भूमध्यसागरीय क्षेत्र का भौगोलिक अध्ययन | Geographical study of the Mediterranean region in Hindi
भूमध्य सागरीय क्षेत्र का एक भौगोलिक अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
यूरोप के जलवायु प्रदेश
यूरोप की जलवायु मुख्यतया सीता है किंतु इसके विभिन्न भागों की जलवायु में पर्याप्त अंतर मिलता है। जलवायु दशाओं के आधार पर यूरोप को निम्नलिखित जलवायु प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है।
(1) उत्तरी-पश्चिमी यूरोप का सागरीय जलवायु प्रदेश- इस जलवायु प्रदेश का विस्तार यूरोप के उत्तरी-पश्चिमी भाग में पिरेनीज श्रेणी से लेकर स्कैण्डनेविया (नावें) तक है। इसके अंतर्गत पश्चिमी फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, डेनमार्क, बेज्लियम, ब्रिटिश द्वीप समूह, नार्वे, स्वीडेन देश सम्मिलित हैं। महासागरीय प्रभाव से जलवायु अपेक्षाकृत सम रहती है और दैनिक तथा वार्षिक तापांतर कम पाया जाता है। शीतकालीन औसत तापमान 0° सेल्सियस से अधिक और ग्रीष्मकालीन तापमान 25° सेल्सियस से नीचे रहता है। यहाँ पश्चिमी आर्द्र हवाओं से वर्षा प्रायः वर्ष भर होती है किंतु शीत ऋतु में वर्षा अपेक्षाकृत अधिक होती है। औसत वार्षिक वर्षा .75 से 150 सेमी है। अधिकांशतः आकाश मेघाच्छादित रहता हे और बँदा-बाँदो होती रहती है। गर्म समुद्री धारा के प्रभाव से समुद्रतट जाड़े में भी जमने नहीं पाते हैं और बंदरगाह खुले रहते हैं।
(2) आंतरिक महाद्वीपयी जलवायु प्रदेश – इसके अंतर्गत पूर्वी यूरोप का भूभाग सम्मिलित है जिसमें यूरोपीय रूस का अधिकांश भाग समाहित है। सागर से दूर स्थित होने के कारण इन पर समकारी महासागरीय प्रभाव नहीं पाया जाता है और महाद्वीपीय वायुराशियों का वर्चस्व पाया जाता है। इस भाग में शीतकालीन तापमान शून्य अंश सेल्सियस से नीचे रहता है। तथा 20° सेल्सियस तक पहुँच जाता है और कठोर सर्दी पड़ती है। ग्रीष्मकालीन तापमान 30 सेल्सियस से ऊपर पहुँच जाता है और भीषण गर्मी पड़ती है। ग्रीष्मऋतु में थोड़ी मात्रा में वर्षा होती है और शीतऋतु में हिमपात होता है। ग्रीष्मऋतु छोटी (तीन-चार माह) और शीतऋतु लंबी (8 9 माह) होती है। औसत वार्षिक वर्षा 25 से 75 सेमी पायी जाती है।
(3) उपधुवीय एवं टुण्डा जलवायु प्रदेश- इस प्रकार की जलवायु नार्वे, स्वीडेन, फिनलैंड तथा उत्तरी रूस में पायी जाती है। यहाँ की जलवायु शीत प्रधान है। इस भाग में शीतऋतु अधिक लंबी और अतिशीतल होती है और ग्रीष्मऋतु बहुत छोटी और साधारण ठंडी होती है। शीतऋतु में तापमान प्रायः 0° सेल्सियस से नीचे रहता है और हिमपात होता रहता है। ग्रीष्मकालीन अधिकतम तापमान भी सामान्यतः 10 सेल्सियस से नीचे ही रहता है। इस प्रदेश की औसत वार्षिक वर्षा 50 सेमी से कम होती है। और मुख्यतः हिमपात के रूप में प्राप्त होती है। वर्षा के अधिकांश समयों में धुंध और कोहरा छाया रहता है। इसके दक्षिणी भाग में कोणधारी वृक्ष उगते हैं किंतु उत्तरी भाग में वनस्पति के रूप में काई, लाइकेन तथा अल्पकालीन रंगविरंगे फूलों वाले छोटे-छोटे पौधे मिलते हैं।
प्राकृतिक वनस्पति
