जनजातियों में जीवन साथी चुनने के तरीके पर प्रकाश डालिए।
जनजातियों में जीवन साथी चुनने के तरीके प्रचलित हैं जो इस प्रकार हैं- (1) परिवीक्षा विवाह, (2) अपहरण विवाह, (3) विनिमय विवाह, (4) परीक्षा विवाह, (5) क्रय विवाह, (6) सेवा द्वारा विवाह, (7) सहमति या सहपलायन विवाह, (8) हठ विवाह
(1) परिवीक्षा विवाह (Probationary Marriage) –
इस प्रकार के विवाह में होने वाले वर-वधू को एक दूसरे को भली-भांति समझने के लिए एक साथ रहने का अवसर प्रदान किया जाता है। यदि वे इस परिवीक्षाकाल के पश्चात् विवाह करना चाहते हैं तो उनका विवाह कर दिया जाता है। लेकिन यदि दोनों अनुकूलन न होने की दशा में पृथक हो जाते हैं तो युवक को कन्या के माता-पिता को कुछ हर्जाना देना पड़ता है। विवाह की यह प्रथा केवल असम की कूकी जनजाति में पायी जाती है।
(2) अपहरण विवाह (Marriage by Capture) –
इस प्रकार की विवाह पद्धति में पुरुष स्त्री को बलपूर्वक छीनकर ले जाता है और उसे अपनी पत्नी बना लेता है। बलपूर्वक छीनकर विवाह करने की पद्धति विशेष रूप से छोटा नागपुर के हो, गोंडा, खरिया, संथाल, मुण्डा, बिरहोर, भील और नागा जनजाति में प्रचलित है। ‘हो’ जनजाति ऐसे विवाह को ‘ओपोरतिपी और गोंड जनजाति इसे ‘पोंसीओथुर’ कहती हैं। कुछ जनजातियों में कन्या का यह हरण वास्तविक होता है जैसा कि भील, खरिया, संथाल और मुण्डा जनजातियों में, जबकि अधिकांश जनजातियों में हरण केवल सांकेतिक अथवा प्रतीकात्मक ही होता है। जैसा कि गारों और गोंड जनजाति में। विरहोर जनजाति के युवक किसी लड़की से विवाह करने की इच्छा होने पर किसी सार्वजनिक स्थान पर उसकी मांग में जबरदस्ती सिंदूर भर देते हैं। संथालों में यही तरीका अपनाया जाता है। वे इस विधि को ‘अतुत वसला’ कहते हैं।
(3) विनिमय विवाह (Marriage by Exchange) –
इस प्रकार के विवाह लगभग सभी जनजातियों में पाये जाते हैं। इस प्रकार की पद्धति के अनुसार पति अपनी बहन का या अन्य किसी सम्बन्धित स्त्री का, पत्नी के परिवार के किसी पुरुष साथ विवाह कर देता है। इस प्रकार पत्नी के बदले अपने परिवार की लड़की देनी पड़ती है। आस्ट्रेलिया में बहन देकर पत्नी लेने की प्रथा सामान्य है।
(4) परीक्षा विवाह (Marriage by Trail) –
इस प्रकार के विवाह में पुरुष के शौर और साहस की परीक्षा ली जाती है। इस प्रकार के विवाह का बड़ा स्पष्ट रूप गुजराती भीलों में पाय जाता है। होली के अवसर पर उनमें ‘गोल-गोघेड़ों’ नामक उत्सव मनाया जाता है। इस समय एक लम्बे खजूर के पेड़ पर नारियल तथा गुड़ बांध दिया जाता है, पेड़ के नीचे कुंवारी युवतियां एक बना लेती हैं तथा कुंवारा उस गोले को तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ने की चेष्टा करता है। यदि इस प्रयास में युवक सफल हो जाता है तो उसे यह अधिकार होता है कि वह किसी भी युवती से जो गोल में थी, विवाह कर सकता है। जबकि युवतियां युवक के प्रयत्नों में विभिन्न प्रकार के रोड़े अटकाती हैं, किन्तु सफल होने पर युवक किसी भी युवती से विवाह कर लेता है।
(5) क्रय विवाह (Marriage by Purchase) –
इस प्रकार के विवाह में वधू प्राप्त करने के लिए वधू के माता-पिता या उसके रिश्तेदारों को कुछ धन-राशि वधू मूल्य के रूप में देनी होती है। भारत में लगभग सभी जनजातियों में वधू मूल्य की प्रथा है। विशेषकर नागा, गोंड, सन्थाल, हो, ओराव, खरिया, कूकी, भील आदि में क्रय विवाह की प्रथा प्रचलित है। वधू मूल्य पैसा व वस्तुओं दोनों में ही दिया जा सकता है। कुछ जनजातियों में वधू-मूल्य की अधिकता के कारण लड़के-लड़कियां कुंवारे ही रह जाते हैं। मरडाक ने अपने जनजातीय अध्ययन के आधार पर बतलाया है कि 50% समाजों में वधू-मूल्य प्रथा का प्रचलन है।
(6) सेवा द्वारा विवाह (Marriage by Service) –
चूंकि वधू-मूल्य प्रथा ने अनेक जनजातियों में एक गम्भीर समस्या उत्पन्न कर दी है जिसका हल सेवा विवाह के द्वारा निकाला गया। इस प्रकार की पद्धति में जो पुरुष कन्या मूल्य नहीं चुका पाता, वह कन्या के पिता के घर रहकर कार्य करता है और उसी सेवा को कन्या मूल्य समझकर एक निश्चित समय के बाद माता- पिता अपनी लड़की का विवाह उसके साथ कर देते हैं। गोंड जनजाति में ऐसे व्यक्ति को ‘लामानई’ और बैगा में ‘लामसेना’ कहते हैं।
(7) सहमति या सहपलायन विवाह (Marriage of Elopement) –
इस प्रकार के विवाह की प्रथा बिहार की हो तथा राजस्थान की भील जनजाति में पायी जाती है। यदि युवक और युवती परस्पर विवाह करने के लिए पूर्णतया तैयार हों लेकिन उनके माता-पिता अथवा जनजातीय नियमों के कारण उन्हें इस विवाह की अनुमति न मिल पा रही हो, तब वे अपने गांव से जंगल अथवा बस्ती में पलायन कर जाते हैं और यहां वे तब तक रहते हैं जब तक उन्हें माता-पिता से विवाह की अनुमति न मिल जाये अथवा उनके सन्तान न हो जाये। सन्तान हो जाने के बाद उन्हें घर लौटने पर कुछ यातनायें भले ही मिलें लेकिन अंत में उनके विवाह को मान्यता मिल जाती है।
(8) हठ विवाह (Marriage by Intrusion) –
इस प्रकार के विवाह में जब स्त्री किसी पुरुष (प्रेमी) से विवाह करना चाहे लेकिन प्रेमी विवाह करने से मना कर दे, उस समय युवती उसके घर में घुसकर बैठ जाती है। लड़के के परिवार वाले उसे निकालने का पूरा प्रयास करते हैं। यदि लड़के के माता-पिता उसे निकालने में असफल हो जाते हैं तो लड़के को उस लड़की से विवाह करना ही पड़ता है। विवाह की यह पद्धति हो, बिरहोर, ओरॉव, कमार, संथाल आदि में पायी जाती है। कमर इसे ‘पैठू’ विवाह कहते हैं। इस प्रकार जनजातियों में परम्परागत रूप से जीवन साथी चुनने के अनेक तरीके प्रचलित हैं, जो कि वहां की सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों पर निर्भर है।
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