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मृदा प्रदूषण से क्या तात्पर्य है? मृदा प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय

मृदा प्रदूषण से क्या तात्पर्य है? मृदा प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय
मृदा प्रदूषण से क्या तात्पर्य है? मृदा प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय

मृदा प्रदूषण से क्या तात्पर्य है? मृदा प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपायों का वर्णन कीजिए ।

मृदा प्रदूषण – मिट्टी पर्यावरण का एक घटक है तथा प्राकृतिक संसाधन भी है। मिट्टी मानव के लिए अति उपयोगी है क्योंकि जीवित रहने के लिए आवश्यक भोज्य सामग्री की प्राप्ति मिट्टी से होती है। मिट्टी में ही उत्पन्न चारा पशुओं की प्राण रक्षा करता है। मिट्टी में ही अनेकों प्रकार की वनस्पतियाँ उगती हैं जिनसे अनेकों आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। प्राचीन सभ्यतायें नदी घाटियों में ही विकसित हुई क्योंकि वहाँ मिट्टी के उपाजऊपन के कारण अधिक खाद्यान्न उत्पादन की संभावनायें थीं उपजाऊ मिट्टी क्षेत्रों में ही विश्व की अधिकांश जनसंख्या निवास करती है तथा लगभग 75% जनसंख्या कृषि माध्यम से मिट्टी से जुड़ी है। लेकिन अति उपयोगी होने के बाद भी मिट्टी प्राकृतिक व मानवीय कारणों से प्रदूषित होती जा रही है।

परिभाषा – प्रकृतिजन्य या मानव-जन्य स्रोतों से मिट्टी की गुणवत्ता में हास को मिट्टी प्रदूषण कहते हैं। मिट्टी प्रदूषण के लिए मानव के क्रियाकलाप अधिक जिम्मेदार हैं।

मिट्टी प्रदूषण आधुनिकता की देन है। वननाशन, मिट्टी से अधिकाधिक उत्पादन के कारण पोषक तत्वों की कमी, पशुचारण, सिंचाई, कृषि में मशीनीकरण, मिट्टी अपरदन, मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की कमी, वनस्पति अंश की कमी, नमी की कमी या अधिकता, तापमान में घट-बढ़ इत्यादि कारणों से मिट्टी प्रदूषण हो है। रहा

मिट्टी प्रदूषण

  1. मानव मल-मूत्र
  2. पशु मल-मूत्र
  3. औद्योगिक अपशिष्ट
  4. ठोस अपविष्ट
  5. वाहित मल जल
  6. कूड़ा-करकट
  7. कचड़ा
  8. रासायनिक उर्वरक व कीटनाशकी दवायें

मिट्टी प्रदूषण के स्त्रोत- मिट्टी प्रदूषण प्रकृतिजन्य या विशेषकर मानवजन्य स्रोतों से हो रहा है। जिनका विवरण निम्नलिखित है

प्रकृतिजन्य स्त्रोत-

1. मिट्टी अपरदन 2. वायु 3. नदी

वायु जन स्रोत 

मिट्टी अपरदन- मिट्टी अपरदन प्रकृति व मानवीय दोनों कारकों से होता है। मिट्टी अपरदन से मिट्टी के उपजाऊ अंश समाप्त हो जाने से उसकी उत्पादक क्षमता हो जाती है और मिट्टी प्रदूषित हो जाती है।

गैसीय व कणीय वायु प्रदूषकों का भूतल पर अवपात होता है और ये प्रदूषक मिट्टी में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं। वायुमण्डल में सल्फ्यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ने पर वर्षा जल के साथ वह धरातल पर आता है जिसे अम्ल वर्षा कहते हैं। इससे मिट्टी में अम्लता की मात्रा बढ़ जाती है और मिट्टी प्रदूषित हो जाती है। कोयला खानों, अभ्रक खानों, ताप विद्युत गृहों, धात्विक कारखानों इत्यादि के पास की मिट्टी अत्यधिक प्रदूषित हो जाती है वहाँ कोई वनस्पति नहीं उगती है। कभी-कभी वायु रेतीले मरुस्थलों से बालू के कणों को उड़ाकर उपजाऊ मिट्टी क्षेत्रों में निक्षेपित करती है जिससे मिट्टी की उत्पादन क्षमता कम हो जाती है और मिट्टी प्रदूषित हो जाती है।

