ओजोन परत के क्षयीकरण पर प्रकाश डालिए।
ओजोन परत का क्षयीकरण- पृथ्वी के चारों तरफ व्याप्त गैसीय आवरण को वायुमण्डल कहते हैं। वायुमण्डल कई गैसों का यांत्रिक सम्मिश्रण है। वायुमण्डल के निर्माण में 78.09%, ऑक्सीजन 20.95% तथा शेष, 94% में आर्गन, कार्बन डाई ऑक्साइड, हाइड्रोजन, नियोन, क्रिप्टोन, जीनोन, ओजोन इत्यादि गैसों का योगदान होता है। तापमान के आधार पर ऊर्ध्वाधर रूप में वायुमण्डल को परिवर्तन मंडल, समताप मंडल, ओजोन मंडल, आयन मंडल और आयतन मंडल में विभाजित किया जाता है। सामान्यतया यह माना जाता है कि ओजोन परत सागर तल से 10 से 50 कि.मी. की ऊँचाई तक पाई जाती है। इस परत में भी 12 से 35 कि.मी. की ऊँचाई तक ओजोन गैस द्वारा सौर्य विकिरण का सर्वाधिक अवशोषण 20 से 40 कि.मी. के मध्य होता है।
ओजोन परत के क्षय के कारण
1. प्राकृतिक कारण- प्रत्येक 11 वर्षों के अन्त में सौर कलेकों की संख्या में अतिशय वृद्धि होती है। फलतः अधिकतम ऊष्मा विसर्जन के कारण वायुमण्डल के नाइट्रोजन का नाइट्स ऑक्साइड में रूपान्तरण हो जाता है। ये ही नाइट्रोजन ऑक्साइड समताप मंडल में प्रवेश करते हैं और ये क्लोरीन द्वारा ओजोन क्षय को और तेज कर देते हैं तथा प्रकाश रासायनिक क्रिया द्वारा ओजोन का क्षय करते हैं। सौर्थिक पराबैगनी किरणों द्वारा भी ओजोन का क्षय होता है। ज्वालामुखी विस्फोट से भारी मात्रा में हाइड्रोजन क्लोराइड तथा हाइड्रोजन फ्लूराइड निकलते हैं। वैज्ञानिकों का मत है कि ज्वालामुखी विस्फोट से प्रति वर्ष 11 मिलिटन टन हाइड्रोजन क्लोराइड तथा 6 मिलियन टन हाइड्रोजन फ्लूराइड वायुमण्डल में पहुँचता है और ओजोन का क्षय करता है। लेकिन प्राकृतिक कारणों द्वारा ओजोन का जितना क्षय होता है उतना उसका निर्माण भी हो जाता है। इस प्रकार ओजोन क्षय पर प्राकृतिक कारण का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है।
2. मानवजन्य कारण- अब यह निर्विवाद रूप से सिद्ध हो गया है कि मानव क्रिया कलापों से उत्पन्न क्लोरोफ्लूरो कार्बन हैलेन और नाइट्रोजन ऑक्साइड रसायन समताप मण्डल में पहुँचकर ओजोन का क्षय कर रहे हैं। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (1976) के अनुसार क्लोरोफ्लूरो मीथेन के कारण ओजोन का क्षय हो रहा है। जबकि कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि क्लोरीन से ओजोन का क्षय हो रहा है। क्लोरोफ्लूरो कार्बन भूतल पर जहरीली व ज्वलनशील रसायन नहीं है। लेकिन समताप मंडल में पहुँचकर रासायनिक क्रियाओं द्वारा ओजोन का नाश करने लगती है। ऐसा अनुमान है कि क्लोरोलूरो कार्बन का सान्द्रण वायुमण्डल में बढ़ता जा रहा है। वैज्ञानिकों के एक अनुमान यदि वर्तमान दर से क्लोरोफ्लूरो कार्बन का उत्पादन व उपभोग होता रहा तो 2050 ई. तक 18% ओजोन नष्ट हो जायेगा।
वायुमण्डल में सुपर सोनिक जेट विमानों की उड़ानें बढ़ती जा रही हैं। उड़ान के दौरान इन विमानों से नाइट्रोजन ऑक्साइड निःसृत होते हैं। जिससे ओजोन परत में छिद्र होते जा रहे हैं तथा ओजोन का क्षय होता जा रहा है।
रासायनिक उर्वरकों से निःसृत नाइट्रोजन ऑक्साइड से भी ओजोन का क्षय हो रहा है। कुछ वैज्ञानिकों ने औद्योगिक कारखानों की चिमनियों से निःसृत सल्फेट एयर साल (वायुधुंध) को ओजोन क्षय का कारण बताया है।
कुछ वैज्ञानिकों ने समताप मण्डल में न्यून तापमान अर्थात्- 80° से.ग्रे. तापमान को ओजोन क्षय का कारण माना है क्योंकि इस न्यून तापमान के होने पर ओज़ोन क्षय प्रारम्भ होता है।
ओजोन क्षय का कुप्रभाव
