B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

सांस्कृतिक कारक किस प्रकार विकास को प्रभावित करते हैं, विवेचना कीजिए?

विकास को प्रभावित करने वाले सांस्कृतिक कारक
विकास को प्रभावित करने वाले सांस्कृतिक कारक

विकास को प्रभावित करने वाले सांस्कृतिक कारक

विकास को प्रभावित करने वाले सांस्कृतिक कारक– समाज में सांस्कृतिक कारकों की भूमिका विशेष महत्त्व रखती है। संस्कृति व समाज में गहरा सम्बन्ध है। संस्कृति के किसी तत्व में किसी प्रकार का परिवर्तन होता है तो उसका प्रभाव समाज पर निश्चित रूप से पड़ता है। फलस्वरूप समाज में भी परिवर्तन आता है।

सांस्कृतिक कारक किस प्रकार विकास को प्रभावित करते हैं, इसकी विवेचना निम्न प्रकार है-

1. सांस्कृतिक विलम्बना-

सांस्कृतिक कारक की भूमिका को स्पष्ट करने में ऑगबर्न की ‘सांस्कृतिक विलम्बना’ की अवधारणा महत्त्वपूर्ण है। ऑगबर्न ने संस्कृति के दो रूपों की चर्चा की— भौतिक संस्कृति और अभौतिक संस्कृति भौतिक संस्कृति के अन्तर्गत सभी भौतिक एवं मूर्त पदार्थ आते हैं, जैसे मशीन, कपड़ा, कलम, आदि। अभौतिक संस्कृति के अन्तर्गत अमूर्त वस्तुएँ आती हैं, जैसे विचार, पसन्द, नैतिकता आदि। ऑगबर्न का कहना है कि आज के युग में रोज नए-नए आविष्कार होते है, समाज में निरन्तर विकास हो रहा है। उत्पादन की मात्रा में वृद्धि हुई, यन्त्रचालित गाड़ियाँ आयीं, सड़कों का निर्माण बढ़ा आदि। परन्तु इस अनुपात में मानव के विचार, पसन्द नैतिकता आदि में परिवर्तन नहीं आया। इस प्रकार भौतिक संस्कृति की तुलना में अभौतिक संस्कृति पीछे रह जाती है। इसे ही सांस्कृतिक विलम्बना कहा जाता है। ऑगबर्न का ऐसा मानना है कि किसी समाज में भौतिक संस्कृति भी अभौतिक संस्कृति के पीछे रह सकती हैं। इसे भी सांस्कृतिक विलम्बना कहा जायेगा। यह विलम्बना की स्थिति हमेशा के लिए नहीं रहती। ऐसा समय आता है जब दोनों संस्कृतियों में अनुकूलन के लिए परिवर्तन की प्रक्रिया को लागू करना होता, है। इस क्रम में संस्कृति के दोनों रूपों में में परिवर्तन होते हैं। इससे समाज की संरचना परिवर्तित होती है।

2. भौतिक संस्कृति में असन्तुलन –

मैकाइवर की ‘भौतिक संस्कृति में असन्तुलन’ की अवधारणा – सामाजिक परिवर्तन में सांस्कृतिक कारक के महत्त्व को दर्शाता है। मैकाइवर के अनुसार भौतिक संस्कृति के विभिन्न तत्वों के बीच भी असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जो सामाजिक परिवर्तन उत्पन्न करती हैं। उदाहरणस्वरूप – परिवहन के साधनों में जितनी अधिक वृद्धि हुई है, उस अनुपात में सड़कों का विकास नहीं हुआ। जिस तरह जंगल की लकड़ी का उपयोग किया जाता है, उस अनुपात में उसकी देखरेख नहीं होती। इसे ही भौतिक असन्तुलन कहेंगे। यह असन्तुलन समाज में अनेक समस्याओं को जन्म देता है। फिर इन समस्याओं के समाधान के लिए अनेक परिवर्तनों के कार्यक्रम को लागू करना होता है। इस प्रकार भौतिक असन्तुलन समाज में परिवर्तन की स्थिति उत्पन्न करता है ।

