व्यावसायिक पत्र की विशेषताओं का वर्णन किजिए।
व्यावसायिक पत्रों के लेखन में व्यवासय के अनुसार शैली की छाप होती हैं। यह निजी पत्रों की अनौपचारिकता से दूर केवल व्यवसाय की बात से बँधा होता है। इसकी कुछ सीमाएँ होती हैं तो कुछ विशेषताएँ भी होती हैं। एक व्यावसायिक पत्र का स्वरूप कुछ विशिष्टताओं से ओत-प्रोत होता है जो सामान्यत: सभी व्यावसायिक पत्रों में समान रूप से होती हैं। व्यावसायिक पत्र की विशेषताँए उसके बहिरंग एवं अंतरंग के आधार पर भिन्न-भिन्न हैं। बहिरंग पर आधारित विशिष्टताएँ निम्नलिखित हैं-
- स्टेशनरी
- कागज
- कागज का आकार
- टाइप
- लिफाफा, कार्बन व रिबन
- पत्र मोड़ना व लिफाफे में रखना
- मुद्रांकन
अंतरंग पर आधारित विशेषताएँ-
प्रमुखतः विषय सामग्री से सम्बन्धित हैं जो कि अग्रलिखित हैं-
(1) पूर्णता (2) नम्रता (3) शुद्धता (4) स्पष्टता (5) संक्षिप्तता (6) प्रभावपूर्णता (7) सरलता (8) ऐक्यता (9) मौलिकता (10) आकर्षण
बहिरंग अर्थात् स्वरूप पर आधारित विशेषताएँ-
व्यावसायिक पत्र का महत्त्वपूर्ण अंग है। जैसे व्यक्ति का आकलन प्रायः उसके वस्त्रों के आधार पर किया जाता है वैसा की कुछ-कुछ व्यापार व्यवसाय के क्षेत्र में पत्र के बाह्य स्वरूप से भी अनुमान लगा लिया जाता है कि पत्र प्रेषक व्यवसायी का स्तर और रुचि कैसी है। पत्र के सबसे प्रमुख एवं प्रथम घटक हैं-
(1) स्टेशनरी अर्थात् लेखन सामग्रगी- यह प्रेषित करने वाजी व्यावसायिक संस्था या फर्म के स्तर के अनुकूल होनी चाहिए। पत्र का प्राप्तकर्ता, व्यवसायी के आर्थिक स्तर, प्रगति एवं व्यवसाय में उसके स्थान का अनुमान इसी से प्रायः लगाते हैं।
(2) कागज- वह घटक है जिस पर पत्र प्रेषक अपना सन्देश भेजता है अत: कागज की गुणवत्ता, रंग एवं आकार पर विशेष ध्यान देना चाहिए। सफेद कागज पर काले या गाढ़े नीले अक्षर स्पष्ट दिखते हैं अत: आमतौर पर सफेद कागज का प्रयोग ही किया जाता है। रगीन कागज का चयन करने की स्थिति में लिखने वाले पेन स्याही अथवा टाइप की स्याही के रंग का तालमेल आवश्यक हो जाता है। कागज इतना महीन नहीं होना चाहिए कि पीछे के पृष्ठों की छाया दिखे या टाइप के समय फट जाये।
(3) व्यापारिक आवश्यकता एवं सन्देश की अधिकता एवं न्यूनता के आधार पर कागज का आकार बड़ा, छोटा या मध्यम रखा जाना चाहिए। सामान्यतः 10″ x 8″ या 5 1/2″ x 8 1/2″ के लैटर पैड व्यवहार में लाये जाते हैं।
(4) अधिकतर व्यावसायिक पत्र टंकित (टाइप) कराकर भेजे जाते हैं। पत्र के टंकण (typing) के सम्बन्ध में यह ध्यान रखना चाहिए कि पत्र में उससे साज-सज्जा में वृद्धि हो। पर्याप्त हाशिया, पंक्तियों के बीच दोहरे स्थान की छूट (Double Space) या इकहरी (Single spacing)जैसी सामग्री या कागज की आकार हो, तदनुरूप करनी चाहिए- प्रायः सवा इंच या एक इंच का हाशिया बायीं ओर तथा आधा इंच का दाई ओर छोड़ा जाता है। पत्र के सन्देश को अनुच्छेदों में महत्व के अनुसार क्रम में रखना चाहिए। यह छोटे हों तब बेहतर होता है। टाइप या Vel.kead kiv’ifa kaljlo ; ki qykku (Over writing) नहीं होनी चाहिए। शुद्धता का महत्व सर्वोपरि है पत्र का टंकण एकरूपता से युक्त होना चाहिए कहीं छेटा-बड़ा कहीं हल्की या गाढ़ी स्याही पढ़ने वाले में झुंझलाहट उत्पन्न करती है। पत्र की महत्वपूर्ण बातों को रेखांकित कर दिया जाना चाहिए, जिससे प्राप्तकर्ता का ध्यान आकर्षित किया जा सके।
