समुदाय का अर्थ एवं परिभाषा
समुदाय का अर्थ एवं परिभाषा- यदि शाब्दिक दृष्टि से समुदाय के अर्थ पर विचार करें तो हम पाते हैं कि अंग्रेजी का ‘Community’ (समुदाय) शब्द दो लैटिन शब्दों-‘com’ तथा ‘Munis’ से बना है। ‘Com’ शब्द का अर्थ ‘Together’ अर्थात् ‘एक साथ’ से और ‘Munis’ का अर्थ ‘Serving’ अर्थात् ‘सेवा करने’ से है। इन शब्दों के आधार पर समुदाय का तात्पर्य साथ-साथ मिलकर सेवा करने से हैं। अन्य शब्दों में, समुदाय का अर्थ व्यक्तियों के ऐसे समूह से हैं जो निश्चित भू-भाग पर साथ-साथ रहते हैं, और वे किसी एक उद्देश्य के लिए नहीं बल्कि सामान्य उद्देश्यों के लिए इकट्ठे रहते हैं, उनका सम्पूर्ण जीवन सामान्यतः यहीं व्यतीत होता है।
समुदाय को परिभाषित करते हुए प्रो. डेविस लिखते हैं “समुदाय सबसे छोटा ऐसा क्षेत्रीय समूह हैं जिसमें सामाजिक जीवन के समस्त पहलू आ जाते हैं।” इस परिभाषा में समुदाय के तीन तत्वों का उल्लेख किया गया है- (i) व्यक्तियों का समूह, (ii) निश्चित भौगोलिक क्षेत्र, एवं (iii) सामाजिक जीवन के सभी पहलुओं का समावेश ।
बोगार्डस (Bogardus) के अनुसार, “एक समुदाय एक ऐसा सामाजिक समूह है। जिसमें कुछ अंशों में, ‘हम की भावना’ पायी जाती है तथा जो एक निश्चित क्षेत्र में रहता है।”
जार्ज लुण्डबर्ग तथा अन्य ने समुदाय को परिभाषित करते हुए लिखा है, “एक मानव जनसंख्या जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करती है और जो सामान्य एवं अन्योन्याश्रित जीवन (Interdependent life) व्यतीत करती है।”
मैकाइवर तथा पेज के अनुसार, “जब किसी छोटे या बड़े समूह के सदस्य साथ-साथ इस प्रकार रहते हैं कि वे किसी विशेष हित में ही भागीदार नहीं होकर सामान्य जीवन की मूलभूत दशाओं या परिस्थितियों में भाग लेते हों तो ऐसे समूह को समुदाय कहा जाता है।” इन्हीं विद्वानों ने अन्यत्र लिखा है, “समुदाय सामाजिक जीवन का ऐसा क्षेत्र है जिसमें सामाजिक सम्बद्धता (Social Coherence) कुछ मात्रा में पायी जाती है।” स्पष्ट है कि आपने समुदाय को एक ऐसा क्षेत्रीय समूह माना जो एक सामान्य जीवन जीता है।
ऑगर्न तथा निमकॉफ के अनुसार, “एक सीमित क्षेत्र में सामाजिक जीवन के सम्पूर्ण संगठन को समुदाय कहा जाता है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं में स्पष्ट है कि समुदाय सामान्य सामाजिक जीवन में भागीदार लोगों का एक ऐसा समूह है जो किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करता है, और जिसमें हम की भावना या सामुदायि भावना पायी जाती है।
समुदाय की कुछ विशेषताएं (लक्षण)
1. स्वतः विकास (Spontaneous Growth) – समुदाय का निर्माण कुछ लोगों के द्वारा जान-बूझकर या नियोजित प्रयत्नों द्वारा नहीं किया जाता। इसका तो समय के बीतने के साथ-साथ स्वतः ही विकास होता है। जब कुछ लोग किसी स्थान विशेष पर रहने लगते हैं तो धीरे-धीरे उनमें हम की भावना पनपती है और वे वहां रहने वाले सभी लोगों के समूह को अपना समूह समझने लगते हैं। इस प्रकार की भावना के विकसित होने पर वह समूह समुदाय का रूप ग्रहण कर लेता है।
2. स्थायीपन (Permanency)- इसका तात्पर्य यह है कि प्रत्येक समुदाय एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में स्थायी रूप से रहता है। किसी भी अस्थायी समूह जैसे भीड़, श्रोता-समूह, या खानाबदोश झुण्ड को समुदाय नहीं माना जाता क्योंकि इनके साथ भौगोलिक क्षेत्र स्थायी रूप से जुड़ा हुआ नहीं होता। समुदाय एक ही स्थान पर स्थायी रूप से बना रहता है। जब तक कि भूकम्प, तूफान, बाढ़ या युद्ध के कारण वह पूरी तरह से नष्ट हो जाये। हम स्पष्टतः यह जानते हैं कि कौन-सा समुदाय किस भौगोलिक क्षेत्र में बसा हुआ है। इसका कारण समुदाय के साथ स्थायित्व के तत्व का जुड़ा होना है।
3. विशिष्ट नाम (Specific Name)- प्रत्येक समुदाय का अपना एक विशिष्ट नाम होता है जो उस समुदाय के लोगों में ‘हम की भावना’ जागृत करने और उसे बनाये रखने में योग देता है। प्रत्येक समुदाय के नाम के साथ एक विशिष्ट इतिहास जुड़ा होता है जो उसे एक व्यक्तित्व प्रदान करता है। उदाहरण के रूप में, दिल्ली एक ऐसा समुदाय है जिनके नाम के साथ एक लम्बा इतिहास जुड़ा हुआ है जो उसे विशिष्टता प्रदान करता है।
