B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

मध्यकालीन या मुगलकालीन शिक्षा का अर्थ, उद्देश्य, तथा इसकी विशेषताएँ in Hindi

मध्यकालीन या मुगलकालीन शिक्षा

मध्यकालीन या मुगलकालीन शिक्षा

 मध्यकालीन या मुगलकालीन शिक्षा
Mughal or Medieval Period Education

मध्यकालीन या मुगलकालीन शिक्षा – मोहम्मद गौरी को भारत का प्रथम मुस्लिम शासक माना जाता है। मोहम्मद गौरी से लेकर मुगल राज्य की समाप्ति तक अर्थात् 12वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक भारत पर मुस्लिम शासकों का अधिकार रहा। 1192 में तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को हराकर मोहम्मद गौरी ने भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना की। मुस्लिम शासक अपने साथ एक नवीन संस्कृति, धर्म तथा आदर्श लाये तथा अपने शासन को सुदृढ़ करने के लिये उन्होंने स्वयं को मुस्लिम धर्म तथा इस्लामी ज्ञान एवं संस्कृति का प्रचार करने के लिये समर्पित कर दिया। गुलाम, खिलजी, तुगलक, सैय्यद तथा लोदी वंश के बाद मुगल शासकों ने यहाँ पर अनेक शिक्षा संस्थाएँ खोली। मुस्लिम आक्रमणों तथा कालान्तर में मुस्लिम राज्य की स्थापना के फलस्वरूप भारतीय उपमहाद्वीप के जनजीवन में अनेक दूरगामी परिवर्तन हुए। शिक्षा व्यवस्था भी परिवर्तन के इस प्रभाव से अछूती नहीं थी। वैदिक श्लोकों तथा बुद्ध साहित्य के साथ-साथ कुरान की आयतों का भी पाठ होने लगा। यद्यपि मुस्लिम शासन के दौरान शिक्षा व्यवस्था हेतु न तो कोई औपचारिक एवं नियमित तथा न ही कोई व्यवस्थित शिक्षा योजना थी, परन्तु अधिकांश मुस्लिम शासकों ने इस्लामी शिक्षा के प्रति पर्याप्त रुचि दिखायी। प्रायः सभी मुस्लिम शासक शिक्षित थे तथा सभी ने विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया। शिक्षा को राज्य का उत्तरदायित्व न स्वीकारने के बावजूद भी लगभग सभी मुस्लिम शासकों ने अनेक शिक्षा संस्थाओं की स्थापना की तथा शिक्षा को प्रश्रय दिया, किन्तु यह कहना भी सत्य होगा कि इस काल में जनसाधारण की शिक्षा उपेक्षित थी। देश में एक नयी शिक्षा व्यवस्था अर्थात् इस्लामी शिक्षा की धारा प्रवाहित होने लगी थी। इसके अतिरिक्त मुस्लिम शासकों ने हिन्दू शिक्षा केन्द्रों को खुलकर लूटा, पुस्तकालयों को जलाया तथा हिन्दू विद्वानों को निरुत्साहित एवं दण्डित किया तथा मार डाला। इसके फलस्वरूप मध्यकालीन भारत में प्राचीन संस्कृत शिक्षा लगभग मृतप्राय हो गयी। यहाँ पर यह तथ्य भी स्मरणीय है कि हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों प्रकारों की शिक्षा को संरक्षण देने वाले मुस्लिम शासक बहुत बाद में सिंहासनारूढ़ हुए थे तथा ऐसे शासक अत्यन्त कम थे।

मुगलकालीन या मध्यकालीन शिक्षा के उद्देश्य
Aims of Mughal Period Education

मुस्लिमकाल में भारतवर्ष में एक पूर्णतया नवीन संस्कृति का प्रचलन किया गया। इसलिये इस काल की शिक्षा के उद्देश्य वेदकालीन एवं बौद्धकालीन शिक्षा के उद्देश्यों से पूर्णतया भिन्न थे।

मुस्लिम शिक्षा के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे-

1. इस्लाम धर्म का प्रसार-

मुस्लिम काल में शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य भारतीयों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना था। स्पष्ट है कि इस्लाम धर्म के प्रचार एवं प्रसार में शिक्षा का सहारा लिया गया था।