प्राकृतिक वनस्पति के अंतर्गत किसी भू भाग में स्वतः उगने-बढ़ने वाली घासों, झाड़ियों तथा वृक्षों को सम्मिलित किया जाता है। प्राकृतिक वनस्पति का विकास मुख्यतः धरातलीय स्वरूप, जलवायु तथा मिट्टी की प्रकृति पर निर्भर करता है। यूरोप महाद्वीप के विभिन्न भागों में पायी जाने वाली प्राकृतिक वनस्पतियों में पर्याप्त अंतर है। यूरोप के प्रमुख वनस्पति प्रदेश निम्नलिखित हैं।
(1) टुण्ड्रा वनस्पति प्रदेश- बर्फीले आर्कटिक प्रदेश को टुण्ड्रा (Tundra) कहते हैं। टुण्ड्रा प्रदेश के अंतर्गत नार्वे, स्वीडेन, फिनलैंड तथा उत्तरी रूस के ध्रुवीय भाग सम्मिलित हैं। यह प्रदेश वर्ष के अधिकांश महीनों में बर्फ से ढका रहता है और केवल ग्रीष्मऋतु में जब बर्फ पिघल जाती है धरातल पर काई (Moss), लाइकेन (Lichen) आदि सूक्ष्म वनस्पतियां उगती हैं। वनस्पति विहीन होने के कारण ठंडे टुण्ड्रा प्रदेश को शीत मरूस्थल (Cold desert) के नाम से भी जाना जाता है।
(2) कोणधारी टैगा वन प्रदेश- टुण्ड्रा प्रदेश के दक्षिण में 60° उत्तरी अक्षांश तक एक पट्टी के रूप में कोणधारी वन प्रदेश पाया जाता है जिसका विस्तार नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड तथा उत्तरी रूस के दक्षिणी भागों पर है। इन वनों में पाइन, स्क्रूस, लार्च, वर्च, सिलवर फर आदि प्रजातियों वृक्ष उगते हैं जिनकी पत्तियां नुकीली और नीचे की ओर झुकी होती हैं। ये वृक्ष के अपनी इस संरचना के कारण अधिक शीत को सहन कर लेते हैं और हिमपात होने पर हिम फिसलकर नीचे गिर जाती है टैगा नामक इन वनों की लकड़ियां कोमल होती हैं जिनका आर्थिक महत्व अधिक है। इनके वृक्षों की कोमल लकड़ी का उपयोग लुग्दी, कागज, माचिस, रेयान, फर्नीचर, पैकिंग सामग्री आदि बनाने में बहुतायत से किया जाता है। यही कारण है कि नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड और रूस के टैगा वन प्रदेशों में काष्ठ उद्योग तथा कागज एवं लुग्दी उद्योग का विकास हुआ है।
(3) मिश्रित वन प्रदेश : सामान्यतः 60° उत्तरी अक्षांश के दक्षिण में कोणधारी तथा चौड़ी पत्ती वाले मिश्रित वन पाये जाते हैं। इस वन प्रदेश का विस्तार फ्रांस से लेकर पूर्व में यूराल पर्वत तक है। अधिक आर्द्र तथा कम शीतल पश्चिमी भाग में चौड़ी पत्तीवाले वृक्षों की और पूर्वी भाग में कोणधारी वनों की प्रमुखता पायी जाती है। इन वनों में सिलवर फर, वर्च, लार्च, स्थूस और पाइन जैसे कोणधारी वृक्षों के साथ ही एल्म, ओक, पोल्डर, ऐश आदि चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष भी मिलते हैं। इन प्रदेशों में गहरे रंग की उपजाऊ धूसर-भूरी पाडजालिक मिट्टी मिलती है। अतः इन वनों को साफ करके कृषि की जाने लगी है।
कृषि संसाधन
इंग्लैंड सहित सभी यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक मूलतः कृषि पर आधारित थी किंतु औद्योगिक क्रांति के पश्चात् औद्योगीकरण तथा नगरों के विकास को अधिक प्रोत्साहन मिला और कृषि का महत्व क्रमशः घटता गया। यद्यपि पश्चिमी यूरोपीय, औद्योगिक देशों की अर्थव्यवस्था में कृषि का गौण स्थान है किंतु दक्षिणी यूरोप के अनेक देशों में अभी भी कृषि का महत्वपूर्ण स्थान है। यूरोप के अधिकतर देशों में 50 प्रतिशत से अधिक भूमि कृषि योग्य है किंतु विकसित उद्योग प्रधान देशों जैसे यूनाइटेड किंगडम, नीदरलैंड, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी आदि देशों की 10 प्रतिशत से कम श्रमशक्ति कृषि में लगी हुई है। कृषि में यंत्रीकरण के प्रचलन से श्रमशक्ति के प्रयोग में कमी हुई है यद्यपि आधुनिक तथा वैज्ञानिक ढंग से कृषि की जाने से प्रति हेक्टेयर उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