(5) व्यावसायिक प्रतिष्ठानों आदि में आयताकार लिफाफों का प्रयोग किया जाता है 31/4″x 6″ से लेकर 3 1/2″ x6 1/4″ के लिफाफे अधिक प्रयुक्त होते हैं। कार्बन व रिबन मूल पत्र की छायाप्रति कार्यालय में रखने के लिए आवश्यक होते हैं, इनकी स्याही उचित होनी चाहिए।
(6) पत्र लिखने के पश्चात् उसे सावधानीपूर्वक मोड़ना चाहिए जिससे अनावश्यक सिलवटें न पड़ें। पारदर्शी या खिड़कीदार लिफाफों में पत्र रखते समय इस प्रकार मोड़कर रखना चाहिए कि अन्दर का पता स्पष्ट दिखे।
(7) उचित मुद्रांकन (Stamping) आवश्यक हैं। यदि फ्रैंकिग मशीन (Franking machine ) का प्रयोग हो तो फिर (Stamping) मुद्रांकन की अनिवार्यता नहीं रह जाती है।
व्यावसायिक पत्र के अतरंग की दृष्टि से –
(1) पूर्णता सर्वप्रथम अनिवार्यता है। पत्र में सभी आवश्यक बातों का समावेश हो जाना चाहिए, जिससे दूसरी बार पूछताछ की आवश्यकता न रहे।
(2) नम्रता पूर्वक शिष्ट भाषा में अपनी बात को रखना चाहिए एवं उत्तर भी देना चाहिए। शिष्टता या नम्रता का प्रदर्शन केवल भाषा तक सीमित नहीं है, समय पर सही सूचना देना या कार्य करना प्रार्थनाओं पर शीघ्र प्रतिक्रिया करना भी आता है।
(3) शुद्धता का महत्त्व व्यावसायिक पत्र भी है। भ्रमपूर्ण या असत्य बात या आँकड़े देने से भविष्य में व्यापार में साख गिरती है, इसका ध्यान रखना चाहिए। सभी तथ्यों में (Accuracy) होनी चाहिए।
(4) स्पष्टता भी व्यावसायिक पत्र में आवश्यक है इसलिए भाषा सरल एवं स्पष्ट होनी चाहिए जिससे कही गई बात का पूरा मर्म स्पष्ट समझ में आ जाये।
(5) संक्षिप्तता व्यापारिक पत्र का महत्त्वपूर्ण अंग है। एक व्यवसायी के पास बर्बाद करने के लिए समय नहीं होता अतः पत्र का विषय संक्षिप्तता के साथ सरल एवं स्पष्ट भाषा में हो तो वह उसे अधिक ग्राह्य होता है।
(6) पत्र की शैली तर्कपूर्ण तथा शब्द प्रयोग समयानुकूल प्रभाव अत्पादक होना चाहिए जिससे पत्र का प्राप्तकर्ता वही बात सोचने को प्रेरित हो सके जो पत्रवाहक ने पत्र में लिखी हैं। यही प्रभावपूर्णता व्यवसाय को आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगी।
(7) पत्र का कथ्य सरल एवं स्पष्ट भाषा में लिखना चाहिए जिससे कोई भ्रम न रहे।
(8) पत्र के विचारों में ऐक्य या एकता होनी चाहिए अपनी बात तर्कपूर्णता के साथ एक दिशा में रखनी चाहिए। अनेक अनुच्छेद होने पर भी विचारों की तारतम्यता बनी रहनी चाहिए।
(9) पत्र की भाषा में मौलिकता पत्र प्राप्तकर्ता के हृदय में छाप छोड़ने में सहायक होती है जो कि भविष्य में व्यापारिक सम्बन्धों पर प्रभाव डालती है। अत: भाषा में मौलिकता होनी चाहिए।
(10) पत्र पहली ही दृष्टि में प्राप्तकर्ता को आकर्षित करे, ऐसा होना चाहिए। टाइपिंग शुद्धता की अशुद्धि काट-छांट, शब्दों की अस्पष्टता से यह आकर्षण नष्ट न हो इसका ध्यान अवश्य देना चाहिए।
(11) व्यापारी को अपने देश की भाषा, संस्कृत आदि का ध्यान रखते हुए शिष्टाचारपूर्वक व्यावसायिक व्यक्ति को पत्र लिखना चाहिए। यह ध्यान देना चाहिए कि शिष्टाचार व्यापार को विकसित करने का ऐसा साधन है जिसे खरीदना या उधार नहीं लेना पड़ता है।
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