वायु प्रदूषण क्या है? वायु प्रदूषण के कारणों को स्पष्ट कीजिए ।
वायु प्रदूषण – संयुक्त राष्ट्र संघ की पर्यावरण सम्बन्धी एक संस्था ‘यूनेप’ के विगत 20 वर्षों के एक अध्ययन के अनुसार पृथ्वी में कुल पैदा होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड को कार्बन चक्र में लाने की क्षमता कम पड़ती जा रही है। अर्थात् कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा जो कि पेड़-पौधों, समुद्रों तथा जीव-जन्तुओं आदि से पुनः सोखी नहीं जा रही है। यह मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है। यदि यही स्थिति रही तथा ईंधन आदि के जलाने से वायुमण्डल में कार्बन डाइ – ऑक्साइड इसी प्रकार छोड़ी जाती रही तो आने वाले 100 वर्षों में पृथ्वी पर कार्बन-डाइ ऑक्साइड की मात्रा दुगुनी हो जायेगी। मानव एवं अन्य जीवधारियों के जीवन के लिये स्वच्छ वायु होनी आवश्यक है; लेकिन औद्योगीकरण, शहरीकरण तथा तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण वायु प्रदूषण की समस्या पैदा हुई है। भारत में पिछले पचास वर्षों में खनिज कोयला, खनिज तेल, जलाने वाली लकड़ी व उद्योगों में खनिज ईंधन के जलाने का कार्य बहुत अधिक मात्रा में हुआ जिससे वायुमण्डल में वायु का सन्तुलन बिगड़ता चला गया है।
वायु प्रदूषण का अर्थ एवं परिभाषा
वायुमण्डल में पायी जाने वाली गैसें एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में होती हैं। जब वायु के अवयवों में अवांछित तत्व प्रवेश कर जाते हैं, तो उसका मौलिक सन्तुलन बिगड़ जाता है, जो मानव तथा अन्य जीवधारियों के लिए घातक होता है। इसमें विभिन्न प्रकार की गैसें, कार्बन के कण, धुआं, खनिजों के कण आदि सम्मिलित हैं। वायु के दूषित होने की यही प्रक्रिया वायु प्रदूषण कहलाती है। सामान्य अर्थों में प्राकृतिक तथा मानव-जनित स्रोतों से उत्पन्न बाहरी तत्वों के वायु में मिश्रण के कारण वायु की असन्तुलित दशा को वायु प्रदूषण कहते हैं। इस प्रकार असन्तुलित वायु की गुणवत्ता में ह्रास हो जाता है तथा वह जीवीय समुदाय के लिये सामान्य रूप में तथा मानव समुदाय के लिये विशेष रूप से हानिकारक होती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, “वायु प्रदूषण एक ऐसी स्थिति है, जिसमें बाह्य वातावरण में मनुष्य और उसके पर्यावरण को हानि पहुँचाने वाले तत्व सघन रूप से एकत्रित हो जाते हैं। “
वायु प्रदूषण का वर्गीकरण
प्रदूषकों की उत्पत्ति के आधार पर वायु प्रदूषण को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया गया है—
(i) प्राथमिक प्रदूषक- लम्बी प्रक्रियाओं के उपरान्त दीर्घावधि में वायुमण्डल में छोड़े जाने वाले रासायनिक प्रदूषक इस श्रेणी के अन्तर्गत सम्मिलित किये जाते हैं।
(ii) द्वितीयक प्रदूषक – वायुमण्डल में दो प्रदूषकों द्वारा अथवा एक ही प्रदूषक के आपस में प्रतिक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न प्रदूषण इस श्रेणी के अन्तर्गत सम्मिलित हैं। यह प्रतिक्रिया फोटो कैमीकल तथा गैर-फोटो कैमीकल के द्वारा उत्पन्न होती है।
वायु प्रदूषण के स्त्रोत/कारण
वायु प्रदूषण के स्रोतों अथवा कारणों को उनकी आकृति के आधार पर निम्नलिखित दो वर्गों के अन्तर्गत विभाजित किया गया है-
(I) वायु प्रदूषण के प्राकृतिक स्त्रोत / कारण- कुछ प्राकृतिक क्रियाओं के फलस्वरूप भी वायु प्रदूषण होता है, यद्यपि यह सीमित एवं क्षेत्रीय होता है। इसमें ज्वालामुखी का उद्गार एक प्रमुख प्राकृतिक क्रिया है, जिसमें विस्फोट के क्षेत्र का वायुमण्डल प्रदूषित हो जाता है। ज्वालामुखी उद्गार के समय विशाल मात्रा में धुआं, राख एवं चट्टानों के टुकड़े तथा विभिन्न प्रकार की गैसें तीव्र गति से वायुमण्डल में प्रवेश करती हैं और वहाँ प्रदूषण में वृद्धि हो जाती है। यदि यह उद्गार सीमित समय तक होता है, तो प्रदूषण भी कम होता है और यदि लगातार चलता रहता है तो अधिक प्रदूषण होता है। इसी प्रकार उद्गार की शक्ति पर भी प्रदूषण की मात्रा निर्भर करती है।
