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जैव विधिता क्या है? आनुवांशिक, जातीय एवं पारिस्थितिकीय विविधता

जैव विधिता क्या है? आनुवांशिक, जातीय एवं पारिस्थितिकीय विविधता
जैव विधिता क्या है? आनुवांशिक, जातीय एवं पारिस्थितिकीय विविधता

जैव विधिता क्या है? आनुवांशिक, जातीय एवं पारिस्थितिकीय विविधता पर प्रकाश डालिए। 

जैव विविधता

प्रकृति में विशाल विविधता पायी जाती है जिसमें एक सूक्ष्म प्लेकटन से लेकर विशाल ह्वेल तक के परिसर वाले जीव तक तथा सूक्ष्म लाइकेन से विशाल रेडवुड तक वृक्ष पाये जाते हैं। यह जैविक विविधता एवं सम्पन्नता प्रकृति का एक अति महत्वपूर्ण भाग है जो पृथ्वी पर विकास की प्रक्रिया का परिणाम है तथा निरन्तर संरक्षण की प्रार्थी है। स्पष्ट है कि प्रकृति में जीवित समुदाय के मध्य मिलने वाली विभिन्न किस्मों (जातियों) की संख्या एवं विविधता का मापन ही जैव विविधता है। इसमें किसी क्षेत्र के विभिन्न पारिस्थितिक तन्त्रों की संख्या एवं उनमें मिलने वाली जातियों की संख्या महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि पृथ्वी पर स्थानिक अवस्थिति बदलते ही पारिस्थतिकी तन्त्र की प्रकृति भी बदल जाती है तथा जीवों की संख्या एवं विविधता में अन्तर आ जाता है।

जैव विविधता का अर्थ

किसी प्राकृतिक प्रदेश में पायी जाने वाली जंगली तथा पालतू जीव-जन्तुओं एवं पादपों की प्रजातियों की बहुलता को जैव विविधता कहते हैं। पर्यावरणीय ह्रास के कारण विगत वर्ष में ही इस संकल्पना विकास हुआ है। विगत वर्षों में प्राकृतिक आवासों के विनाश के कारण जैवविविधता संकट गहरा गया है। जैव विविधता के प्रमुख पाँच पक्ष निम्नलिखित हैं-

  1. (1) विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिकी तन्त्र, जिनमें विविध पादप तथा जीव-जन्तुओं के समुदाय अपने आवृत परिवेश से आबद्ध रहते हैं।
  2. (2) किसी प्रदेश या क्षेत्र में पायी जाने वाली प्रजातियों के कुल संख्या।
  3. (3) किसी क्षेत्र की स्थानिक प्रजातियों की संख्या।
  4. (4) किसी विशिष्ट प्रजाति की आनुवांशिक विविधता।
  5. (5) किसी प्रजाति विशेष की गौण-जनसंख्या जो आनुवांशिक विविधता का आलिंगन करती है।

प्रकृति में पाये जाने वाले विविध जीवों तथा इनके मिले-जुले पारिस्थितिकीय सम्बन्धों ने जीवमण्डल को एक विशिष्ट पहचान तथा उत्पादक विशेषता प्रदान की है। जीवों की इस प्रकृति के आधार पर जैव विविधता की तीन वर्गों में विभक्त कर सकते हैं जो पृथ्वी पर इन पारिस्थितिकीय तन्त्रों की रक्षा के लिए आवश्यक है। ये निम्नांकित हैं-

(i) आनुवांशिक विविधता – यह किसी प्रजाति विशेष में एक समान जीन की विभिन्न पीढ़ियों में मिलने वाली विविधता होती है।

(ii) जातीय विविधता – किसी पारिस्थितिकी तन्त्र या समुदाय विशेष में मिलने वाली विभिन्न प्रकार के जीवों की संख्या का विवरण जातीय विविधता कहलाता है।

(iii) पारिस्थितिकीय विविधता – यह किसी जैविक समुदाय में मिलने वाली पर्याप्तता एवं जटिलता का आकलन या मूल्यांकन है, जिनमें नीचे संख्या, पोषण स्तर तथा उस पारिस्थितिकीय प्रक्रिया को सम्मिलित करते हैं, जो खाद्य जाल के संधारण या पोषण और इस में पदार्थों के पुनर्चक्रण के लिए ऊर्जा का आहरण करता है।

1. जातियाँ क्या हैं?— जैव विविधता की संकल्पना में जातियों की एक महत्वपूर्ण स्थिति होती है, लेकिन सटीक अर्थ में हम प्रकृति में वंश वृद्धि के योग्य, उत्पादक जीवन तथा पुनः उत्पादक सन्तान वाले समान प्रकार के जीवों की जाति कहते हैं। प्रकृति में पायी जाने वाली विभिन्न जातियों में भूगोल या आकारिकी अथवा उनके व्यवहार के कारण पुनः उत्पादक अलगाव या एकाकीकरण पाया जाता है। अन्यथा समान गुणों वाले जीवों में जीन हस्तान्तरण से उनके विकासात्मक इतिहास में पृथक पहचान हो जाती हैं। इस प्रकार आकारिकी दृष्टि से समान गुणों वाले जीवों की एक संख्या होती है, जो स्वयं (वर्ग विशेष) में लैगिक उत्पादन कर सकती हैं लेकिन जो दूसरे जीवों से मिलने पर उत्पन्न जाति होगी वह उत्पादन नहीं कर सकती है, जाति कहलाती है। विभिन्न जातियों को पुर्नउत्पादक एकाकीकरण के आधार पर परिभाषित करना कठिन है। प्रकृति में जातियाँ परस्पर मिलकर वर्णसंकर द्वारा नवीन जाति को जन्म देती हैं।

