जल प्रदूषण क्या है? जल प्रदूषण के कारणों एवं उसके रोकथाम के उपायों का वर्णन कीजिए।
जल प्रदूषण – जल मानव तथा अन्य जीवधारियों की एक आधारभूत आवश्यकता है। इसका उपयोग विशुद्ध रूप से मानव अपने जन्म से लगातार करता आ रहा है। जैसे-जैसे मानव सभ्यता विकसित हुई है, वैसे-वैसे प्रकृति द्वारा उपलब्ध शुद्ध जल प्रदूषित होता गया है। इस प्रदूषण का मुख्य कारण तेजी से बढ़ती जनसंख्या, जीवनयापन के स्तर में वृद्धि, औद्योगीकरण, ऊर्जा के परम्परागत साधनों के उपयोग में तेजी से वृद्धि होना, शहरीकरण, झोपड़पट्टियों का विकास, अपशिष्ट पदार्थों की उत्पत्ति तथा जैविक पदार्थों का सड़ना आदि प्रमुख है। मानव जैसे जैसे अपने विकास के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ रहा है, उससे भी अधिक तेज गति से दिन प्रतिदिन जल प्रदूषित होता जा रहा है।
जल प्रदूषण का तात्पर्य तथा परिभाषा
जल जीवमण्डल में सब से अधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, क्योंकि एक तरफ तो यह सभी प्रकार के जीवों के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण तथा आवश्यक तत्व है, तो दूसरी तरफ यह जीवमण्डल में पोषक तत्वों के संचरण तथा चक्रण में सहायता करता है। इसके अतिरिक्त जल बिजली के निर्माण, नौका परिवहन, फसलों की सिंचाई, गन्दगी की सफाई आदि के लिये महत्वपूर्ण होता है। ज्ञातव्य है कि जलमण्डल के समस्त जल का मात्र एक प्रतिशत ही जल विभिन्न स्रोतों जैसे- भूमिगत जल, नदी जल, झील-जल, मृदा में स्थित जल, वायुमण्डलीय जल आदि से मानव समुदाय के लिये सुलभ हो पाता है। इनमें भूमिगत स्रोतों से सबसे अधिक जल मिलता है। औद्योगीकरण, नगरीकरण तथा मानव जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण जल की माँग में गुणोत्तर वृद्धि हुई है, परिणामस्वरूप जल की गुणवत्ता में भारी गिरावट आयी है। यद्यपि जल में स्वयं शुद्धीकरण की क्षमता होती है, लेकिन जब मानव-जनित स्रोतों से उत्पन्न प्रदूषकों का जल में इतना अधिक जमाव हो जाता है कि वह जल की सहनशक्ति तथा स्वयं शुद्धीकरण की क्षमता से अधिक हो जाता है, तो जल प्रदूषित हो जाता है। अतः जल की भौतिक, रासायनिक तथा जीविय विशेषताओं में हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करने वाले परिवर्तन को जल प्रदूषण कहते हैं। जल प्रदूषण की परिभाषाओं में प्रमुख निम्नलिखित है-
पी. विविर के अनुसार, “प्राकृतिक या मानव-जनित कारणों से जल की गुणवत्ता में इस प्रकार के परिवर्तनों को प्रदूषण कहा जाता है, जो आहार, मानव एवं जानवरों के स्वास्थ्य, कृषि, मत्स्य व्यवसाय, आमोद-प्रमोद लिये अनुपयुक्त या खतरनाक होते हैं।”
सी. एस. साउथविक के अनुसार, “मानव क्रिया-कलापों या प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा जल के रासायनिक, भौतिक तथा जैविक गुणों में परिवर्तन को जल प्रदूषण कहते हैं।”
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, “प्राकृतिक या अन्य स्रोतों से उत्पन्न अवांछित बाहरी पदार्थों के कारण जल दूषित हो जाता है तथा यह विषाक्तता एवं सामान्य स्तर से कम ऑक्सीजन के कारण जीवों के लिए हानिकारक हो जाता है तथा संक्रामक रोगों को फैलाने में सहायक होता हैं।”
जल प्रदूषण के स्त्रोत / कारण
जल प्रदूषण किसी विशिष्ट स्रोत अथवा कारण से नहीं होता, अपितु इसके विविध स्रोत होते हैं तथा इनका सामूहिक प्रभाव ही जल में प्रदूषण का कारक बनता है। यद्यपि कहीं एक स्रोत या कारण प्रमुख हो जाता है, तो कहीं एक से अधिक कारण प्रमुख हो जाते हैं। अधिकांशतः जल प्रदूषण मानव द्वारा विभिन्न पदार्थों का जल में निस्तारण है, किन्तु कुछ प्राकृतिक स्त्रोत भी जल प्रदूषण कारक होते हैं। जल प्रदूषण के प्रमुख स्रोत अग्रलिखित हैं-