नदी बाढ़ – कभी-कभी बाढ़ वाली नदियाँ बालू के कणों को कांप मिट्टी क्षेत्रों में निक्षेपित कर देती हैं और बालू के आधिक्य के कारण मिट्टी प्रदूषित हो जाती है। नदी के किनारे वाले भागों में ऐसा होता रहता है।

मानवजन्य स्त्रोत

  1. जैविक स्रोत
  2. रासायनिक उर्वरक व कीटनाशी दवायें
  3. नगरीय बहिःस्राव
  4. औद्योगिक अपशिष्ट
  5. आणविक परीक्षण

जैविक स्त्रोत- जे. सी. मेहता के अनुसार मिट्टी को प्रदूषित करने वाले जैविक स्रोत निम्नांकित हैं—

(अ) रोग उत्पादक जीवाणु- ये जीवाणु मानव मल-मूत्र से मिट्टी में उत्पन्न होकर पुनः मानव शरीर में पहुँच जाते हैं और रोग पैदा करते हैं।

(ब) घरेलू पशुओं के रोग उत्पादक जीवाणु- ये जीवाणु पशुओं के मल-मूत्र होते हैं और दूध या भोजन के साथ शरीर में जाकर रोग उत्पन्न करते हैं। से उत्पन्न

(स) मिट्टी में स्वयं रोगोत्पादक जीवाणु होते हैं।

(द) आंत संबंधी जीवाणु और प्रोटोजोआ जीवाणु मानव मल के उत्सर्जन के बाद मिट्टी में मिल जाते हैं और मानव को हानि पहुँचाते हैं।

उक्त सभी प्रकार के जीवाणु मिट्टी में पहुँच कर उसे प्रदूषित करते हैं और भोजन श्रृंखला के माध्यम से मानव शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं और शरीर को हानि पहुँचाते हैं।

रासायनिक उर्वरक व रासायनिक दवायें

तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या को खाद्यान्न सुलभ कराने के लिये कृषि में रासायनिक उर्वरकों और विविध कीटनाशी, रोगनाशी, शाकनाशी रासायनिक दवाओं को खूब प्रयोग में लाया जा रहा है। इससे एक तरफ खाद्यान्न उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई है तो दूसरी तरफ मिट्टी प्रदूषण की समस्या भी बलवती हो गई है। ये विषैले यह रसायन मिट्टी में मिलकर सूक्ष्म जीवों और अवांछित पौधों को समाप्त कर देते हैं तथा मिट्टी के तापमान को प्रभावित करते हैं और इस प्रकार उसकी गुणवत्ता को कम कर देते हैं। भारत में प्रति वर्ष एक लाख टन से अधिक कीट नाशकों का प्रयोग किया जा रहा है। डी.डी.टी. प्रमुख कीटनाशक रसायन है जिसका खूब प्रयोग होता रहा। लेकिन 1972 में संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली बार इसके प्राणघातक प्रभाव को देखा गया। वहाँ डी.डी.टी. सहित 12 विषैले रसायनों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। डी.डी.टी. का अंश पच्चीसों वर्षों तक मिट्टी में बना रहता है। संयुक्त राज्य अमेरिका, पश्चिमी यूरोपीय देशों और भारत में पंजाब के गेहूं में डी.डी.टी. का अधिक अंश पाया जाता है। ये विषैले रसायन भोजन श्रृंखला के माध्यम से मानव शरीर में पहुँच कर शरीर को हानि पहुँचाते हैं।

