B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

कूले का समाजीकरण का सिद्धांत | Cooley’s theory of Socialization in Hindi

कूले का समाजीकरण का सिद्धांत
कूले का समाजीकरण का सिद्धांत

कूले का समाजीकरण का सिद्धांत (Cooley’s theory of Socialization)

कूले का समाजीकरण का सिद्धांत- कूले एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री हैं। इनका जन्म 1864 ई० में हुआ था। इन्होंने ‘Social Organization‘ और ‘Human Nature and the Social order’ नामक अपनी पुस्तक में यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि कैसे जैविक प्राणी, सामाजिक प्राणी बनता है। जैविक प्राणी से सामाजिक प्राणी बनने की प्रक्रिया ही उनके सिद्धान्त का मुख्य बिन्दु है। कूले का कहना है कि Self (आत्मन्) का विकास समाज में होता है। समाज और आत्मन् एक-दूसरे से कभी अलग नहीं किये जा सकते हैं। उन्हीं के शब्दों में “Self and Society are twin born” आत्मन् का विकास कोई जैविक प्रक्रिया नहीं है। यह एक सामाजिक तथ्य है। इसका विकास समाज के संसर्ग में ही संभव है। उन्होंने बताया है कि बच्चों में लगभग दो साल की उम्र में आत्म-चेतना का विकास होने लगता है। उन्होंने समाजीकरण की प्रक्रिया पर कोई वैज्ञानिक अनुसंधान नहीं किया है। उनके समय में सामाजिक विज्ञान में कोई अनुसंधान होता भी नहीं था। गिडेन्स (1993) ने कहा है कि उन्होंने अपने विचारों का प्रतिपादन अपने बच्चों के विकास की प्रक्रिया का अवलोकन के आधार पर किया है।

बच्चे समाज में कैसे सीखते हैं इसे स्पष्ट करने के लिए उन्होंने सामाजिक “आत्मदर्शन का दर्पण” का सिद्धान्त दिया है। इस अवधारणा को स्पष्ट करते हुए लेस्ली एवं उनके सहयोगियों ने कहा है, “The Social looking glass is the group or society in which persons imagine how others see him.” इस सिद्धान्त की प्रथम चर्चा उनकी कृति ‘Human Nature and the social order’ में दिखाई पड़ती है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि कूले का आत्मन् के विकास का विचार उनके पूर्ववर्ती मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स के सामाजिक आत्मन् से मिलता-जुलता है।

जिस प्रकार कोई व्यक्ति किसी दर्पण में अपना स्वरूप देखने का प्रयास करता है, ठीक उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति अपना स्वरूप समाजरूपी दर्पण में देखने का प्रयास करता है। इस देखने की प्रक्रिया में तीन तरह की प्रतिक्रियाएँ होती हैं-(i) दूसरे लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं, (ii) दूसरे जो मेरे बारे में सोचते हैं उस सम्बन्ध में मैं अपने बारे में क्या सोचता हूँ एवं (iii) मैं अपने बारे में कैसा विचार रखता हूँ-अच्छा या बुरा। हर बालक में यह जानने की इच्छा होती है कि परिवार एवं परिवार के बाहर उसे किस रूप में देखा जाता है और उसके आधार पर वह अपने बारे में एक राय बनाता है। यदि लोग यह सोचते हैं कि वह बहुत मेधावी, अनुशासित और व्यवहार कुशल बालक है तो वह अपने बारे में श्रेष्ठता का भाव रखता है। लेकिन इसके विपरीत अगर कोई उसे भोंदू, अनुशासनहीन एवं गलत बालक मानता है, तो उसके मन में अपने बारे में हीनता की भावना का विकास होता है।

