व्यावसायिक पत्र के स्वरूप एंव इसके अंग
व्यावसायिक पत्र के स्वरूप का वर्णन करते हूए इसके विभिन्न अंगों का सोदाहरण विवेचन कीजिए।
वह पत्र जो दो व्यापारियों के मध्य किसी व्यावसायिक कार्य से लिखा जाता है, व्यापारिक पत्र कहलाता है। जैसे- लोक भारती प्रकाशन, महात्मा गाँधी मार्ग, प्रयागराज द्वारा मे0 कवितालय, लंका, कानपुर को व्यापारिक कार्य से लिखा गया पत्र व्यापारिक पत्र कहा जायेगा!
व्यापारी या व्यवसायी पत्रों के द्वारा ही लाखों-करोड़ों का लेन-देन का कार्य करते हैं। अनेक प्रतिष्ठानों तथा व्यक्तियों का सम्बन्ध केवल पत्र-व्यवहार से ही स्थापित हो जाता है। उनके पास्परिक परिचय के लिए व्यक्तिगत स्तर पर साक्षात्कार बहुत आवश्यक नहीं रह जाता है। व्यापार की सफलता बहुत कुछ सार्थक एवं प्रभावशाली पत्र-व्यवहार पर आधारित रहती है। पत्र की भाषा, शैली, पत्र-प्रेषक के मंतव्य तथा भावनाओं को पाने वाले को संप्रेषित करती है। असावधानी से लिखे गये पत्रों का प्रतिफल व्यापारी के लिए अहितकर या अलाभकारी सिद्ध होता होता है। पत्र के माध्यम से व्यापारी अपनी सामग्री की गुणवत्ता से दूसरे व्यापारी या फर्म। को अवगत तो कराता ही है, साथ में उसके द्वारा प्रयुक्त भाषा उसके भाव का भी परिचय दे देती है। अत: एक श्रेष्ठ व्यापारिक पत्र से आशय ऐसे पत्र से हैं जो अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल हो जैसे- यदि कोई पत्र अशोध्य ऋण की वसूली के उद्देश्य से लिखा गया है और पत्र के परिणामस्वरूप ऋण की वसूली हो जाती है तो उसे श्रेष्ठ व्यापारिक पत्र कहेंगे।
प्रभावी व्यापारिक पत्र में मनावैज्ञानिक पुट का होना नितान्त आवश्यक है। यदि पत्र लेखक इस मानवीय विशेषता को ध्यान में नहीं रखता तो वह “प्रभावपूर्ण पत्र’ की रचना नहीं कर सकता। इसलिए यह सदैव ध्यान रखिए कि पत्र स्वयं के लिए नहीं, वरन् किसी अन्य व्यक्ति के लिए लिखा गया है। वह अन्य व्यक्ति क्या चाहता है? उसकी भावनाएँ कैसी हो सकती हैं तथा उसे पूर्ण संतोष कैसे प्राप्त हो? इत्यादि बातें ऐसी हैं, जिसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। साथ ही व्यापारिक पत्रों की शैली ऐसी होनी चाहिये जिससे कि पाठक के मन में मैत्रीपूर्ण कौतहल का निर्माण हो सके और उसे ऐसा लगे कि उससे यथार्थ के रूप में वार्ता हो रही है। उसका प्रारूप एक वैधानिक प्रलेख की भाँति होना चाहिए और नहीं उसमें घिसी-पिटी बातों का ही उल्लेख होना चाहिए। पत्र में आत्मा या जीवन का संचार होना चाहिए, तभी वह अपने उस उद्देश्य की पूर्ति में सफल हो सकेगा, जिसके लिए वह लिखा गया है।
आज का व्यापारी बहुत व्यस्त रहता है। उसके पास प्रतिदिन बहुत बड़ी संख्या में अनेक पत्र आते हैं तथा अनेक बाहर भेजे जाते हैं। अधिक व्यस्तता के कारण वह प्रत्येक पत्र पर व्यक्तिगत ध्यान नहीं दे सकता। अत: यह नितान्त आवश्यक है कि व्यापारिक पत्र इस ढंग से लिखे जायें कि उसे पाने वाला व्यक्ति तत्काल उसको पढ़ने के लिए आकर्षित हो जाय। पत्र के अनाकर्ष होने की दशा में कोई भी व्यापारी उसे ध्यान से नहीं पढ़ेगा तथा सम्भव है कि उसे उसे रद्दी की टोकरी में डाल दे।
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि व्यापारिक पत्र-लेखन भी एक कला है, जिसके लिए समुचित भाषा ज्ञान की आवश्कता होती है। इस दिशा में जितना अधिक ध्यान दिया जाये उतना ही इस कला में प्रवीणता प्राप्त की जा सकती है।
व्यावसायिक पत्र के अंग-
