भारत में लैंगिक असमानता को कम करने हेतु सुझाव दीजिए।
भारत में लैंगिक असमानता को कम करने हेतु सुझाव निम्नलिखित हैं-
(1) मातृत्व का मौलिक अधिकार-
प्रत्येक स्त्री को मातृत्व का मौलिक अधिकार मिले, चाहे वह विवाहित दायरे में हो या उससे बाहर। यह उसका नैसर्गिक अधिकार है, इसे संवैधानिक किया जाना चाहिये। इसके साथ ही उसे निरपेक्ष रूप से दैहिक अधिकार भी प्राप्त होना चाहिए। उसकी देह पर उसे ही स्वामित्व मिले। किसी अन्य को चाहे वह कोई भी हो, उसकी इच्छा के विरुद्ध स्त्री के दैहिक उपयोग का अधिकार नहीं है।
(2) स्त्री-संगठनों को प्रोत्साहन एवं सहायता-
स्त्रियों को स्थानीय स्तर पर अपने संगठन बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उनके संगठनों को सहायता दी जानी चाहिए।
(3) प्रतीकों के विरुद्ध मोर्चा-लिंग-
भेदभाव प्रतीकात्मक स्तर पर गहराई से अस्तित्व रखता है। इसके अनेक उदाहरण हैं जैसे-स्त्री के नाम से पहले कुमारी या श्रीमती लिखने की बाध्यता, विवाहित स्त्री के लिए सिन्दूर, चूड़ियाँ, बिछुए एवं मंगलसूत्र की अनिवार्यता, विवाहित स्त्रियों का पति और पुत्र के लिए व्रत रखने की अनिवार्यता आदि। इसके विरुद्ध अभियान चलाया जाना चाहिए और इन सामन्तवादी या आदिकालीन अवशेषों को समाप्त किया जाना चाहिए।
(4) वैधानिक सुधार-स्त्री-
संगठनों की सहभागिता व सलाह से स्त्री सम्बन्धी एक भारतीय स्त्री अधिनियम पारित हो जो विवाह, उत्तराधिकार, सम्पत्ति, यौन, सन्तानोत्पत्ति आदि विषयों पर स्पष्ट आदेश प्रदान करे। भारत की प्रत्येक वयस्क स्त्री को यह अधिकार दिया जाए कि वह बिना धर्म, जाति, समुदाय के भेदभाव के अपने लिए इस अधिनियम को ग्रहण कर सकती है, इसका लाभ उठा सकती है।
(5) स्त्री शिक्षा का प्रसार-
स्त्री शिक्षा न केवल अनिवार्य की जाए वरन् निर्धन परिवारों की कन्याओं को छात्रवृत्तियाँ भी दी जाएँ। स्त्री छात्रावासों की व्यवस्था की जाये। इस शिक्षा का आधुनिक अर्थों में व्यावसायीकरण किया जाना चाहिए। स्कूलों के साथ ही एक उत्पादन केन्द्र भी हो तो और भी अच्छा है। स्त्री शिक्षा का उद्देश्य स्त्री को आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर बनाना होना चाहिए।
(6) रोजगार एवं स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहन-त्रियों में अधिक से अधिक रोजगार को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार को आरक्षण व सुरक्षात्मक भेदभाव की नीति अपनानी चाहिये। स्त्रियों को वे सब सुविधाएं मिलनी चाहिए जो पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जातियों व जनजातियों को मिल रही हैं।
(7) स्त्री सशक्तिकरण-
लैंगिक असमता को दूर करने के लिए स्त्री सशक्तिकरण एक सबल उपाय माना जाता है। आज सभी राष्ट्रों में इस ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इस सशक्तिकरण हेतु स्त्रियों को निम्नलिखित प्रयास करने होंगे-
(i) स्त्रियों को उन कारणों एवं प्रक्रियाओं को आलोचनात्मक रूप में समझना होगा जो उनके सशक्तिकरण में बाधक हैं; (ii) स्त्रियों को अपनी स्व-प्रतिष्ठा बढ़ानी होगी तथा अपने प्रति अबला होने की धारणा बदलनी होगी; (iii) स्त्रियों को प्राकृतिक, मौद्रिक तथा बौद्धिक संसाधनों तक अपनी पहुँच बढ़ानी होगी; (iv) स्त्रियों की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक संरचनाओं व प्रक्रियाओं में दखल देने सम्बन्धी अपने विश्वास, ज्ञान, सूचना तथा क्षमताओं को प्राप्त करना होगा; (v) स्त्रियों को परिवार एवं समुदाय के अन्दर तथा बाहर निर्णय लेने सम्बन्धी प्रक्रियाओं पर अपना नियन्त्रण एवं सहभागिता बढ़ानी होगी; (vi) स्त्रियों को उन नवीन भूमिकाओं की ओर आगे बढ़ना होगा जो अब तक केवल पुरुषों का अधिकार-क्षेत्र मानी जाती रही हैं; (vii) स्त्रियों को उन अन्यायपूर्ण एवं असमान विश्वासों, प्रथाओं, संरचनाओं एवं संस्थाओं को चुनौती देनी होगी तथा बदलना होगा जो लैंगिक असमता के लिए उत्तरदायी हैं।
अन्त में, स्वयं स्त्री को ही अकेले और सामूहिक रूप से अपनी उपर्युक्त स्थिति के लिए उत्तरदायी कारणों का हल खोजना होगा। कोई किसी को उसके अधिकार नहीं दिला सकता। अपने अधिकार खुद लेने पड़ते हैं और उनकी रक्षा करनी पड़ती है। यह कोई सरल कार्य नहीं है। सदियों से चली आ रही सामाजिक संस्थाओं, व्यवस्थाओं एवं मूल्यों को बदलना इतना सरल नहीं है परन्तु सामूहिक प्रयास द्वारा इस लक्ष्य को प्राप्त करना असम्भव भी नहीं है।
लैंगिक असमानता का क्या अर्थ है? |लैंगिक असमानता के प्रकार
भारत में लैंगिक असमानता के स्वरूप
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