जैव विविधता के संकट या हानि के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए।
जैव विविधता का संकट
प्रकृति में विभिन्न जातियों के जीवों का मरना एवं उनके स्थान पर अन्य नवीन जातियों के उद्भव होने की प्रक्रिया प्राचीन काल से चली आ रही है। बिना किसी विघ्वन वाले पारिस्थितिक तन्त्रों में जातियों के विलोपन की दर प्रति दशक एक जाति है। इस शताब्दी में फिर भी पारिस्थितिक तन्त्र पर मानवीय प्रभाव ने जीवों के विलोपन की इस दर को बढ़ाया है। वर्तमान के प्रतिवर्ष सौ से लेकर एक हजार तक विविध जीवों की जातियाँ एवं उपजातियाँ विलुप्त हो रही हैं। यदि वर्तमान दर निरन्तर चलती रही तो हम आगामी कुछ दशकों में ही पौधो, जन्तुओं तथा सूक्ष्मजीवों की लाखों प्रजातियों को नष्ट कर देंगे। वर्तमान में जैव विविधता के ह्रास कारणों में उनके प्राकृतिक आवासों का विनाश, शिकार एवं त्वरित मत्स्यन, व्यापारिक उत्पादन तथा बढ़ता प्रदूषण मुख्य है। इन मानव जनित कारणों के अतिरिक्त कुछ प्राकृतिक कारण भी हैं जिनसे जैवविविधता का ह्रास होता है। इनमें तापमान में वृद्धि, जलवायु परिवर्तन, ओजोन में अल्पता तथा अम्ल वर्षा के अतिरिक्त अनेक आकस्मिक घटनाएँ प्रमुख हैं।
जैव विविधता में कमी या हानि के कारण
प्रकृति में जैव विविधता में कमी या हानि के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
1. आवासों का विनाश- विश्व में जैव विविधता का प्रमुख कारण विगत शताब्दी में किया गया उनके आवासों का विनाश है। तीव्र गति से वनोन्मूलन करके वन्यजीवों को एकाकी समूहों में विभक्त कर दिया जो विपदाओं से निपटने में असक्षम हैं। सामान्य दशाओं में छोटी संख्या में मिलने वाले जीव समुदाय वंश वृद्धि करने में पर्याप्त सक्षम नहीं होते हैं। विश्व में वन, आर्द्र भूमि तथा अन्य बड़े जैविक सम्पन्नता वाले पारिस्थितिक तन्त्र मानव जनित कारणों से लाखों प्रजातियों के विलुप्त होने की समस्या से जूझ रहे हैं। आवासों का विनाश करके हमने न केवल प्रमुख जातियों को विलुप्त किया है। वरन् अनेक ऐसी जातियों का भी विलोपन कर दिया है जिनसे हम आज तक अवगत नहीं थे।
2. वन्य जीवों का अनाधिकार शिकार-विश्व में वन्य जीवों के अवैध शिकार एवं व्यापार के कारण उनके तीव्रता से विलुप्त होने का संकट उत्पन्न हो गया है। वन्य जीवों का खाद्य पदार्थों के रूप में उपयोग के अतिरिक्त इनसे अनेक ऐसे उत्पाद प्राप्त किये जाते हैं। इनमें समूर, खालें, सींग, जीवित नमूने तथा चिकित्सा उपयोग की गौण वस्तुएँ सम्मिलित हैं। एशिया, अफ्रीका तथा लेटिन अमेरिका के विकासशील देशों में पायी जाने वाली सम्पन्न जैव विविधता आज विश्व में वन्य जीवों एवं जन्तु उत्पादों के मुख्य स्रोत बनी रही है। इन देशों से वन्य उत्पादों की आपूर्ति बढ़ती जा रही है जबकि यूरोपीय, उत्तरी अमेरिका तथा कुछ एशियाई देश इन उत्पादों के मुख्य आयातक हैं। जापान, ताइवान एवं हांगकांग विश्व के कुल बिल्ली एवं साँपों की चमड़ी के तीन चौथाई आयात करते हैं तथा इतनी ही मात्रा में यूरोपीय देश जीवित पक्षियों का आयात करते हैं।
वन्य जीवों का अवैध व्यापार जीभ के स्वाद के साथ ही चिकित्सा उपयोग में भी बढ़ रहा। चीन में लम्बे समय से सैक्स क्षमता बढ़ाने के लिए बाघों की बलि देने की परम्परा रही है। भारत में बड़ी मात्रा में बाघों की तस्करी की गई जिससे विगत पाँच दशकों में बाघ तीव्रता से घट गये हैं।