1. जल प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत / कारण- प्राकृतिक रूप से भी जल प्रदूषित होता रहता है। इस प्रदूषण का कारण जल में मिश्रित होने वाली विभिन्न गैसें, मृदा, खनिज, ह्यूमस पदार्थ तथा जीव-जन्तुओं का मल-मूत्र आदि होते हैं। यह प्रदूषण मंद और कभी-कभी सामयिक होता है, जैसे वर्षा ऋतु में नदियों, तालाबों का जल मृदा के कणों के मिश्रण से अत्यधिक मटमैला हो जाता है, जो कुछ समय पश्चात् स्वतः ठीक हो जाता है। जल में प्राकृतिक रूप से शुद्ध होने की क्रिया होती रहती है। प्राकृतिक अशुद्धियाँ अति सूक्ष्म कणों में घुलित रूप में होती है। यह जैव अथवा अजैव, कार्बनिक अथवा अकार्बनिक, रेडियो-सक्रिय अथवा निष्क्रिय, विषैले तथा हानि रहित हो सकती हैं।
2. जल प्रदूषण के मानवीय स्त्रोत / कारण – जल को प्रदूषित करने का यह बहुत बड़ा व मुख्य कारण है। इसके अन्तर्गत मानवीय क्रियाकलापों से उत्पन्न प्रदूषक जल में पहुँचकर उसे अपेय व प्रदूषित कर देते हैं। मानवजन्य जल प्रदूषक निम्नलिखित स्रोतों से जल को प्राप्त होते हैं-
(i) औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ- नगरों व महानगरों में अनेक उद्योग होते हैं, जो कि सामान्यतया जल स्रोतों, यथा— झीलों, नदियों, सागरों इत्यादि के पास लगाये जाते हैं। इन उद्योगों के अपशिष्ट पदार्थों, यथा- रसायनों, धात्विक अम्लों, अम्ल, क्षार, तेल, वसा, विभिन्न रासायनिक लवण, खनिज धुलाई, चर्म शोधन, रंग रोगन, कीटनाशक, रासायनिक उर्वरक, पारा, सीसा, उष्ण जल आदि को निकटवर्ती नदियों में बहाया जाता है, जिससे नदी का जल प्रदूषित हो जाता है। यही अपशिष्ट पदार्थ नदियों के माध्यम से झीलों, सागरों तथा महासागरों आदि में पहुँचते हैं, तो वहाँ का जल प्रदूषित हो जाता है।
(ii) वाहित मल जल- नगरों का वाहित मल जल नदियों, झीलों, सागरों इत्यादि में पहुँचकर उसे प्रदूषित करता है। घरेलू गन्दा पानी, मानव का मलमूत्र, कूड़ा-कचरा आदि वाहित मल के स्रोत हैं। इस मलिन जल में बैक्टीरिया, वाइरस, प्रोटोजोआ, शैवाल, कवक इत्यादि सूक्ष्म जीव शीघ्रता से पैदा होते हैं तथा जल में जैविक संदूषण पैदा करते हैं। वाराणसी में लगभग 71 नालों द्वारा 15 मिलियन गैलन वाहित मल जल प्रतिदिन गंगा नदी में बहाया जा रहा है, जिससे वहाँ का जल प्रदूषित हो गया है।
(iii) मुर्दों को जल में प्रवाहित करना — हिन्दू धर्मावलम्बी अपनी धार्मिक मान्यता के अनुसार मुर्दों को नदियों में बहाते हैं। इस प्रकार प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में मुर्दों को जल में प्रवाहित करने के कारण नदी का जल प्रदूषित रहा है। केवल वाराणसी में प्रतिवर्ष 25 हजार से 30 हजार तक शवदाह किये जाते हैं, जिसमें 10 हजार से 15 हजार टन लकड़ी जलाई जाती है। इस प्रकार लकड़ियों की राख, अधजली लकड़ियाँ, अधजले शव इत्यादि को गंगा नदी में बहाया जाता है। इससे गंगा नदी का जल अत्यधिक प्रदूषित होता जा रहा है। इसी प्रकार अनेक मृत पशुओं को नदियों में प्रवाहित करने से नदी का जल प्रदूषित हो रहा है। जलीय भागों में भी अनेक जीव-जन्तु होते हैं। जब वह मरते हैं, तो उनके सड़ने-गलने से भी जल प्रदूषित हो जाता है।
