बचत के प्रकार-Types of Saving in India
बचत के प्रकार (Types) – यह बचत तीन प्रकार की हो सकती है
(1) ऐच्छिक बचत
यह बचत जनता की इच्छा पर निर्भर करता है। वह चाहे तो बचत करे अथवा न करे। अतः बचतों को प्रोत्साहित करने के लिए ब्याज दर आकर्षक बनायी। जाती है। बचत करने में सुविधाएँ प्रदान की जाती है। बचत करने वालों को विभिन्न प्रकार इनामें दी जाती हैं।
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(2) अनिवार्य बचत
यह बचत कानून के दबाव में जनता द्वारा की जाती हैं। सरकार द्वारा इसके लिए अनिवार्य बीमा या भावष्य निधि जैसे कार्यक्रम लागू कर दिये जाते है। लाभांश वितरण पर प्रतिबन्ध लगा दिये जाते है। कम बचत करने या बचत न करने पर अतिरिक्त कर लगा दिये जाते हैं।
(3) बाह्य बचत
यह बचत अपने देश की न होकर विदेश की होती है। इसमें विदेशों से ऋण, तकनीकी ज्ञान, मशीनरी, पूँजीगत माल उधार लिया जाता है जिसका भुगतान निर्यात के रूप में होता है।
बचत के स्त्रोत (निर्धारक तत्त्व) (Sources)
बचत के मुख्यतः तीन स्रोत हैं- (1) घरेलू क्षेत्र – बैंक जमाएँ, फैक्टरी में निवेश तथा कृषि में निवेश आदि। (2) निगम क्षेत्र-निजी कम्पनियाँ, सरकारी कम्पनियाँ तथा सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियाँ (3) सरकारी क्षेत्र-रेलवे तथा पोस्टल एण्ड टेलीग्राफ डिपार्टमेन्ट की बचतें ।
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भारत में बचत की प्रवृत्ति (Trends of Saving in India)
भारत में पिछले चार दशकों में बचत की दर में काफी वृद्धि हुई है। हालांकि यह वृद्धि नियोजकों की आशाओं की तुलना में कम रही। सकल घरेलू बचत की दर 1950-51 ई० में 10.4 प्रतिशत थी। दूसरी योजना में बचत दर थोड़ी वृद्धि हुई और 1960-61 में 12.7 प्रतिशत हो गयी। परन्तु दूसरी योजना में औद्योगिकरण की एक व्यापक योजना थी इसलिए घरेलू बचत दर में यह मामूली वृद्धि निराशाजनक थी। तीसरी योजना में बचत दर लगभग 14 प्रतिशत थी परन्तु यह दर भी उस दर से कम थी जो डब्लू॰डब्लू० रोस्टोव ‘उत्कर्ष अवस्था’ प्राप्त करने के लिए आवश्यक मानते है। तीसरी योजना के बाद तीन वर्षों तक पंचवर्षीय योजना को स्थगित रखा गया । 1969-70 में चौथी योजना शुरू हुईं परन्तु इस वर्ष बचत दर 15.0 प्रतिशत थी जो योजना के अन्तिम वर्ष में बढ़कर 18.4 प्रतिशत हो गयी। यह लक्ष्य से कम थी। पाँचव योजना में घरेलू साधनों से ही अतिरिक्त बचत करने की चेष्टा की गयी। इन प्रयासों से कुछ आशाजनक लाभ हुए और बचत दर 1974-75 में 17.4 प्रतिशत से बढ़कर 1978-79 में 23.2 प्रतिशत तक पहुँच गयी । परन्तु 1979-80 का वर्ष कृषि के दृष्टिकोण से बहुत असन्तोषजनक था। इस वर्ष राष्ट्रीय आय में 60 प्रतिशत और प्रति व्यक्ति आय में 8.2 प्रतिशत की गिरावट आयी इसलिए बचत दर का गिरना भी स्वाभाविक था। परन्तु 1980 में भी बचत दर 21.2 प्रतिशत ही बनी रही। रिजर्व बैंक के अनुसार कीमतों में निरन्तर वृद्धि होने के कारण उपभोग व्यय बढ़ता गया जिससे बचत करने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इसके बाद 5 वर्षों तक बचत दर 19.8 प्रतिशत अथवा इससे भी कम रही। सातव योजना के तीसरे और चौथे वर्ष में भी बचत दर 20.9 प्रतिशत के ऊपर नहीं उठ सकी। इसका कारण शहरों में बढ़ता हुआ उपभोक्तावाद बताया जाता है। 1990-91 में आश्चर्यजनक ढंग से गृह क्षेत्र में बच का स्तर ऊँचा उठने से समग्र अर्थव्यवस्था की बचत दर 24.3 प्रतिशत हो गयी। लेकिन 1992-93 और 1993-94 के वर्षों में बचत दर फिर से नीचे आ गयी। ये भयानक मुद्रास्फीति के वर्ष थे। इसकी वजह से सकल घरेलू बचत दर में गिरावट आयी। 1994-95 में स्थिति पुनः संभली और बचत दर 25.0 प्रतिशत थी। 1995-96 में बचत दर 25.5 प्रतिशत के रेकार्ड स्तर पर पहुँच गयी लेकिन 1998-99 के वर्ष में बचत दर गिरकर 23.3 प्रतिशत हो गयी। वर्ष 2004-05 में बचत दर उच्चावचन के साथ 24.7 प्रतिशत हो गयी। बचत दर पुन: 2009-10 में बढ़कर 25 प्रतिशत हो गयी। बचत की प्रवृत्ति 2010-11 एवं 2011-12 तथा क्रमश: में ऋण ब्याज दर में वृद्धि के परिणामस्वरूप मिला है। बचत को प्रोत्साहन मिलेगा।
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