समय-सारणी चक्र का निर्माण करने के सामान्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
समय-सारणी निर्माण करने के सामान्य सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
1. रुचि के अनुसार विषय चुन सकें-
समय विभाग चक्र का निर्माण इस ढंग से किया जाए कि छात्रों को अपनी योग्यता तथा रूचि के अनुसार विषय चुनने का अवसर प्राप्त हो सके। यद्यपि हमारे देश में इस सिद्धान्त का पालन आर्थिक कठिनाइयों के कारण नहीं हो पाता, क्योंकि विद्यालय में अनेक विषयों के पढ़ाने का प्रबन्ध तथा उनके लिए अलग कमरों की व्यवस्था करना अत्यन्त कठिन है। इस सिद्धान्त का पालन केवल पाश्चात्य देश कर सकते हैं, जहाँ कि पर्याप्त मात्रा में धन की व्यवस्था हो जाती है।
छात्रों की रूचि ज्ञात करने के लिए उनसे रूचि के विषय माँगे जाए तथा समस्त विषयों की एक सूची बनाकर यथा सम्भव समय-विभाग चक्र में उन्हें स्थान देने का प्रयत्न किया जाए। बालकों की रूचि को उचित रीति से ज्ञात करने के लिए उन्हें कार्ड प्रदान किये जाएं। इन काडौँ पर छात्र अपनी रूचि के विषय लिखकर दें कार्डों को एकत्रित करके रूचि वाले विषयों को ध्यान में रखकर समय-विभाग चक्र का निर्माण किया जाए।
2. अध्यापक और छात्रों का सम्पर्क-
बालकों की वास्तविक उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि अध्यापक उनको अधिक-से-अधिक समझें। अध्यापक और छात्रों में जितना समपर्क बढ़ेगा उतना ही वह एक-दूसरे को समझेंगे। छात्रों को अध्यापकों के निकट आने से वे उनके व्यक्तिगत भेदों को समझ सकेंगे तथा उनका निराकरण कर सकेगा। इस कारण समय- चक्र-निर्माण करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखा जाए कि अध्यापक और छात्र एक- दूसरे के अधिक-से-अधिक सम्पर्क में आयें।
3. अध्यापक की योग्यता तथा रुचि को स्थान–
समय-तालिका का निर्माण करते समय अध्यापकों की रूचि तथा योग्यता का भी ध्यान रखा जाए। जहाँ तक हो सके, अध्यापकों को वे विषय प्रदान किये जाए जिनमें उनकी रूचि हो तथा जिनमें वे योग्यता रखते हैं। अध्यापकों की रूचि तथा योग्यता को ध्यान में रखकर बनाया गया समय-विभाग चक्र भी शिक्षण के स्तर को उठाने में सहायक होता है। अध्यापक अपनी रूचि के विषयों को मन लगाकर पढ़ाते हैं तथा छात्र मन लगाकर पढ़ते हैं।
4. उचित रीति से कार्य का वितरण समय-
चक्र का निर्माण करते समय इस बात का भी अवश्य ध्यान रखा जाए कि प्रत्येक अध्यापक को उसकी मानसिक तथा शारीरिक शक्ति देखते हुए कार्य सौंपा जाए। प्रधान अध्यापक को इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि प्रत्येक अध्यापक पर समान रूप से कार्य-भरा लादा जाए। कठिन विषयों को पढ़ाने का भार केवल एक ही अध्यापक पर न डाला जाए।
5. सरलता तथा स्पष्टता–समय-
विभाग-चक्र का निर्माण इस ढंग से किया जाए कि- छात्र सरलता के साथ समझ सकें कि उनका कार्यक्रम क्या है? छात्रों का इधर-उधर आने-जाने में पर्याप्त समय नष्ट होता है, इस कारण समय-चक्र इस ढंग का न हो कि छात्रों का अधिकांश समय इस कक्षा से उस कक्षा में आने-जाने में नष्ट होता है। इस कारण समय-विभाग-चक्र निर्माण में सरलता तथा स्पष्टता का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
6. समय-विभाग-चक्र विस्तृत हो-
समय-विभाग-चक्र मे केवल पाठ्य-विषयों को ही महत्त्व प्रदान नहीं करना है, वरन् खेल-कूद, पाठ्यक्रम-सहगामी क्रियाओं को भी स्थान देना आवश्यक है। अधिकांशतया समय-विभाग-चक्र में केवल पुस्तकीय ज्ञान को ही महत्व प्रदान किया जाता है। यथासम्भव समय-विभाग-चक्र का निर्माण इस ढंग से किया जाए कि पुस्तकालय, वाचनालय, खेल-कूद आदि समस्त क्रियाओं का प्रयोग छात्र सरलता से कर सके।
7. नैतिक मूल्य–समय-विभाग-
चक्र का निर्माण केवल विद्यालय के कार्यक्रमों को चलाने के लिए ही नहीं किया जाए, वरन् उसका नैतिक मूल्य भी हो। समय-विभाग-चक्र इस प्रकार का हो, जिसका पालन करने से छात्र दृढ़ संकल्प, कार्यकुशलता तथा समय का सदुपयोग करना सीखें।
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