बेरोजगारी क्या है?
बेरोजगारी क्या है?– बेरोजगारी एक ऐसी स्थिति है जहाँ श्रम-शक्ति (श्रम की पूँजी ) के अवसरों (श्रम की माँग) में अन्तर होता है। बेरोजगारी श्रमिकों की माँग की अपेक्षा उनकी पूर्ति के अधिक होने का परिणाम है। बेरोजगारी से आशय एक ऐसी स्थिति से है जिसमें व्यक्ति वर्तमान मजदूरी की दर पर काम करने को तैयार होता है परन्तु उसे काम नही मिलता। किसी देश में बेरोजगारी की अवस्था वह अवस्था है जिसमें देश में बहुत से काम करने योग्य व्यक्ति हैं परन्तु उन्हें विभिन्न कारणों से काम नहीं मिल रहा है। अतएव बेरोजगीर का अनुमान लगाते समय केवल उन्हीं व्यक्तियों की गणना की जाती है जो (अ) काम करने के योग्य हैं; (ब) काम करने के इच्छुक हैं तथा (स) वर्तमान मजदूरी पर काम करने के लिए तैयार हैं। उन व्यक्तियों को जो काम करने के योग्य नहीं हैं; जैसे-बीमारे, बूढ़े, बच्चे, विद्यार्थी आदि को बेरोजगारी में सम्मिलित नहीं किया जाता। इसी प्रकार जो लोग काम करना ही पसन्द नहीं करते, उनकी गणना भी बेरोजगारों में नहीं की जाती है। प्रो. पीगू के अनुसार, “एक व्यक्ति को उस समय ही बेरोजगार कहा जायेगा जब उसके पास रोजगार का कोई साधन नहीं हैं परन्तु वह रोजगार प्राप्त करना चाहता है।
इसे भी पढ़े…
बेरोजगारी की सीमा
बेरोजगारी की सीमा से आशय एक ऐसी स्थिति से है जिसमें व्यक्ति वर्तमान मजदूरी की दर पर काम करने को तैयार होता है परन्तु उसे काम नहीं मिलता। किसी देश में बेरोजगारी की सीमा वह अवस्था है जिसमें देश में बहुत से काम करने योग्य व्यक्ति परन्तु उन्हें विभिन्न कारणों से काम नहीं मिल रहा है। अतएव बेरोजगारी की सीमा का अनुमान लगाते समय केवल उन्हीं व्यक्तियों की गणना की जाती है जो (अ) काम करने के योग्य हैं, (ब) काम करने के इच्छुक हैं तथा, (स) वर्तमान मजदूरी पर काम करने के लिए तैयार हैं।
भारत में बेरोजगारी के कारण (Cause of Unemployment in India)
(1) जनसंख्या में वृद्धि
भारत में बेरोजगारी का प्रमुख कारण जनसंख्या का तीव्र गति से बढ़ना हैं। यहाँ 2.5 प्रतिशत वार्षिक की दर से जनसंख्या बढ़ रही हैं परन्तु रोजगार की सुविधाएँ इस दर से नहीं बढ़ रही है। सन् 1951 में कृषि श्रमिकों की संख्या 2.8 करोड़ थी, जो सन् 1961 में 3.15 करोड़, सन् 1971 में 4.75 करोड़ तथा 2011 में 5.15 करोड़ हो गयी।
इसे भी पढ़े…
(2) सीमित भूमि
भारत में 14.3 करोड़ हेक्टेअर भूमि में कृषि की जाती है। भूमि की सीमा में तो बहुत कम वृद्धि हुई परन्तु जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही हैं जिस कारण भूमि पर जनसंख्या का भार बढ़ता जा रहा है और प्रति व्यक्ति भूमि घटती जा रही है। इसमें व्यक्तियों की उपयोगिता घट गयी हैं, क्योंकि जिस कार्य को एक व्यक्ति कर सकता हैं, उसमें दो व्यक्ति लगे हैं।
(3) कृषि की मौसमी प्रकृति
भारतीय कृषि एक मौसमी व्यवसाय है जिस कारण श्रमिकों को कृषि कार्य में वर्ष पर्यन्त रोजगार प्राप्त नहीं होता। उत्तर प्रदेश सरकार के सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष में 258 से 280 दिन तक उन क्षेत्रों में कार्य मिलता हैं, जहाँ नहरें हैं तथा पूर्वी क्षेत्र में एक वर्ष में केवल तीन या चार माह ही काम मिलता है। आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, “दक्षिण भारत के किसान वर्ष में केवल 5 महीने ही व्यस्त रहता है। खाली मौसम में उसके पास एक या दो घण्टे तक ही काम रहता हैं। “