समाज किसी व्यक्ति के बारे में क्या सोचता है और फिर वह व्यक्ति उस संदर्भ में क्या सोचता है, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो आजीवन चलती रहती है। इसी क्रिया एवं प्रतिक्रिया के द्वारा व्यक्तियों में आत्मन् का विकास होता है। व्यक्ति सामाजिक मूल्यों, आदर्शों एवं नियमों का इसलिए पालन करता है कि समाज उसे एक अच्छे व्यक्ति के रूप में स्वीकार करे। कूले का यह विचार जॉर्ज मीड से मिलता-जुलता है कि कोई भी व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की मनोवृत्ति को ध्यान में रखकर ही आचरण करने का प्रयास करता है। यदि उसे यह महसूस होता है कि लोग उसके किसी व्यवहार को अच्छा नहीं समझेंगे तो वह वैसा आचरण नहीं करना चाहता है। व्यक्ति हमेशा दूसरे को ध्यान में रखकर ही कोई आचरण करता है। स्वयं के विषय में कोई व्यक्ति किस प्रकार का विचार बनाता है, जिसका प्रभाव उसके आधार एवं व्यक्तित्व के विकास पर पड़ता है।

इसे भी पढ़े ….

  1. नृजाति असामंजस्यता से आप क्या समझते हैं? नृजाति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  2. प्रजाति का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए तथा प्रजाति के प्रमुख तत्वों का वर्णन कीजिए।
  3. जाति भिन्नता या जाति असमानता क्या है? जाति भिन्नता में परिवर्तन लाने वाले कारकों का वर्णन कीजिये।
  4. नारीवाद का अर्थ | नारीवाद की विशेषताएँ या लक्षण | भारत में महिला संगठन
  5. निर्देशात्मक परामर्श- मूलभूत अवधारणाएँ, सोपान, विशेषताएं, गुण व दोष
  6. परामर्श के विविध तरीकों पर प्रकाश डालिए | Various methods of counseling in Hindi
  7. परामर्श के विविध स्तर | Different Levels of Counseling in Hindi
  8. परामर्श के लक्ष्य या उद्देश्य का विस्तार में वर्णन कीजिए।
  9. परामर्श का अर्थ, परिभाषा और प्रकृति | Meaning, Definition and Nature of Counselling in Hindi
  10. विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  11. विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन के क्षेत्र का विस्तार में वर्णन कीजिए।
  12. विद्यालय में निर्देशन प्रक्रिया एवं कार्यक्रम संगठन का विश्लेषण कीजिए।
  13. परामर्श और निर्देशन में अंतर 
  14. विद्यालय निर्देशन सेवाओं के संगठन के आधार अथवा मूल तत्त्व
  15. निर्देशन प्रोग्राम | निर्देशन कार्य-विधि या विद्यालय निर्देशन सेवा का संगठन
  16. विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन का अर्थ, परिभाषा, आवश्यकता एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
  17. निर्देशन का अर्थ, परिभाषा, तथा प्रकृति
  18. विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के लिए सूचनाओं के प्रकार बताइए|
  19. वर्तमान भारत में निर्देशन सेवाओं की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  20. निर्देशन का क्षेत्र और आवश्यकता
  21. शैक्षिक दृष्टिकोण से निर्देशन का महत्व
  22. व्यक्तिगत निर्देशन (Personal Guidance) क्या हैं? 
  23. व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? व्यावसायिक निर्देशन की परिभाषा दीजिए।
  24. वृत्तिक सम्मेलन का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसकी क्रिया विधि का वर्णन कीजिए।
  25. व्यावसायिक निर्देशन की आवश्कता | Needs of Vocational Guidance in Education
  26. शैक्षिक निर्देशन के स्तर | Different Levels of Educational Guidance in Hindi
  27. शैक्षिक निर्देशन के उद्देश्य एवं आवश्यकता | 
  28. शैक्षिक निर्देशन का अर्थ एवं परिभाषा | क्षेत्र के आधार पर निर्देशन के प्रकार
  29. शिक्षण की विधियाँ – Methods of Teaching in Hindi
  30. शिक्षण प्रतिमान क्या है ? What is The Teaching Model in Hindi ?

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider.in does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment