वायु प्रदूषण से उत्पन्न समस्याएँ एवं वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लिए उठाए गए सरकारी कदमों की विवेचना कीजिए ।
वायु प्रदूषण की समस्या- वायु प्रदूषण का प्रादुर्भाव उसी दिन से हो गया था जब मनुष्य ने सर्वप्रथम आग जलाना सीखा। धीरे-धीरे जनसंख्या में वृद्धि होती गई और जंगल कटते चले गए। इसके साथ ही वायुमण्डल में धुआँ भी बढ़ता चला गया, फलस्वरूप वायुमण्डल में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि होती चली गई। 1870 के बाद के अंतराल से अब तक वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा में 16 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
वायुमंडल में पायी जाने वाली गैसें एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में होनी चाहिए। इस मात्रा एवं अनुपात में वृद्धि या कमी जाती है तो यह वायु प्रदूषण कहलाती है।
यह स्थिति प्रमुखतः डीजल व पेट्रोल से चलने वाले वाहनों द्वारा छोड़े गए धुएँ, कारखानों की गैसों, भट्टियों में ईंधन के जलने, सूती कपड़े की मिलों, जंगल की आग तथा गंधक युक्त ईंधन के जलने से उत्पन्न धुएँ, घरों के धुएँ, जेट हवाई जहाजों से निकले धुएँ, जंगलों की बेहिसाब तरीके से कटाई, इत्यादि से उत्पन्न होती है।
वायु प्रदूषण के कारण आज हमारे सामने विभिन्न समस्याएँ खड़ी हो गई हैं। दूषित हो गया है। मनुष्य को विभिन्न बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। मोटर गाड़ियों के समूचा पर्यावरण निकले धुएँ के कारण बच्चों में साँस से संबंधित रोग तथा नजले की शिकायत बढ़ रही है। वाहनों से निकलने वाले धुएँ में कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, अलडीहाइड, लैटड ऑक्साइड प्रमुख हैं जो कि वायुमंडल को प्रदूषित करती हैं। 1980 की राष्ट्रीय यातायात नीति सम्बन्धी दस्तावेजों के अनुसार, “भारत की सड़कों पर लगभग 37 लाख मोटर वाहन थे। इनमें से 3 लाख 40 हजार कारें व जीप, 4 लाख 40 हजार ट्रक, 2 लाख 40 हजार बसें तथा 83 हजार टैक्सियाँ सम्मिलित हैं?” अब तक इनकी संख्या में निश्चित रूप से वृद्धि हो चुकी है।
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. जे.एन. दवे के अनुसार, “मुम्बई और दिल्ली के मोटर वाहनों से निकलने वाले धुएँ से 7 प्रतिशत कार्बन मोनोऑक्साइड, 50 प्रतिशत हाइड्रोकार्बन तथा 30 से 40 प्रतिशत भिन्न कण हवा में फैलते हैं।” एक अन्य अनुमान के अनुसार हमारे देश में कारें लगभग 5 लाख टन सीसा प्रतिवर्ष वायुमंडल में छोड़ती हैं। एक अन्य राष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार हमारे देश के वायुमंडल में प्रतिवर्ष 10 टन पारा डाला जा रहा है। इसमें से 166 टन पारा केवल कास्टिक सोडा पैदा करने वाले कारखानों के द्वारा वायुमंडल में छोड़ा जा रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक मोटर गाड़ी एक मिनट में इतनी ऑक्सीजन खर्च करती है जितनी 1135 व्यक्ति साँस लेने के लिए उपयोग में लेते हैं। जैट हवाई जहाजों से निकले धुएँ में भी कार्बन के ऑक्साइड होते हैं जो वायुमंडल में फैली ऑक्सीजन ओजोन गैस को विषाक्त बना देते हैं। यह ओजोन गैस सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है।