(4) अव्यवस्थित तथा अवैज्ञानिक कृषि
भारतीय कृषि उचित रूप से संगठित नहीं है तथा कृषि करने का ढंग अवैज्ञानिक है। उत्तम बीज, खाद, उर्वरक तथा सुधरे हुए यन्त्रों के अभाव के कारण प्रति हेक्टेयर उत्पादकता अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। अतः इस व्यवसाय की आय कम रही है, जिस कारण यह अधिक लोगों को रोजगार नहीं दे पाती।
इसे भी पढ़े…
(5) खेतों का छोटा और छिटके होना
भारत में खेत छोटे-छोटे और बिखरे हुए हैं। वे अनार्थिक जोत के है तथा उन पर उत्पादन कम होता है। खेती छोटे पैमाने पर की जाने के कारण बेरोजगारी में वृद्धि होती है।
(6) कुटीर उद्योग
धन्धों का अभाव ब्रिटिश सरकार का दोषपूर्ण व स्वार्थपूर्ण नीति एवं मशीन निर्मित माल की प्रतियोगिता से कुटीर व लघु उद्योगों का पतन हो गया तथा उनमें लगे लोग बेरोजगार हो गये। दूसरे, ग्रामों में सहायक उद्योगों का अभाव होने के कारण कृषि श्रमिक अपने खाली समय का सदुपयोग नहीं कर पाता और वह बेकार रहता है।
(7) कृषि का यन्त्रीकरण
देश में उद्योग व कृषि दोनों क्षेत्रों में यन्त्रीकरण की प्रक्रिया बढ़ती जा रही है, जिसका स्वाभाविक परिणाम अल्पकाल में बेरोजगारी का बढ़ना है।
(8) त्रुटिपूर्ण आर्थिक नियोजन
भारत में आर्थिक नियोजन 1951 ई० से प्रारम्भ हुआ, परन्तु त्रुटिपूर्ण आर्थिक योजना के कारण इन योजनाओं में रोजगार बढ़ाने के कार्यक्रमों को रखे जाने के बावजूद प्रत्येक योजना के अन्त में बेरोजगारी की संख्या बढ़ती जाती है। (9) पूँजी निर्माण की धीमी गति-भारत में पूँजी निर्माण धीमी गति से हो रहा है। पूँजी निर्माण की तुलना में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है। अतः बेरोजगारी को बढ़ावा मिलता हैं।
बेरोजगारी दूर करने के उपाय (Measures to reduce Employment)
1. सहायक और अनुपूरक उद्योगों का विकास
कृषि अर्थव्यवस्था में आंशिक बेरोजगारी दूर करने के लिए लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास अपेक्षित है। लघु एवं कुटीर उद्योग श्रम गहन होते हैं और वे बड़ी मात्रा में बेकार एवं अर्द्धबेकार श्रमिकों को रोजगार प्रदान कर सकते है। अत: ग्रामीण जनता को सुखी और समृद्धिशाली बनाने के लिए आवश्यक है कि भारत में लघु एवं कुटीर उद्योगों का पर्याप्त विकास हो ।
2. जनसंख्या की वृद्धि पर नियन्त्रण
नियोजन आयोग के अनुसार, अधिकतम आय के स्तर पर अधिकतम रोजगार की स्थिति तक पहुँचने के लिए जनसंख्या की वृद्धि पर नियन्त्रण लगाना आवश्यक हैं। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए परिवार नियोजन कार्यक्रम का प्रसार अधिक तीव्र गति से करना चाहिए।
इसे भी पढ़े…
3. सामाजिक सेवाओं का विस्तार
भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, चिकित्सा तथा अन्य सामाजिक सेवाओं का विस्तार विद्यमान बेकारी की समस्या की गहनता को कम करने में सहायक होगा।
4. राष्ट्र निर्माण के क्षेत्र में विविध कार्य
