समय के सम्प्रत्यय का निर्माण किस प्रकार किया जाता है ?
समय के सम्प्रत्यय का निर्माण एवं प्रत्यक्षण किसी भी व्यक्ति के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यदि कोई व्यक्ति समय का सही प्रत्यक्षण नहीं कर पाता है तो यह कहा जाता है कि उस व्यक्ति में मानसिक रोगों (Mental illness) के लक्षण आ रहे हैं। प्रायः यह देखा गया है कि जब हम अपने कार्यों में अधिक व्यस्त होते हैं तो समय बीतने का प्रत्यक्षण स्पष्ट रूप नहीं हो पाता है। इसके विपरीत जब हम किसी व्यक्ति की प्रतीक्षा करते हैं तो समय का प्रत्यक्षण स्पष्ट रूप से होता है। मनोवैज्ञानिकों ने समय के प्रत्यक्षण की व्याख्या करने के लिए निम्नलिखित दो प्रकार के सैद्धान्तिक उपागमों (Theoretical Approaches) का वर्णन किया है।
1. आन्तरिक कालमापी प्राक्कल्पना (Internal Timer Hypothesis) –
आन्तरिक काल प्राक्कल्पना आर्नस्टीन (Ornstein 1969) तथा ट्रीजमैन (Treisman, 1963) आदि मनोवैज्ञानिकों के प्रयोगात्मक अध्ययन से प्राप्त परिणामों पर आधारित है। इस प्राक्कल्पना के अनुसार हमें समय बीतने के प्रत्यक्षण का आधार जैविक (Biological) या शारीरिक (Physiological) होता है। जिस तरह से हमारे शरीर में रोशनी का प्रत्यक्ष एक विशेष ज्ञानेन्द्रिय (sense organ) अर्थात् आँख द्वारा होता है, ठीक उसी तरह हमारे शरीर में एक ज्ञानेन्द्रिय के समान तन्त्र (System) होता है जिसके सहारे में समय का ज्ञान होता है। शरीर के भीतर यह तन्त्र एक घड़ी के समान कार्य करता है। पशु तथा मनुष्य दोनों के शरीर में कुछ इस प्रकार के जैविक परिवर्तन (biological changes) होते हैं जिसके कारण समय का प्रत्यक्षण होता है। जैसे-पशुओं में एक खास समय बीतने पर अपने आप नींद आना तथा एक खास समय बीतने पर नींद से उठ जाने की प्रक्रिया अक्सर देखी जाती है। रात में एक निश्चित समय बीतने के बाद व्यक्ति अपने आप सामान्यतः जम्भाई भरना (yawn) आरम्भ कर देता है। जिससे उसे एहसास होने लगता है कि रात्रि काफी बीत गयी है। इसी प्रकार स्त्रियों में सामान्यतः 28 दिनों के बाद अपने आप मासिक स्राव (Menstruction) प्रारम्भ हो जाता है जिससे उस महिला को लगभग एक माह के समय बीतने का प्रत्यक्षण हो जाता है। इसी प्रकार फूलों के कुछ अध्ययन से भी हमे आन्तरिक कालमापी पूर्वकल्पना का समर्थन मिलता है। कुछ ऐसे फूल होते हैं, जैसे सूरजमुखी, कमल आदि, जो एक निश्चित समय में खिल जाते हैं तथा एक खास समय बीतने पर सिकुड़ जाते हैं। ऐसे फूलों का खिलना एवं सिकुड़ना एक विशेष समय के बाद ही होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि खिलने व सिकुड़ने का समय उन्हें मनुष्यों की भाँति मालूम होता है। ट्रीसमैन (Tresman, 1963) ने इस तरह की जैविक प्रक्रियाओं (Biological Processes) का पशु पक्षियों मनुष्यों तथा फूल-पत्तियों के भीतर होता पाया है। इन क्रियाओं द्वारा उन्हें समय का प्रत्यक्षण होता है। ट्रीसमैन ने इस प्रक्रिया को आन्तरिक जैविक सामाजिक • तन्त्र (Internal biological timing mechanics) नाम दिया है।
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2. घटना- संसाधन पूर्व कल्पना (Events Processing Hypothesis)
इस पूर्वकल्पना के अनुसार समय बीतने के प्रत्यक्षण का कोई जैविक आधार या शारीरिक क्रियाएँ नहीं होती है. बल्कि इसमें हमें समय का प्रत्यक्षण इस बात से होता है कि एक निश्चित समय अन्तराल में व्यक्ति ने कितनी घटनाओं या सूचनाओं का संसाधन कर लिया है। यदि व्यक्ति ने निश्चित समय में अधिक घटनाओं का संसाधन (Processing) किया है तो उसे ऐसा अनुभव होगा कि बहुत समय बीत गया है। इसके विपरीत यदि वह बहुत कम सूचनाओं का संसाधन करता है तो उसे ऐसा अनुभव होगा कि बहुत कम समय बीता है। हालांकि वास्तविक समय की अवधि पहले मामले में कम तथा बाद वाले में अधिक होती है। कम समय बीतने के प्रत्यक्षण का आधार व्यक्ति का यह सोचना होता है कि उसने मात्र थोड़ी भावनाओं का प्रत्यक्षण किया है अतः समय भी कम लगा होगा। इस प्रकार स्पष्ट है कि घटना संसाधन प्राकल्पना (Event processing hypothesis) के अनुसार समय बीतने को प्रत्यक्षण का आधर किसी दी गयी अवधि में किये गये कार्यों या घटनाओं की संख्या होता है। संख्या जितनी अधिक होगी समय का प्रत्यक्ष भी उतना अधिक होगा। इसके ठीक विपरीत, संख्या जितनी कम होगी कार्य का प्रत्यक्षण भी उतना कम होगा।
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