ग्रामीण समुदाय का अर्थ एवं परिभाषा
ग्रामीण समुदाय – ग्राम या ग्रामीण समुदाय वह क्षेत्र हैं जहां कृषि की प्रधानता, प्रकृति से निकटता, प्राथमिक सम्बन्धों की बहुलता, जनसंख्या की कमी, सामाजिक एकरूपता, गतिशीलतां का अभाव, दृष्टिकोणों एवं व्यवहारों में सामान्य सहमति, आदि विशेषताएं पायी जाती हैं।
बस्ट्रायड ने ‘ग्रामीणता’ के निर्धारण में दो आधारों (1) कृषि द्वारा आय अथवा जीवन- यापन, (2) कम घनत्व वाला जनसंख्या क्षेत्र, को प्रमुख माना है। मैरिल, और एलरिज लिखते है, “ग्रामीण समदाय के अन्तर्गत संस्थाओं और ऐसे व्यक्तियों का संकलन होता है जो छोटे केन्द्र के चारों ओर संगठित होते हैं तथा सामान्य प्राकृतिक हितों में भाग लेते हैं।” ग्रामीण समुदाय में मानव के सभी हितों की पूर्ति होती है।
सिम्स के अनुसार, “समाजशास्त्रियों में ‘ग्रामीण समुदाय’ को ऐसे बड़े क्षेत्रों में रखने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिसमें समस्त अथवा अधिकतर प्रमुख मानवीय हितों की पूर्ति होती है।”
सेण्डरसन ग्रामीण समदाय को परिभाषित करते हुए लिखते हैं, “एक ग्रामीण समुदाय में स्थानीय क्षेत्र के लोगों की सामाजिक अन्तःक्रिया और उनकी संस्थाएं सम्मिलित हैं जिसमें वह खेतों के चारों ओर बिखरी झोंपड़ियों तथा पुरवा या ग्रामों में रहती हैं और जो उनकी सामान्य क्रियाओं को केन्द्र है। “
इन्साक्लोपीडिया ऑफ सोशिल साइन्सेज के अनुसार, “एकाकी परिवार से बड़ा सम्बन्धित एवं असम्बन्धित लोगों का समूह जो एक बड़े मकान अथवा निवास के अनेक स्थानों पर रहता हो, घनिष्ठ सम्बन्धों में आबद्ध हो तथा कृषि योग्य भूमि पर मूल रूप से संयुक्त रूप में कृषि करता हो, ग्राम कहलाता है।”
फेयरचाइल्ड के अनुसार, “ग्रामीण समुदाय पड़ोस की अपेक्षा विस्तृत क्षेत्र हैं जिसमें आमने-सामने के सम्बन्ध पाये जाते हैं, जिसमें सामूहिक जीवन के लिए अधिकांशतः सामाजिक, शैक्षणिक, धार्मिक एवं अन्य सेवाओं की आवश्यकता होती है और जिसमें मूल अभिवृत्तियों (Attitudes) एवं व्यवहारों के प्रति सामान्य सहमति होती है।”
गांव (ग्रामीण समुदाय) की विशेषताएं
(1) जीवन-यापन प्रकृति पर निर्भर (Living is based on Nature) – गांव के लोगों का जीवन कृषि, पशुपालन, शिकार, मछली मारने एवं भोजन संग्रह करने, आदि की क्रियाओं पर निर्भर है। इन सभी कार्यों के लिए व्यक्ति को प्रकृति के प्रत्यक्ष और निकट सम्पर्क में रहना होता है। भूमि, मौसम, जंगल सभी प्रकृति के ही अंग हैं। मौसम के अनुरूप व्यक्ति अपने को ढालता है और व्यवसाय की प्रकृति को प्रभावित करने में प्राकृतिक कारकों का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है। वर्षा, शीत, गर्मी आदि भी कृषि को प्रभावित करते हैं और कृषि ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय है। नगर का जीवन आधार उद्योग है। इसलिए नगरवासियों का प्रकृति से अप्रत्यक्ष सम्पर्क होता है। वे मशीन, कोयला, कारखाने, लोहा, धातु, आदि निर्जीव पदार्थों के अधिक सम्पर्क में आते हैं।
(2) समुदाय का छोटा (Small Size of the Community)- प्रकृति पर प्रत्यक्ष निर्भरता समुदाय के आकार को छोटा बनाती है क्योंकि कृषि कार्य अथवा पशुचारण जीवन-यापन के लिए प्रति व्यक्ति भूमि की मात्रा अधिक चाहिए अन्यथा सभी लोगों का जीवन- में निर्वाह सम्भव नहीं हो पाता। नगर उद्योगों पर आश्रित होते हैं, जहां हजारों आदमी एक ही व्यवसाय अथवा कारखाने में काम करते हैं। उनके लिए अधिक भूमि की आवश्यकता नहीं होती। यही कारण है कि शहरों का आकार बढ़ता जाता है।
