधनों में वृद्धि के साथ-साथ ऊर्जा की बचत की ओर विशेष ध्यान दिया जाये अन्यथा वह दिन अधिक दूर नहीं जबकि औद्योगिक विकास का चक्र रुक जायेगा। ऊर्जा के अभाव में मशीनों का चक्का जाम हो जायेगा, उद्योग-धन्धे बन्द होने लगेंगे, देश में भयंकर बेरोजगारी फैलने लगेगी, अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जायेगी। भविष्य में यह सब इससे पूर्व की ऊर्जा संकट को समाप्त करने की ओर गम्भीरतापूर्वक ध्यान देना बहुत आवश्यक है।
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