अस्थि पीड़ित बालकों की समस्या, विशेषता एवं शैक्षिक रणनीति का वर्णन कीजिए।
अस्थि पीड़ित बालक की समस्या-
अस्थि पीड़ित बालक – अस्थि विकलांग बालक का जीवन समस्याओं से भरा होता है। उन्हें चलने-फिरने में दिक्कत होती है जिसके कारण उनका जीवन दुरूह हो जाता है। अस्थि विकलांगता उनके पूरे शरीर को प्रभावित करती है। इसका असर उनकी माँसपेशियों पर पड़ता है, यह स्थिति उनके शरीर को विकृति कर देती है।
अस्थि बाधित बच्चों की विशेषताएँ-
अस्थि विकलांगता की मुख्य विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-
1. अस्थि बाधित बालकों के लक्षण, गुण, स्वरूप सामान्य बालकों से भिन्न होते हैं।
2. यह उन बालकों पर लागू होता है जो सामान्य बालकों से अलग हों, स्मरणशक्ति अधिक हो।
3. एक अस्थि बाधित बालक शारीरिक, मानसिक, भावानात्मक, सामाजिक आधार पर सामान्य बालक से बिल्कुल अलग होते हैं। सामान्य बालक की अपेक्षा विकास तीव्र गति से होता है।
4. एक अस्थि बाधित बालक वह है जो सामान्य शिक्षा कक्ष तथा सामान्य शिक्षा कार्यक्रमों से पूर्णतया लाभान्वित नहीं हो सकता, क्योंकि उसकी विकास की सामर्थ्य अधिक होती है।
5. अस्थि बाधित बालक की अधिकतम सामर्थ्य के विकास के लिये उसे की कार्यप्रणाली तथा उसके साथ किये जाने वाले व्यवहार में परिवर्तन की आवश्यकता होती है।
6. एक अस्थि बाधित बालक शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक तथा शैक्षणिक उपलब्धियों की सभी धाराओं में सम्मिलित होता है।
अस्थि विकलांग बालकों की शिक्षा (Education of Multiple Handi-capped Child)-
अस्थि विकलांग बालक को शिक्षित करना एक जटिल कार्य है तथापि यह दुर्घटनाओं के नहीं कहा जा सकता है कि उसे शिक्षित नहीं किया जा सकता है। जगत प्रसिद्ध हेलन केलर (Helen Keller) श्रवण, दृष्टि, वचन और संवेग के क्षेत्र में अपंग थी, परन्तु माता-पिता प्रयास तथा आत्मबल के कारण वह अपनी अपंगता पर विजय प्राप्त करने में सफल रही है उसने एक अपेक्षाकृत स्वतन्त्र जीवन व्यतीत किया।
अस्थि विकलांग बालक एवं उनकी शिक्षा का ढंग-
अस्थि विकलांग बालक ऐसे दोष से पीड़ित होते हैं जिसके कारण वे साधारण दशाओं में अपनी माँसपेशियाँ, हड्डी या जोड़ का अभ्यास नहीं कर पाते। ये बालक या तो पैदा दोषयुक्त होते हैं या परिणामस्वरू या किसी बीमारी के प्रभाव के कारण दोषयुक्त हो जाते हैं।
इनकी मानसिक योग्यता या तो साधारण होती है या तीव्र होती है। ये लोग दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करते हैं, लेकिन जब दूसरों से बात करते हैं तो शारीरिक कमी के कारण इनमें हीन भावना आ जाती है। इस प्रकार बहुल विकलांग बालक की शिक्षा को संगठित करने के साथ उनमें समायोजन भी लाया जाये। इसमें कुछ बातें आवश्यक हैं जो उनकी शिक्षा से ध्यान में रखनी चाहिए-
1. क्योंकि शारीरिक न्यूनता ग्रसित साधारण बुद्धि के होते हैं। अतः उन्हें शिक्षा द्वारा मानसिक विकास के लिये पूर्ण अवसर देना चाहिए।
2. शिक्षा द्वारा उनके अन्दर इस प्रकार की भावना उत्पन्न करनी चाहिए, जिससे वे अपनी हीनता कम कर सकें और उपयुक्त से उपयुक्त व्यवहार को विकसित कर सकें।
3. उनके भद्देपन को पाठशाला में पूर्णरूपेण व्यवस्थित करने के लिए सामग्री होनी चाहिए। उनके लिये विशेष प्रकार की मेज, कुर्सी आदि होनी चाहिए, जिससे वह आराम से बैठ सकें और अपने शरीर पर जोर दिये बगैर पढ़ने और लिखने का कार्य कर सके।