वन क्षेत्रों में लगने वाली आग जो कि कभी-कभी हजारों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैल जाती है, उससे भी वायु प्रदूषण होता है, क्योंकि इससे धुआं और राख के कण विस्तीर्ण हो जाते हैं। इस प्रकार की आग घास के मैदानों में भी लग जाती तथा तेज हवाओं एवं आँधी तूफान से धूल के जो कण वायुमण्डल में फैलते हैं, वे प्रदूषण का कारण बनते हैं।
(II) वायु प्रदूषण के मानवीय स्त्रोत/कारण- यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण न होगा कि मानव ने अपनी विभिन्न क्रियाओं के द्वारा वायुमण्डल या वायु को अत्यधिक मात्रा में प्रदूषित किया है और करता जा रहा । ऊर्जा के विविध उपयोग, उद्योग, परिवहन, रसायनों के प्रयोग में वृद्धि आदि ने जहाँ मानव अनेक सुविधाएँ प्रदान की है वहीं वायु प्रदूषण के रूप में संकट को भी जन्म दिया है। वायु प्रदूषण के विभिन्न मानवीय स्रोतों को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है-
1. दहन क्रियाओं के द्वारा वायु प्रदूषण- मनुष्य अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऊर्जा का उपयोग करता है। अपनी प्रारम्भिक आवश्यकता भोजन तैयार करने से लेकर उद्योगों को चलाने, विद्युत उत्पादन करने वाहनों को परिचालित करने आदि कार्यों के लिए ऊर्जा का उपयोग करता है और इस क्रिया से विभिन्न प्रकार की गैसें एवं सूक्ष्म कण वायु में प्रविष्ट होकर उसे प्रदूषित कर देते हैं। दहन क्रिया में प्रमुख रूप से घरेलू कार्यों में दहन, वाहनों में दहन एवं ताप विद्युत हेतु दहन आदि शामिल हैं। इनसे निम्नलिखित प्रकार से वायु प्रदूषण होता है—
(i) घरेलू कार्यों में दहन – नियमित घरेलू कार्य जैसे भोजन बनाने, पानी गर्म करने आदि में ईंधन जैसे लकड़ी, कोयला, गोबर के कण्डे, मिट्टी का तेल, गैस आदि का उपयोग किया जाता है। इस जलाने की क्रिया में कार्बन-डाई-ऑक्साइड, कार्बन मोनो-ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड आदि गैसें उत्पन्न होती हैं, जो कि वायु को प्रदूषित करती हैं। इस दहन क्रिया में ऑक्सीजन का उपयोग होता है। अतः वायु में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। अपूर्ण दहन के फलस्वरूप अनेक हाइड्रोकार्बन तथा साइक्लिक पाइरिन यौगिक भी पैदा होते हैं, जो कि वायु प्रदूषण का कारण हैं। भारत जैसे विकासशील देश में परम्परागत ईंधन जैसे लकड़ी, गोबर, खेतों का कचरा, झाड़ियाँ, घास-फूंस आदि का उपयोग घरेलू कार्यों में अधिकांशतः किया जाता है। अतः यहाँ वायु अपेक्षाकृत अधिक प्रदूषित होती है।
(ii) वाहनों में दहन – वर्तमान समय में परिवहन के क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति हुई है, फलस्वरूप तीव्रगामी परिवहन के साधन, यथा-कार-मोटर, ट्रक, स्कूटर, मोटर साइकिल, डीजल चालित रेल, वायुयान आदि की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि न केवल विकसित देशों में अपितु विकासशील देशों में भी हुई है। इससे जहाँ आज दूरियाँ सिमट कर रह गई हैं, वहीं वायु प्रदूषण का संकट दिन-प्रतिदिन गहराता जा रहा है। समस्त ऊर्जा चालित वाहनों में आन्तरिक दहन से शक्ति प्राप्त होती है और साथ में धुआं निकलता है, जो कि विषैली गैसों एवं हानिकारक प्रदूषण तत्वों से युक्त होता है।
