व्यवसायीकरण एवं शिक्षा की नई पद्धति | 10 +2 +3 शिक्षा प्रणाली क्या है ?
आयोग कक्षा दस से तात्पर्य है कि 10 वर्ष तक बिना किसी भेदभाव के सभी छात्र-छात्राओं को व्यापक रूप से समान शिक्षा दी जाए। 10 वर्ष के पाठ्यक्रम में सभी विषय अनिवार्य होंगे। विद्यार्थियों को उन विषयों का ज्ञान दिया जाएगा जो उनके जीवन में काम आएँगे। 10 वर्ष की शिक्षा के बाद +2 की शिक्षा का प्रावधान होगा। उस योजना के तहत विद्यार्थियों के लिए दो विकल्प खुले होंगे – (i) व्यावसायिक एवं औद्योगिक शिक्षा (ii) एकेडेमिक। इसके अतिरिक्त विद्यार्थियों की रुचि, अभिरुचि, बौद्धिक स्तर एवं कार्यक्षमता के अनुसार विषयों का भी इस स्तर पर पृथकीकरण किया जाएगा। भारतीय संदर्भ में विद्यालय शिक्षा के व्यवसायीकरण के क्षेत्र में मार्गदर्शन योजनाएँ बनाने के लिए एक अध्ययन मंडल की नियुक्ति की गई जिसने जनवरी 1970 में रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट का परीक्षण एक विशेषज्ञ मंडल द्वारा किया गया। मार्गदर्शन योजनाओं को 20 जिलों में चलाया जाएगा तथा उसकी सफलता के लिए दो करोड़ रुपयों का प्रबन्ध किया गया।
माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण में बड़ी सफलता प्राप्त करने के लिए इसे रोजगार की सुविधाओं से जोड़ना होगा। शिक्षा का समन्वय एक तरफ तो प्रशिक्षण के साथ तथा दूसरी ओर आर्थिक विकास के साथ स्थापित किया जाना चाहिए। माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण के कार्यक्रमों को योजनाबद्ध करने के लिए निरीक्षणों तथा अध्ययन की आवश्यकता है। औद्योगिक तथा शिक्षण अधिकारियों में सहयोग होना चाहिए। औद्योगिक केन्द्रों से जो की शिक्षा प्राप्त करेंगे, वे महाविद्यालयों में दाखिला ले सकते हैं।
भारतीय शिक्षा आयोग तथा शिक्षा कमेटियों के अनुसार इस विषय में सामान्य रूप से कहा जा सकता है कि-
(i) शैक्षिक स्तरों में एकरूपता लाना। (ii) बौद्धिक परिपक्वता। (iii) अध्यापक शिक्षण स्तर में सुधार । (iv) शिक्षा संरचना में एकरूपता। (v) आर्थिक विकास से सम्बन्धित । (vi) भावानात्मक एकता का विकास। (vii) व्यावसायिक प्रवृत्ति को आधार देना। (viii) उच्च शिक्षा को विशेष व्यक्तियों के लिए निश्चित करना। (ix) छात्रों की रुचियों के अनुसार शिक्षा व्यवस्था। (x) कार्य अनुभव को विशेष महत्व। (xi) विद्यार्थियों की योग्यताओं के अनुसार शिक्षा व्यवस्था। (xii) मूल्यांकन की नई प्रणाली।
इसके अन्तर्गत मूल्यांकन की निम्नलिखित नवीन प्रणालियाँ आती हैं
(A) आन्तरिक मूल्यांकन। (B) ग्रेड प्रणाली। (C) उत्तीर्ण-अनुत्तीर्ण प्रणाली को अलविदा। (D) ग्रेड में सुधार की अनुमति। (E) निरन्तर मूल्यांकन। (F) प्रश्न बैंक पर दबाव।
नई शिक्षा व्यवस्था को लागू करने में बाधाएँ –
(i) निर्देशन की कमी। (ii) आर्थिक समस्याएँ। (iii) अनिवार्य पाठ्यक्रम की कठिनाइयाँ । (iv) प्रशिक्षित अध्यापकों की कमी। (v) छात्रों की क्षमता की दृष्टि से कठिनाइयाँ । (vi) सम्पर्क बनाने में परेशानियाँ। (vii) प्रशासन से सम्बन्धी कठिनाइयाँ। (viii) व्यवसाय से सम्बन्धित परेशानियाँ।
10+2+3 लागू करने के सुझाव –
(1) उपयुक्त पाठ्यक्रम का निर्माण। (2) +2 के व्यावहारि पक्ष पर जोर। (3) उद्देश्यपूर्ण पाठ्यक्रम। (4) व्यवसाय के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव (5) निर्देशन केन्द्रों की स्थापना। (6) शिक्षक प्रशिक्षण में व्यापक बदलाव। (7) छात्रों की मनोवृत्ति में बदलाव। (8) शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार। (9) जनपत इकट्ठा करना। (10) विभिन्न विभागों में तालमेल। (11) आर्थिक सहायता। (12) कार्यशालाओं एवं प्रयोगशालाओं का निर्माण। (13) प्रान्तीय एवं केन्द्रीय सरकारों का योगदान ।
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