वाहनों द्वारा छोड़ा गया धुआँ स्मारकों, निर्जीव पदाथों और मूर्तियों को भी नुकसान पहुँचाता है। आयल रिफाइनरी की दूषित गैसों से ताजमहल का रंग पीला पड़ गया है। वायुमंडल में सल्फर डाई ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड की अधिकता से इन्हें कैंसर रोग, हृदय रोग इत्यादि के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। सल्फर डाई ऑक्साइड से एम्फाथसीया नामक रोग हो जाता है। कार्बन मोनो-ऑक्साइड की वायु में उपस्थिति से रक्त में हिमोग्लोबीन का ऑक्सीकरण करने की क्षमता में कमी आती है। अधिक मात्रा में अधिक समय तक सेवन से दम घुटने से मृत्यु हो जाती है। परिवहन के साधन वायुमंडल में 80 प्रतिशत तक वायु प्रदूषण के हिस्सेदार होते हैं ।
वायु प्रदूषण से उत्पन्न समस्याओं का समाधान
पेट्रोल व डीजल से चलने वाले वाहनों से धुएँ के कारण उत्पन्न वायु प्रदूषण को रोकने के लिए भारी वाहनों को शहर में प्रवेश न करने देकर तथा छोटे वाहनों के इंजन को सही स्थिति में रखकर धुएँ को घटाया जा सकता है। पेट्रोल व डीजल से चलने वाले वाहनों का प्रयोग यथासंभव घटाया जाना चाहिए तथा उनकी वायु प्रदूषण उत्पन्न करने की क्षमता में कमी लानी चाहिए जिससे वायुमंडल में सल्फरडाई ऑक्साइड तथा कार्बन मोनो-ऑक्साइड जैसी विषैली गैसों की मात्रा घटेगी।
वृक्ष प्रकृति के फेफड़ें कहलाते हैं, अतः जिन स्थानों पर अधिक वायु प्रदूषण हो वहाँ अधिकतम वृक्ष लगाए जाने चाहिए।
जन-साधारण को वायु प्रदूषण के कारणों को रोकने की विधियों के बारे में आवश्यक जानकारी दी जानी चाहिए एवं उन्हें इस सम्बन्ध में जागरूक बनाया जाना चाहिए ।
वायु प्रदूषण को मापने और मानिटरिग की सुविधा उचित स्थान पर होनी चाहिए इसके साथ ही साथ वनों की कटाई पर रोक लगानी चाहिए तथा पर्यावरण संतुलन की विधि, व्यवस्था और नियमों का निर्माण करना चाहिए। प्रदूषण नियंत्रण कानूनों का सख्ती से पालन होना चाहिए। पेट्रोल एवं डीजल से चलने वाले वाहनों में ऐसे यंत्रों का विकास किया जाना चाहिए जिससे धुएँ एवं गैस का रिसाव कम-से-कम हो।
वायु प्रदूषण रोकने के लिए उठाए गए सरकारी कदम
केन्द्रीय सरकार ने वायु प्रदूषण के बढ़ते खतरे को देखते हुए सन् 1981 में वायु प्रदूषण निवारण व नियंत्रण कानून लागू किया। यह नियम स्थानीय प्रशासन तंत्र को व्यापक अधिकार देता है कि वे आवश्यक कार्य पद्धति निश्चित करें। इसके साथ ही वायु प्रदूषण के स्रोतों पर तथा धुएँ एवं गैस को नियंत्रित करने के उपायों को लागू करने हेतु तथा दबाव का व्यापक अधिकार भी दिया गया है।
भारत के अधिकांश राज्यों में वायु प्रदूषण नियंत्रण कानून का गठन हो चुका है। बिहार राज्य में 1974 में प्रदूषण की रोकथाम के लिए प्रदूषण नियंत्रण परिषद् की स्थापना की गई। बिहार के वृहत् और लघु उद्योगों की परिषद् से जलवायु अधिनियम, 1974 के तहत सहमति लेना आवश्यक हो गया है। वायु प्रदूषण मंडल उद्योगपतियों को उद्योगों की अनुमति देने से पहले यह प्रमाण-पत्र प्राप्त कर लेता है कि वे प्रदूषण नियंत्रण लगाकर पर्यावरण को दूषित होने से बचाऐंगे।