(iii) ताप विद्युत ऊर्जा दहन – जहाँ कोयले को जलाकर ताप ऊर्जा प्राप्त की जाती है, वहाँ वायु प्रदूषण का खतरा अधिक हो जाता है, क्योंकि इस प्रक्रिया में अत्यधिक मात्रा में कोयला जलाया जाता है। फलस्वरूप प्रदूषण फैलाने वाली गैसें जैसे- सल्फर डाई-ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड तो वायुमण्डल में फैलती ही हैं, इसके अलावा कोयले की राख एवं कार्बन के सूक्ष्म कण इसके चारों तरफ के वायुमण्डल में फैल जाते हैं। एक 200 मेगावाट के ताप विद्युत केन्द्र में कम गन्धक वाला कोयला जलने पर भी लगभग 50 टन सल्फर डाई ऑक्साइड और उससे भी अधिक राख फैलती है। राजस्थान में कोटा शहर में स्थापित ताप विद्युत केन्द्र से विगत वर्षों में शहर का पर्यावरण अत्यधिक प्रदूषित हो रहा है।
(iv) अन्य दहन क्रियाएँ – उपर्युक्त दहन क्रियाओं के अलावा अवशिष्ट कचरे को जलाया जाना, आतिशबाजी, आग्नेय अस्त्रों का परीक्षण आदि से भी वायु प्रदूषण में वृद्धि होती है।
2. उद्योगों द्वारा वायु प्रदूषण- वायु प्रदूषण के लिए जहाँ एक तरफ परिवहन के साधन उत्तरदायी हैं वहीं दूसरी तरफ उद्योग भी वायु प्रदूषण में वृद्धि करते हैं। वास्तविक रूप में वायु प्रदूषण औद्योगिक क्रान्ति की देन है। उद्योगों में एक तरफ दहन क्रिया होती है तो दूसरी तरफ विविध पदार्थों का धुआँ जो कि औद्योगिक चिमनियों से निकलकर वायुमण्डल में विलीन हो जाता
है तथा जिसका परिणाम वायु प्रदूषण होता है। प्रमुख उद्योगों द्वारा होने वाला वायु प्रदूषण निम्न प्रकार से होता है-
(i) रासायनिक उद्योगों द्वारा प्रदूषण- रासायनिक उद्योगों से निकलने वाली गैस न केवल वायु प्रदूषण फैलाती है अपितु कभी-कभी असावधानी के कारण मृत्यु का कारण भी बन जाती है जैसा कि 2 व 3 दिसम्बर, 1984 में भोपाल में गैस रिसाव से हुआ था। इसमें अमेरिका की यूनियन कार्बाइड कम्पनी के भोपाल स्थित कीटनाशक बनाने के कारखाने में आइसो मिथाइल आइसो साइनाइड गैस का रिसाव हुआ जो कि पानी के साथ मिलकर सल्फ्यूरिक एसिड बनाती है। इस विषैली गैस के रिसाव ने भोपाल के एक भाग में 3000 से भी अधिक व्यक्तियों को मृत कर दिया और हजारों की संख्या में लोग आज भी अन्धेपन, श्वास, चर्म रोग आदि बीमारियों से ग्रसित हैं।
(ii) जीवनाशी रसायनों के उपयोग से वायु प्रदूषण- हानिकारक जीवों से बचाव हेतु जब पौध सुरक्षा रसायनों का छिड़काव किया जाता है तो उसकी कुछ मात्रा मिट्टी में मिल जाती है लेकिन कुछ मात्रा वातावरण में ही रह जाती है। कुछ कृषि रक्षा रसायन ऐसे होते हैं जो अधिक तापमान होने पर अथवा नमी के सम्पर्क में आने पर वाष्पित होने लगते हैं तथा वायुमण्डल में विसरित होकर हवा को प्रदूषित कर देते हैं। जिन क्षेत्रों में इन रसायनों के छिड़काव के लिए हैलीकाप्टर का उपयोग किया जाता है वहाँ वायुमण्डल में प्रदूषण की समस्या अधिक रहती है।
(iii) सूती कपड़ा मिलों से वायु प्रदूषण- सूती कपड़े की मिलों के आस-पास के क्षेत्रों में रुई के रेशे या धूल की पतली सी परत छायी रहती है। इसके अलावा यहाँ चिमनियों के धुएँ के बादल भी छाये रहते हैं। मिलों के अन्दर तथा मिलों के बाहर व्यक्ति इसी वातावरण की हवा में साँस लेते हैं जिससे दमा तथा तपेदिक जैसे रोग हो जाते हैं। मुम्बई के के.ई.एम. अस्पताल के एक सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ है कि कपड़े की मिलों में कार्यरत मजदूरों में 10 से 16 प्रतिशत मजदूरों को वाइसिनोसिस रोग हो जाता है। सूती वस्त्र मिलों में अनेक तरह के रासायनिक द्रव्यों का उपयोग किया जाता है। उनके अवशेष से रुई, धुआँ, जलावन के अवशेष, मिट्टी के तेल की भाप (नेफ्ता गैस), गंधक का अम्ल, नाइट्रोजन ऑक्साइड, क्लोरीन और क्लोरीन डाई ऑक्साइड आदि पैदा होते हैं जो कि पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। मुम्बई, अहमदाबाद और कानपुर शहर इसके उदाहरण हैं।