4. ऐसे बालकों के लिए अलग कक्षा के कमरे हों तो अच्छा है। जैसी कि विद्यालय की इमारत में जगह हो, उसके अनुसार उचित प्रबन्ध करना चाहिए। अलग कमरा होने से ऐसे बालकों को शारीरिक विकास की सुविधा मिल सकती है। किन्तु उनका सामाजिक विकास उचित रूप से न हो सकेगा।
5. अपंग बालकों या बहुल विकलांग को हमें ऐसी व्यावसायिक शिक्षा देनी चाहिए जो उनकी शारीरिक न्यूनतम ग्रसितता में बाधक न हो। वह एक फौजी या भट्टी में कोयला डालने वाला नहीं हो सकता किन्तु बैठने वाली नौकरी के योग्य उसे बनाना चाहिए, जिसे वह आसानी से कर सके और सफलता प्राप्त कर सके।
इसके अतिरिक्त निम्नानुसार कुछ विशेष प्रयास करने पड़ेंगे-
1. पृथकीकरण (Segregation)-
अस्थि विकलांग बालक को सामान्य कक्षा में बैठाकर पढ़ाना असम्भव-सा है। अध्यापक ऐसे बालकों की ओर व्यक्तिगत ध्यान इसलिए नहीं दे सकते हैं क्योंकि उन्हें अन्य बालकों को पढ़ाना और अन्य विद्यालयी कार्य करने होते हैं। अस्थि विकलांग बालक भिन्न-भिन्न प्रकार की विकलांगता से पीड़ित होते हैं। अतः उन्हें विशेष और व्यक्तिगत ध्यान की अति आवश्यकता है। इसलिए उन्हें सामान्य कक्षा में न बैठाकर विशेष पृथक कक्षा में बैठाया जाना चाहिए, जहाँ साधन अध्यापक (Resources Teacher) विशेषज्ञ (Ex-pert) और मनोवैज्ञानिक की देख-रेख में बालक शिक्षा ग्रहण करेगा। परन्तु, यदि विकालांगता गम्भीर है और बालक दो से अधिक प्रकार की विकलांगता का शिकार हो तो उसके लिए विशेष विद्यालयों का आयोजन करना चाहिए क्योंकि जिन अनेक उपकरणों, विशेषज्ञों, चिकित्सा सुविधाओं और मनोचिकित्सकों की आवश्यकता ऐसे बालकों को है वह प्रत्येक सामान्य बालक हेतु बनाये विद्यालयों में उपलब्ध नहीं करायी जा सकती। इन पृथक विद्यालयों में बालकों को यदि पूर्णकालिक रहने की सुविधा दी जाय तो वह बालक के लिए अधिक सुविधाजनक और लाभप्रद होगा। इसका कारण यह है कि बालक चौबीस घंटे विशेषज्ञों की देख-रेख में रहेगा और विशेष उपकरणों की सुविधा प्राप्त कर सकेगा।
2. शैक्षिक सुविधाएँ (Education Facilities)-
अस्थि विकलांग बालक को जो केवल एक प्रकार की विकलांगता से पीड़ित होता है, को दी गयी सूविधा में अस्थि विकलांग बालक हेतु रूपान्तर अथवा सुधार अथवा परिवर्तन करना पड़ता है। जैसे- एक श्रवण क्षतियुक्त बालक को शिक्षित करने के लिए चमकीली (Flashing) रोशनी का प्रयोग किया जाता है परन्तु एक ऐसे बालक के लिए जो श्रवण क्षतियुक्तता से पीड़ित तो है ही साथ ही अन्धा भी है उसके लिए चमकीली रोशनी कोई अर्थ नहीं रखती है। इसी प्रकार रंग द्वारा गूंगे और बहरे बालकों को पढ़ाया जा सकता है परन्तु बहरे-अन्धे बालक को नहीं। कहने का तात्पर्य यह है कि यह समझना जो सुविधाएँ हम एक ऐसे बालक को देते हैं जो अन्धा और जो सुविधाएँ हम एक ऐसे बालक को देते हैं जो बहरा है, उनका समुच्चय उस अस्थि विकलांग बालक को दिया जा सकता है जो अन्धा और बहरा दोनों ह, सर्वथा अनुचित और अप्रभावशाली है। बहुल विकलांग बालक हेतु उनकी विकलांगता के विभिन्न संचयों (Different Combination) के अनुसार शैक्षिक सुविधाएँ उपलब्ध करायी जानी चाहिए। उसके लिए प्रत्येक सम्भावित संचय के अनुसार शैक्षिक प्रोग्राम बनाया जाना चाहिए। अमेरिका में तैयार कुछ इस प्रकार के प्रोग्रामों की सूची निम्नलिखित है-
(i) एम.आई.टी. लोगो प्रोग्राम (MIT LOGO Programme)