सड़क और पुलों का निर्माण, भू-संरक्षण, वृक्षारोपण, भवन, भूमि का पुनरूद्धार, नालियों का निर्माण आदि राष्ट्र निर्माण के विविध कार्यों के प्रसार से यह समस्या कुछ कम हो जायेगी।
5. कृषि भूमि के क्षेत्र का विस्तार
भारत में कुल भूमि क्षेत्रफल का 1.54 करोड़ हेक्टेअर भूमि कृषि योग्य बंजर भूमि हैं। इस कृषि योग्य बंजर भूमि को जोतकर तथा साफ कराकर इसे खेती योग्य बनाया जाय ताकि ग्रामीण बेरोजगारों को रोजगार दिलाया जा सके।
6. शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन
भारत में वर्तमान शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन किया जाना चाहिए। जिसके लिए व्यावसायिक शिक्षा का प्रसार किया जाना चाहिए। शिक्षा को बिना व्यावसायिक एवं रोजगार उन्मुख बनाये देश में शिक्षित बेरोजगारी में कमी करना सम्भव नहीं है।
7. कृषि सहायक उद्योग
धन्धों का विकास ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी को दूर करने के लिए कृषि के सहायक उद्योग-धन्धों, जैसे- मुर्गीपालन, पशुपालन, मत्स्यपालन, दुग्ध व्यवसायी, बागवानी आदि का अधिक विकास किया जाना चाहिए।
8. प्राकृतिक साधनों का समुचित विदोहन
देश में अभी तक प्राकृतिक स का समुचित विदोहन नहीं हो पाया है, जिसके कारण औद्योगिक विकास की गति धीमी रही है। अत: अधिक रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए प्राकृतिक साधनों के सर्वेक्षण तथा उचित विदोहन की योजना बनायी जानी चाहिए।
9. पूँजी के विनियोग को प्रोत्साहन
देश में रोजगार में वृद्धि करने हेतु अधिक मात्रा में पूँजी के विनियोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सार्वजनिक क्षेत्रों के साथ-साथ निजी क्षेत्रों में भी कारखानों तथा उत्पादन इकाइयों का और अधिक विस्तार किया जाना चाहिए।
10. स्वयं रोजगार योजना का विस्तार
भारत में बेरोजगार नौजवानों को सुस्पष्टतया शिक्षित बेरोजगारों को प्रोत्साहित किया जाये कि वे स्वयं अपने रोजगार आरम्भ करें, नौकरी के पीछे न भागें। इस प्रकार रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी।
11. जनशक्ति नियोजन
भारत में जनशक्ति नियोजन किया जाना चाहिए। जनशक्ति नियोजन से आशय यह है कि विभिन्न उत्पादन क्षेत्रों में श्रम की माँग एवं पूर्ति के बीच समायोजन किया जाना चाहिए तथा उसी के अनुसार प्रशिक्षण आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए ।
12. अन्य उपाय
देश में बेरोजगारी की समस्या के समाधान हेतु सामाजिक सुधारों का विस्तार, प्रशिक्षण तथा मार्गदर्शक योजनाएँ, कृषि सेवा केन्द्र की स्थापना, बड़े पैमाने पर सड़क का निर्माण कार्य, ग्रामीण क्षेत्रों में बिजलीघरों की स्थापना, कृषि के सहायक यंत्रों तथा सड़कों में रोजगार उन्मुख नियोजन आदि उपायों पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए।
इसे भी पढ़े…
- Rajasthan Sarkari Yojana
- भुगतान सन्तुलन | व्यापार सन्तुलन और भुगतान सन्तुलन में अन्तर | Balance of Payment in Hindi
- सार्वजनिक क्षेत्र या सार्वजनिक उपक्रम अर्थ, विशेषताएँ, उद्देश्य, महत्त्व
- सार्वजनिक क्षेत्र (Public Sector) के उद्योगों से आशय | क्या सार्वजनिक क्षेत्रों का निजीकरण कर दिया जाना चाहिए?