(iv) अणु विस्फोट – अणु शक्ति से सम्पन्न देश परमाणु बमों का परीक्षण समुद्री द्वीपों में करते हैं, जिससे समुद्री जल में विषैले पदार्थ मिलकर उसे प्रदूषित कर देते हैं और अनेक जीव जन्तुओं का जीवन खतरे में पड़ जाता है।
(v) खनन – खनन कार्य होने वाले क्षेत्रों से होकर गुजरने वाली नदियों का जल दूषित हो जाता है। जैसे कोयला क्षेत्र से होकर बहने वाली नदियों का जल प्रदूषित हो जाता है, क्योंकि कोयले में आइरन पाइराइट के रूप में सल्फर होता है। कोयला क्षेत्रों में कोयला धुलाई के प्लाण्ट होते हैं, जिनके अपशिष्ट पदार्थ जल को प्रदूषित कर देते हैं। दामोदर नदी के जल के प्रदूषित होने का एक कारण उसका कोयला क्षेत्रों से होकर गुजरना है।
(vi) खनिज तेल के टैंकर- विश्व में खनिज तेल का वितरण असमान होने के कारण उसकी ढुलाई समुद्री मार्गों से की जाती है। दुर्भाग्यवश ये खनिज तेल टैंकर समुद्र में डूब जाते हैं या उनमें रिसाव के कारण खनिज तेल समुद्री सतह पर फैल जाता है, तो उससे समुद्री जल प्रदूषित हो जाता है। खाड़ी युद्ध के समय इराक ने फारस की खाड़ी में अत्यधिक मात्रा में खनिज तेल बहाया था, जिससे वहाँ के सागरीय जल के प्रदूषित हो जाने से अनेक जलीय जीव-जन्तु मर गये थे तथा तटीय जल के प्रदूषित हो जाने के कारण पेयजल की समस्या उत्पन्न हो गई थी ।
(vii) विकसित कृषि पद्धति- बढ़ती हुई जनसंख्या की उदरपूर्ति के लिए विकसित कृषि पद्धति द्वारा अधिकाधिक खाद्यान्न का उत्पादन किया जा रहा है। इसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशक, रोगनाशक, शाकनाशक आदि दवाओं का प्रयोग किया जा रहा है। ये रसायन वर्षा जल के साथ घुलकर नदियों, जलाशयों, सागरों इत्यादि में पहुँचकर जल प्रदूषण पैदा करते हैं।
(viii) अन्य कारण – उपर्युक्त कारकों के अलावा जनसंख्या वृद्धि, घरेलू अपशिष्ट पदार्थ, रेडियो-सक्रिय तत्व, धात्विक पदार्थ, स्वचालित मशीनों से निकलने वाले कणीय पदार्थों के वर्षा जल के साथ मिलना, गन्दी बस्तियाँ, धार्मिक व सांस्कृतिक सम्मेलन इत्यादि भी मानवजन्य कारण हैं, जो कि जल प्रदूषण को बढ़ाने में सहायक हो रहे हैं।
जल प्रदूषण नियंत्रण अथवा रोकथाम के उपाय
आज के युग में जल प्रदूषण की समस्या बन गई है। वर्तमान में यह समस्या न केवल औद्योगिक क्षेत्रों, नगरों एवं महानगरों तक सीमित है, बल्कि इसका प्रसार ग्रामों एवं कस्बों तक हो गया है। अतः यह परमावश्यक हो गया है कि सर्वत्र जल प्रदूषण को रोकने के लिए विभिन्न प्रकार के उपाय अपनाये जायें। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
(i) जहाँ तक सम्भव को सके किसी भी प्रकार के कूड़ा-करकट, अपशिष्ट मल-मूत्र इत्यादि जल स्रोतों में नहीं मिलने देना चाहिये।
(ii) जल स्रोतों में स्नान, जल क्रीड़ा, कपड़ा धोना एवं साबुन का प्रयोग वर्जित कर देना चाहिए।
(iii) गाँवों एवं बस्तियों से निकलने वाले प्रदूषित जल एवं वाहित मल को सर्वप्रथम संयन्त्रों में शोधन के उपरान्त ही जल स्रोतों में प्रवाहित करना चाहिये। अन्यथा ऐसे जल का प्रयोग सिंचाई में भी किया जा सकता है।
(iv) जहाँ तक सम्भव हो नदियों, तालाबों, कुओं, झरनों, झीलों में प्रदूषित जल को मिलने से रोकना चाहिये। इसके लिये बाँध एवं दीवार बनाये जा सकते हैं।
(v) विभिन्न प्रकार के पालतू एवं जंगली पशुओं को जल में घुसने, नहाने से वर्जित करना चाहिये इससे सूक्ष्म जीवाणुओं, प्रदूषकों के फैलने की सम्भावना होती।
(vi) विभिन्न प्रकार के औद्योगिक संस्थानों, मिल, फैक्ट्री, कल कारखानों को जल स्रोतों के समीप स्थापित होने पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिये, क्योंकि ये संस्थान अपने प्रदूषित जल को समीप के जल स्रोतों में विसर्जित करते हैं।