व्यापारिक पत्र कई भागों में बँटा होता है और इसके प्रत्येक भाग का अपना महत्व है। इसके मुख्य भाग निम्न हैं-
1.शीर्षक- पत्र के प्रारम्भ में फर्म का नाम व पता लिखना चाहिए। व्यापारीगण प्रायः अपने फर्म का नाम व पता आकर्षक ढंग से छपवा लेते हैं। फर्म का नाम प्रायः कागज के ऊपर मध्य में अथवा दायीं ओर छपवाया जाता है। उसके दायीं ओर नोचे पता आदि का नाम होता है।
2. दिनांक- पत्र-प्रेषक को अपने पत्र पर संख्या एवं तिथि अवश्य लिखनी चाहिए, बहुत से फार्मों द्वारा पत्र संख्या एवं तिथि के कॉलम पहले से छपे रहते हैं और उसमें पत्र लेखा क्रम संख्या तथा तिथि अंकित कर देता है।
3. पाने वाले का नाम व पता- पोस्टकार्ड पर यदि पत्र लिखा जा रहा है तो पत दोबारा लिखने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि टाइप करने वाला व्यक्ति पहले ही लिख देता है। किन्तु जब पत्र लिफाफे में जाना हो तो तब पाने वाले का नाम, पता दे दिया जाता है, जो क्रमांक से नीचे कागज के बायीं ओर लिखना चाहिए। पहले फर्म का नाम, उसके नीचे जगह छोड़कर मकान या दुकान का नम्बर गली या मुहल्ला, बाजार अथवा सड़क का नाम लिखा जाये फिर उसके नीचे शहर या जिले का नाम पिन कोड के साथ लिखा जाये।
4. अभिवादन- व्यापारिक पत्रों में अभिवादन सूचक शब्दों का प्रयोग अनिवार्य है। इनके प्रयोग से शिष्टाचार, सौमनस्य और घनिष्ठता प्रकट होती है। जिस प्रकार दो व्यक्ति मिली पर बातचीत प्रारम्भ करने के पूर्व परस्पर, गुड मानिंग, नमस्कार, राम-राम इत्यादि कहते हैं, उसी प्रकार पत्र द्वारा भेंट करने की दशा में पत्र की विषय रूपी वार्ता शुरू करने से पहले पत्रों में कुछ शिष्टाचारपूर्ण शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें ‘अभिवादन’ कहते हैं। यह लिखना जरूरी नहीं, लेकिन इसका प्रयोग पत्र में आकर्षण पैदा करता है, जबकि इसका अभाव उन्हें खलता है।
5. विषय शीर्षक- कभी अभिवादन के पश्चात् कुछ फर्मे पत्र का संक्षिप्त विषय अभिवादन से नीचे बीच वाले भाग में दे देती है। इसे ही विषय शीर्षक कहा जाता है-
इसके दो फायदे हैं-
(क) पत्र पढ़ने वाले का ध्यान उधर खिंच जाता है और वह विषय को जल्दी से समझ लेता है।
(ख) पत्रों की फाइल करने में सुविधा हो जाती है। विषय शीर्षक के निम्न उदाहरण हैं-
प्रिय महोदय,
विषय- मारुति कार के लिए पूछताछ
6.पत्र का विषय- यह पत्र का मुख्य भाग हैं। इसमें भेजा जाने वाला संदेश होता है। यह भाग अभिवादन के नीचे पैराग्राफ से आरम्भ किया जाता है।
7. अन्तिम प्रशंसात्मक वाक्य- जिस प्रकार मौखिक वार्तालाप समाप्त होने पर विद लेते समय दो व्यक्ति परस्पर “नमस्कार” इत्यादि कहते हैं, उसी प्रकार व्यापारिक पत्रों में पत्रका विषय समाप्त होने पर विदा सूचक कुछ शिष्टाचारपूर्ण शब्द लिखे जाते हैं जिन्हें “अन्तिम प्रशंसात्मक वाक्य” कहते हैं। जैसे- आपका शुभचिन्तक या आपका विश्वासी या सद्भावी अपका शुभेच्छु।
8. हस्ताक्षर एवं पदनाम- भवदीय के नीचे स्पष्ट हस्ताक्षर किया जाना चाहिए। यदि हस्ताक्षर अस्पष्ट हो तो कोष्टक में नाम का स्पष्ट उल्लेख आवश्यक है। यदि हस्ताक्षरकर्ता दूसरे की ओर से पत्र लिख रहा है तो निमित्त’ के वास्ते, के लिए आदि शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। हस्ताक्षर के नीचे पदनाम का उल्लेख होना चहिए। जैसे- व्यवस्थापक, प्रबन्धक, संचालक भागीदार।
9. संलग्नक- हस्ताक्षर के बाद पत्र के बाई ओर थोड़ा स्थान छोड़कर पत्र के साथ नत्थी किये गये अन्य पत्र को (संलग्नकों) की संख्या लिखनी चाहिए।
जैसे- संलग्नक-91.