बाघ का शिकार करके उसकी खाल, हड्डियों, व माँस की तस्करी भारत, नेपाल व तिब्बती वन्य जीवों के तस्कर सक्रिय हैं जो संकटापन्न बाघ की हड्डियों, खालों व पूँछों की चीन, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान आदि में आपूर्ति करते हैं। चीन में बाघ से सैक्सवर्धक दवाइयाँ बनाई जाती है तथा यहाँ बाघ के लिंग की व्यापक माँग रहती है।
वन्य जीवों के अवैध व्यापार से हाथी सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। अफ्रीका में इसका व्यापार अधिक हुआ है। एक गणना के अनुसार सन् 1980 में अफ्रीका में 1.3 मिलियन हाथी थे जो एक दशक बाद घटकर आधे रह गये। इस प्रकार वन्य जीवों का अवैध व्यापार होने से भी इनके विलुप्त होने का खतरा बन गया है।
3. अति दोहन– प्रकृति में उपस्थित पेड़-पौधों एवं जन्तुओं का विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जाता है। आर्थिक रूप से उपयोगी प्रजातियों के साथ-साथ प्रयोगशाला में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधो एवं जीव-जन्तुओं का उपयोग वृहतस्तर पर होने के कारण उनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है और वे विलुप्तता के कगार पर पहुँच चुके हैं। उदाहरण-घटपर्णी, नीटम, साइलोटम जैसे पौधे एवं मेढक (राना टिग्रिना) जैसे जन्तु। व्हेल जैसी मछली का उपयोग औषधि बनाने एवं माँस प्राप्त करने में लगातार होने के कारण आज इनकी संख्या भी कम होती जा रही है।
इसी प्रकार पोडोफाइलम ऐकोनीटम, डायस्कोरिया, राउल्फिया, काप्टिस जैसे पौधों का औषधीय उपयोग होने के कारण इनकी संख्या भी लगातार कम होती जा रही है। इस प्रकार ये अतिदोहान का शिकार हो चुके हैं।
4. अजायबघरों व अनुसंधान हेतु संग्रहण- आज सम्पूर्ण विश्व में जंगली पादप एवं जन्तु प्रजातियों को अध्ययन, अनुसंधान कार्य एवं औषधियाँ प्राप्त करने के लिए जैविक प्रयोगशालाओं में संग्रहित किया जा रहा है तथा मनोरंजन हेतु उन्हें अजायबघरों में कैद किया जा रहा है। बन्दर, चिम्पांजी जैसे प्राइमेट्स का उपयोग अनुसंधान शालाओं में उनके आन्तरिक संरचना एवं अन्य प्रकार के अध्ययनों में किया जाता है, जिसके कारण इनकी संख्या में लगातार कमी आती जा रही है।
5. विदेशज प्रजाति का परिचय- आज हम विभिन्न प्रकार की विदेशी पादप एवं जन्तु प्रजातियों का आयात कर अपने स्वार्थों की पूर्ति करते हैं। इन विदेशी पादप प्रजातियों के आगमन या परिचय के कारण देशी प्रजातियों के समक्ष भोजन एवं आवास जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
6. कीटनाशकों का उपयोग- कीटनाशी एवं खरपतवारनाशी रसायनों के उपयोग ने भी जैव-विविधता को प्रभावित करना प्रारम्भ कर दिया है। इसके लगातार उपयोग के कारण बहुत-सी पादप एवं जन्तु प्रजातियाँ समाप्त होती जा रही हैं।
7. प्रदूषण- पर्यावरण प्रदूषण आज सर्वाधिक विकराल समस्या है, जिसके कारण आज वायु, जल, मृदा, समुद्र, तालाब आदि प्रदूषित हो चुके हैं। इनके कारण जीवधारियों को साँस लेने हेतु शुद्ध वायु नहीं मिल रही है जिससे भी कमी हो रही है।
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