(vii) अधिकतर विषैले पेस्टीसाइडों के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिये। इन सबका प्रयोग खेती में बहुत सीमित रूप में करना चाहिये।
(viii) प्रदूषित तालाबों, कुँओं इत्यादि की समय-समय पर सफाई करते रहना चाहिये।
(ix) मच्छरों, उनके अण्डों एवं लार्वा इत्यादि को समाप्त करने के लिये तालाबों में मछलियाँ पालना चाहिये, क्योंकि मछलियाँ इन्हें खा जाती हैं।
(x) शवों को नदियों एवं अन्य स्रोतों में प्रवाहित होने पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिये। शवों को शवदाह गृहों में ही जलाना चाहिये।
(xi) औद्योगिक इकाइयों को प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।
इसे भी पढ़े…
- वित्तीय प्रणाली की अवधारणा | वित्तीय प्रणाली के प्रमुख अंग अथवा संघटक
- भारतीय मुद्रा बाजार या वित्तीय बाजार की विशेषताएँ बताइए।
- मुद्रा का अर्थ एवं परिभाषा | Meaning and Definitions of money in Hindi
- मानी गयी आयें कौन सी हैं? | DEEMED INCOMES IN HINDI
- मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं ?| Functions of Money in Hindi
- कर नियोजन का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, आवश्यक तत्त्व या विशेषताएँ, उद्देश्य, आवश्यकता एवं महत्व
- कर अपवंचन का अर्थ, विशेषताएँ, परिणाम तथा रोकने के सुझाव
- कर मुक्त आय क्या हैं? | कर मुक्त आय का वर्गीकरण | Exempted incomes in Hindi
- राष्ट्रीय आय की परिभाषा | राष्ट्रीय आय के मापन या गणना की विधियां
- कर नियोजन का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, आवश्यक तत्त्व या विशेषताएँ, उद्देश्य, आवश्यकता एवं महत्व
- कर अपवंचन का अर्थ, विशेषताएँ, परिणाम तथा रोकने के सुझाव
- कर बचाव एवं कर अपवंचन में अन्तर | Deference between Tax avoidance and Tax Evasion in Hindi
- कर मुक्त आय क्या हैं? | कर मुक्त आय का वर्गीकरण | Exempted incomes in Hindi
- राष्ट्रीय आय की परिभाषा | राष्ट्रीय आय के मापन या गणना की विधियां
- शैक्षिक आय का अर्थ और सार्वजनिक एवं निजी आय के स्त्रोत
- गैट का अर्थ | गैट के उद्देश्य | गैट के प्रावधान | GATT Full Form in Hindi
- आय का अर्थ | आय की विशेषताएँ | Meaning and Features of of Income in Hindi
- कृषि आय क्या है?, विशेषताएँ तथा प्रकार | अंशतः कृषि आय | गैर कृषि आय
- आयकर कौन चुकाता है? | आयकर की प्रमुख विशेषताएँ
- मौद्रिक नीति का अर्थ, परिभाषाएं, उद्देश्य, असफलतायें, मौद्रिक नीति एवं आर्थिक विकास
- भारत में काले धन या काले धन की समस्या का अर्थ, कारण, प्रभाव या दोष
- निजीकरण या निजी क्षेत्र का अर्थ, विशेषताएँ, उद्देश्य, महत्त्व, संरचना, दोष तथा समस्याएं
- औद्योगिक रुग्णता का अर्थ, लक्षण, दुष्परिणाम, कारण, तथा सुधार के उपाय
- राजकोषीय नीति का अर्थ, परिभाषाएं, उद्देश्य, उपकरण तथा विशेषताएँ
- भारत की 1991 की औद्योगिक नीति- मुख्य तत्व, समीक्षा तथा महत्त्व
- मुद्रास्फीति या मुद्रा प्रसार की परिभाषा, कारण, परिणाम या प्रभाव
- मुद्रा स्फीति के विभिन्न रूप | Various Types of Inflation in Hindi
- गरीबी का अर्थ एवं परिभाषाएँ | भारत में गरीबी या निर्धनता के कारण अथवा समस्या | गरीबी की समस्या को दूर करने के उपाय
- बेरोजगारी का अर्थ | बेरोजगारी की प्रकृति | बेरोजगारी के प्रकार एवं विस्तार