भारत में विदेशी व्यापर की विशेषताएँ
(1) निर्यात में वृद्धि
योजनाकाल में देश के निर्यातों में निरन्तर वृद्धि की प्रवृत्ति हो रही हैं। 1950-51 में हमारा निर्यात 608 करोड़ रूपये था जो बढ़कर 1970-71 में 1535 करोड़ रूपये 1997-98 में 126286 करोड़ और 2000-2001 में 203571 करोड़ रूपये हो गया।
(2) निर्यात के नये बाजार
पिछड़े वर्षों में भारत ने अपने निर्यातों में वृद्धि करने के उद्देश्य से नये-नये बाजारों की तलाश की है। परम्परागत रूप में भारत के निर्यात मुख्य रूप से ब्रिटेन, अमेरिका तथा रूस को होते रहे है परन्तु अब इन राष्ट्रों के साथ-साथ भारत के निर्यात जापान, जर्मनी, हांगकांग तथा एशिया के विकासशील राष्ट्रों ने निरन्तर बढ़ते जा रहे है।
(3) रूपये की परिवर्तनशीलता के कारण निर्यात में वृद्धि
वर्तमान में रूपये को चालू खाते में पूर्ण परिवर्तनीय बना दिया गया है इससे देश के निर्यातों में काफी वृद्धि हुई है।
(4) निर्यात में विविधता
भारत के निर्यात व्यापार में विविधता की प्रवृत्ति भी निरन्तर बढ़ती जा रही है। पहले जहाँ हम चाय, जूट, चमड़ा निर्यात करते थे वहाँ अब इन परम्परागत वस्तुओं के साथ-साथ इंजीनियरिंग वस्तुएं, रेडीमेड सूती कपड़े, आभूषण, समुद्री उत्पाद आदि का भी निर्यात करने लगे हैं।
(5) आयातों में वृद्धि
पिछले वर्षों में यद्यपि भारत के निर्यात में वृद्धि हुई परन्तु इसकी तुलना में आयातों में और अधिक वृद्धि हुईं 1050-51 में हमारा आयात 608 करोड़ रूपये था जो बढ़कर 1970-71 में 1634 करोड़ रूपये तथा 2000-2001 में 12,30,873 करोड़ रूपये हो गया।
(6) विश्व के आयातों तथा निर्यातों में भारत का अंश
1950 में भारत का विश्व में निर्यातों में अंश 1.85 प्रतिशत था जो घटकर 1995 में 0.6 प्रतिशत रह गया। इसी प्रकार 1050 में भारत का विश्व व्यापार में अंश 1.78 प्रतिशत था जो घटकर 1997-98 में मात्र 0.6 प्रतिशत रह गया।
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