(3) कम जनसंख्या (Thin Population)- गांव में प्रति वर्ग मील जनसंख्या का अनुपात शहरों की अपेक्षा बहुत कम होता है। ग्रामीण लोगों के पास प्रति व्यक्ति भूमि अधिक होती है क्योंकि इसके बिना कृषि कार्य एवं पशु चारण सम्भव नहीं है। ग्रामीण लोग जीवन-यापन के विभिन्न स्रोतों के इर्द-गिर्द बिखरे रहते हैं। कम घनत्व के कारण ग्रामीण क्षेत्र घनी बस्ती की समस्याओं जैसे स्वास्थ्यपूर्ण वातावरण का अभाव, गन्दगी, बीमारी, मकानों की कमी, आदि से बचे रहते हैं।
(4) प्रकृति से घनिष्ठ सम्बन्ध (Close Contact with Nature) – ग्रामीण समुदाय का प्रकृति से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। ग्रामवासी प्रकृति की गोद में ही जन्म लेते हैं और मरते हैं। ग्रामीण लोग शुद्ध हवा, पानी, रोशनी, सदी, गर्मी, आदि का अनुभव करते हैं। खुला एवं स्वच्छ वातावरण, शीतल सुगन्धित हवा, पेड़-पौधे, लताएं और पशु-पक्षियों, आदि से ग्रामीणों का प्रत्यक्ष सम्पर्क होता है। वे ऋतुओं एवं प्राकृतिक दृश्यों का आनन्द लेते हैं जिसके लिए नगरवासी तरसते हैं।
(5) प्राथमिक सम्बन्धों की प्रधानता (Importance of Primary relations)- गांव का आकार छोटा होने से प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे को व्यक्तिगत रूप से जानता है। उनमें निकट, प्रत्यक्ष और घनिष्ठ सम्बन्ध होते हैं। ऐसे सम्बन्धों का आधार परिवार पड़ोस और नातेदारी है। ग्राम में औपचारिक सम्बन्धों का अभाव होता है। वे कृत्रिमता से दूर होते हैं, तथा उनमें पारस्परिक सहयोग एवं प्राथमिक नियन्त्रण पाया जाता है।
(6) सरल एवं सादा जीवन (Simple Living) – ग्रामीण लोगों का जीवन सरल और सादा होता है। वे नगर की तड़क-भड़क, चमक-दमक, आडम्बर और बनावटी जीवन से दूर होते हैं। उनके पास न तो साज-सज्जा और श्रृंगार की सामग्री ही होती है और न ही वे कृत्रिमता को पसन्द ही करते हैं। उन लोगों की आय भी इतनी नहीं होती कि वे जरूरत की चीजों के अतिरिक्त फैशन और साज-सज्जा पर खर्च कर सकें। साधारण और पौष्टिक भोजन, शुद्ध हवा और मोटा वस्त्र तथा विनम्र और प्रेमपूर्ण व्यवहार ग्रामीण लोगों की पसन्द है। प्रकृति पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भरता उन्हें सरल, छल रहित और सादगी से जीवन व्यतीत करने को प्रेरित करती है।
(7) सामुदायिक भावना (Community Feeling) – ग्राम शहर की अपेक्षा छोटा होता है, अतः वहां के लोगों में अपने गांव के प्रति लगाव और सभी में ‘हम’ की भावना पायी जाती है। शहरी लोगों में व्यक्तिगत स्वार्थ की प्रधानता होती है जबकि ग्रामीण लोग सारे गांव की भलाई की बात अधिक सोचते हैं। बाढ़, अकाल, महामारी और अन्य संकटकालीन अवसरों पर गांव के सभी लोग सामूहिक रूप से इन संकटों का मुकाबला करते हैं। वे ऐसे अवसरों पर देवताओं के यज्ञ, अनुष्ठान और पूजा कराते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को इस बात का अभिमान होता है कि वह किसी एक गांव का सदस्य है।
(8) संयुक्त परिवार (Joint Family)- भारतीय गांवों की सर्वप्रथम विशेषता है, संयुक्त परिवारों की प्रधानता। यहां पति-पत्नी व बच्चों के परिवार की तुलना में ऐसे परिवार अधिक पाये जाते हैं जिनमें तीन या अधिक पीढ़ियों सदस्य एक स्थान पर रहते हैं। इनका भोजन, सम्पत्ति और पूजा-पाठ साथ-साथ होता है। ऐसे परिवारों का संचालन परिवार के वयोवृद्ध व्यक्ति द्वारा होता है। वही परिवार के आन्तरिक और ब्राह्म कार्यों के लिए निर्णय लेता है। परिवार के सभी सदस्य उसकी आज्ञा का पालन करते हैं, उसका आदर और सम्मान करते हैं। संयुक्त परिवार प्रणाली भारत में अति प्राचीन है।