2. इस्लामी संस्कृति का प्रसार-

मुस्लिम कालीन शिक्षा का दूसरा महत्त्वपूर्ण उद्देश्य इस्लाम धर्म के रीति-रिवाजों, परम्पराओं, सिद्धान्तों तथा कानूनों को भारतीयों में फैलाना था। भारतवर्ष में मुस्लिम शासन के समय अनेक हिन्दुओं ने विभिन्न कारणों के वशीभूत होकर इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। इन नवदीक्षित मुसलमानों को शिक्षा के द्वारा मुस्लिम संस्कृति से परिचित कराना अत्यन्त आवश्यक था।

3. मुसलमानों में ज्ञान का प्रसार-

ज्ञान की प्राप्ति शिक्षा के द्वारा ही सम्भव हो सकती है। इसलिये मुस्लिम शिक्षा का एक उद्देश्य मुसलमानों में ज्ञान का प्रसार करना था।

4. मुस्लिम शासन को सुदृढ़ करना-

मुस्लिम शासकों ने शिक्षा को अपनी राजनैतिक स्वार्थ सिद्धि का साधन भी माना। लगभग सभी मुस्लिम शासकों ने शिक्षा के द्वारा अपने शासन को अधिकाधिक दृढ़बनाने का प्रयास किया क्योंकि मुसलमान शासकों ने शासन-व्यवस्था में मुस्लिम संस्कृति को अधिक स्थान दिया। इसलिये शासन-व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिये मुस्लिम संस्कृति में निपुण जनितयों की आवश्यकता भी थी। इसके अतिरिक्त वह ऐसे नागरिक तैयार करना चाहते थे, जो मुस्लिम शासन का विरोध न कर सकें।

5. सांसारिक ऐश्वर्य की प्राप्ति –

मुसलमान सांसारिक वैभव तथा ऐश्वर्य को अधिक महत्त्व देते थे। मुस्लिम संस्कृति में परलोक पर विश्वास नहीं किया जाता। अतःशिक्षा कोआध्यात्मिक विकास का साधन न मानकर भावी जीवन की तैयारी माना जाता है। सम्भवत: इसी कारण से मुस्लिम काल में शिक्षा का एक उद्देश्य विद्यार्थियों को इस प्रकार से तैयार करना था कि वे अपने भावी जीवन को सफल बना सकें तथा सांसारिक उन्नति कर सकें। चरित्र का निर्माण-मुस्लिम शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करना था। मोहम्मद साहब ने चरित्र के निर्माण पर अतिशय बल दिया था। उनका कहना था कि इस्लाम के सिद्धान्तों के अनुसार उत्तम चरित्र का निर्माण करके ही व्यक्ति जीवन में सफलता हस्तगत कर सकता है। अत: मकतबों और मदरसों में छात्रों में अच्छी आदतों और उत्तम चरित्र का निर्माण करने के लिये शिक्षकों द्वारा निरन्तर प्रयास किया जाता था।

7. धार्मिकता का समावेश-

धर्म की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये मुसलमानों में धार्मिकता की भावना को समाविष्ट करना अनिवार्य था। यही कारण था कि मकतबों और मदरसों को साधारणतया मस्जिदों से सम्बद्ध कर दिया गया, जहाँ प्रतिदिन सामूहिक नमाज एक सामान्य बात यो। मकतबों और मदरसों में शिक्षा ग्रहण करनेवाले छात्रों में इस धार्मिक वातावरण द्वारा धार्मिकता का समावेश किया जाता था। साथ ही उनको जीवन में धर्म के महत्त्व एवं गौरव से परिचित कराया जाता था।

मध्यकालीन शिक्षा की विशेषताएँ
Characteristics of Mughal Period Education

मध्यकालीन शिक्षा की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. बिस्मिल्लाह रस्म –

मुसलमानों की शिक्षा ‘बिस्मिल्लाह’ रस्म के बाद प्रारम्भ होती थी। जब बालक 4 वर्ष, 4 माह, 4 दिन की आयु का होता था तब उसे किसी मुल्ला अथवा मौलवी के सामने ले जाया जाता था। बालक सम्बन्धियों के सामने कुरान की कुछ आयतों का पाठ करके अथवा ‘बिस्मिल्लाह’ का उच्चारण कर अपनी शिक्षा प्रारम्भ करता था। धनी तथा सम्पन्न व्यक्ति मौलवी साहब को अपने घर पर ही बुलाकर बालकों की बिस्मिल्लाह रस्म अदा करा देते थे।

