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राजभाषा से आप क्या समझते हैं ? राजभाषा रूप में हिन्दी का स्थान |राजभाषा के रूप में हिन्दी का महत्व|

राजभाषा से आप क्या समझते हैं ?
राजभाषा से आप क्या समझते हैं ?

राजभाषा से आप क्या समझते हैं ? राजभाषा रूप में हिन्दी का क्या स्थान है ? राजभाषा के रूप में हिन्दी का क्या महत्व है ?

राजकाज चलाने के लिये जिस भाषा विशेष का प्रयोग किसी देश में या राज्य में होता है। राजभाषा संज्ञा दी जा सकती है। अत: राजभाषा, भाषा के उस रूप को कहते हैं जिसमें राजाज्ञायें प्रसारित की जायें तथा राज काज में प्रयोग किया जाये। अशोक की राजाज्ञायें तत्कालीन ‘पालि’ भाषा में प्राप्त हुई हैं। मुसलमान बादशाहों के शासन काल में शासन कार्य का माध्यम हिन्दी भाषा थी। ब्लाखमन ने 1871 के कलकत्ता रिव्यू’ में लिखा है- “मालगुजारी इकट्ठा करना व जागीरों का प्रबन्ध करना- उस समय बिल्कुल हिन्दुओं के हाथ में था और इसीलिए निजी तथा सर्वसाधारण के हिसाब किताब हिन्दी में रखे जाते थे।” राजा टोडरमल के आदेश से सरकारी कागजात फारसी में लिखे जाने लगे और ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 1833 तक फारसी को शासन कार्य का माध्यम बनाये रखा। मैकाले ने ही उसके स्थान पर अंग्रेजी प्रतिष्ठित करने की योजना रखी। हिन्दी प्रदेश में अंग्रेजी कूटनीति व फारसी में निपुण मुंशी वर्ग की परम्परा के कारण उर्दू की प्रतिष्ठा हुई तथापि राजस्थान, मध्य प्रदेश (कश्मीर को छोड़कर), उत्तरी भारत की सभी रियासतों का कार्य भार हिन्दी के माध्यम से ही चलता रहा है। मद्रास व बंगाल के बाबू वर्ग का व्यापक रूप में व अन्य प्रांतों में थोड़े से सम्भ्रान्त लोगों का सीमित रूप में अंग्रेजी के प्रति मोह बढ़ता गया। परिस्थिति एवं नौकर वृत्ति के कारण इन लोगों का आत्म गौरव, स्वाभिमान एवं बौद्धिक स्वातंत्र्य मानों नष्ट हो गया। राष्ट्रीय चेतना के विकास के साथ-स्वभाषा को राजपद दिलाने की मांग उठी। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने नारा लगाया-

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल।।

सबसे पहला संयुक्त प्रान्त में आरम्भ हुआ, उर्दू की जगह हिन्दी को कचहरियों में स्थान दिलाने के लिए पं० मदन मोहन मालवीय के सतत् प्रयत्न से 1901 ई० में संयुक्त प्रान्त की कचहरी की भाषा के रूप में हिन्दी को उर्दू के साथ समान अधिकार मिला। किन्तु व्यवहार में उर्दू की ही प्रधानता बनी रही। राष्ट्र भाषा या सामान्य भाषा होने के नाते हिन्दी ने पिछले 50 वर्षों से देश की राज भाषा के रूप में मान्यता पाने के नाते हिन्दी प्रान्तों में उर्दू के विरुद्ध और अखिल भारतीय रूप में अंग्रेजी के विरुद्ध संघर्ष किया है। 1947 ई० में देश की आजादी के बाद संविधान में हिन्दी भारत संघ को राज भाषा और देवनागरी राजलिपि स्वीकृत की गयी। आशा ये थी कि जिन कार्यों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग किया जाता है, उन कार्यों के लिए हिन्दी का प्रयोग किया जायेगा। किन्तु संविधान में कहा गया कि, “अगले 15 वर्ष के लिए, अंग्रेजी भाषा का प्रयोग उन सब कार्यों के लिए होता रहेगा, जिनके लिए अब तक होता रहा है। प्रत्येक 5 वर्ष के बाद राष्ट्रपति एक भाषा आयोग की नियुक्ति करेंगे जो हिन्दी के उत्तरोत्तर अधिक प्रयोग करने व अंग्रेजी के प्रयोग को घटाने की सिफारिश करेंगे।’………

“दो राज्यों के बीच में अथवा एक राज्य एवं सघ के बीच संवाद-विनिमय हेतु अंग्रेजी अथवा हिन्दी एवं परस्पर समझौते से अंग्रेजी न हो तो केवल हिन्दी का प्रयोग किया जायेगा। किसी राज्य की विधान सभा कानून द्वारा अपने प्रदेश की भाषा की मान्यता प्रदान कर सकेगी।” यद्यपि उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय के काम काज की भाषा अंग्रेजी होगी तथापि किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की अनुमति से राज्य के उच्च न्यायालय को अंग्रेजी से परिवर्तित कर उसी राज्य की किसी मान्य भाषा में काम-काज करने का आदेश दे सकता है।