(iv) अम्लीय वर्षा द्वारा वायु प्रदूषण- अम्लीय वर्षा भी वायु प्रदूषण का एक खतरनाक कारक है। अम्लीय वर्षा उस समय होती है जब सल्फर डाई-ऑक्साइड (SO2) वायु में पहुँचकर सल्फ्यूरिक एसिड (H2SO4) बन जाता है जो कि सूक्ष्म जल कणों के रूप में शहरों में छाया रहता है और अन्त में जल कणों के रूप में गिरता है जिसमें सल्फेट आयन अधिक होता है। यूरोप एवं अमेरिका के औद्योगिक नगरों में वर्षा के जल में 3 से 5 पी.एच. पाया गया है। इसका अर्थ है वहाँ के जल में पहले से 100 से 1000 गुना तक अधिक अम्लता पायी जाती है। इस प्रकार जल मानव एवं वनस्पति दोनों के लिए हानिकारक होता है।
3. कृषि कार्यों के द्वारा वायु प्रदूषण- वर्तमान समय में कृषि की प्रक्रिया से भी वायु प्रदूषण होने लगा है। यह प्रदूषण कीटनाशक दवाओं के अत्यधिक प्रयोग से हो रहा है। कृषि में विभिन्न प्रकार की बीमारियों को रोकने के लिए विषैली दवाओं का छिड़काव किया जाता है, कभी कभी यह छिड़काव हेलीकॉप्टर या छोटे विमानों द्वारा भी किया जाता है। इस प्रकार के छिड़काव से रसायन वायु में समाहित हो जाते हैं। इनसे अनेक दवायें जो कि डी.डी.टी. से उत्पन्न होती हैं, स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक हानिकारक होती हैं तथा उनसे अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं। इसी प्रकार अनेक बार खेतों में फसल निकालने के पश्चात् बचे हुए भाग को जला दिया जाता है, इससे भी वायु प्रदूषण होता है।
4. विलायकों के प्रयोग द्वारा वायु प्रदूषण – अनेक प्रकार के पेण्ट, स्प्रे, पॉलिश आदि करने के लिए जिन विलायकों का प्रयोग किया जाता है वे हवा में फैल जाते हैं क्योंकि इनमें हाइड्रोकार्बन पदार्थ होते हैं और वे वायु को प्रदूषित कर देते हैं। विभिन्न रसायन शालाओं में भी विलायकों का प्रयोग होता है जो कि प्रयोग के समय कभी-कभी असावधानी से वायु में पहुँच कर उसे प्रदूषित कर देते हैं।
5. रेडियोधर्मिता द्वारा वायु प्रदूषण – परमाणु शक्ति का प्रयोग जहाँ एक तरफ असीम शक्ति प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है वहीं तनिक-सी असावधानी न केवल वायु प्रदूषण अपितु मौत का कारण बन जाती है। आज विश्व के अनेक देशों में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए परमाणु संयंत्र लगे हुए हैं। यद्यपि इनमें पर्याप्त सुरक्षा प्रबंध किये जाते हैं ताकि परमाणु ईंधन या रेडियोधर्मी पदार्थ बाहर न जाने पायें किन्तु तकनीकी एवं मानवीय कारणों से कभी-कभी रेडियोधर्मिता बाहर निकल जाती है। पूर्व सोवियत संघ जैसे देश में चेरनोबिल परमाणु संयंत्र से गैस के रिसाव से हजारों की संख्या में व्यक्ति मौत के मुँह में चले गये। यही नहीं, जब परमाणु बमों का परीक्षण किया जाता है तो परमाणु धूलि वायुमण्डल में पहुँच जाती है। हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर गिराये गये परमाणु बम से वहाँ का वायुमण्डल इतना अधिक प्रदूषित हो गया है कि उसके कतिपय अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मानव ने उद्योग, परिवहन, ऊर्जा आदि के क्षेत्रों में जो प्रगति की है उसका प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव वायु प्रदूषण के रूप में हो रहा है। यह संकट आज सम्पूर्ण विश्व पर गहराता जा रहा है।
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