(9) कृषि मुख्य व्यवसाय (Agriculture as the main occupation)- भारतीय ग्रामों में निवास करने वाले लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। 70 से 75% तक लोग प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कृषि द्वारा ही अपना जीवन यापन करते हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि गांवों में अन्य व्यवसाय नहीं है। चटाई, रस्सी, कपड़ा, मिट्टी के एवं धातु के बर्तन बनाना, वस्त्र बनाना, गुड़ बनाना आदि अनेक व्यवसायों का प्रचलन गांवों में है। शिल्पकारी जातियां अपने-अपने व्यवसाय करती हैं तो सेवाकरी जातियां, कृषकों एवं अन्य जातियों की सेवा करती हैं।
(10) जाति प्रथा (Caste System) – जाति प्रथा भारतीय संस्कृति की मुख्य विशेषता है। जाति के आधार पर गांवों में सामाजिक संस्तरण पाया जाता है। जाति एक सामाजिक संस्था और समिति दोनों ही है। जाति की सदस्यता जन्म से निर्धारित होती है। प्रत्येक जाति का एक परम्परागत व्यवसाय होता है। जाति के सदस्य अपनी ही जाति में विवाह करते हैं, जाति की एक पंचायत होती. हैं जो अपने सदस्यों को नियन्त्रित करती है। जाति अपने सदस्यों के लिए खान-पान एवं सामाजिक सहवास के नियम भी बनाती है। जाति के नियमों का उल्लंघन करने पर सदस्यों को जाति से बहिष्कार, दण्ड अथवा जुर्माना, आदि सजा भुगतनी होती है। जाति-व्यवस्था में सर्वोच्च स्थान ब्राह्मणों का है। और सबसे नीचा स्थान अस्पृश्य जातियों का। इन दोनों के बीच क्षत्रिय और वैश्य जातियां हैं। जातियों के बीच परस्पर भेद-भाव और छुआछूत की भावना पायी जाती है।
(11) जजमानी प्रथा (Jajmani System)- जाति प्रथा की एक विशेषता यह हैं कि प्रत्येक जाति एक निश्चित परम्परागत व्यवसाय करती है। सभी जातियां परस्पर एक-दूसरे की सेवा करती हैं। ब्राह्मण विवाह, उत्सव एवं त्यौहार के समय दूसरी जातियों के यहां अनुष्ठान करवाते हैं तो नाई बाल काटने, धोबी कपड़े धोने ढोली ढोल बजाने, चमार जूते बनाने, जुलाहा कपड़े बनाने का कार्य करते हैं। जजमानी प्रथा के अन्तर्गत एक जाति दूसरी जाति की सेवा करती है और उसके बदले में सेवा प्राप्त करने वाली जाति भी उसकी सेवा करती है अथवा वस्तुओं में भुगतान प्राप्त करती है। एक किसान परिवार में विवाह होने पर नाई, धोबी, ढोली, चमार, सुनार सभी अपनी-अपनी सेवाएं प्रदान करेंगे। बदले में उन्हें कुछ नकद, कुछ भोजन, वस्त्र और फसल के समय अनाज दिया जाता है। भारतीय जजमानी प्रथा का अध्ययन करने वालों में ऑस्कर लेविस प्रमुख हैं। जजमानी प्रथा में दो प्रकार की जातियां होती हैं। एक को ‘जजमान’ और दूसरे को ‘कमीन’ कहा जाता है। सेवा प्राप्त करने वाली जातियां जजमान हैं तो सेवा प्रदान करने वाली ‘कमीन’, किन्तु होता यह है कि जिस परिवार के घर विवाह, मृत्यु, जन्म औरर उत्सव, आदि के अवसर पर अन्य जातियों द्वारा सेवाएं प्रदान की जाती हैं, उस दौरान वह परिवार जजमान कहलायेगा, लेकिन सेवा प्रदान करने वाले परिवार के घर पर भी ऐसे ही अवसरों पर पहले वाले परिवार से सेवा प्राप्त करने पर वह उसका जजमान होगा।
(12) जनमत का अधिक महत्व (Greater Importance of Public Opinion)- ग्रामवासी जनमत का सम्मान करते हैं और उससे डरते हैं। वे जनमत की शक्ति को चुनौती नहीं देते वरन् उसके सम्मुख झुक जाते हैं। पंच लोग जो कुछ कह देते हैं उसे वे शिरोधार्य करते हैं। पंच के मुंह से निकला वाक्य ईश्वर के मुंह से निकला वाक्य होता है। जनमत की अवहेलना करने वाले की निन्दा की जाती है। ऐसे व्यक्ति की समाज में प्रतिष्ठा गिर जाती है। कोई भी ग्रामीण इस प्रकार की स्थिति को पसन्द नहीं करेगा।
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