संविधान के अनुच्छेद 351 द्वारा केन्द्रीय सरकर को हिन्दी के विकास एवं प्रचार का दायित्व सौंपा गया है, जो इसे उपरोक्त 15 वर्षों में कर लेना चाहिए था। प्रशासनिक शब्दावली के संग्रह, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के लिए ज्ञान विज्ञान की शब्दावलियाँ तैयार करने का काम केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय को सौंपा गया। 1971 में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग स्थापित किया गया जिसने विज्ञान, मानविकी, आयुर्विज्ञान, इंजीनियर, कृषि, एवं रक्षा की शब्दावली तैयारी की है। कानून शब्दावली का निर्माण करने के लिए विधि आयोग की स्थापना हुई। प्रशासनिक कार्य हेतु संहिताएँ, नियमावलियाँ फार्म, आदेश जो अंग्रेजी में थे, हिन्दी में अनूदित किये गये। 1955 ई० में राजभाषा आयोग की स्थापना की गई, जिसका कार्य हिन्दी के प्रयोग को बढ़ाना था। आयोग ने 15 वर्ष की अवधि के बाद भी अंग्रेजी जारी रखने की सिफारिश की। 1963 में संसद द्वारा राजभाषा अधिनियम पारित किया गया, जिसके अनुसार संघ के कार्यों हेतु अंग्रेजी प्रयोग की अवधि अनिश्चित काल के लिए बढ़ा दी गई। 1967 ई० में संशोधित अधिनियम के अनुसार आश्वासन दिया गया कि जब तक भारत का एक राज्य भी अंग्रेजी का प्रयोग करना चाहेगा तब तक कोई भी अन्य भाषा राजभाषा नहीं बन सकेगी। राज्य कर्मचारियों को हिन्दी में कार्य करने के लिए, हिन्दी सीखने के लिए प्रोत्साहन, भत्ते, पुरस्कार और वेतन वृद्धि का प्राविधान किया गया है। 1976 से गृहमंत्रालय का राज-भाषा विभाग समय-समय पर नियम और आदेश जारी करता रहता है; वार्षिक कार्यक्रम बनता है। हिन्दी की प्रगति को देखने के लिए उच्चस्तरीय केन्द्रीय हिन्दी समिति है, मंत्रालयों की अपनी-अपनी सलाहकार समितियाँ हैं, परन्तु अंग्रेजी के अधिकारी इन आदेशों, सुझावों को कागज पर ही रहने देते हैं और कोई परवाह नहीं करते। समितियों की न तो वार्षिक बैठकें होती हैं, न उनकी सलाहों पर कार्यान्वयन होता है। संशोधित अधिनियम के अनुसार हिन्दी में काम न करने वाले का न तो अहित ही होता है, न ही उसे दण्डित करने का विधान है। कुल मिलाकर हिन्दी को संविधान द्वारा निर्धारित स्थान दिलवाने में सरकार विफल रही है तथपि राज-काज में हिन्दी के बढ़ते हुए प्रचलन, देश की आधे से अधिक जनसंख्या द्वारा हिन्दी का दैनिक जीवन में प्रयोग, दूरदर्शन, आकाशवाणी, एवं चलचित्र में सशक्त माध्यम होने के कारण और उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान(हरियाणा, हिमांचल प्रदेश एवं बिहार राज्यों में राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होने के कारण आज हिन्दी देश की राजभाषा के रूप में मान्य होती जा रही है।

समीक्षा-

यह सत्य है कि पछले 35 वर्षों में हिन्दी का प्रयोग बढ़ा किन्तु अति मन्द गति से। अंगेजी का प्रयोग इससे कई गुना बढ़ा है, इसके कई कारण हैं-

(अ) सन् 1960 के राष्ट्रपति के आदेशानुसार 45 वर्ष से कम आयु के राज कर्मचारियों को हिन्दी सीखना अनिवार्य होगा। इसका व्यवहार पक्ष यह है कि सीखने वाले पुरस्कृत हुए, किन्तु न सीखने वाले दण्डित नहीं किए गए।

(ब) सन् 1955 के राजभाषा आयोग ने अनुशंसा की कि संविधान में निर्धारित 15 वर्षों के बाद भी अंग्रेजी का प्रयोग चलता रहे।

(स) सन् 1963 और 1967 के अधिनियमों में यह घोषणा की गई कि जिन राज्यों में अंग्रेजी का प्रयोग होता है, उसमें अंग्रेजी ही राजभाषा के रूप में प्रयुक्त होगी।

(द) भारतीय गणराज्य के विभिन्न राज्यों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया-

(क) उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली-जिनमें पत्र हिन्दी में प्रेषित होंगे।

(ख) पंजाब, गुजरात, चंडीगढ़ और अण्डमान निकोबार में पत्र सामान्यतः हिन्दी में प्रेषित होंगे, किन्तु साथ में अंग्रेजी अनुवाद भी भेजा जाएगा।

(ग) शेष राज्यों में समस्त पत्राचार अंग्रेजी में होगा।

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