विभिन्न सरकारी संगठन- जैसे- कोल इंडिया, रेल विभाग, तेल और प्राकृतिक गैस आयोग प्रदूषण नियंत्रण में रुचि दिखा रहे हैं। कोल इंडिया खनन के द्वारा उत्पन्न होने वाली पर्यावरणीय समस्याओं के प्रति जागरूक है और कोयले की धूल वायुमंडल में पहुँचने से रोकने के अनेक उपाय किए गए हैं। हर कोयले की खान के लिए मास्टर प्लान तैयार किया गया है। रेल विभाग ने कोयले से चलने वाले इंजनों को बंद करने का फैसला किया है। रेल लाइनों के विद्युतीकरण का कार्य तेजी से किया जा रहा है।
भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुंबई ने भी वायु प्रदूषण रोकने में रुचि दिखाई है। सन् 1989 में हिन्दी दिवस के अवसर पर उस केन्द्र में एक संगोष्ठी हुई जिसका विषय था “पर्यावरण प्रदूषण और उद्योग”। इसमें विभिन्न स्रोतों से हुए वायु प्रदूषण को रोकने के लिए अनेक तरीके सुझाए गए। जैसे-
(i) उद्योगों द्वारा उत्पन्न वायु प्रदूषकों का निरंतर मॉनीटरिंग तथा उसके निकटवर्ती क्षेत्रों की वायु का प्रेक्षण।
(ii) ऐसी प्रक्रियाओं और तकनीकों का विकास जो कम विषैले पदार्थों का इस्तेमाल करें और जो स्रोत से निकलने वाले प्रदूषकों की मात्रा को कम कर सकें ।
(iiii) काम कर रहे उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रक संयंत्रों का लगाना ।
(iv) उद्योगों को किसी विशेष स्थान पर न स्थापित करके उनको देश के अलग-अलग क्षेत्रों में स्थापित करना (बिखराना) ।
(v) पर्यावरण पर पड़ने वाले उद्योगों के प्रभाव का निर्धारण ।
(vi) लोगों को पर्यावरण, पर्यावरण असंतुलन तथा पारिस्थितिक संतुलन के प्रति जागरूक बनाना ।
नई तकनीक – वैज्ञानिकों ने वायु प्रदूषण कम करने के लिए तकनीक की खोज की है। उद्योग-धंधों के कारण वायुमंडल में पहुँची गैसों के अनेक अणु परस्पर तथा हवा में विद्यमान नमी के साथ मिलकर वायु-विलय का निर्माण कर लेते हैं। ये वायु-विलय स्वास्थ्य तथा पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुँचाते हैं। हवा में ऋण आयनों को उत्पन्न करने से ये वायु-विलय आवेशित हो जाते हैं। कमरे की दीवारें, फर्श और उनमें रखा सामान इन आवेशित वायु-विलयों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। इस प्रकार कमरे की हवा वायु-विलय रहित हो जाती है अर्थात् प्रदूषण मुक्त हो जाती है। यही नहीं, ये ऋणायन हमारे शरीर में पहुँचकर हमारा स्वास्थ्यवर्धन भी करते हैं। इसलिए इन ऋण आयनों को वायु-विटामिन भी कहते हैं।
उद्योगों द्वारा भी समय-समय पर अनेक योजनाएँ बनाई जाती हैं जिससे वायु प्रदूषण में कमी हो सके। राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स, ट्राम्बे में वायु प्रदूषण कम करने हेतु निम्नलिखित उपाय किए गए हैं—
- पुराने संयत्रों की संसाधन प्रौद्योगिकी को उन्नत करना ।
- अतिरिक्त उपायों की स्थापना ।
- अपेक्षाकृत स्वच्छ कच्चे माल को अपनाना।
- नये सयंत्रों में अधिक सक्षम तथा प्रदूषण मुक्त प्रौद्योगिकी को अपनाना।
- विभिन्न नियंत्रण योजनाओं का अनुबोधन।
- हरित क्षेत्र का विकास।
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