2. शिक्षा संस्थाएँ-

मुस्लिम शासन के समय शिक्षा मकतब तथा मदरसों में दी जाती थी। सर्वप्रथम प्रारम्भिक शिक्षा के लिये बालक को मकतब भेजा जाता था। यहाँ प्रवेश से पहले ‘बिस्मिल्लाह’ नामक रस्म अदा की जाती थी। ‘मकतब’ शब्द की व्युत्पत्ति अरबी भाषा में ‘कुतुब’ शब्द से हुई है। इसका अर्थ है-लिखना। यहाँ अक्षर ज्ञान, पैगम्बरों के सन्देशों, उच्चारण एवं धार्मिक ग्रन्थ से सम्बन्धित शिक्षा दी जाती थी तथा पत्र व्यवहार, युसुफ जुलेखा गुलिस्ता, बोस्तां, अर्जीनवीसी, सिकन्दरनामा, धार्मिक कविताओं, लैला-मजनू, फारसी व्याकरण तथा बातचीत के ढंग की भी शिक्षा दी जाती थी। मकतबों की शिक्षा प्राप्त करने के बाद छात्र मदरसों में प्रवेश लेते थे। यहाँ उच्च शिक्षा की व्यवस्था की जाती थी। मकतबों की तरह यह भी मस्जिदों से सम्बद्ध होते थे। इनमें विद्वान् उस्तादों द्वारा भौतिक एवं धार्मिक शिक्षा दी जाती थी। अकबर के शासनकाल में मदरसों में गणित, कानून, कृषि, अर्थशास्त्र, इतिहास एवं ज्योतिष, तर्कशास्त्र, नीतिशास्त्र, राजतन्त्र, व्याकरण, यूनानी चिकित्सा, अरबी साहित्य तथा गृहशास्त्र आदि विषय पढ़ाये जाते थे। सभी मदरसों में सभी विषय नहीं पढ़ाये जाते थे। प्रत्येक मदरसा कुछ विशेष विषयों के लिये प्रसिद्ध था। कुछ मदरसों के साथ छात्रावास भी संलग्न थे।

3. शिक्षण विधि –

मुस्लिमकालीन शिक्षा मुख्यतः मौखिक थी तथा पाठ्यवस्तु को कण्ठस्थ करने पर बल दिया जाता था। शिक्षक भाषण विधि प्रयोग करते थे। वे न केवल छात्रों की व्यक्तिगत कठिनाइयाँ दूर करते थे वरन् उन्हें स्वाध्याय हेतु भी प्रेरित करते थे। मानीटर प्रणाली उस काल में भी प्रचलति रही। इसमें उच्च कक्षाओं के छात्र निम्न कक्षाओं के छात्रों को पढ़ाते थे। मदरसों में ग्रन्थों को देखने तथा उनकी विवेचना करने की व्यवस्था थी। शिक्षा फारसी भाषा के माध्यम से दी जाती थी तथा शास्त्रार्थ एवं वाद-विवाद भी होते थे।

4. गुरु-शिष्य सम्बन्ध –

मुस्लिमकाल में भी प्राचीनकाल के समान अध्यापक तथा छात्रों के सम्बन्ध बड़े घनिष्ठ होते थे। शिक्षकों को समाज में सम्मानीय स्थान दिया जाता था। यद्यपि शिक्षकों को अत्यन्त अल्प वेतन मिलता था फिर भी उन्हें सभी स्थानों पर बड़ा आदर मिलता था। अध्यापक छात्रों में श्रद्धा पाकर पूजनीय बन जाता था तथा छात्र गुरु के आदेशों का पालन करके अनुशासित, विनम्र तथा सहनशील बन जाते थे। मदरसों के साथ छात्रावास होनेये अध्यापक छात्रों के व्यक्तिगत सम्पर्क में रहते थे। इस सम्पर्क के कारण छात्र अपने उत्तरदायित्व का पालन बड़े मनोयोग से करते थे तथा शिक्षक अपनी योग्यता एवं आदर्श व्यवहार से छात्रों पर अमिट छाप छोड़ता था। परन्तु मुस्लिम काल के अन्तिम वर्षों में अध्यापक-छात्र सम्बन्धों की घनिष्ठता तथा गुरुभक्ति के आदर्श लुप्त होने लगे थे तथा छात्र अनुशासनहीनता दृष्टिगोचर होने लगी थी। औरंगजेब ने भरे दरबार में अपने अध्यापक शाहसालेह का अपमान किया था।