अर्थात् पत्र के साथ तीन और पत्रक भेजे जा रहे हैं।
10. पुनश्च- इसे पत्र का आवश्यक अंग नहीं माना जाना चाहिए। कभी-कभी सम्पूर्ण विषय वस्तु या सम्यक् संदेश के लिखने के बाद तत्सम्बन्धी किसी नयी बात का ध्यान आ जाता है तो उस नयी बात को पुनश्च लिखकर आगे लिख दिया जाता है- फिर कुछ और इसके अन्तर्गत उसमें कुछ नया जोड़ा गया है। उसके भी अन्त में पत्र लेखक को हस्ताक्षर अवश्य कर देना चाहिए।
व्यावसायिक पत्र का प्रारूप/आलेख
प्रेषक फर्म का नाम
1. तार……
पता…….
फोन……..
दिनांक……..
2. प्रापक (प्राप्त कर्ता) का नाम तथा पता………
3. अभिवादन युक्त सम्बोधन……………….
4. विषय शीर्षक…………………..
संदर्भ…………
5.विषय सामग्री-
(क)……………………….
(ख)……………………….
(ग)……………………….
6. अभिवादनात्मक समाप्ति…………………..
7.निमित्त-फर्म का नाम…………………
हस्ताक्षर……………..
पद……………………
8. संलग्नक।……………………..
9. पुनश्च।…………………….
- पारिवारिक या व्यवहारिक पत्र पर लेख | Articles on family and Practical Letter
- व्यावसायिक पत्र की विशेषताओं का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- व्यावसायिक पत्र की विशेषताएँ | Features of Business Letter in Hindi
- व्यावसायिक पत्र-लेखन क्या हैं? व्यावसायिक पत्र के महत्त्व एवं उद्देश्य
Important Links
- आधुनिककालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ | हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल का परिचय
- रीतिकाल की समान्य प्रवृत्तियाँ | हिन्दी के रीतिबद्ध कवियों की काव्य प्रवृत्तियाँ
- कृष्ण काव्य धारा की विशेषतायें | कृष्ण काव्य धारा की सामान्य प्रवृत्तियाँ
- सगुण भक्ति काव्य धारा की विशेषताएं | सगुण भक्ति काव्य धारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
- सन्त काव्य की प्रमुख सामान्य प्रवृत्तियां/विशेषताएं
- आदिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ/आदिकाल की विशेषताएं
- राम काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ | रामकाव्य की प्रमुख विशेषताएँ
- सूफ़ी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
- संतकाव्य धारा की विशेषताएँ | संत काव्य धारा की प्रमुख प्रवृत्तियां
- भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ | स्वर्ण युग की विशेषताएँ
- आदिकाल की रचनाएँ एवं रचनाकार | आदिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ
- आदिकालीन साहित्य प्रवृत्तियाँ और उपलब्धियाँ
- हिंदी भाषा के विविध रूप – राष्ट्रभाषा और लोकभाषा में अन्तर
- हिन्दी के भाषा के विकास में अपभ्रंश के योगदान का वर्णन कीजिये।
- हिन्दी की मूल आकर भाषा का अर्थ
- Hindi Bhasha Aur Uska Vikas | हिन्दी भाषा के विकास पर संक्षिप्त लेख लिखिये।
- हिंदी भाषा एवं हिन्दी शब्द की उत्पत्ति, प्रयोग, उद्भव, उत्पत्ति, विकास, अर्थ,
- डॉ. जयभगवान गोयल का जीवन परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक परिचय, तथा भाषा-शैली
- मलयज का जीवन परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक परिचय, तथा भाषा-शैली
Disclaimer