नगरीय बहिः स्त्राव – नगरीय बहिः स्राव से उत्पन्न गन्दे नालों के जल से सिंचाई करने पर मिट्टी के भौतिक व रासायनिक गुण बदल जाते हैं और मिट्टी प्रदूषित हो जाती है। इसी प्रकार नगरीय बहिःस्राव को खाली खेतों में फैलने दिया जा रहा है जिससे नगरों की समीपी भूमि इतनी प्रदूषित हो गई है कि नगरीय त्याज्य सामग्री को खेतों में फैलने देने का विरोध किया जा रहा है।

औद्योगिक अपशिष्ट – औद्योगिक इकाइयों से निसृत अपशिष्टों के खेतों में एकत्रित करने पर मिट्टी प्रदूषित हो जाती है।

आणविक परीक्षण– पृथ्वी सतह पर या भूमिगत आणविक परीक्षण करने से भी मिट्टी में प्रदूषण उत्पन्न होता है।

मिट्टी प्रदूषण के कुप्रभाव

1. मिट्टी प्रदूषण से मिट्टी की गुणवत्ता में ह्रास होता है।

2. इससे मिट्टी अनुपजाऊ हो जाती है जिससे कृषि उत्पादन में कमी आती है।

3. प्रदूषित मिट्टी में उत्पादित खाद्यान्न और साग-सब्जियाँ भी प्रदूषित हो जाती हैं जिनको खाने से मानव शरीर में कई रोग होते हैं तथा मानव की बुद्धि व विचार प्रदूषित हो जाते हैं।

4. रासायनिक उर्वरकों व जैव नाशी रसायनों के अधिक प्रयोग के कारण ऊसर व बंजर भूमि का विस्तार होता है।

5. उर्वरकों व जैव नाशी दवाओं से संबंधित मिट्टी प्रदूषक मिट्टी में पहुँचकर भोजन श्रृंखला के माध्यम से मानव शरीर में पहुँचते हैं जिससे अनेकों लोग रोगग्रस्त होकर मर जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में 5 लाख व्यक्ति प्रतिवर्ष जैव नाशी दवाओं के प्रभाव में आकर मर जाते हैं।

6. जैव नाशी रसायनों के छिड़काव से कृषि फार्मों के जीवजन्तु मर जाते हैं जिससे कृषि फार्म परिस्थितिकी तंत्र अस्थिर हो जाता है।

मिट्टी प्रदूषण रोकने के उपाय

मिट्टी प्रदूषण रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय हैं—

  1. मिट्टी अपरदन को रोकना चाहिए।
  2. रासायनिक उर्वरकों व जैव नाशी रसायनों का विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए।
  3. डी.डी.टी. के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
  4. खेतों में जल जमाव की रोकथाम की जानी चाहिए।
  5. कृषि में फसल चक्र अपनाकर मिट्टी की गुणवत्ता में वृद्धि कर मिट्टी प्रदूषण नियंत्रित किया जा सकता है।
  6. कृषि भूमि का संतुलित उपयोग किया जाना चाहिए।
  7. नगरों के वाहित मल जल का सिंचाई के लिए उपयोग शोधन करने के पश्चात् करना चाहिए।
  8. औद्योगिक बहिःस्राव का उपयोग सिंचाई के लिये शोधन के पश्चात् करना चाहिए।
  9. मिट्टी प्रदूषण के संबंध में कृषकों में जागरुकता पैदा की जानी चाहिए।
  10. मिट्टी प्रदूषण रोकने के लिये शोध कार्य को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  11. रासायनिक कीटनाशकों के दुष्परिणाम से बचने के लिए अमितुल एग्रोकेमिकल प्राइवेट लिमिटेड ने एजाडिरेक्टीन पर आधारित कृषि रसायन ‘नेथ्रिन’ का उत्पादन किया है। इसका कृषि उत्पादन में प्रयोग किया जाना चाहिए। इसी फर्म ने घरेलू कीटों यथा मक्खी, मच्छर इत्यादि से सुरक्षा हेतु ‘ट्रिंक’ रसायन का निर्माण किया है। डी.डी.टी. के छिड़काव के स्थान पर इस रसायन का प्रयोग किया जा सकता है।

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