4. मूर्तता (Concreteness)- समुदाय एक मूर्त समूह है। इसका कारण यह है कि एक निश्चित भू-भाग पर बसे मनुष्यों के समूह के रूप में हम इसे देख सकते हैं। यद्यपि समुदाय से सम्बन्धित विभिन्न नियमों को तो नहीं देखा जा सकता, परन्तु मनुष्यों के रूप में इसे अनुभव अवश्य किया जा सकता है।
5. व्यापक उद्देश्य (Extensive Objective)- समुदाय का विकास किसी एक या कुछ विशिष्ट उद्देश्यों के लिए नहीं होता है। यह तो व्यक्तियों के जवीन की विभिन्न गतिविधियों का केन्द्र-स्थल है। इसमें अनेक समूह, समितियां, एवं संस्थाएँ समाहित होती हैं जो समुदाय के व्यापक लक्ष्यों की पूर्ति में योग देती हैं। समुदाय के उद्देश्य इस दृष्टि से भी व्यापक हैं कि यह किसी व्यक्ति विशेष, समूह विशेष या वर्ग विशेष के हित या लक्ष्यों की पूर्ति के लिए कार्य न करके सभी व्यक्तियों एवं समूहों के सभी प्रकार के लक्ष्यों की पूर्ति हेतु कार्य करता है।
6. सामान्य जीवन (Common Rules)- प्रत्येक समुदाय के कुछ सामान्य रीति- रिवाज, परम्पराएं, विश्वास, उत्सव एवं त्यौहार तथा संस्कार, आदि होते हैं जो उस समुदाय के लोगों के जीवन में एकरूपता उत्पन्न करने में योग देते हैं। समुदाय में ही व्यक्ति की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आदि आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। यहीं उसका सम्पूर्ण जीवन व्यतीत होता है। इस दृष्टि से समुदाय सामान्यताओं का एक ऐसा क्षेत्र है जहां व्यक्ति इस या उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपना सारा जीवन बिताने के लिए रहता है। इस प्रकार समुदाय में सदस्यों का सम्पूर्ण जीवन सामान्य रूप से व्यतीत होता है।
7. सामान्य नियम-व्यवस्था (Common Rules)- गिन्सबर्ग ने नियमों की सामान्य व्यवस्था को समुदाय की एक महत्वपूर्ण विशेषता माना है। सामान्य नियमों के माध्यम से सदस्यों के व्यवहार को निर्देशित किया जाता है, उन पर नियन्त्रण रखा जाता है। सामान्य नियमों से निर्देशित होने के कारण ही एक समुदाय विशेष के लोगों के व्यवहारों में बहुत कुछ समानता देखने को मिलती है। सामान्य नियम व्यवस्था का प्रभाव छोटे समुदायों जैसे ग्राम, समुदाय या जनजातीय समुदाय में विशेषतः पाया जाता है। जहां अनौपचारिक साधनों या अलिखित नियमों द्वारा व्यक्तियों के व्यवहारों को निर्देशित और नियन्त्रित किया जाता है।
8. आत्म-निर्भरता (Self- Sufficienc)- समुदाय एक आत्म-निर्भर समूह माना गया है जो अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं ही कर लेता है। इसका तात्पर्य यह है कि उसे किसी अन्य समुदाय पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं पड़ती। समुदाय की यह विशेषता आदिम समुदायों, जनजातीय समुदायों, या छोटे समुदायों में पायी जा सकती है, वर्तमान समय के बड़े समुदायों में नहीं। आज तो छोटे समुदायों, जैसे ग्रामों तक को अन्य ग्रामीण या नगरीय समुदायों पर निर्भर रहना पड़ता है। अतः किसी समय आत्म निर्भरता समुदाय की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी, परन्तु अब इसका महत्व कम हो गया है। अब तो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रत्येक समुदाय को कम या अधिक मात्रा में साधारणतः अन्य समुदायों पर निर्भर रहना पड़ता है। यह कहा जा सकता है कि आज भौतिक दृष्टि से तो समुदाय आत्म-निर्भर नहीं रहे हैं, परन्तु सामाजिक दृष्टि से आत्म-निर्भर अवश्य हैं क्योंकि सामाजिक जीवन के सभी पहलू समुदाय में आ जाते हैं।
9. अनिवार्य सदस्यता (Compulsory Membership)- प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी समुदाय का सदस्य अवश्य होता है। वह किसी न किसी क्षेत्र विशेष में अन्य लोगों के निकट रहता है, उसके साथ अन्तः सम्बन्ध क्रिया करता है। उसे अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी न किसी क्षेत्रीय समूह अर्थात् समुदाय में रहना पड़ता है। एक क्षेत्र विशेष में लम्बी अवधि तक अन्य लोगों के साथ रहने से उसमें अपने समुदाय के प्रति एक लगाव या अपनत्व का भाव पैदा हो जाता है। आज के युग में भौगोलिक और सामाजिक गतिशीलता के बढ़ जाने से लोग एक भौगोलिक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में चले जाते हैं, एक समुदाय को छोड़कर किसी अन्य समुदाय में जाकर रहने लग जाते हैं, परन्तु इतना अवश्य है कि सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी समुदाय का सदस्य अवश्य होता है।
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