(ii) कुछ जैव-चिकित्सकीय इन्जीनियरिंग (Biomedical Engineering) विशेषज्ञों ने अभिनव साधनों (Innovative Devices) की रचना की है जिसकी सहायता से कुछ बहुल विकलांग बालक गति कर सकते हैं और अपने को संचारित (Communicate) कर सकते हैं।
(iii) सेटली (Sattele) में एक स्नायुशारीरिक वैज्ञनिक, विद्युत इन्जीनियर और इलेक्ट्रॉनिक तकनीशियन (Neurophysiologist, Electrical Engineer and Electronics Tecnician) ने मिलकर एक ऐसा प्रोग्राम बनाया है, जिसमें कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो-
(अ) गम्भीर रूप से पीड़ित बहुल विकलांग बालक को सिर सन्तुलन में सहायता करते हैं।
(ब) मांसपेशियों को नियंत्रित करने में सहायता करते हैं, और
(स) श्रवण
उत्तेजकों को संचार हेतु दृश्य चित्रों में परिवर्तित कर देते हैं। इस प्रकार ये प्रोग्राम प्रमस्तिष्कीय पक्षाघाती, अन्धे बहरे, गूंगे आदि गम्भीर रूप से अस्थि विकलांग बालकों के लिए एक वरदानस्वरूप हैं। भारतवर्ष में भी ऐसे प्रोग्राम विकसित किये जाने चाहिए और पृथक बहुल विकलांग विद्यालयों को उपलब्ध कराये जाने चाहिए। इस प्रकार उचित शैक्षिक सुविधाएँ बहुल विकलांग बालक की शिक्षा में एक महत्त्वपूर्ण सोपान हैं।
3. शिक्षण (Teaching)-
सभी अस्थि विकलांग बालकों के लिए एक-सी शिक्षण व्यवस्था नहीं हो सकती है, क्योंकि प्रत्येक बालक में विकलांगता का अनोखा संचय होता है। अतः शिक्षण व्यवसाय भी प्रत्येक भिन्न प्रकार के संचय के अनुसार भिन्न होगा। सर्वप्रथम बहुल विकलांगता के अनुसार उद्देश्य निर्धारित किये जाने चाहिए जो बहुल विकलांग बालकों में प्रत्येक के लिए भिन्न होंगे। प्रायः बहुल विकलांग बालकों को शिक्षित करने के दो उद्देश्य होते हैं-
(अ) गामक क्रियाएँ सिखाना
(ब) बौद्धिक कार्य सिखाना
(अ) गामक क्रियाएँ सिखाना-
जिन गामक क्रियाओं का शिक्षण किया जाना है, वे हैं- (i) बैठना, (ii) खड़े होना, (iii) पानी का पीना, (iv) खाना खाना, (v) खड़े रहना, (vi) चलना, (vii) खेल कौशल सीखना, (viii) शौच आदि करना।
कैलवर्ट आदि ने व्यवहार में सुधार और विकास हेतु निम्नलिखित क्षेत्र की क्रियाओं पर जोर दिया है-
(i) खाना और पीना, (ii) कपड़े पहनना, (iii) शौचादि की शिक्षा, (iv) माँसपेशियों को मजबूत करना और आसन, (७) गति, (vi) खेल, (vii) अनुकूल प्रतिक्रियाएँ।
इन सभी क्रियाओं में धनात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास किया जाना चाहिए। इस प्रकार बहुल विकलांग के शिक्षण का प्रथम अध्याय उन्हें दिन प्रतिदिन के कार्य करने योग्य बनाना है और स्व-सहायता करने की कला सिखाता है।
(ख) बौद्धिक कार्य सिखाना-
बौद्धिक कार्य सिखाने के लिए सम्पूर्ण तैयारी और कार्य विश्लेषण (Task Analysis) की आवश्यकता है। यारनाल द्वारा ज्यामिति में बहरे और अन्धे बालकों को पढ़ाने का अत्यन्त प्रभावशाली तरीका है और यह एक उदाहरण भी प्रस्तुत करता है। इस प्रकार के पाठ विभिन्न विषयों और क्षेत्र में विकसित किये जाने चाहिए। गोल्ड और रिटनहाउन के द्वारा प्रतिपादित उन निर्देशों जो अन्धे और बहरे बहुल विकलांग को शिक्षित करने के लिए आठ मानक चिह्नों के सम्बन्ध में है, का पालन भी बौद्धिक कार्यों के शिक्षण में सहायक हो सकता है। संगीत और कला का प्रयोग भी शिक्षण विधि के रूप में हो सकता है। संगीत और कला मुख्यतः निम्नलिखित रूप से सहायक सिद्ध होते हैं-
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