क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की समस्याएँ- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की समस्याएँ निम्नलिखित है-
1. अव्यवस्थित शाखा विस्तार- द्रुतगति से बैंक की शाखाओं का विशाल जाल बिछाया गया है, परन्तु इन बैंकों के कारोबार में पर्याप्त वृद्धि नहीं हुई है। इसके परिणामस्वरूप बैंकों के लाभ में वृद्धि हुए बिना उपरि लागतों में बढ़ोत्तरी हुई है।
इसके अलावा क्षेत्रीय प्रामीण बैंकों द्वारा जिलों/शाखाओं के कवरेज में राज्यों में बहुत विभिन्नता है। कुछ राज्यों में पिछड़े इलाकों में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अभी भी नहीं हैं। कुछ जिलों में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की तालुक/ब्लॉक मुख्यालय में ऐसी सम्पर्क शाखाएँ नहीं हैं, जहाँ अपनी नकदी आवश्यकताएँ पूरी कर सकें और अन्य परिचालनात्मक समस्याओं पर नियन्त्रण पा सकें ।
2. दोषपूर्ण भर्ती नीति- ग्रामोन्मुख होने के कारण क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को स्थानीय स्तर पर भर्ती करनी होती है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में होने वाली भर्ती बैंकिंग सेवा भर्ती बोर्ड के सुपुर्द किये जाने से क्षेत्रीय प्रामीण बैंकों के परिचालन के क्षेत्र से बाहर के उम्मीदवार भी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में भर्ती के लिए पात्र हैं। यह बात क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की उस धारणा के विरुद्ध है जिसमें क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की सफल कार्यशीलता के लिए स्टाफ में ‘स्थानीय स्पर्श और घनिष्ठता की आवश्यकता होती है।
3. कठोर मानक- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में लाभार्थियों के चयन लिए निर्धारित मानक कठोर हैं और अखिल भारतीय आय-स्तर पर निर्धारित हैं। हरियाणा में निर्धारित गरीबी की रेखा आन्ध्र प्रदेश की निर्धारित गरीबी की रेखा से भिन्न है। आन्ध्र प्रदेश का गाँव, इसके लोग, उनका व्यवसाय और आर्थिक स्थिति अखिल भारत के औसत से व्यापक रूप में भिन्न है। परन्तु सभी राज्यों पर एक समान मानदण्ड लागू करने से अनेक जरूरतमन्द लोग क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों से ऋण सुविधा प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं।
4. कमजोर पूँजी आधार- हर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक का पूँजी आधार कमजोर है। इसकी निर्गमित पूँजी 1 करोड़ रु. निर्धारित की गई है, परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी विशाल ऋण अनिवार्यताओं को दृष्टिगोचर रखते हुए, यह सीमा अपेक्षाकृत कम है। अनेक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की कार्यप्रणाली से पता चलता है कि निरन्तर हानि होने के कारण उनके पूँजी आधार में कमी हुई है।
5. जमा जुटाने में बाधाएँ- चूँकि क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ग्रामीण जनता के कमजोर वर्गों को ऋण उपलब्ध कराते हैं, इसलिए वे पर्याप्त जमा राशि जुटाने में असमर्थ रहे हैं। ग्रामीण बैंकों से प्राप्त ऋण के लाभार्थी कमजोर वर्ग के तथा गरीब हैं और वे इतना अधिक धन नही बचा पाते जिसे क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में जमा कराया जा सके। मध्यम वर्ग और ग्रामीण विशिष्ट वर्ग, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में अपनी बचत जमा करने के इच्छुक नहीं होते हैं। वे अपनी बचत वाणिज्यिक बैंक में जमा करते हैं जिनसे वे ऋण सुविधाएँ प्राप्त करते हैं ।
6. लाभप्रदत्ता में ह्रास- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक व्यवहार्यता आधार पर कार्य करने में समर्थ नहीं हुए हैं। उनकी लाभप्रदत्ता का ह्रास करने में मुख्य कारण है : क्षेत्रीय बैंकों ग्रामीण द्वारा केवल कमजोर वर्गों को ऋण देना, कम ब्याज अर्जन और छोटे ऋणों के रख-रखाव पर होने वाली उच्च परिचालन लागत। वर्ष 1997-98 के दौरान 172RRBs घाटे में चल रहे थे।
7. कम वसूली- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के देय ऋणों की वसूली बहुत कम हुई है। जून 1997 तक RRBs की वसूली, माँग का सिर्फ 50% थी। इसके प्रमुख कारण हैं, जानबूझकर चूक, ऋणों का दुरुपयोग, अनुवर्ती कार्रवाई की कमी, ऋणकर्त्ताओं की गलत पहचान, बेनामी ऋणों का विस्तार, स्टाफ सम्बन्धी आन्दोलन आदि ।
8. दोषपूर्ण ऋण प्रयोग- अनेक जिलों में ऋण का प्रयोग सही नहीं है। ऋण सम्बन्धी गतिविधियाँ मुख्यत फसल ऋण और राज्य सरकारों द्वारा प्रायोजित योजनाओं तक सीमित हैं। अनेक मामलों में ऋण प्रदान करने में योजनाबद्ध दृष्टिकोण का अभाव है। कृषि, कुटीर और ग्रामीण उद्योगों, ग्रामीण हस्तकार/शिल्पकार और अन्य स्वयं-नियोजित कार्यक्रमों से सम्बद्ध क्रियाकलापों को क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की ऋण सम्बन्धी गतिविधियों में समुचित महत्त्व नहीं दिया गया है।
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