2. पृथ्वी पर जातियों की संख्या- उन्नीसवीं शताब्दी के महान अन्वेषक युग की समाप्ति के उपरान्त कुछ वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया कि पृथ्वी पर पायी जाने वाली प्रत्येक महत्त्वपूर्ण जीवित वस्तु को खोजकर उसका नामकरण करना चाहिए। इनमें से अधिकांश अन्वेषण पक्षियों तथा स्तनधारियों करिश्माई प्रभुत्व वाली जातियों पर प्रकाश डालते हुए किये गये। विगत दशकों में कीड़े-मकोड़े व कवकों के बारे में किये गये अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि पृथ्वी पर अभी लाखों नवीन जातियों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाना शेष है। अब तक किये गये अध्ययनों के उपरान्त माना गया है कि वर्तमान में पृथ्वी पर जीवों की लगभग 2.1 मिलियन ज्ञात जातियाँ पायी जाती हैं। जबकि कुल जातियाँ 9 से 52 मिलियन अनुमानित की गई हैं। इनमें से 30 मिलियन केवल उष्ण कटिबन्धीय कीटों की हैं। पृथ्वी पर कुल ज्ञात जातियों का 70 प्रतिशत अकशेरुकी जीवों की हैं, जिनमें कीट स्पोंजी, सीपी, कृमि मुख्य हैं।

विश्व की कुल जातियों का केवल 10 से 15 प्रतिशत उत्तरी अमेरिका एवं यूरोप में पाये जाते हैं। विकसित देशों में उच्च पादपों या जीवों की नवीन प्रजातियाँ विरलता में ही मिलती हैं। इसलिए जैव विविधता का मुख्य केन्द्र उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र ही है। इन महाविविधता वाले देशों में मिलने वाली अनेक जातियों का तो अभी तक वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन ही नहीं किया गया है। उदाहरणार्थ मलेशिया प्रायद्वीप में फूलदार पौधों की लगभग 8000 जातियाँ पायी जाती हैं जबकि ब्रिटेन में केवल 1400 जातियाँ हैं, जिसका क्षेत्रफल मलेशिया प्रायद्वीप से दुगुना है। इस प्रकार *ब्रिटेन में जितनी उच्च पादपों की प्रजातियाँ हैं उससे अधिक वनस्पतिविद् हैं। दूसरी ओर दक्षिणी अमेरिका में सैकड़ों वनस्पतिविद् हैं जबकि वहाँ पादपों की 200000 जातियाँ हैं।

3. पारिस्थितिक तन्त्र की जैव विविधता- प्रकृति में पाया जाने वाला एक विशिष्ट जैविक समुदाय तथा इसका भौतिक पर्यावरण जिससे यह अन्तः क्रिया करके पदार्थ एवं ऊर्जा का आदान-प्रदान करता है, पारिस्थितिकी तन्त्र कहलाता है।

पारिस्थितिकी तन्त्र भौतिकी पर्यावरण के तत्त्वों, संरचना, ऊर्जा एवं पदार्थों के प्रवाह आदि के आधार पर भिन्नता रखता है। पृथ्वी पर पाया जाने वाला जीवमण्डल सबसे बड़ा पारिस्थितिकी तन्त्र है, लेकिन इनमें भी उपर्युक्त घटकों की भिन्न प्रकृति के कारण अन्तर आ जाता है। पारिस्थितिक तन्त्र की भी अपनी स्वतन्त्र जैव विविधता होती है। यह उसकी प्रकृति पर निर्भर करता है। उदाहरणार्थ-वन पारिस्थितिक तन्त्र, घास पारिस्थितिक तन्त्र, झील पारिस्थितिक तन्त्र, सागरीय पारिस्थितिक तन्त्र, डेल्टा एवं ज्वारनदमुखी पारिस्थितिक तन्त्र आदि में जैव विविधता में भारी अन्तर पाया जाता है। वन पारिस्थितिकी तन्त्र में पादपों एवं जीवों की सन्तुलित विविधता मिल सकती है लेकिन झील, तालाब अथवा महासागरों में वनस्पति की तुलना में जीवों की विविधता अधिक मिलती है। इस प्रकार किसी भी पारिस्थितिकी तन्त्र में मिलने वाले जीव-जन्तुओं एवं पादपों की ऊर्जा प्रवाह एवं पदार्थों के आदान-प्रदान की प्रकृति भिन्न होती है जो प्रत्यक्ष रूप से उसमें मिलने वाली जैव विविधता पर निर्भर करती है।

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