परामर्श के लक्ष्य या उद्देश्य | Goals/Aim of Counselling in Hindi
परामर्श का लक्ष्य (Goals/Aim of Counselling)- परामर्श के लक्ष्य के अन्तर्गत परामर्शकर्ता, परामर्शी एवं मध्यवर्ती वर्गों को शामिल किया जाता है। परामर्श प्रक्रिया लक्ष्य उन्मुख होता है। परामर्श के लक्ष्य (Goals of Counselling) अत्यन्त व्यापक होते हैं। इन लक्ष्यों में से कुछ लक्ष्य मुख्यतः समकालीन जीवन से सम्बन्धित होते हैं। जबकि कुछ अन्य लक्ष्यों का सम्बन्ध मूलतः व्यक्ति के भविष्य की सम्भावित समस्याओं के समाधान के लिए समर्थता से होता है।
परामर्श के लक्ष्य निर्धारण-
परामर्श लक्ष्य निर्धारण के सन्दर्भ में मुख्यतः तीन बातें मूलतः ध्यान देने योग्य होती हैं, जो निम्नवत् हैं-
(1) साध्य (Ends) की उपेक्षा कर साधनों (Means) पर ही ध्यान केन्द्रित करना सर्वदा उचित नहीं। परामर्श हेतु व्यक्ति की आवश्यकताओं तथा समस्याओं के स्वरूप निर्धारण के लिए मनोवैज्ञानिकों ने अनेक परीक्षणों व तकनीकों (Tests and Techniques) को विकसित किया है। परामर्श में साधन या साध्य किसी एक को अधिक महत्व देना अनुचित है।
(2) समाज एवं धर्मगत जीवन के लक्ष्यों को रखते हुए ही परामर्श के लक्ष्यों को निर्धारित करना चाहिए लेकिन इसका तात्पर्य कोई प्रतिबद्धता (Conformity) नहीं है। श्रेष्ठ तो होना चाहिए। अतः परामर्श के लक्ष्यों को जीवन के लक्ष्यों की सापेक्षता में ही निर्धारित किया यह है कि परामर्श के लक्ष्यों तथा जीवन के लक्ष्यों में विरोधाभास न होकर सामंजस्य ( Harmony) जाना चाहिए।
(3) परामर्श का सम्बन्ध “सम्पूर्ण मनुष्य’ (Whole man) अर्थात् उसके “समग्र व्यक्तित्व” (Total Personality) से होना चाहिए, न कि परामर्शी के जीवन के किसी पक्ष विशेष से. अर्थात् परामर्श का लक्ष्य व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व का विकास होना चाहिए। परामर्श का यथार्थ लक्ष्य परामर्शी व्यक्ति को जीवन के श्रेष्ठतम धरातल पर पहुंचने में सहायता करता है।
पैटर्सन (Patterson) परामर्श के लक्ष्यों को तीन रूपों में वर्गीकृत करते हैं-
(i) मध्यस्थताकारी लक्ष्य (Mediating Goals);
(ii) मध्यवर्ती लक्ष्य (Intermediate Goals);
(iii) अभीष्ट लक्ष्य (Ultimate Goals)।
पालॉफ्स (Paloffs) परामर्श के लक्ष्यों को दो वर्गों में वर्गीकृत करते हैं-
(i) तात्कालिक लक्ष्य (Immediate Goals);
(ii) अभीष्ट लक्ष्य (Ultimate Goals)।
कुछ परामर्श मनोवैज्ञानिकों ने इन लक्ष्यों के अतिरिक्त प्रक्रिया लक्ष्य (Process goals) का भी उल्लेख किया है, जबकि कुछ परामर्श मनोवैज्ञानिकों ने तात्कालिक लक्ष्यों (Immediate goals) को मध्यस्थताकारी लक्ष्यों (Mediate goals) के समानार्थी भी माना है। परामर्श के तात्कालिक/मध्यस्थाकारी लक्ष्यों में कुछ लक्ष्य (Goals) ऐसे भी होते हैं जो कि एक दूसरे को अंशतः व्याप्त (Overlap) भी करते हैं। परामर्श के तात्कालिक या मध्यस्थताकारी लक्ष्य निम्नवत् होते हैं-
(1) समस्या समाधान का स्वरूप- परामर्श में परामर्शी ऐसी अपेक्षा करते हैं. कि परामर्श से उनकी समस्या का तुरन्त समाधान हो जायेगा। उसके जीवन में कुछ ऐसे प्रश्न भी उत्पन्न हो जाते हैं जो कि उसके जीवन दर्शन की अनेक प्रकार की दुविधाओं व अतद्वन्द्वों को भी प्रकट करते हैं। परामर्श का लक्ष्य उस परामर्शी की समस्या के सन्दर्भ में अन्वेषणात्मक अधिकतम जानकारी प्राप्त करना तथा उसके संवेगों ओर उसकी व्यावहारिकता को सहज बनाना होता है। परामर्शदाता द्वारा ऐसा पूरा प्रयास किया जाता है कि परामर्शी की समस्या का समाधान तत्काल न हो सके तो शीघ्र से शीघ्र ही उसकी समस्या समाधान या दुविधा का निराकरण हो सके।
