लिंग संवेदनशीलता की विशेषताएँ
Characteristics of Gender Sensitization
लिंग संवेदनशीलता सम्बन्धी विद्वानों के विचार एवं इसकी अवधारणा का विश्लेषण करने पर इसमें निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं-
1. व्यवहार परिमार्जन की प्रक्रिया (Process of behaviour modification)- लिंग संवेदनशीलता में व्यक्ति के व्यवहार का परिमार्जन किया जाता है। इसमें स्त्री को पुरुष के समक्ष अपना व्यवहार आदर्श एवं मर्यादित रूप में रखना चाहिये तथा पुरुष को स्त्री के समक्ष मर्यादित रूप में अपना व्यवहार प्रस्तुत करना चाहिये; जैसे-पुरुषों द्वारा स्त्रियों के समक्ष अश्लील गालियों का प्रयोग नहीं करना चाहिये तथा महिलाओं के लिये अमर्यादित शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिये। इस प्रकार की अनेक त्रुटियों को व्यवहार से निकाला जाता है।
2. आदर्श व्यवहार की प्रक्रिया (Process of ideal behaviour)- लिंग संवेदन- शीलता को आदर्श व्यवहार की प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है। प्राचीनकाल में वैदिक सभ्यता में स्त्री एवं पुरुष के मध्य आदर्श व्यवहार की स्थिति थी। इस स्थिति में कोई भी पुरुष स्त्री के प्रति कामुकता की दृष्टि नहीं रखता था वरन् मातृवत् परदारेषु की भावना समाज में प्रचलित थी। इस समय का व्यवहार आदर्श व्यवहार था। इस प्रकार के व्यवहार का विकास करना वर्तमान समय की आवश्यकता है जिसे लिंग संवेदनशीलता के माध्यम से पूर्ण किया जा रहा है।
3. संवेगात्मक स्थिरता की प्रक्रिया (Process of emotional stability)- लिंग संवेदनशीलता की प्रक्रिया में संवेगों पर नियन्त्रण करना सिखाया जाता है। एक छात्र को छात्रा के व्यवहार पर बहुत क्रोध आता है परन्तु वह अपने क्रोध पर नियन्त्रण रखते हुए छात्रा को उसकी त्रुटि को समझाता है। इसी प्रकार का व्यवहार छात्रा द्वारा छात्र के प्रति किया जाता है। इस प्रकार एक-दूसरे के माध्यम से एक-दूसरे के व्यवहार एवं संवेगों को समझा जाता है तथा नियन्त्रण किया जाता है। इस प्रकार छात्र एवं छात्राओं में संवेगात्मक स्थिरता विकसित होती है। इसलिये इसको संवेगात्मक स्थिरता के विकास की प्रक्रिया माना जाता है।
4. सामाजिक सुरक्षा की प्रक्रिया (Process of social security)- लिंग संवेदन- शीलता की प्रक्रिया में सामाजिक सुरक्षा का वातावरण उत्पन्न होता है; जैसे-एक अभिभावक अपनी बालिका को सह शिक्षा वाले विद्यालय में इसलिये अध्ययन को भेजता है कि उसको यह ज्ञात होता है कि उस विद्यालय के छात्र, शिक्षक एवं कर्मचारियों का व्यवहार आदर्श रूप में है तथा बालिकाओं के प्रति सम्मानजनक व्यवहार किया जाता है। दूसरे शब्दों में उस विद्यालय के प्रत्येक व्यक्ति का व्यवहार सामाजिक सुरक्षा का आश्वासन देता है। इसलिये लिंग संवेदनशीलता को सुरक्षा की प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है।
5.सामाजिक न्याय की प्रक्रिया (Process of social justice)- लिंग संवेदनशीलता में स्त्री एवं पुरुष के साथ समानता के व्यावहारिक आदान-प्रदान की व्यवस्था होती है। इसमें किसी भी स्त्री द्वारा पुरुष के साथ तथा पुरुष द्वारा स्त्री के साथ अशोभनीय या अपमानजनक व्यवहार नहीं किया जा सकता। इससे सभी को सामाजिक न्याय की प्राप्ति होती है। इसलिये इसे सामाजिक न्याय की प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जाता है।