वायुमण्डल में ओजोन अत्यल्प मात्रा में पाई जाती है। लेकिन ओज़ोन की उतनी ही मात्रा जीव धारियों के लिए अति उपयोगी है। ओजोन परत सौर्यिक विकिरण की पराबैगनी किरणों का अवशोषण कर लेती है जिससे भूतल पर तापमान में वृद्धि नहीं हो पाती है। लेकिन मानव अपने क्रिया-कलापों द्वारा इस अत्यल्प व दुर्लभ ओजोन गैस का क्षय करने में संलग्न है। फलतः पराबैंगनी किरणें बिना किसी रुकावट के भूतल तक पहुँच कर तापमान में वृद्धि करेंगी जिसका कुप्रभाव जलवायु, मानव, जीव-जन्तु, वनस्पति, पारिस्थितिकी तंत्र इत्यादि पर पड़ेगा जिसका विवरण निम्नलिखित है-
1. जलवायु पर कुप्रभाव
(i) तापमान में वृद्धि- ओजोन के क्षय के कारण सौर्थिक विकिरण पराबैंगनी किरणों का अवशोषण नहीं होगा। फलतः ये किरणें भूतल पर पहुँच कर तापमान में वृद्धि करेंगी जिससे प्रादेशिक व विश्व स्तर पर जलवायु में व्यापक परिवर्तन होंगे। इसके विपरीत कुछ लोगों का मत है। कि ओजोन क्षय के कारण समताप मंडल में तापन क्रिया कम होगी जिससे भूतल का तापमान अति न्यून हो जायेगा जिसका भी जलवायु पर कुप्रभाव पड़ेगा।
(ii) हिम चादर का द्रवण- भूतल के तापमान में वृद्धि के कारण ध्रुवीय व पर्वतीय हिम चादरें पिघलेंगी। यह पिघलता जल समुद्र में पहुँचेगा जिससे सागर जल तल ऊँचा होगा। फलतः सागर तटीय नगर व स्थल भाग जलमग्न हो जायेंगे तथा हिमाच्छादित क्षेत्र हिमद्रवण से ऊपर उठेंगे जिसका जलवायु पर परिवर्तनकारी प्रभाव पड़ेगा।
(iii) हरित गृह प्रभाव में वृद्धि – ओजोन का क्षय करने वाली हैलोजनित गैसें यथा क्लोरोफ्लूरो कार्बन, हैलेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड इत्यादि पृथ्वी से बर्हिगामी दीर्घ तरंगों का अवशोषण कर हरित गृह प्रभाव में वृद्धि करती हैं जिससे भूतल के तापमान में वृद्धि होती है जिससे जलवायु में विविध प्रकार के परिवर्तन संभावित हो जाते हैं।
(iv) अम्ल वर्षा का होना— ओजोन क्षय के कारण परिवर्तन मंडल में हाइड्रोजन पर ऑक्साइडस का अधिक संचयन होगा। फलतः अम्ल वर्षा का खतरा बढ़ेगा।
(v) धूम कुहरे का निर्माण- ओजोन क्षय के कारण भविष्य में पराबैंगनी किरणों में 5% से 20% तक वृद्धि होने का अनुमान है। इस प्रकार पराबैंगनी किरणों में वृद्धि व ओजोन क्षय के कारण प्रकाश रासायनिक क्रियाओं द्वारा वायुमण्डल में धूम कुहरे का निर्माण होगा जिससे जलवायु प्रभावित होगी।
2. मानव स्वास्थ्य पर कुप्रभाव- ओजोन क्षय का समस्त जीवधारियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। ओजोन क्षय से त्वचा में कैंसर रोग होगा। शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति में कमी आयेगी। फलतः छुआछूत जन्य रोगों में वृद्धि होगी। शारीरिक व मानसिक विकास में बाधा उत्पन्न होगी, जीवों के प्रजनन दर में कमी आयेगी, मनुष्य में अन्धापन तथा मोतियाबिन्द रोग का प्रकोप बढ़ेगा। धूम कुहरे के जनन से फेफड़े का रोग होगा तथा श्वसन तन्त्र प्रभावित होगा। ओजोन क्षय से भूतल पर तापमान में वृद्धि सबसे अधिक कुप्रभाव गोरी चमड़ी वाले लोगों पर पड़ेगा। एक अनुमान के अनुसार यदि ओजोन में 12% क्षय हो जाय तो मात्र संयुक्त राज्य अमेरिका में एक लाख से अधिक लोग त्वचा कैंसर के शिकार होंगे। ओजोन क्षय से ओजोन के अणु परिवर्तन मण्डल में आ जाते हैं जिससे श्वसन हेतु वायु जहरीली हो जाती है। अन्टार्कटिका स्थित ओजोन छिद्र की परिधि न्यूजीलैण्ड व दक्षिणी आस्ट्रेलिया तक पहुँच गई है। वहाँ कभी-कभी पराबैंगनी किरणें इतनी तेज हो जाती हैं कि वहाँ समाचार बुलेटिन से अनुमानित जलने का समय जो लगभग 15 मिनट का होता है कि घोषणा की जाती है कि कोई व्यक्ति खुले सूर्य में बिना छाता के बाहर न निकले अन्यथा शरीर के जलने का भय है। यही कारण है कि ओजोन क्षय के प्रति गोरी चमड़ी वाले लोगों में जागरूकता अधिक है।
