समाजशास्‍त्र / Sociology

सामाजिक प्रतिमानों की अवधारणा तथा उसकी विशेषताएँ एवं महत्व | Concept of social models

सामाजिक प्रतिमानों की अवधारणा

सामाजिक प्रतिमानों की अवधारणा

सामाजिक प्रतिमानों की अवधारणा तथा उसकी विशेषताएँ एवं महत्व 

सामाजिक प्रतिमान समाज के वे नियम हैं, जो समाज द्वारा स्वीकृत हैं, जिनका पालन समाज के अधिकांश लोग करते हैं, जो हमारे व्यवहारों एवं आचरणों को नियंत्रित रखते हैं तथा जो हमें करणीय एवं अकरणीय तथा उचित एवं अनुचित का अंतर बताते हैं, जिनका पालन करने पर समाज उचित पुरस्कार देता है और उल्लघंन करने पर दण्ड। स्पष्ट है कि समाज के आचरण सम्बंधी नियम ही सामाजिक प्रतिमान/मानदण्ड कहलाते हैं। व्यवहार के सांस्कृतिक एवं संस्थागत तरीकों को ही प्रतिमान की संज्ञा दी जाती है। सामाजिक प्रतिमान समाज द्वारा स्वीकृत और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पाये जाते हैं। मानव व पशु समाज में सबसे बड़ा भेद यह है कि मानव के पास संस्कृति है, जबकि पशुओं के पास नहीं। मानव न केवल संस्कृति को अपने जन्म के साथ विरासत में प्राप्त करता है, बल्कि वह स्वयं संस्कृति का निर्माणकर्ता भी है। संस्कृति मानव व्यवहार को प्रतिक्षण नियंत्रित करती रहती है। मनुष्य को अपनी प्रत्येक जरूरत की पूर्ति हेतु संस्कृति द्वारा निरित मार्ग का अनुसरण करना होता है। हम अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संस्कृति द्वारा निर्धारित जिन तरीकों को अपनाते हैं, वे ही मोटे अर्थों में प्रतिमान हैं।

सामाजिक प्रतिमानों की विशेषताएँ

सामाजिक प्रतिमानों या मानदण्डों की प्रकृति को और भी अधिक सुस्पष्ट करने के लिए उनकी निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया जा सकता है-

1. सामाजिक मानदण्ड का तात्पर्य उन सामाजिक नियमों से है, जिनका पालन करने की अपेक्षा उस समाज के सभी सदस्यों से की जाती है।

2. सामाजिक मानदण्डों में अनेक प्रकार के छोटे-बड़े नियम एवं उप-नियम भी होते हैं।

3. सामाजिक मानदण्ड सभी समाजों में अनिवार्य रूप से पाये जाते हैं। आदर्श नियमों से हीन समाज की कल्पना असम्भव है।

4. यह व्यवस्था लाखों वर्ष पुरानी है, जिसका विकास मानव समाज के एक अंग के रूप में हुआ हैं, क्योंकि यह भौतिक सामाजिक आवश्यकता की पूर्ति में सहयोग देते हैं।

5. सामाजिक दण्ड मनुष्य का मार्गदर्शन करते हैं और उसके अपने तथा अन्य लोगों के बारे में निर्णयों को निर्धारित करते हैं।

6. सामाजिक मानदण्ड समाज की वास्तविक परिस्थितियों से सम्बंधित होते हैं।

7. यह व्यक्तियों को प्रभावित करते हैं और स्वयं भी व्यक्ति से प्रभावित भी होते हैं।

8. इनका सम्बम्ध सामाजिक उपयोगिता व आवश्यकताओं से होता है। आवश्यकताओं के बदलने के साथ-साथ सामाजिक मानदण्डों में भी परिवर्तन आ जाता है।

9. इनका पालन मात्र बाहरी दबाव वश ही नहीं किया जाता, बल्कि इसलिए भी किया जाता है कि लम्बे समय से इनका पालन करने से वे मानव-व्यवहार के अभिन्न अंग बन चुके होते हैं।

10. सामाजिक प्रतिमानों में विकल्प भी पाये जाते हैं। वे यह भी इंगित करते हैं कि एक प्रतिमान की तुलना में दूसरा कौन-सा प्रतिमान चुनना चाहिए। किंतु पूर्णत: किसी एक प्रतिमान का चयन करने हेतु व्यक्ति को बाध्य नहीं किया जाता है।

11. सामाजिक मानदण्ड सापेक्ष होते हैं। वे सभी लोगों पर या सभी परिस्थितियों में समान रूप में लागू नहीं होते।

12. सामाजिक मानदण्ड भिन्न-भिन्न मानव समूह के मध्य पैदा होने वाले संघर्षों में उसके अस्तित्व की रक्षा भी करते हैं।

13. ये सामाजिक नियंत्रण के वे साधन हैं, जो कि मानव व्यवहारों को नियंत्रित व नियमित करते हैं।

14. सामजिक मानदण्ड लिखित व अलिखित दोनों प्रकार के होते हैं, यथा-परम्परा, प्रथा, रूढ़ियों और फैशन अलिखित और कानून लिखित मानदण्ड हैं।

15. सामाजिक मानदण्ड नैतिक कर्तव्य की भावना से जुड़े होते हैं। वे हमें यह बताते हैं कि किसी भी व्यक्ति को विद्यमान परिस्थितियों के अनुसार ही कुछ विशेष प्रकार के व्यवहार करने चाहिए।

सामाजिक प्रतिमानों का महत्व- सामाजिक प्रतिमानों का महत्व समाज के सदस्यों के व्यवहार को नियमित करने में है। सामाजिक प्रतिमानों के द्वारा ही सामाजिक मूल्यों को प्रभावपूर्ण बनाया जाता है। परिवार, विद्यालय, कार्यालय, या कारखाने में सभी व्यक्ति कुछ विशेष नियमों का पालन करते हुए अपने-अपने दायित्वों को पूरा करते हैं। ऐसा केवल इसलिए वे करते हैं कि विभिन्न सामाजिक प्रतिमान उन्हें यह बताते हैं कि किन नियमों का पालन करके वे ऐसा व्यवहार कर सकते हैं जो समाज द्वारा मान्य हो । सामाजिक प्रतिमान व्यक्ति की सामाजिकता की कसौटी है इसलिए इसे सामाजिक मानदण्ड अथवा सामाजिक आदर्श नियम भी कहा जाता है।

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