5. परीक्षा प्रणाली –

मुस्लिम शासकों के समय में भी किसी प्रकार की व्यवस्थित परीक्षा प्रणाली विकसित नहीं हुई थी। शिक्षक अपने दृष्टिकोण के आधार पर छात्रों को एक कक्षा से दूसरी कक्षा में प्रोन्नत करते थे। शिक्षा की समाप्ति पर भी किसी प्रकार का प्रमाण-पत्र नहीं दिया जाता था परन्तु अपने विषय में अद्वितीय प्रतिभा दिखाने वाले छात्रों को काबिल, आलिम, फाजिल आदि उपाधियाँ दी जाती थीं। साहित्य के छात्रों को ‘काबिल’, धार्मिक शिक्षा के छात्रों को ‘आलिम’ तथा तर्क एवं दर्शन के छात्रों को फाजिल’ की उपाधि दी जाती थी

6. दण्ड तथा पुरस्कार-

इस काल में छात्र अत्यधिक अनुशासित जीवन व्यतीत करते थे। दैनिक पाठ तैयार न होने, झूठ बोलने, अनैतिक आचरण करने अथवा अनुशासन भंग करने पर शिक्षक शारीरिक दण्ड देते थे। इस दण्ड, के बारे में कोई निश्चित नियम नहीं थे परन्तु शिक्षक बेतें, कोड़े, लात, घूसा, थप्पड़ आदि मारने, मुर्गा बनाने, खड़ा करने जैसे दण्ड दिया करते थे। इस काल में चरित्रवान् तथा योग्य छात्रों को शिक्षक, राजा एवं उदार धनी लोग पुरस्कृत भी करते थे। सुयोग्य छात्रों को उच्च शिक्षा पाने के बाद राज्य के विभागों में उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता था।

7. स्त्री शिक्षा-

मुस्लिम शासन के समय महिलाओं में पर्दा प्रथा का प्रचलन होने के कारण नारी शिक्षा का विकार बहुत कम था। कम आयु की बालिकाएँ तो मकतबों में जाकर प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण कर लेती थीं परन्तु उच्च शिक्षा के लिये घर उन्हें पर ही व्यवस्था करनी होती थी। इसलिये उच्च शिक्षा केवल शाही तथा अमीर घरानों तक ही सीमित थी। मुस्लिम काल में नारी शिक्षा परिवार के व्यक्तिगत उद्यम तथा आर्थिक क्षमता पर निर्भर करती थी। इसलिये कुछ परिवारों की बालिकाएँ शिक्षा प्राप्त करने में सफल सिद्ध हो सकी। स्पष्ट है कि मुस्लिम काल में नारी शिक्षा की उपेक्षा थी।

8. व्यावसायिक शिक्षा-

मुस्लिम शासकों ने ललितकला, हस्तकला तथा वास्तुकला जैसी व्यावसायिक शिक्षा को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया। मुस्लिम काल में दस्तकारी, नक्काशी, जरी, मलमल, हाथी दाँत तथा पच्चीकारी आदि कला-कौशल सम्बन्धी कार्य अत्यन्त उच्च कोटि के किये जाते थे। यद्यपि इन कलाओं की शिक्षा देने के लिये कोई औपचारिक संस्थाएँ नहीं थीं परन्तु इन कलाओं में दक्ष कारीगरों के साथ काम करके छात्रगण इन कलाओं का प्रशिक्षण प्राप्त करते थे। मुस्लिम शासकों को अपने शासन की रक्षा के लिये निरन्तर युद्ध लड़ने पड़ते थे। इसलिये इस काल में सैनिक शिक्षा का भी पर्याप्त विकास हुआ। निपुण योद्धाओं के द्वारा घुड़सवारी, तीरन्दाजी, युद्ध-संचालन एवं अस्त्र-शस्त्रों का प्रशिक्षण दिया जाता था।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer:Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment