प्रदूषण को परिभाषित कीजिए। प्रदूषकों के कौन-कौन से प्रकार हैं? वर्णन कीजिए।
प्रदूषण का अर्थ एवं परिभाषा – पर्यावरण जैव व अजैव संघटकों से निर्मित है जिसमें सभी संघटक संतुलित दशा में रहते हैं। यदि इन संघटकों में कोई परिवर्तन होता है तो उसकी क्षतिपूर्ति स्वनियामक क्रिया द्वारा हो जाती है। लेकिन जब परिवर्तन इस सीमा तक हो जाय कि उसकी सहन शक्ति के बाहर हो जाय तथा क्षतिपूर्ति न हो सके तो उसे पर्यावरण अवनयन कहते हैं। जब यह पर्यावरण अवनयन इतना अधिक हो जाता है कि पौधों, जीव-जन्तुओं और मानव पर प्राणघातक तथा जानलेवा कुप्रभाव पड़ने लगता है तो उसे पर्यावरण प्रदूषण कहते हैं। इस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण का आशय है- स्थानीय स्तर पर मानवीय क्रियाओं द्वारा पर्यावरण की गुणवत्ता में इतना अधिक ह्रास हो जाय कि उसका पौधों, जीव-जन्तुओं विशेषकर मानव के ऊपर प्राणघातक कुप्रभाव पड़ने लगे।
परिभाषाएँ
1. “पर्यावरण में उन तत्वों या ऊर्जा की उपस्थिति को प्रदूषण कहते हैं जो मनुष्य द्वारा अनचाहे उत्पादित किये गये हों जिनके उत्पादन का उद्देश्य अब समाप्त हो गया हो जो अचानक बच निकले हो या जिनका मानव के स्वास्थ्य पर अकथनीय हानिकारक प्रभाव पड़ता हो ।” -लार्ड केनेट
2. “मनुष्य के क्रिया-कलापों से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादों के रूप में पदार्थों एवं ऊर्जा के विमोचन से प्राकृतिक पर्यावरण में होने वाले हानिकारक परिवर्तनों को प्रदूषण कहते हैं। “ -National Environmental Research Council
3. “पर्यावरण के किसी भी तत्व के भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक विशेषताओं में कोई ऐसा परिवर्तन जो मानव या अन्य प्राणियों के लिये हानिकारक हो, पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है।” -प्रो. (डॉ. ) जगदीश सिंह
4. “पर्यावरण प्रदूषण उसे कहते हैं जो मनुष्य के इच्छित या अनिच्छित कार्यों द्वारा प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में इतना अधिक परिवर्तन हो जाता है कि वह उसकी (पारिस्थितिकी तंत्र) सहनशक्ति से अधिक हो जाता है, परिणामस्वरूप पर्यावरण की गुणवत्ता में आवश्यकता से अधिक हास होने से मानव समाज पर दूरगामी हानिकारक प्रभाव पड़ने लगता है। “ -प्रो. (डॉ.) सबिन्द्र सिंह
5. “पर्यावरण प्रदूषण उस दशा को कहते हैं जब मानव द्वारा पर्यावरण में विभिन्न तत्वों एवं ऊर्जा का इतनी अधिक मात्रा में संग्रह हो जाता है कि वे पारिस्थितिक तंत्र द्वारा आत्मसात् करने की क्षमता से अधिक हो जाते हैं।” – आर. आई. दासमैन
प्रदूषक व उनके प्रकार
पारिस्थितिक तंत्र के किसी एक या कई संघटकों की संतुलित दशा में परिवर्तन, असन्तुलन, अवनयन या प्रदूषण उत्पन्न करने वाले पदार्थ अथवा ऊर्जा के किसी भी रूप को प्रदूषक कहते हैं। दृश्यता के आधार पर प्रदूषक निम्न दो प्रकार के होते हैं-
1. प्रत्यक्ष प्रदूषक – इसके अन्तर्गत चिमनियों से निकला धूम्र, परिवहन यानों से निकला, धूम्र, घरों व कारखानों से निकला वाहित मल, ग्रामों व नगरों के निकट एकत्रित कूड़ा-करकट, खाद, मानव व पशुओं के मल-मूत्र, औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ इत्यादि आते हैं।
2. अप्रत्यक्ष प्रदूषक – इसके अन्तर्गत सभी प्रकार के कीटनाशक व शाकनाशी दवायें, रेडियोधर्मी पदार्थ, विविध बैक्टीरिया इत्यादि आते हैं। अपराध, भ्रष्टाचार इत्यादि जैसे सामाजिक अपराध इसी के अन्तर्गत आते हैं।
प्रदूषकों की प्रकृति के आधार पर प्रदूषक निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-
1. तरल प्रदूषक – इसके अन्तर्गत तेल, खनिज तेल, ग्रीस, जल में घुला ठोस पदार्थ, जल में घुला अमोनिया, कारबोनेट्स, यूरिया, नाइट्रेट, क्लोराइड, फ्लोराइड, कीटनाशक इत्यादि आते, हैं।
2. ठोस कण प्रदूषक – इसके अन्तर्गत शीशा, पारा, एसबेसटस, एयरोसाल इत्यादि आते हैं।
3. गैसीय प्रदूषक – इसके अन्तर्गत क्लोरोफ्लूरो कार्बन, हेलेन, कार्बन डाई ऑक्साइड इत्यादि आते हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका के मसेचुसेट्स इन्स्टीटयूट आफ टेकनोलॉजी ने कई प्रकार के प्रदूषकों को बताया है जिनमें से कुछ प्रमुख प्रदूषण अग्रलिखित हैं—
प्रदूषक-
- कार्बन डाई ऑक्साइड
- कणिकीय पदार्थ
- सल्फर डाई ऑक्साइड
- नाइट्रोजन के ऑक्साइड
- सीसा, पारा, आरसेनिक, निकेल, मैगनीज इत्यादि जहरीली भारी वस्तुयें।
- तेल
- क्लोरीनेटेड हाइड्रोकार्बन यथा डी.डी.टी.
- अन्य हाइड्रोकार्बन
- रेडियो न्यूक्लाइड्स
- ऊष्मा
- पोषक तत्व |
प्रदूषकों के स्त्रोत
पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले प्रदूषक निम्नलिखित स्रोतों से प्राप्त होते हैं-
1. प्राकृतिक स्रोत – ज्वालामुखी धूल, राख, बाढ़, जल, अवसाद इत्यादि प्रदूषक प्राकृतिक स्रोतों से उत्पन्न होते हैं।
2. कृषि स्रोत- रासायनिक उवर्रक, कीटनाशक, शाकनाशक रसायन इत्यादि कृषि स्रोतों से प्राप्त होते हैं।
3. औद्योगिक स्त्रोत- कार्बन-डाई-ऑक्साइड, सल्फर डाई-ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, जहरीली गैसें, अपशिष्ट पदार्थ इत्यादि औद्योगिक स्रोत से पैदा होते हैं।
4. नगरीय स्त्रोत- मल जल, ठोस अपशिष्ट पदार्थ, कूड़ा-करकट इत्यादि प्रदूषकों के स्त्रोत नगर हैं।
5. जनसंख्या स्त्रोत- निर्धनता, बेरोजगारी, व्यभिचार, दंगा, अपराध इत्यादि प्रदूषक जनसंख्या अतिरेक से उत्पन्न होते हैं।
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