- उद्योग का अर्थ | पूँजी बाजार के प्रमुख उद्योग | Meaning of Industry in Hindi
- भारत की राष्ट्रीय आय के कम होने के कारण | भारत में राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के सुझाव
Important Links
- बचत के स्रोत | घरेलू बचतों के स्रोत का विश्लेषण | पूँजी निर्माण के मुख्य स्रोत
- आर्थिक विकास का अर्थ | आर्थिक विकास की परिभाषा | आर्थिक विकास की विशेषताएँ
- आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास में अन्तर | Economic Growth and Economic Development in Hindi
- विकास के प्रमुख सिद्धांत-Principles of Development in Hindi
- वृद्धि तथा विकास के नियमों का शिक्षा में महत्त्व
- अभिवृद्धि और विकास का अर्थ
- वृद्धि का अर्थ एवं प्रकृति
- बाल विकास के अध्ययन का महत्त्व
- श्रवण बाधित बालक का अर्थ तथा परिभाषा
- श्रवण बाधित बालकों की विशेषताएँ Characteristics at Hearing Impairment Children in Hindi
- श्रवण बाधित बच्चों की पहचान, समस्या, लक्षण तथा दूर करने के उपाय
- दृष्टि बाधित बच्चों की पहचान कैसे होती है। उनकी समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
- दृष्टि बाधित बालक किसे कहते हैं? परिभाषा Visually Impaired Children in Hindi
- दृष्टि बाधितों की विशेषताएँ (Characteristics of Visually Handicap Children)
- विकलांग बालक किसे कहते हैं? विकलांगता के प्रकार, विशेषताएँ एवं कारण बताइए।
- समस्यात्मक बालक का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, कारण एवं शिक्षा व्यवस्था
- विशिष्ट बालक किसे कहते हैं? यह कितने प्रकार के होते हैं?
- प्रतिभाशाली बालकों का अर्थ व परिभाषा, विशेषताएँ, शारीरिक विशेषता
- मानसिक रूप से मन्द बालक का अर्थ एवं परिभाषा
- अधिगम असमर्थ बच्चों की पहचान
- बाल-अपराध का अर्थ, परिभाषा और समाधान
- वंचित बालकों की विशेषताएँ एवं प्रकार
- अपवंचित बालक का अर्थ एवं परिभाषा
- समावेशी शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ और महत्व
- एकीकृत व समावेशी शिक्षा में अन्तर
- ओशों के शिक्षा सम्बन्धी विचार | Educational Views of Osho in Hindi
- जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचार | Educational Thoughts of J. Krishnamurti
- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर | Difference between Pragmatism and Idealism
- प्रयोजनवाद का अर्थ, परिभाषा, रूप, सिद्धान्त, उद्देश्य, शिक्षण विधि एंव पाठ्यक्रम
- प्रकृतिवादी और आदर्शवादी शिक्षा व्यवस्था में क्या अन्तर है?
- प्रकृतिवाद का अर्थ एंव परिभाषा | प्रकृतिवाद के रूप | प्रकृतिवाद के मूल सिद्धान्त
बेरोजारी के बारे में आप ने बहुत ही प्रशंसनीय और महत्वपूर्ण जानकारी लिखी है। दिल से धन्यवाद !