प्रमुख फसलें
शीतोष्ण जलवायु के कारण यूरोप में फसलों की विविधता कम पायी जाती हैं। यूरोप की कृषि उपजों में गेहूँ, मक्का, राई, जौ, चुकंदर, कपास तथा रसदार फल प्रमुख हैं।
(1) गेहूँ (Wheat)- गेहूँ शीतोष्ण कटिबंधीय फसल है जिसे यूरोप के प्रायः सभी देशों में उगाया जाता है। यह यूरोप का सर्वप्रमुख खाद्यान्न है। यूरोप में सर्वाधिक क्षेत्रफल पर गेहूँ बोया जाता है। गेहूँ के उत्पादन के लिए यूरोप की साधारण वर्षा वाली शीतोष्ण जलवायु आदर्श है। यूरोप में रूस, यूक्रेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूनाइटेड किंगडम आदि गेहूँ के प्रमुख उत्पादक देश हैं। गेहूँ के उत्पादन में रूस का यूरोप में प्रथम और फ्रांस का द्वितीय स्थान है। ये देश विश्व के क्रमशः 8 और 5.5 प्रतिशत गेहूँ का उत्पादन करते हैं। जर्मनी और यूक्रेन भी विश्व के उत्पादन का 4.4 प्रतिशत गेहूँ उत्पन्न कराते हैं।
(2) मक्का (Corn)- मक्का मूलतः उपोष्ण आर्द्र कटिबंध का पौधा है। मक्का मध्य अमेरिका का मूल पौधा है जिसे सर्वप्रथम कोलम्बस द्वारा पंद्रहवीं शताब्दी में यूरोप पहुँचाया गया था। इसका उपयोग शाद्यान्न तथा पशु आहार के रूप में किया जाता है। विश्व के कुल मक्का उत्पादन का लगभग 12 प्रतिशत यूरोपीय देशों से प्राप्त होता है। यूरोप में पुर्तगाल, स्पेन, फ्रांस, इटली, हंगरी, रोमानिया, यूनान आदि मक्का उत्पादक देश हैं।
(3) जौ (Barley)- जौ एक पौष्टिक खाद्यान है। इसका उपयोग विविध प्रकार से किया जाता है। इसका प्रमुख उपयोग पशु आहार के रूप में किया जाता है। इससे कई प्रकार के पौष्टिक खाद्य पदार्थ तथा वियर (शराब) भी बनायी जाती है। इसके उत्पादन के लिए उपोष्ण एवं शीतोष्ण तथा मध्यमक वर्षा (75 से 100 सेमी) वाली जलवायु उपयुक्त होती है। इसका उत्पादन मुख्यतः गेहूँ उत्पादक क्षेत्रों में ही होता है। विश्व का लगभग दो-तिहाई जौ का उत्पादन यूरोप में किया जाता है। यूरोप में रूस, फ्रांस, जर्मनी, यूक्रेन, स्पेन, यूनाइटेड किंगडम, डेनमार्क, पोलैण्ड, चेक गणराज्य, बेलारूस, स्वीडन आदि प्रमुख जौ उत्पादक देश हैं।
(4) चुकंदर (Sugar Beet)- चुकंदर मूलतः यूरोप की उपज है। इससे चीनी बनायी जाती है। विश्व के कुल चीनी उत्पादन का लगभग 30 प्रतिशत चुकंदर से प्राप्त होता है। इस की फसल के लिए शीतोष्ण तापमान और 75 से 100 सेमी वार्षिक वर्षा उपयुक्त होती है। विश्व का लगभग 80 प्रतिशत चुकंदर यूरोप में उत्पन्न होता है। यूरोप के अधिकांश देशों में चुकंदर का थोड़ा-बहुत उत्पादन किया जाता है। वर्तमान समय में फ्रांस, जर्मनी, यूक्रेन, रूस, पोलैंड, इटली, यूनाइटेड किंगडम, नीदरलैंड, स्पेन, बेल्जियम, डेनमार्क, हंगरी, स्वीडन आदि चुकंदर के महत्वपूर्ण उत्पादक हैं। फ्रांस यूरोप का बृहत्तम चुकंदर उत्पादक देश है जिसके पश्चात् जर्मनी, यूक्रेन, रूस और यूक्रेन का स्थान है।
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