समय सारणी चक्र के निर्माण करने के विशिष्ट सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
समय-सारणी चक्र के निर्माण करने के विशिष्ट सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
1. छात्रों के लिए रुचिपूर्ण-समय-
विभाग-चक्र पाठ्य-विषयों से बोझिल तथा नीरसता लिए हुए न हो। समय-विभाग चक्र इस प्रकार का हो कि छात्र विद्यालय में आने पर उत्साह प्रकट करें तथा विद्यालय से जाने पर उत्साह प्रकट करें। यदि विद्यालय में प्रवेश करते ही छात्र को कोई अरूचिपूर्ण कार्य करना पड़ेगा तो दिन-भर उसका मन पढ़ने-लिखने में नहीं लगेगा। इसी प्रकार अन्तिम घण्टे में यदि छात्र को थका देने वाला उदासीन कार्य दे दिया जायेगा तो छात्र विद्यालय के प्रति असन्तोष की भावना लेकर घर जाएगा।
2. समय-विभाग चक्र की पूर्णतया–
समय-विभाग चक्र को अपने में पूर्ण होना चाहिए। खेलने का समय, विश्राम का समय, पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ने का समय आदि सबका उसमें स्पष्ट उल्लेख किया जाए। किस समय छात्र को क्या पढ़ना है तथा अध्यापक को क्या पढ़ाना है आदि सबका निश्चय ठीक प्रकार से किया जाए। समय-विभाग चक्र में विद्यालय की समस्त क्रियाओं का समावेश हो।
3. थकावट का ध्यान रखा जाए–
समय-विभाग-चक्र का निर्माण करने में सबसे महत्त्वपूर्ण बात ध्यान रखने की, छात्रों की थकावट है। यदि समय-विभाग-चक्र थकावट उत्पन्न करने वाला होगा तो छात्र उसका पालन करने में बोझ अनुभव करेंगे।
(i) विषयों का क्रम– कठिन विषयों का क्रम से न रखा जाए, क्योंकि कठिन विषयों। लगातार पढ़ने से छात्र में थकावट आ जाती है। उदाहरण के लिए, यदि छात्रों को गणित के बाद एकदम अंग्रेजी पढ़ाई जाए तो वे दो घण्टे में ही इतने थक जायेंगे कि आगे पढ़ना तथा दूसरे विषयों को समझना उनके लिए कठिन हो जाएगा। गणित के पश्चात् हिन्दी-निबन्ध या कविता-पाठ रखना उचित है। इस प्रकार यथासम्भव, कठिन विषय के पश्चात् वैसा ही कठिन विषय न रखा जाए।
(ii) छात्रों की आयु तथा घण्टों का समय– अवस्था के अनुसार ही छात्रों का मन पढ़ने-लिखने में लगता है। अधिक आयु के छात्र पढ़ने-लिखने में देर तक ध्यान लगा सकते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि छोटी आयु के बालक किसी विषय पर अधिक देर तक ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकते हैं। अतः समय-विभाग चक्र का निर्माण करते समय यह अवश्य देखा जाए कि छोटे बालकों के लिए कहीं लम्बे घण्टे तो नहीं हो गये हैं। यदि बड़े छात्रों तथा छोटे छात्रों के लिए एक से ही घण्टे रखे जाते हैं वह पूर्णतया अनुचित तथा अमनोवैज्ञानिक है।
(iii) अध्यापक के खाली घण्टे- समय-विभाग चक्र बनाने में केवल छात्रों की असुविधा का ध्यान न रखा जाए, वरन् अध्यापक की थकावट के विषय में भी कुछ बातें ध्यान देने की है। दिन-भर के कार्यक्रम में प्रत्येक अध्यापक को कम-से-कम दो घण्टे. खाली अवश्य मिलने चाहिए। इन खाली घण्टों में अध्यापक अपने विषयों को तैयार कर सकते हैं तथा शुल्क-रजिस्टर आदि का काम भी निबटा सकते हैं। विज्ञान के अध्यापकों को प्रयोग आदि तैयार करने के लिए विशेष समय प्रदान किया जाए।
(iv) कार्य करने की सीमा तथा मौसम- ठण्डे प्रदेश में मौसम की अनुकूलता के कारण गरम देशों से अधिक कार्य सरलता से हो जाता है परन्तु हमारे देश में मौसम गर्मी का रहता है। वास्तव में गर्मी में छात्र शीघ्र थक जाते हैं तथा सर्दी में वह गर्मी की अपेक्षा देर से थकते हैं। इस कारण जहाँ तक हो सके; वर्ष भर के कार्यक्रम का विभाजन करते समय गर्मी मे कम कार्य रखा जाए तथा सर्दी मे अधिक।
(v) लिखित तथा मौखिक कार्यक्रम से हो- लिखित कार्य भी यदि लगातार कराया जाए तो छात्रों में थकावट आ जाती है। लिखने का कार्य-अधिकता के साथ करने से छात्रों में उसके प्रति अरूचि भी उत्पन्न हो जाती है तथा वे लेखन-कार्य से बचने का प्रयत्न करने लगते हैं। इस कारण लेखन कार्य के घण्टे के पश्चात् मौखिक कार्य कराया जाए।
(vi) मध्यान्तर पर्याप्त समय का हो- विद्यालय के दिन-भर के कार्यक्रम के मध्य में छात्रों को अवकाश अवश्य मिलना चाहिए। प्रत्येक समय पढ़ते रहना तथा लिखते रहना छात्रों के लिए सम्भव नहीं। चौथे घण्टे के बाद साधारणतया विद्यालयों में मध्यान्तर रखा जाता है। मध्यान्तर का समय पर्याप्त हो, जिससे छात्र ठीक प्रकार से अपनी थकावट दूर कर सकें।
4. घण्टों का क्रम–
कठिन विषयों को यथासम्भव दूसरे या तीसरे घण्टे में पढ़ाया जाए क्योंकि ये घण्टे स्फूर्तिदायक होते हैं तथा इन घण्टों में छात्रों का मस्तिष्क भी स्थिर रहता है।
5. दिवसों का क्रम-समय-
विभाग चक्र का निर्माण करते समय दिवसों के क्रम का ध्यान रखना परम आवश्यक है। सोमवार शनिवार के दिन कठिन विषय पढ़ाना ठीक नहीं, क्योंकि प्रथम दिन रविवार की छुट्टी के बाद आता है तथा दूसरी छुट्टी से पूर्व। इस कारण दोनों दिन छात्रों के मस्तिष्क में छुट्टी आ जाती है। अंकगणित तथा व्याकरण; जैसे- कठिन विषयों का इन दिनों पढ़ाना पूर्णतया अनुचित है। कठिन विषयों को पढ़ाने के लिए मंगलवार, बुधवार तथा शुक्रवार उचित है। सोमवार तथा शनिवार को निबन्ध तथा ज्यामितीय ठीक रहेंगे।
6. समय का निश्चय–वर्ष-
भर में एक अध्यापक को प्रतिदिन के हिसाब से कितना पढ़ाना है, तथा वर्ष-भर (छुट्टियों के अतिरिक्त) पढ़ाने के लिए कितना समय मिलता है आदि बातों का समय-विभाग-चक्र बनाते समय अवश्य ध्यान रखा जाए। किसी विषय को वर्ष-भर पढ़ाने के लिए कितना समय चाहिए, यह उस विषय के विस्तार के ऊपर है।
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