3. वनस्पतियों पर कुप्रभाव- ओजोन क्षय से भूतल पर तापमान में वृद्धि से स्थलीय व जलीय दोनों वनस्पतियों के ऊपर कुप्रभाव पड़ेगा। पौधों की उत्पादकता में कमी आयेगी, पौधे झुलस कर सूख जायेंगे। मटर, टमाटर, आलू, चुकन्दर, सोयाबीन, सरसों इत्यादि कुप्रभावित होंगे, फसलोत्पादन कम होगा, मिट्टी की नमी में कमी होगी, जलीय भागों में फाइटो फ्लैंकटन, मत्स्य अंडे, केकड़े इत्यादि मर जायेंगे। फाइटोफ्लॅकटन के मरने के कारण मछलियों के आहार में कमी आने से वे मर जायेगी जिससे खाद्यानों पर दबाव बढ़ेगा। इससे वनस्पतियों के जाति संघटन में भी परिवर्तन होगा।
4. पारिस्थितिक तंत्र पर कुप्रभाव – ओजोन क्षय कारण सौर्थिक विकिरण और ऊर्जा सन्तुलन से अव्यवस्था आयेगी जिससे जलवायु में परिवर्तन होगा। पारिस्थितिक तंत्र की उत्पादकता व स्थिरता में असन्तुलन आयेगा, प्रकाश संश्लेषण क्रिया में ह्रास होगा, जैव-भू रसायन चक्र कुप्रभावित होगा इत्यादि। इस प्रकार ओजोन क्षय से पारिस्थितिक तंत्र में असन्तुलन आयेगा जिसका कुप्रभाव सम्पूर्ण जैव जगत पर पड़ेगा।
ओजोन क्षय रोकने के उपाय
वर्तमान समय तक ओजोन का 2% तक क्षय हो चुका है। इसलिए आवश्यक है कि ओजोन का क्षय होने से बचाया जाय। यह केवल एक देश की समस्या नहीं है बल्कि यह विश्वव्यापी समस्या है। इसलिए इसके क्षय को रोकने के लिए विश्व स्तर पर प्रयास किया जाना चाहिए। ओजोन का क्षय करने वाले क्लोरोफ्लूरो कार्बन तथा हैलोन जनित गैसों के उत्पादन व उपभोग पर प्रतिबन्ध लगाना जाना चाहिए। सितम्बर, 1987 में यूनेप के तत्वावधान में मॉट्रियल मसौदे पर विश्व के 33 देशों ने हस्ताक्षर किये जिसका उद्देश्य है ओजोन क्षयकारी गैसों के उत्पादन व उपभोग में कमी लाना। लेकिन भारत, चीन, ब्राजील प्रभृति विकासशील देशों ने इस मसौदे पर हस्ताक्षर नहीं किये। उनका तर्क है कि ओजोन क्षयकारी रसायनों के उत्पादन में उनका योगदान मात्र 10 से 15% तक है जब कि यह संकट विकसित देशों के समतुल्य इन रसायनों के उत्पादन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करें। लेकिन मात्र ओजोन कवच बचाओ सम्मेलनों से कुछ नहीं होता है। इसके लिए ठोस कार्यक्रम बनाने और उनके पालन पर बल देना चाहिए अन्यथा हम अपना विनाश अपनी आँखों के सामने देखते रह जायेंगे।
ओजोन क्षयकारी रसायनों का विकल्प ढूँढ़कर तथा वैकल्पिक प्रौद्योगिकी को विकसित करके भी ओजोन क्षय को रोका जा सकता है।
जर्मन संघीय गणराज्य, फ्रांस व संयुक्त राज्य अमेरिका ने मिलकर (CHEOPS) अनुसंधान अभियान चलाया है। जिसका उद्देश्य है ध्रुवीय समताप मण्डल में ओजोन के रसायनों का पता लगाना।
जर्मन की सरकार ओजोन क्षय रोकने के लिए ठोस प्रयास कर रही है। वहाँ क्लोरोफ्लूरोकार्बन तथा हैलन के प्रयोग को कम करने तथा 1995 तक उनके प्रयोग को पूर्णतः बंद करने का निर्णय लिया है। यदि ऐसा हुआ तो जर्मनी ओजोन क्षय रोकने वाला पहला देश होगा। ओजोन परत की रक्षा हेतु वियना सम्मेलन के सदस्य देशों ने 2000 ई. तक विश्व स्तर पर ओजोन क्षयकारी रसायनों के उत्पादन व उपभोग पर प्रतिबन्ध लगाने का निर्णय लिया है। इस प्रकार ओजोन क्षय विकसित देशों की देन है और उन्हीं को रक्षा का प्रयास करना चाहिए।
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