(2) अन्तर्दृष्टि का विकास करना- व्यावहारिकता में देखा जाता है कि कुछ व्यक्तियों का व्यवहार (Behavior) ऐसा होता है कि उसके सामने अक्सर कुछ न कुद समस्याएँ उत्पन्न होती ही रहती हैं और उस समस्या के समाधान के सन्दर्भ में उनकी प्रतिक्रिया कुछ ऐसी होती है कि उसे समस्या का समाधान की सबसे प्रथम आवश्यकता व्यक्ति की अन्तर्दृष्टि का अभाव होना होता है। अतः परामर्श में परामर्शदाता का विशेष लक्ष्य एक यही होता है कि परामर्शी में अन्तर्दृष्टि को विकसित करें। समस्या समाधान तो नहीं होता बल्कि उनकी समस्या/समस्याओं की जटिलता और बढ़ती चली जाती है। ऐसा होने का मुख्य कारण उस व्यक्ति या परामर्शी में अन्तर्दृष्टि का अभाव होना होता है। अतः परामर्श में परामर्शदता का विशेष लक्ष्य एक यही होता है कि परामर्शी में अन्तर्दृष्टि ही होती है अन्तर्दृष्टि तथा आत्मबोध का विकास एक सतत् प्रक्रम होता है जो कि परामर्श, विकास तथा मनोपचार जैसी समस्त प्रक्रियाओं के साथ सम्बन्धित रहता है। अन्तर्दृष्टि के विकास से परामर्श को अपनी समस्याओं के कारणों का विश्लेषण, व्यवहार परिवर्तन, उपचार और समस्या के समाधान में विशेष सहयोग प्राप्त होता है।
(3) व्यावहारिक सुधार को उन्मुख- मानसिक विकृतियों के अतिरिक्त व्यक्तिके सामान्य व्यवहार में समस्याएँ उत्पन्न होने पर मनोरचनाओं की सक्रियता का परिणाम व्यक्ति के व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों के रूप में देखा जा सकता है। यह एक प्रकार का व्यावहारिक सुधार अर्थात् लक्षण उन्मूलन ही होता है। मनोदैहिक विकृतियों से सम्बन्धित लक्षण, सामान्य कार्यों में क्रियात्मक/प्रकार्यात्मक कठिनाइयाँ, चिड़चिड़ापन जैसी स्थितियों में परामर्शदता को व्यावहारिक…
4. विकासात्मक लक्ष्य (Development Goals)- विकासात्मक लक्ष्य वे हैं जिनम परामर्शी (client) को प्रत्याशित मानवीय संवृद्धि (growth) और विकास को प्राप्त करने में सहायता प्रदान की जाती है (जैसे, सामाजिक, व्यक्तिगत, संवेगात्मक, संज्ञात्मक, दैहिक आदि)।
5. निरोधक लक्ष्य (Preventive Goals)-निरोधक लक्ष्य वह है जिसमें परामर्शदता, परामर्शी को अवांछित परिणामों को उपेक्षित करने में सहायता देता है।
6. वर्द्धन लक्ष्य (Enhancement Goals)- यदि परामर्शी में विशेष कौशल (Skill) और योग्यताएँ (Abilities) हैं, तो उन्हें परामर्शदाता की सहायता से पहचाना और विकसित किया जा सकता है।
7. उपचारी लक्ष्य (Remedial Goals)- उपचार का अर्थ है परामर्शी के अवांछित विकास का उपचार करना।
8. खोजात्मक लक्ष्य (Exploratory Goals)- खोजात्मक लक्ष्य ऐसे लक्ष्यों का प्रतिनिधित्व करता है जो उपयुक्त विकल्पों और कौशलों का परीक्षण तथा नवीन भिन्न क्रियाओं, पर्यावरण और सम्बन्धों आदि को जाँचता है।
9. पुनर्बलन लक्ष्य (Reinforcement Goals)- पुनर्बलन का प्रयोग तब किया जाता है जब परामर्शी को जो कुछ वह कर रहा है, सोच रहा है और अनुभव कर रहा है, वह सही है को पहचानने के लिए सहायता की आवश्यकता होती है।
10. संज्ञानात्मक लक्ष्य (Cognitive Goals)- संज्ञान में अधिगम कौशल का प्राथमिक आधार प्राप्त करना सन्निहित होता है।
11. शरीर कियात्मक लक्ष्य (Physiological Goals)- शरीर क्रिया विज्ञान (Physiology) में प्राथमिक समझ और आदतें प्राप्त करना सन्निहित होता है ताकि स्वास्थ्य अच्छा बना रहे।
12. मनोवैज्ञानिक लक्ष्य (Psychological Aims)- मनोविज्ञान, सामाजिक अन्तःक्रिया कौशल, अधिगम, संवेगात्मक नियन्त्रण, सकारात्मक, आत्मधारणा विकसित करना आदि में सहायक होता है।
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