3. सांस्कृतिक परिर्तन-

सोरोकिन का ‘सांस्कृतिक परिवर्तन का चक्रीय सिद्धान्त सामाजिक परिवर्तन में सांस्कृतिक कारक के महत्त्व को दर्शाता है। सोरोकिन के अनुसार संस्कृति के तीन रूप होते हैं (i) विचारात्मक संस्कृति, (ii) आदर्शात्मक संस्कृति, और (iii) इन्द्रियपरक संस्कृति विचारात्मक संस्कृति अध्यात्मवाद और मानवीय मूल्यों से सम्बन्धित है। इन्द्रियपरक संस्कृति भौतिक मूल्यों से सम्बन्धित हैं। आदर्शात्मक संस्कृति दोनों की विशेषताओं से सम्बन्धित है। किसी भी समाज में संस्कृति का कोई रूप स्थायी नहीं होता। विचारात्मक संस्कृति के युग में अध्यात्मवाद और मानवीय मूल्यों पर सामाजिक संरचना आधारित होती है। परन्तु अध्यात्मक तथा मानवतावाद के अनुभव के बाद मानव इससे दूर जाने लगता है। तब वह आदर्शात्मक सांस्कृतिक संरचना वाले समाज में पहुँचता है। इसके बाद मानव इन्द्रियपरक संस्कृति की ओर उन्मुख होता है। सोरोकिन का कहना है कि संस्कृतियों में यह परिवर्तन चक्र के समान नहीं होते रहते हैं, विचारात्मक से आदर्शात्मक और आदर्शात्मक से इन्द्रियपरक है। फिर इन्द्रियपरक से आदर्शात्मक और आदर्शात्मक से विचारात्मक। इस प्रकार जिस युग में संस्कृति का जो रूप होगा वहाँ की सामाजिक संचना वैसी होगी। संस्कृति के रूप में बदलाव आयेगा, सामाजिक संरचना बदलेगी। इस प्रकार समाज में परिवर्तन का कारण संस्कृति है।

4. धर्म एवं धार्मिक विश्वास-

सांस्कृतिक कारक का एक तत्व ‘धर्म एवं विश्वास’ है जो समाज में परिवर्तन लाता है। मैक्स वेबर के अनुसार, प्रोटेस्टेण्ट (ईसाई) धर्म में परिश्रम द्वारा धन संग्रह करने व में धन से लाभ की अनुमति है, फलस्वरूप जो लोग एवं समाज इस धर्म से जुड़े हैं, वे आर्थिक रूप से आगे हैं, जैसे—इंग्लैण्ड एवं जर्मनी। जबकि कैथोलिक धर्म के नैतिक नियम अधिक परिश्रम को ईश्वरीय दण्ड मानते हैं, फलस्वरूप कैथोलिक लोग आर्थिक विकास में पीछे रह गए, जैसे— यूरोप । इस प्रकार वेबर का मानना है कि धर्म एवं धार्मिक विश्वास भौतिकता को प्रभावित करते हैं एवं सामाजिक परिवर्तन में सहायक होते हैं।

5. सांस्कृतिक संघर्ष-

जब दो भिन्न संस्कृतियों का आमना-सामना होता है तब सांस्कृतिक संघर्ष – उत्पन्न होता है। अंग्रेजों के भारत में आने के बाद यह स्थिति बनी। लेकिन कालक्रम में नई पीढ़ी अंग्रेजी संस्कृति से प्रभावित होती गयी। क्रमशः सांस्कृतिक संघर्ष कम होते गये तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान प्रारम्भ हुआ। फलस्वरूप भारतीय सामाजिक संरचना में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया। हमने औपचारिक शिक्षा नि स्कूल कॉलेज की शिक्षा प्रणाली को अपनाया, उसकी लोकतान्त्रिक प्रणाली को ग्रहण किया एवं वैज्ञानिक विकास नीति को स्वीकारा। फलस्वरूप समाज में आमूल-चूल परिवर्तन आया।

6. सांस्कृतिक आन्दोलन-

सांस्कृतिक आन्दोलन का भी सामाजिक परिवर्तन से गहरा सम्बन्ध रहा। उन्नीसवीं शताब्दी में जो सुधारवादी आन्दोलन राजा राममोहन राय, देवेन्द्र ठाकुर, केशवचन्द्र सेन, स्वामी दयानन्द सरस्वती और स्वामी विवेकानन्द आदि के द्वारा चलाये गये थे, वे सभी सांस्कृतिक आन्दोलन ही थे। इस आन्दोलन के कारण भारत में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। छुआछूत, सती प्रथा, बहुपत्नी विवाह, पर्दा प्रथा, बाल-विवाह, अन्धविश्वास आदि से सम्बन्धित धारणाओं में परिवर्तन आया ।

7. सांस्कृतिक सम्पर्क –

सांस्कृतिक सम्पर्क एवं सामाजिक परिवर्तन में गहरा सम्बन्ध है। जब दो – भिन्न संस्कृतियाँ एक-दूसरे के सम्पर्क में आती हैं, तो उसे ही सांस्कृतिक सम्पर्क कहा जाता है। इस सम्पर्क में एक सांस्कृतिक समूह दूसरी संस्कृतिक के बहुत-से तत्वों को ग्रहण करता है। इससे उसका सामाजिक जीवन परिवर्तन होता है। उदाहरण स्वरूप — हिन्दू और मुस्लिम के सम्पर्क से दोनों ने एक-दूसरे के सांस्कृतिक तत्वों को ग्रहण किया, जिससे दोनों समूहों के सामाजिक जीवन में बदलाव आया।

इसे भी पढ़े…

Important Links

Disclaimer

Disclaimer:Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment