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फ्रेरे के पाठ्यक्रम सम्बन्धी विचार एंव शिक्षण विधि | Friere Curriculum Ideas and Teaching Method

फ्रेरे के पाठ्यक्रम सम्बन्धी विचार एंव शिक्षण विधि | Friere Curriculum Ideas and Teaching Method
फ्रेरे के पाठ्यक्रम सम्बन्धी विचार एंव शिक्षण विधि | Friere Curriculum Ideas and Teaching Method

फ्रेरे के पाठ्यक्रम सम्बन्धी विचार (Views of Friere on Syllabus)

1. सरल करके पढ़ाना- गणित, इतिहास, भूगोल में प्राय: बालक फेल हो जाते हैं। बालकों को इन विषयों को सरल करके पढ़ाना चाहिए।

2. पाठ्यक्रम का पुनर्गठन- फ्रेरे ने पाठ्यक्रम को पुनर्गठित करने की बात कही है। इसके लिए उन्होंने दार्शनिकों, कला शिक्षकों, भौतिक विज्ञानियों, समाजशास्त्रियों की सहायता की जरूरत पर बल दिया है। शिक्षा, कला, नीतिशास्त्र, मानव अधिकार, खेल, सामाजिक वर्ग, भाषा, दार्शनिक विचारधारा जैसी ज्ञान की शाखाओं पर चर्चा करने की बात कही ताकि पाठ्यक्रम की पुनर्रचना ठीक से हो सके। फ्रेरे के अनुसार पाठ्यक्रम में अल्पसंख्यकों के मूल्यों को भी शामिल किया जाये। सामान्य वर्ग के लिए जो पाठ्यक्रम आवश्यक होता है, सम्भव है प्रभुत्वसम्पन्न लोगों के लिए वह हितकारी न हो।

3. विभिन्न विद्वानों के विचारों को पाठ्यक्रम में शामिल करना- फ्रेरे ने सार्त्र, एरिक फ्रॉम, माओ, मार्टिन लूथर किंग के विचारों को पाठ्यक्रम में शामिल करने की बात कही।

4. समाजवाद, साम्यवाद तथा प्रजातन्त्र- फ्रेंरे पाठ्यक्रम में समाजवाद व साम्यवाद के विचारों को स्थान देना चाहते हैं। वे लोकतन्त्र के वास्तविक स्वरूप को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहते थे। इनके अनुसार पाठ्यक्रम को जड़, असंवेदनशील एवं अनुपयोगी नहीं होना चाहिए। पाठ्यक्रम को छात्रों के लाभ के लिए गठित किया जाये।

फ्रेरे के शिक्षण विधि सम्बन्धी विचार (Views of Friere on Method of Teaching)

वे बच्चों की जिज्ञासा को शान्त करते हुए मनोवैज्ञानिक तरीके से समझाते हैं। किसानों को शिक्षित करने की फ्रेरे की विधि को सारा संसार प्रशंसा की दृष्टि से देखता है। इनके अनुसार शिक्षण विधि ऐसी हो जिससे सीखने वाला अपनी जिंदगी के अनुभव से दूर न हो तथा उसे ऐसा न लगे कि उसकी भाषा, संस्कृति और परम्परा का शिक्षा द्वारा विरोध हो रहा है।

फ्रेरे के शब्दों में, ” साक्षरता का कोई अर्थ तभी है जब निरक्षर व्यक्ति दुनिया में अपनी स्थिति, अपने काम और इस दुनिया में बदलाव लाने की अपनी क्षमता को लेकर सोचने लगे। यही चेतना है। उन्हें पता चले कि दुनिया उनकी है, प्रभुत्वसम्पन्न वर्ग की नहीं।”

फ्रेरे की साक्षर करने की शिक्षण विधि आश्चर्यजनक है। उनके अनुसार कुछ शब्द प्रजनक या उत्पादक होते हैं। वर्षा, जमीन, झोपड़-पट्टी, साइकिल आदि ऐसे ही शब्द हैं। ये उत्पादक शब्द भाव तथा अर्थ से स्पन्दित होते हैं। ये शब्द सीखने वाले व्यक्तियों के समूह की इच्छा, चिन्ता, कुण्ठा को व्यक्त करते हैं। फ्रेरे के अनुसार, “काफी प्रतीत होते हैं। उदाहरण के लिए ईंट शब्द को लीजिए। ईंट के सभी पक्षों की चर्चा करने के बाद हम उनके सामने शब्द रखते हैं- तिजोको फिर इसे अक्षरों में बाँटते हैं- ति-जो-को इसके बाद हम स्वनिम-परिवार को लाते हैं त-ते-ति-तो-तू, ज-जे-जि-जो-जू, ल-ले-लि-लो-लू। उच्चारण ध्वनियों को समझते ही पूरा ग्रुप शब्द बनाने लगता है तातू, लूता (संघर्ष), लोजा (भण्डार), जैक्टो (जैट) इत्यादि। कुछ सहभागी किसी अक्षर से कोई स्वर ले लेते हैं, उसे किसी अन्य अक्षर के साथ लगाते हैं, फिर उसमें कोई तीसरा अक्षर जोड़कर शब्द-निर्माण करते हैं। एक निरक्षर ने ही रात कहा- तू जा ले (तुम पहले से ही पढ़ते हो)। एक संस्कृति-मण्डल में एक सहभागी ने पाँचवें दिन श्यामपट पर लिखा- ओ पावो रिजाल्वरोस प्रोब्लेम्स दो ब्राजील वोतांदो कंसीन्ते (जनता ब्राजील की समस्याओं को कुशल मतदान द्वारा हल कर लेगी।) आप इस तथ्य की व्याख्या कैसे करेंगे कि एक आदमी जो अभी कुछ ही दिन पहले निरक्षर था, इतने जटिल स्वनिमों वाले शब्द कैसे लिखने लगा ?

मैं आपको एक उदाहरण और दूँगा। मछुआरों के एक छोटे canसे समुदाय मान्ते माजों के सामने उत्पादक शब्द था- बोनितो (सुन्दर), जो एक मछली का नाम भी है। संकेत के तौर पर उन्होंने एक शहर का चित्र बनाया जिसमें मकान थे, मछली का शिकार करने की नावें थीं और एक आदमी एक बोनितो (मछली) पकड़े हुए था। अचानक उनमें से चार लोग उठे और धीरे-धीरे चलकर उस दीवार तक गये जहाँ वह तस्वीर टँगी हुई थी। वे उसे कुछ देर तक ध्यान से देखते रहे, फिर खिड़की के पास जाकर कहा – “यह मान्ते मानो है और हमें इसकी जानकारी नहीं थी। ” उस समय ऐसा लगा मानो वे इस दुनिया को पहली बार समझने के लिए अपनी दुनिया से उबर रहे हैं। छात्र जो ज्ञान प्राप्त करते हैं उससे वे शक्ति सम्पन्न बनते हैं। साक्षरता कौशल अर्जित करने वे शक्ति-सम्पन्न नहीं बनते। कुछ साक्षरता पाठों के बाद एक किसान उठकर बोला – “इसके पहले हमें पता नहीं था कि हम जानते थे। अब हमें पता है कि हम जानते हैं। चूँकि आज हमें पता है कि हम जानते थे, अतः हम और ज्यादा जान सकते हैं।”

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