6. प्रजातान्त्रिक प्रक्रिया (Democratic process)- लिंग संवेदनशीलता के अन्तर्गत लैंगिक असमानता को दूर करने का प्रयास किया जाता है। इसमें स्त्री एवं पुरुष को समान कार्य के लिये समान मजदूरी देने में दोनों ही पक्षों का सहयोग देखा जाता है। विद्यालय में शिक्षक द्वारा छात्र-छात्राओं के साथ समानता का व्यवहार किया जाता है। छात्रों द्वारा छात्राओं के प्रति समानता एवं सम्मानजनक व्यवहार किया जाता है। इस प्रकार विद्यालय एवं समाज दोनों में प्रजातान्त्रिक वातावरण का सृजन होता है। इसलिये इसे प्रजातान्त्रिक मूल्यों के विकास की प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है।
7.सम्मानजनक व्यवहार की प्रक्रिया (Process of respected behaviour)- लिंग संवेदनशीलता के अन्तर्गत बालक एवं बालिकाओं को पारिवारिक एवं विद्यालयी स्तर पर एक-दूसरे के प्रति सम्मानजनक व्यवहार करना सिखाया जाता है। इससे प्रत्येक छात्र-छात्रा द्वारा एक-दूसरे के प्रति आत्मीय एवं सम्मानजनक व्यवहार किया जाता है। इससे विद्यालय एवं समाज में किसी की भावना को ठेस नहीं पहुँचती। इसलिये लिंग संवेदनशीलता को सम्मानजनक व्यवहार की प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है।
8. सृजनात्मक प्रक्रिया (Creative process)- लिंग संवेदनशीलता के माध्यम व्यवहार में उत्तरोत्तर सकारात्मक परिवर्तन किये जाते हैं। इस सकारात्मक परिवर्तन के परिणाम- स्वरूप व्यवहार में नवीनता आती है। व्यवहार के नकारात्मक पक्षों का उन्मूलन होता है तथा व्यवहार में सकारात्मक पक्षों का समावेश होता है। इस प्रकार नवीन व्यवहार का सृजन होता है जो कि लैंगिक असमानता को समाप्त करता है। इसलिये इसको सृजनात्मकता की प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है।
9. सामाजिक प्रक्रिया (Social process)- सामाजिक गतिविधियों के सर्वोत्तम संचालन में लिंग संवेदनशीलता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। लिंग संवेदनशीलता के माध्यम से समाज में स्त्रियों के प्रति होने वाले अमानवीय आचरण एवं शोषण का उन्मूलन होता है। प्रत्येक स्त्री एवं पुरुष को सम्मानित रूप में सामाजिक जीवन व्यतीत करने का अवसर प्राप्त होता है। इसलिये यह एक सामाजिक प्रक्रिया के रूप में जानी जाती है।
10. मानवीय प्रक्रिया (Human being process)- लिंग संवेदनशीलता में प्रत्येक शिक्षक एवं अभिभावक को बालक-बालिकाओं के साथ समान व्यवहार करने की सलाह दी जाती है तथा लिंग सम्बन्धी प्रत्येक प्रश्न का उत्तर सकारात्मक रूप में देने के लिये प्रेरित किया जाता है। लिंग संवेदनशीलता के माध्यम से ही समाज में व्याप्त लैंगिक असमानता, स्त्रियों के शोषण एवं विविध विसंगतियों का समापन किया जाता है और समाज में समग्रता एवं भावात्मक एकता का वातावरण उत्पन्न किया जाता है। इसलिये इसे मानवीय प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जाता है।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि लिंग संवेदनशीलता प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से समाज के विविध क्षेत्रों को प्रभावित करती है। इसका प्रभाव मानव एवं समाज के चहुँमुखी विकास पर पड़ता है। इसलिये वर्तमान समय में लिंग संवेदनशीलता का प्रचार-प्रसार आवश्यक है।
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